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मौनी अमावस्या का महत्व

हिन्दू धर्मग्रंथों में माघ मास को बेहद पवित्र और धार्मिक पुण्य प्राप्ति का समय चक्र माना जाता है और इस मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस वर्ष इस समय प्रयाग अर्धकुम्भ का भी शुभ संयोग बनने से इस पर्व का महत्त्व भी और अधिक बढ़ गया है। वर्ष 1992 में तीन फरवरी के दिन मौनी अमावस्या सोमवार को पड़ने के कारण सोमवती हो गई थी। संयोग से उस दिन हरिद्वार अर्द्धकुंभ का प्रमुख स्नान भी था। इसी प्रकार इस बार मौनी अमावस्या चार फरवरी सोमवार को पड़कर सोमवती हुई है और प्रयाग अर्द्धकुंभ का मुख्य स्नान इसी दिन पड़ रहा है। संयोग यह भी है कि 27 वर्ष पूर्व जो सिद्धी योग था वह योग इस बार सिद्धी के साथ साथ महोदय योग के रूप में भी आ रहा है। सोमवती अमावस्या के दिन चंद्रमा का श्रवण नक्षत्र विद्यमान रहेगा। खास बात यह है कि भगवान सूर्य का प्रवेश इसी नक्षत्र में हो रहा है। सूर्य इस समय मकर राशि में मौजूद हैं। सूर्य के मकर राशि में रहते हुए मौनी अमावस्या का पड़ना अपने आप में एक महायोग है।

इस दिन के पवित्र स्नान को कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के समान ही माना जाता है। पवित्र नदियों और सरोवरों में देवी देवताओ का वास होता है। धर्म ग्रंथों में ऐसा उल्लेख है कि इसी दिन से द्वापर युग का शुभारंभ हुआ था। लोगों का यह भी मानना है कि इस दिन ब्रह्मा जी ने मनु महाराज तथा महारानी शतरुपा को प्रकट करके सृष्टि की शुरुआत की थी। उन्ही के नाम के आधार पर इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है।

चन्द्रमा को मन का स्वामी माना गया है और अमावस्या को चन्द्रदर्शन नहीं होते, जिससे मन की स्थिति कमज़ोर होती है। इसलिए इस दिन मौन व्रत रखकर मन को संयम में रखने का विधान बनाया गया है।

साधु, संत, ऋषि, महात्मा सभी प्राचीन समय से प्रवचन सुनाते रहे हैं कि मन पर नियंत्रण रखना चाहिये। मन बहुत तेज गति से दौड़ता है, यदि मन के अनुसार चलते रहें तो यह हानिकारक भी हो सकता है। इसलिये अपने मन रूपी घोड़े की लगाम को हमेशा कस कर रखना चाहिये। मौनी अमावस्या का भी यही संदेश है कि इस दिन मौन व्रत धारण कर मन को संयमित किया जाये। मन ही मन ईश्वर के नाम का स्मरण किया जाये उनका जाप किया जाये। यह एक प्रकार से मन को साधने की यौगिक क्रिया भी है। मौनी अमावस्या योग पर आधारित महाव्रत है। मान्यता है कि यदि किसी के लिये मौन रहना संभव न हो तो वह अपने विचारों में किसी भी प्रकार की मलिनता न आने देने, किसी के प्रति कोई कटुवचन न निकले तो भी मौनी अमावस्या का व्रत उसके लिये सफल होता है। सच्चे मन से भगवान विष्णु व भगवान शिव की पूजा भी इस दिन करनी चाहिये शास्त्रों में भी वर्णित है कि होंठों से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है, उससे कई गुणा अधिक पुण्य मन में हरि का नाम लेने से मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु और शिव दोनों की पूजा का विधान है। वास्तव में शिव और विष्णु दोनों एक ही हैं, जो भक्तों के कल्याण हेतु दो स्वरूप धारण किए हुए हैं।

शास्त्रों में इस दिन दान-पुण्य करने के महत्व को बहुत ही अधिक फलदायी बताया है। तीर्थराज प्रयाग में स्नान किया जाये तो कहने ही क्या यदि किसी व्यक्ति की सामर्थ्य प्रयाग त्रिवेणी के संगम अथवा अन्य किसी तीर्थ स्थान पर जाने की नहीं है तो उसे अपने घर में ही प्रात:काल उठकर दैनिक कर्मों से निवृत होकर नहाने के जल में गंगा जल मिलाकर स्नान आदि करना चाहिए या घर के समीप किसी भी नदी या नहर में स्नान कर सकते हैं क्योंकि पुराणों के अनुसार इस दिन सभी नदियों का जल गंगाजल के समान हो जाता है।

इस मास को भी कार्तिक के समान पुण्य मास कहा गया है। गंगा तट पर इस कारण भक्त एक मास तक कुटी बनाकर गंगा सेवन करते हैं। इस दिन श्रद्धालुओं को अपनी क्षमता के अनुसार दान, पुण्य तथा माला जप नियम पूर्वक करना चाहिए।

व्रत नियम
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प्रात:काल पवित्र तीर्थ स्थलों पर स्नान किया जाता है। स्नान के बाद तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, वस्त्रादि किसी गरीब ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को दान दिया जाता है। मान्यता है कि इस दिन पितरों का तर्पण करने से भी उन्हें शांति मिलती है।

विशेष कर स्नान , पूजा पाठ और माला जाप करने के समय मौन व्रत का पालन करें। इस दिन झूठ, छल-कपट , पाखंड से दूर रहे। यह दिन अच्छे कर्मो और पुण्य कमाने में बिताये। मानसिक जाप, हवन एवं दान करना चाहिए। दान में स्वर्ण, गाय, छाता, वस्त्र, बिस्तर एवं उपयोगी वस्तुओं का दान करना चाहिए। ऐसा करने से सभी पापों का नाश होता है। इस दिन किया गया गंगा स्नान अश्वमेध यज्ञ के फल के सामान पुण्य दिलवाता है।

मौनी अमावस्या के उपाय
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निर्णय सिंधु व्यास के वचनानुसार इस दिन मौन रहकर स्नान-ध्यान करने से सहस्त्र गौ दान का पूण्य मिलता है।

👉 शास्त्रो के अनुसार पीपल की परिक्रमा करने से ,सेवा पूजा करने से, पीपल की छाया से,स्पर्श करने से समस्त पापो का नाश,अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति होती है व आयु में वृद्धि होती है।

👉 पीपल के पूजन में दूध, दही, तिल मिश्रितमिठाई, फल, फूल,जनेऊ, का जोड़ा चढाने से और घी का दीप दिखाने से भक्तो की सभी मनोकामनाये पूरी होती है।
कहते है की पीपल के मूल में भगवान् विष्णु तने में शिव जी तथा अगर भाग में ब्रह्मा जी का निवास है।इसलिए सोमवार को यदि अमावस्या हो तो पीपल के पूजन से अक्षय पूण्य लाभ तथा सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

👉 इस दिन विवाहित स्त्रियों द्वारा पीपल के पेड़ की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन आदि से पूजा और पीपल के चारो और 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा करने का विधान होता है और हर परिक्रमा में कोई भी तिल मिश्रित मिठाई या फल चढाने से विशेष लाभ होता है। ये सभी 108 फल या मिठाई परिक्रमा के बाद ब्राह्मण या निर्धन को दान करे। इस प्रक्रिया को कम से कम 3 सोमवती तक करने से सभी समस्याओ से मुक्ति मिलती है।इस प्रदक्षिणा से पितृ दोष का भी निश्चित समाधान होता है।

👉 इस दिन जो भी स्त्री तुलसी या माँ पार्वती पर सिंदूर चढ़ा कर अपनी मांग में लगाती है वह अखंड सौभाग्यवती बनी रहती है।

👉 जिन जातको की जन्म पत्रिका में कालसर्प दोष है।वे लोग यदि सोमवती अमावस्या पर चांदी के बने नाग-नागिन की विधिवत पूजा कर उन्हें नदी में प्रवाहित करे,शिव जी पर कच्चा दूध चढाये,पीपल पर मीठा जल चढ़ा कर उसकी परिक्रमा करें,धुप दीप दिखाए,ब्राह्मणों को यथा शक्ति दान दक्षिणा दे कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करे तो निश्चित ही काल सर्प दोष की शांति होती है।

👉 इस दिन जो लोग व्यवसाय में परेशानी उठा रहे है,वे पीपल के नीचे तिल के तेल का दिया जलाकर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मन्त्र का कम से कम 5 माला जप करे तो व्यवसाय में आ रही दिक्कते समाप्त होती है।इस दिन अपने पितरों के नाम से पीपल का वृक्ष लगाने से जातक को सुख, सौभग्य,पुत्र की प्राप्ति होती है,एव पारिवारिक कलेश दूर होते है।

👉 इस दिन पवित्र नदियो में स्नान, ब्राह्मण भोज, गौ दान, अन्नदान, वस्त्र, स्वर्ण आदि दान का विशेष महत्त्व माना गया है,इस दिन गंगा स्नान का भी विशिष्ट महत्त्व है। माँ गंगा या किसी पवित्र सरोवर में स्नान कर शिव-पार्वती एवं तुलसी का विधिवत पूजा करें।

👉 भगवान् शिव पर बेलपत्र, बेल फल, मेवा, तिल मिश्रित मिठाई, जनेऊ का जोड़ा आदि चढ़ा कर ॐ नमः शिवाय की 11 माला करने से असाध्य कष्टो में भी कमी आती है।

👉 प्रातः काल शिव मंदिर में सवा किलो साबुत चांवल और तिल अथवा तिल मिश्रित मिष्ठान दान करे।

👉 सूर्योदय के समय सूर्य को जल में लाल फूल,चन्दन डाल कर गायत्री मन्त्र जपते हुए अर्घ देने से दरिद्रता दूर होती है।

👉 सोमवती मौनीअमावस्या को तुलसी के पौधे की ॐ नमो नारायणाय जपते हुए 108 बार परिक्रमा करने से दरिद्रता दूर होती है।

👉 जिन लोग का चन्द्रमा कमजोर है वो गाय को दही और चांवल खिलाये अवश्य ही मानसिक शांति मिलेगी।

👉 मन्त्र जप,साधना एवं दान करने से पूण्य की प्राप्ति होती है।

👉 इस दिन स्वास्थ्य, शिक्षा, कानूनी विवाद, आर्थिक परेशानियो और पति-पत्नी सम्बन्धि विवाद के समाधान के लिए किये गए उपाय अवश्य ही सफल होते है।

👉 इस दिन धोबी-धोबन को भोजन कराने,उनके बच्चों को किताबे मिठाई फल और दक्षिणा देने से सभी मनोरथ पूर्ण होते है।

👉 सोमवती मौनीअमावस्या को भांजा,ब्राह्मण, और ननद को मिठाई, फल,खाने की सामग्री देने से उत्तम फल मिलाता है।

👉 इस दिन अपने आसपास के वृक्ष पर बैठे कौओं और जलाशयों की मछलियों को (चावल और घी मिलाकर बनाए गए) लड्डू दीजिए। यह पितृ दोष दूर करने का उत्तम उपाय है।

👉 सोमवती मौनीअमावस्या के दिन दूध से बनी खीर दक्षिण दिशा में (पितृ की फोटो के सम्मुख) कंडे की धूनी लगाकर पितृ को अर्पित करने से भी पितृ दोष में कमी आती है।

👉 मौनीअमावस्या के समय जब तक सूर्य चन्द्र एक राशि में रहे, तब कोई भी सांसरिक कार्य जैसे-हल चलाना, कसी चलाना, दांती, गंडासी, लुनाई, जोताई, आदि तथा इसी प्रकार से गृह कार्य भी नहीं करने चाहिए।

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व्रत पर्व विवरण – दर्श अमावस्या, मौनी-त्रिवेणी अमावस्या

💥 *विशेष – अमावस्या के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।

🌷 माघ-मौनी-सोमवती अमावस्या 🌷

🙏🏻 माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं। इस नामकरण के लिए दो मान्यताएं हैं ।
🙏🏻 इस दिन मौन रहना चाहिए। मुनि शब्द से ही मौनी की उत्पत्ति हुई है। इसलिए इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है। इस दिन मौन रहकर प्रयाग संगम अथवा पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए।
🙏🏻 ऐसा माना जाता है इस दिन ब्रह्मा जी ने स्वयंभुव मनु को उत्पन्न कर सृष्टि का निर्माण कार्य आरम्भ किया था इसलिए भी इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है।
🙏🏻 ‘पद्म पुराण’ के अनुसार माघ मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या को सूर्योदय से पहले जो तिल और जल से पितरों का तर्पण करता है, वह स्वर्ग में अक्षय सुख भोगता है। जो उक्त तिथि को तिल की गौ बनाकर उसे सब सामग्रियों सहित दान करता है, वह सात जन्म के पापों से मुक्त हो स्वर्गलोक में अक्षय सुख का भागी होता है। ब्राह्मण को भोजन के योग्य अन्न देने से भी अक्षय स्वर्ग की प्राप्ति होती है। जो उत्तम ब्राह्मण को अनाज, वस्त्र, घर आदि दान करता है, उसे लक्ष्मी कभी नहीं छोड़ती।
🙏🏻 इस दिन पितृ पूजा, श्राद्ध, तर्पण, पिण्ड दान, नारायणी आदि कर सकते है। वैसे तो प्रत्येक अमावस्या पितृ कर्म के लिए विशेष होती है परंतु युगादि तिथि तथा मकरस्थ रवि होने के कारण मौनी अमावस्या का महत्व कहीं ज्यादा है। अगर आप पितृदोष से पीड़ित हैं अथवा आपको लगता है की आपके पिता, माता अथवा गुरु के कुल में किसी को अच्छी गति प्राप्त नहीं हुई है तो आज तर्पण (विशेषतः गंगा किनारे) जरूर करें।
➡ इस वर्ष मौनी अमावस्या सोमवार को होने के कारण यह परम विशेष हो गयी है ।
🙏🏻 धर्मसिन्धु के अनुसार “अमावस्या भौमसोमवारयुता स्नानदानादौ महापुण्या” अर्थात मंगल और सोमवार से युक्त अमावस्या स्नान दान आदि में बड़ी पवित्र है।
🙏🏻 इस दिन किया हुआ धर्म अथवा अधर्म अक्षय होता है और सैकड़ों जन्मों तक इसका फल प्राप्त होता है।
सोमवारेऽप्यमावास्या आदित्याहे तु सप्तमी। चतुर्थङ्गारवारे च अष्टमी च वृहस्पतौ॥
अत्र यत् क्रियते पापमथवा धर्मसञ्चयः। षष्टि जन्मसहस्राणि प्रतिजन्म तदक्षयम्॥

🙏🏻 अगर आप सौभाग्यशाली हैं और इस दिन गंगा स्नान के लिए जा रहे हैं तो तर्पण के अलावा भी बहुत कृत्य हैं। स्कंदपुराण में भगवान शिव का कथन है ।
🙏🏻 जो पितरों के उद्देश्य से भक्तिपूर्वक गुड़, घी और तिल के साथ मधुयुक्त खीर गंगा में डालते हैं, उसके पितर सौ वर्षों तक तृप्त बने रहते हैं और वे संतुष्ट होकर अपनी संतानों को नाना प्रकार की मनोवाञ्छित वस्तुएं प्रदान करते हैं।
🙏🏻 जो पितरों के उद्देश्य से गंगाजल के द्वारा शिवलिंग को स्नान कराते हैं, उनके पितर यदि भारी नरक में पड़े हों तो भी तृप्त हो जाते हैं।
🙏🏻 जो एक बार भी ताँबे के पात्र में रखे हुए अष्टद्रव्ययुक्त (जल, दूध, कुश का अग्रभाग, घी, मधु, गाय का दही, लाल कनेर तथा लाल चंदन) गंगाजल से भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं, वे अपने पितरों के साथ सूर्यलोक में जाकर प्रतिष्ठित होते हैं।
🙏🏻 जो गंगा के तट पर एक बार भी पिण्डदान करता है, वह तिलमिश्रित जल के द्वारा अपने पितरों का भवसागर से उद्धार कर देता है।
🙏🏻 पिता/माता/गुरु/भाई/मित्र/रिश्तेदार किसी के भी कुल में कोई किसी भी तरह, किसी भी अवस्था में मरा हो (चाहे अग्नि से या विष से या आत्मदाह अथवा अन्य प्रकार से मृत्यु) आज सब पितरों का उद्धार संभव है।
🙏🏻 माघ कृष्ण पक्ष की अमावस्या युगादि तिथि है। अर्थात इस तिथि को चार युगों में से एक युग का आरम्भ हुआ था। स्कंदपुराण के अनुसार “माघे पञ्चदशी कृष्णा द्वापरादिः स्मृता बुधैः” द्वापर की आदि तिथि हैं जबकि कुछ विद्वान इसको कलियुग की प्रारम्भ तिथि मानते हैं। युगादि तिथियाँ बहुत ही शुभ होती हैं, इस दिन किया गया जप, तप, ध्यान, स्नान, दान, यज्ञ, हवन कई गुना फल देता है l प्रत्येक युग में सौ वर्षों तक दान करने से जो फल होता है, वह युगादि-काल में एक दिन के दान से प्राप्त हो जाता है ।
🙏🏻 इस दिन साधु, महात्मा तथा ब्राह्मणों के सेवन के लिए अग्नि प्रज्वलित करनी चाहिए तथा उन्हें रजाई, कम्बल आदि जाड़े के वस्त्र देने चाहिए। इस दिन गुड़ में काले तिल मिलाकर मोदक बनाने चाहिए तथा उन्हें लाल वस्त्र में बांधकर ब्राह्मणों को देना श्रेयस्कर है। इसी पुण्य पर्व पर विभिन्न प्रकार के नैवेद्य मिष्टान्नादि षट्रस व्यंजनों से ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें द्रव्य दक्षिणादि से संतुष्ट कर प्रणामादि कर सादर विदा करना चाहिए।
🙏🏻 गौशाला में गायों के निमित्त हरे चारे, खल, चोकर, भूसी, गुड़ आदि पदार्थों का दान देना चाहिए तथा गौ की चरण रज को मस्तक पर धारण कर उसे साष्टांग प्रणाम करना चाहिए।
🙏🏻 माघी अमावस्या को प्रात: स्नान के बाद ब्रह्मदेव और गायत्री का पूजन करें। गाय, स्वर्ण, छाता, वस्त्र, पलंग, दर्पण आदि का मंत्रोपचार के साथ ब्राह्मण को दान करें। पवित्र भाव से ब्राह्मण एवं परिजनों के साथ भोजन करें। इस दिन पीपल में आघ्र्य देकर परिक्रमा करें और दीप दान दें। इस दिन जिनके लिए व्रत करना संभव नहीं हो वह मीठा भोजन करें।
🙏🏻 मौनी अमावस्या के दिन भूखे प्राणियों को भोजन कराने का भी विशेष महत्व है। इस दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद आटे की गोलियां बनाएं। गोलियां बनाते समय भगवान का नाम लेते रहें। इसके बाद समीप स्थित किसी तालाब या नदी में जाकर यह आटे की गोलियां मछलियों को खिला दें। इस उपाय से आपके जीवन की अनेक परेशानियों का अंत हो सकता है। अमावस्या के दिन चीटियों को शक्कर मिला हुआ आटा खिलाएं। ऐसा करने से आपके पाप कर्मों का क्षय होगा और पुण्य कर्म उदय होंगे। यही पुण्य कर्म आपकी मनोकामना पूर्ति में सहायक होंगे।

दशतीर्थसहस्राणि तिस्रः कोटयस्तथा पराः॥ समागच्छन्ति मध्यां तु प्रयागे भरतर्षभ। माघमासं प्रयागे तु नियतः संशितव्रतः॥ स्नात्वा तु भरतश्रेष्ठ निर्मलः स्वर्गमाप्नुयात्।

(महाभारत, अनुशासन पर्व 25 । 36 -38)

➡ *अर्थात माघ मास की अमावस्या को प्रयाग राज में तीन करोड़ दस हजार अन्य तीर्थों का समागम होता है। जो नियमपूर्वक उत्तम व्रत का पालन करते हुए माघ मास में प्रयाग में स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है।

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कबीर – Kabir ke Dohe

कबीर संगत साधु की, नित प्रति कीजै जाय |
दुरमति दूर बहावासी, देशी सुमति बताय ||

गुरु कबीर जी कहते हैं कि प्रतिदिन जाकर संतों की संगत करो | इससे तुम्हारी दुबुद्धि दूर हो जायेगी और सन्त सुबुद्धि बतला देंगे |

कबीर संगत साधु की, जौ की भूसी खाय |
खीर खांड़ भोजन मिलै, साकत संग न जाय ||

सन्त कबीर जी कहते हैं, सतों की संगत मैं, जौं की भूसी खाना अच्छा है | खीर और मिष्ठान आदि का भोजन मिले, तो भी साकत के संग मैं नहीं जाना चहिये |

कबीर संगति साधु की, निष्फल कभी न होय |
ऐसी चंदन वासना, नीम न कहसी कोय ||

संतों की संगत कभी निष्फल नहीं होती | मलयगिर की सुगंधी उड़कर लगने से नीम भी चन्दन हो जाता है, फिर उसे कभी कोई नीम नहीं कहता |

एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध |
कबीर संगत साधु की, कटै कोटि अपराध ||

एक पल आधा पल या आधे का भी आधा पल ही संतों की संगत करने से मन के करोडों दोष मिट जाते हैं |

कोयला भी हो ऊजला, जरि बरि हो जो सेत |
मूरख होय न अजला, ज्यों कालम का खेत ||

कोयला भी उजला हो जाता है जब अच्छी तरह से जलकर उसमे सफेदी आ जाती है | लकिन मुर्ख का सुधरना उसी प्रकार नहीं होता जैसे ऊसर खेत में बीज नहीं उगते |

ऊँचे कुल की जनमिया, करनी ऊँच न होय |
कनक कलश मद सों भरा, साधु निन्दा कोय ||

जैसे किसी का आचरण ऊँचे कुल में जन्म लेने से,ऊँचा नहीं हो जाता | इसी तरह सोने का घड़ा यदि मदिरा से भरा है, तो वह महापुरषों द्वारा निन्दित ही है |

जीवन जोवत राज मद, अविचल रहै न कोय |
जु दिन जाय सत्संग में, जीवन का फल सोय ||

जीवन, जवानी तथा राज्य का भेद से कोई भी स्थिर नहीं रहते | जिस दिन सत्संग में जाइये, उसी दिन जीवन का फल मिलता है |

साखी शब्द बहुतक सुना, मिटा न मन का मोह |
पारस तक पहुँचा नहीं, रहा लोह का लोह ||

ज्ञान से पूर्ण बहुतक साखी शब्द सुनकर भी यदि मन का अज्ञान नहीं मिटा, तो समझ लो पारस – पत्थर तक न पहुँचने से, लोहे का लोहा ही रह गया |

सज्जन सो सज्जन मिले, होवे दो दो बात |
गदहा सो गदहा मिले, खावे दो दो लात ||

सज्जन व्यक्ति किसी सज्जन व्यक्ति से मिलता है तो दो दो अच्छी बातें होती हैं | लकिन गधा गधा जो मिलते हैं, परस्पर दो दो लात खाते हैं |

कबीर विषधर बहु मिले, मणिधर मिला न कोय |
विषधर को मणिधर मिले, विष तजि अमृत होय ||

सन्त कबीर जी कहते हैं कि विषधर सर्प बहुत मिलते है, मणिधर सर्प नहीं मिलता | यदि विषधर को मणिधर मिल जाये, तो विष मिटकर अमृत हो जाता है |

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तिलक विशेष – Tilak Special

तिलक विशेष
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ज्योतिष के अनुसार यदि तिलक धारण किया जाता है
तो सभी पाप नष्ट हो जाते है सनातन धर्म में
शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं।

चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है,
व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं।
तिलक कई प्रकार के होते हैं – मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, सिंदूर, गोपी आदि।

यदि वार अनुसार तिलक धारण किया जाए तो
उक्त वार से संबंधित ग्रहों को शुभ फल देने वाला बनाया जा सकता है।

किस दिन किसका तिलक लगाये !!
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सोमवार👉 सोमवार का दिन भगवान शंकर का दिन होता है तथा इस वार का स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं।चंद्रमा मन का कारक ग्रह माना गया है। मन को काबू में रखकर मस्तिष्क को शीतल और शांत बनाए रखने के लिए आप सफेद चंदन का तिलक लगाएं। इस दिन विभूति या भस्म भी लगा सकते हैं।

मंगलवार👉 मंगलवार को हनुमानजी का दिन माना गया है। इस दिन का स्वामी ग्रह मंगल है।मंगल लाल रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन लाल चंदन या चमेली के तेल में घुला हुआ सिंदूर का तिलक लगाने से ऊर्जा और कार्यक्षमता में विकास होता है। इससे मन की उदासी और निराशा हट जाती है और दिन शुभ बनता है।

बुधवार👉 बुधवार को जहां मां दुर्गा का दिन माना गया है वहीं यह भगवान गणेश का दिन भी है।इस दिन का ग्रह स्वामी है बुध ग्रह। इस दिन सूखे सिंदूर (जिसमें कोई तेल न मिला हो) का तिलक लगाना चाहिए। इस तिलक से बौद्धिक क्षमता तेज होती है और दिन शुभ रहता है।

गुरुवार👉 गुरुवार को बृहस्पतिवार भी कहा जाता है। बृहस्पति ऋषि देवताओं के गुरु हैं। इस दिन के खास देवता हैं ब्रह्मा। इस दिन का स्वामी ग्रह है बृहस्पति ग्रह।गुरु को पीला या सफेद मिश्रित पीला रंग प्रिय है। इस दिन सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिये हल्दी या गोरोचन का तिलक भी लगा सकते हैं। इससे मन में पवित्र और सकारात्मक विचार तथा अच्छे भावों का उद्भव होगा जिससे दिन भी शुभ रहेगा और आर्थिक परेशानी का हल भी निकलेगा।

शुक्रवार👉 शुक्रवार का दिन भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मीजी का रहता है। इस दिन का ग्रह स्वामी शुक्र ग्रह है।हालांकि इस ग्रह को दैत्यराज भी कहा जाता है। दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे। इस दिन लाल चंदन लगाने से जहां तनाव दूर रहता है वहीं इससे भौतिक सुख-सुविधाओं में भी वृद्धि होती है। इस दिन सिंदूर भी लगा सकते हैं।

शनिवार👉 शनिवार को भैरव, शनि और यमराज का दिन माना जाता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है शनि ग्रह।शनिवार के दिन विभूत, भस्म या लाल चंदन लगाना चाहिए जिससे भैरव महाराज प्रसन्न रहते हैं और किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होने देते। दिन शुभ रहता है।

रविवार👉 रविवार का दिन भगवान विष्णु और सूर्य का दिन रहता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है सूर्य ग्रह जो ग्रहों के राजा हैं।इस दिन लाल चंदन या हरि चंदन लगाएं। भगवान विष्णु की कृपा रहने से जहां मान-सम्मान बढ़ता है वहीं निर्भयता आती है।

1👉 तिलक करने से व्यक्त‍ित्व प्रभावशाली हो जाता है. दरअसल, तिलक लगाने का मनोवैज्ञानिक असर होता है, क्योंकि इससे व्यक्त‍ि के आत्मविश्वास और आत्मबल में भरपूर इजाफा होता है.

2👉 ललाट पर नियमित रूप से तिलक लगाने से मस्तक में तरावट आती है. लोग शांति व सुकून अनुभव करते हैं. यह कई तरह की मानसिक बीमारियों से बचाता है.

3👉 दिमाग में सेराटोनिन और बीटा एंडोर्फिन का स्राव संतुलित तरीके से होता है, जिससे उदासी दूर होती है और मन में उत्साह जागता है. यह उत्साह लोगों को अच्छे कामों में लगाता है.

4👉 इससे सिरदर्द की समस्या में कमी आती है.

5👉 हल्दी से युक्त तिलक लगाने से त्वचा शुद्ध होती है. हल्दी में एंटी बैक्ट्र‍ियल तत्व होते हैं, जो रोगों से मुक्त करता है.

6👉 धार्मिक मान्यता के अनुसार, चंदन का तिलक लगाने से मनुष्य के पापों का नाश होता है. लोग कई तरह के संकट से बच जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, तिलक लगाने से ग्रहों की शांति होती है.

7👉 माना जाता है कि चंदन का तिलक लगाने वाले का घर अन्न-धन से भरा रहता है और सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है.

तिलक लगाने का मंत्र !!
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केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम ।
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं

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यात्रा – Journey

बीज की यात्रा वृक्ष तक है,
नदी की यात्रा सागर तक है,
और…
मनुष्य की यात्रा परमात्मा तक..

संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है,….
हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं,

इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि…

मै न होता तो क्या होता…!!

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श्रीकृष्ण के दिव्य आभूषण – Jewels of Shri Krishna

🎗 कृष्ण के ताबीज़ का नाम- महारक्षक
जिसमे 9 मोतिया है जिसे यशोदामैया कृष्ण जी के बाजु पर बाधती है.

🌈🌈कृष्ण के बाजूबंद – रंगदा (रंगने बाला)
दोन्हो हाथों के बाजू मे रत्न जड़ित

💍कृष्ण जी नामांकित अंगूठी- रत्नमुखी
💍💍💍💍💍💍

🔶कृष्ण जी के पीताम्बर का नाम – निगम शोभना
श्रुतियों की शोभा बढ़ाने बाला

💫कृष्ण जी करधनी- कला झंकारा
जिसकी खनक बहुत मधुर है

💫💫कृष्ण जी की पायल(नुपुर)- हंस गंजना
जिसकी मधुर ध्वनी हंसो के मधुर गीत की तरह है

जिनकी झंकार गोपियो के चित का हरण कर लेती है

🏵 कृष्ण जी के कंठीहार – तारावली
सितारों का किनारा हो जैसे

🏅कृष्ण जी मणियो की माला – तड़ित प्रभा
अर्थ –⚡बिजली की आभा

🎖 श्री कृष्ण जी के गले मे लॉकेट- ह्र्दयमोदन
(ह्रदय का आनंद💖💖)
जिसमे श्री राधारानी जी चित्र है

💧 कृष्ण जी की मणि – कौस्तुभमणि
सागर की मणि
जो कालिया नाग की पत्नियो ने भेंट दी थी

🌙🌙कृष्ण जी के मकराकृत कुंडल – रति रागाधिदैवता
(रसिक स्नेह के मूल विग्रह)

🌿कृष्ण जी मोर मुकुट –
नवरत्न विडम्ब
नो रत्न लगे है जिस मुकुट मे 💎💎💎💎💎💎💎💎💎

🎖कृष्ण जी गुंजा माला –
रागवल्ली
स्नेह की बेल

🌺 कृष्ण जी पाँच प्रकार के पुष्पो से बनी गुंफमाला –
वैजयन्ती माला
परम जय

🔺तिलक- दृस्टि मोहन
जिसके ललाट्भाल दर्शन मात्र से हम सब मंत्र मुग्ध हो जाते है.

💫💫कृष्ण के कंगन- शोभना

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राम नाम की महिमा – Power of Shri Ram

एक बार शिवजी कैलाश पर पहुंचे और पार्वती जी से भोजन माँगा।

पार्वती जी विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर रहीं थीं। पार्वती जी ने कहा अभी पाठ पूरा नही हुआ, कृपया थोड़ी देर प्रतीक्षा कीजिए।

शिव जी ने कहा कि इसमें तो समय और श्रम दोनों लगेंगे। संत लोग जिस तरह से सहस्र नाम को छोटा कर लेते हैं और नित्य जपते हैं वैसा उपाय कर लो। पार्वती जी ने पूछा वो उपाय कैसे करते हैं? मैं सुनना चाहती हूँ।

शिव जी ने बताया, केवल एक बार राम कह लो तुम्हें सहस्र नाम, भगवान के एक हज़ार नाम लेने का फल मिल जाएगा।

एक राम नाम हज़ार दिव्य नामों के समान है। पार्वती जी ने वैसा ही किया।

पार्वत्युवाच
केनोपायेन लघुना विष्णोर्नाम सहस्रकं?
पठ्यते पण्डितैर्नित्यम् श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो।।

ईश्वर उवाच
श्री राम राम रामेति, रमे रामे मनोरमे।
सहस्र नाम तत्तुल्यम राम नाम वरानने।।

यह राम नाम सभी आपदाओं को हरने वाला, सभी सम्पदाओं को देने वाला दाता है, सारे संसार को विश्राम/शान्ति प्रदान करने वाला है। इसीलिए मैं इसे बार बार प्रणाम करता हूँ।

आपदामपहर्तारम् दातारम् सर्वसंपदाम्।
लोकाभिरामम् श्रीरामम् भूयो भूयो नमयहम्।।

भव सागर के सभी समस्याओं और दुःख के बीजों को भूंज के रख देनेवाला/समूल नष्ट कर देने वाला, सुख संपत्तियों को अर्जित करने वाला, यम दूतों को खदेड़ने/भगाने वाला केवल राम नाम का गर्जन(जप) है।

इसीलिए हमारे देश में प्रणाम राम राम कहकर किया जाता है।
।।राम राम।।

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कुंभ स्नान से जुड़ीं एक रोचक कथा – Story of Kumbh

।। कुंभ स्नान से जुड़ीं एक रोचक कथा ।।

कुंभ स्नान चल रहा था। घाट पर भारी भीड़ लग रही थी।

शिव पार्वती आकाश से गुजरे। पार्वती ने इतनी भीड़ का कारण पूछा – शिव जी ने कहा – कुम्भ पर्व पर स्नान करने वाले स्वर्ग जाते है। उसी लाभ के लिए यह स्नानार्थियों की भीड़ जमा है।

पार्वती का कौतूहल तो शान्त हो गया पर नया संदेह उपज पड़ा, इतने लोग स्वर्ग कहां पहुंच पाते हैं ?

भगवती ने अपना नया सन्देह प्रकट किया और समाधान चाहा।

भगवान शिव बोले – शरीर को गीला करना एक बात है और मन की मलीनता धोने वाला स्नान जरूरी है। मन को धोने वाले ही स्वर्ग जाते हैं। वैसे लोग जो होंगे उन्हीं को स्वर्ग मिलेगा।

सन्देह घटा नहीं, बढ़ गया।

पार्वती बोलीं – यह कैसे पता चले कि किसने शरीर धोया किसने मन संजोया।

यह कार्य से जाना जाता है। शिवजी ने इस उत्तर से भी समाधान न होते देखकर प्रत्यक्ष उदाहरण से लक्ष्य समझाने का प्रयत्न किया।

मार्ग में शिव कुरूप कोढ़ी बनकर पढ़ रहे। पार्वती को और भी सुन्दर सजा दिया। दोनों बैठे थे। स्नानार्थियों की भीड़ उन्हें देखने के लिए रुकती। अनमेल स्थिति के बारे में पूछताछ करती।

पार्वती जी रटाया हुआ विवरण सुनाती रहतीं। यह कोढ़ी मेरा पति है। गंगा स्नान की इच्छा से आए हैं। गरीबी के कारण इन्हें कंधे पर रखकर लाई हूँ। बहुत थक जाने के कारण थोड़े विराम के लिए हम लोग यहाँ बैठे हैं।

अधिकाँश दर्शकों की नीयत डिगती दिखती। वे सुन्दरी को प्रलोभन देते और पति को छोड़कर अपने साथ चलने की बात कहते।

पार्वती लज्जा से गढ़ गई। भला ऐसे भी लोग स्नान को आते हैं क्या? निराशा देखते ही बनती थी।

संध्या हो चली। एक उदारचेता आए। विवरण सुना तो आँखों में आँसू भर लाए। सहायता का प्रस्ताव किया और कोढ़ी को कंधे पर लादकर तट तक पहुँचाया। जो सत्तू साथ में था उसमें से उन दोनों को भी खिलाया।

साथ ही सुन्दरी को बार-बार नमन करते हुए कहा – आप जैसी देवियां ही इस धरती की स्तम्भ हैं। धन्य हैं आप जो इस प्रकार अपना धर्म निभा रही हैं।

प्रयोजन पूरा हुआ। शिव पार्वती उठे और कैलाश की ओर चले गए। रास्ते में कहा – पार्वती इतनों में एक ही व्यक्ति ऐसा था, जिसने मन धोया और स्वर्ग का रास्ता बनाया। स्नान का महात्म्य तो सही है पर उसके साथ मन भी धोने की शर्त लगी है।

पार्वती तो समझ गई कि स्नान महात्म्य सही होते हुए भी…
क्यों लोग उसके पुण्य फल से वंचित रहते हैं?

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तुलसी जी – Tulsi Ji

तुलसी जी तुलसी जी को हिन्दू धर्म में बेहद पवित्र और पूजनीय माना जाता है। तुलसी के पेड़ और इसके पत्तों का धार्मिक महत्त्व होने के साथ वैज्ञानिक महत्त्व भी है।

तुलसी के पौधे को एंटी-बैक्टीरियल माना जाता है, स्वास्थ्य के नजरिए से यह बेहद लाभकारी होती हैं।

हिन्दू पुराणों में तुलसी जी को भगवान श्री हरी विष्णु को बहुत प्रिय हैं। तुलसी के पौधे को घर में लगाने, उसकी पूजा करने और कार्तिक माह में तुलसी विवाह आदि से जुड़ी कई कथाएं हिन्दू पुराणों में वर्णित हैं।

तुलसी जी से जुड़ी पौराणिक कथा

श्रीमद देवी भागवत के अनुसार प्राचीन समय में एक राजा था धर्मध्वज और उसकी पत्नी माधवी, दोनों गंधमादन पर्वत पर रहते थे। माधवी हमेशा सुंदर उपवन में आनंद किया करती थी। ऐसे ही काफी समय बीत गया और उन्हें इस बात का बिलकुल भी ध्यान नहीं रहा। परंतु कुछ समय पश्चात धर्मध्वज के हृदय में ज्ञान का उदय हुआ और उन्होंने विलास से अलग होने की इच्छा की। दूसरी तरफ माधवी गर्भ से थी। कार्तिक पूर्णिमा के दिन माधवी के गर्भ से एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ। इस कन्या की सुंदरता देख इसका नाम तुलसी रखा गया।

तुलसी विवाह

बालिका तुलसी बचपन से ही परम विष्णु भक्त थी। कुछ समय के बाद तुलसी बदरीवन में कठोर तप करने चली गई। वह नारायण को अपना स्वामी बनाना चाहती थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उनसे वर मांगने को कहा, तब तुलसी जी भगवान विष्णु को अपने पति रूप में प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की। ब्रह्मा जी ने उन्हें मनोवांछित वर दिया।

इसके बाद उनका विवाह शंखचूड से हुआ। शंखचूड एक परम ज्ञानी और शक्तिशाली राजा था उसने देवताओं के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था। शंखचूड के पास अपनी शक्ति के साथ तुलसी के पतिव्रत धर्म की भी शक्ति थी। देवताओं ने तुलसी का पतिव्रत भंग करने के लिए एक योजना बनाई और उसके सूत्रधार बने श्री हरि विष्णु जी।

भगवान विष्णु जी ने माया से शंखचूड का रूप धारण कर तुलसी के पतिव्रत भंग कर दिया। जब देवी तुलसी को इस बात की जानकारी मिली तो वह बेहद क्रोधित हुईं और उन्होंने विष्णु जी को पाषाण यानि पत्थर का बन जाने का श्राप दिया। तभी से विष्णु जी शालिग्राम के रूप में पूजे जाने लगे।

तुलसी जी की उत्पत्ति के विषय में कई अन्य कथाएं भी हैं लेकिन समय के साथ बदलने वाली इन कथाओं का मर्म एक ही है। भगवान विष्णु की प्राण प्रिय जब देवी तुलसी ने विष्णु जी को श्राप दिया तो विष्णु जी ने उनका क्रोध शांत करने के लिए उन्हें वरदान दिया कि देवी तुलसी के केशों से तुलसी वृक्ष उत्पन्न होंगे जो आने वाले समय में पूजनीय और विष्णु जी को प्रिय माने जाएंगे। विष्णु जी की कोई भी पूजा बिना तुलसी के पत्तों के अधूरी मानी जाएगी। साथ ही उन्हें वरदान दिया कि आने वाले युग में लोग खुशी से विष्णु जी के पत्थर स्वरूप और तुलसी जी का विवाह कराएंगे। (अधिक जानकारी के लिए तुलसी विवाह कथा पढ़े)

तुलसी से जुड़ी मुख्य बातें

तुलसी जी को सभी पौधों की प्रधान देवी माना जाता है।

तुलसी के पत्तों के बिना विष्णु जी की पूजा अधूरी होती है।

पतिव्रता स्त्रियों के लिए तुलसी के पौधे की पूजा करना पुण्यकारी माना जाता है।

कार्तिक माह में तुलसी विवाह का त्यौहार मनाया जाता है जिसमें विष्णु जी के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी जी के साथ कराया जाता है।

तुलसी जी का परिवार

तुलसी की माता का नाम माधवी तथा पिता का नाम धर्मध्वज था। उनका विवाह भगवान विष्णु के अंश से उत्पन्न शंखचूड़ से हुआ था।

तुलसी जी के अन्य नाम और उनके अर्थ

वृंदा – सभी वनस्पति व वृक्षों की आधि देवी

वृन्दावनी – जिनका उद्भव व्रज में हुआ

विश्वपूजिता – समस्त जगत द्वारा पूजित

विश्व -पावनी – त्रिलोकी को पावन करने वाली

पुष्पसारा – हर पुष्प का सार

नंदिनी – ऋषि मुनियों को आनंद प्रदान करने वाली

कृष्ण-जीवनी – श्री कृष्ण की प्राण जीवनी

तुलसी – अद्वितीय

तुलसी जी के मंत्र

मान्यतानुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि के दिन जो जातक तुलसी जी पूजा करता है उसे कई जन्मों का पुण्य फल प्राप्त होता है। इस दिन तुलसी जी की पूजा में निम्न मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है:

वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।

पुष्पसारा नन्दिनी च तुलसी कृष्ण जीवनी।

एतन्नामाष्टंक चैव स्त्रोत्रं नामार्थसंयुतमू।

यः पठेत् तां च सम्पूज्य सोडश्वमेधफलं लभेत।।

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गंगा जी – Ganga Ji

देवी गंगा हिन्दू धर्म की देवी हैं। हिन्दू धर्म में इन्हें बहुत पवित्र माना जाता है। मान्यता के अनुसार देवी गंगा लोगों के पाप धोकर उन्हें जीवन मृत्यु के चक्कर से बाहर निकालती हैं तथा मोक्ष प्रदान करती हैं। ग्रंथों और पुराणों के अनुसार भक्तों के पाप मिटाने के लिए ही गंगा जी धरती पर अवतरित हुईं थी।

गंगा जी का नदी के रूप में अवतरण

एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार एक राजा के साठ हजार पुत्र थे। राजा के पुत्रों ने एक बार कपिल मुनि की तपस्या में बाध डाल दी जिससे क्रोधित होकर मुनि ने उन्हें श्राप दे दिया। इससे राजा के सारे पुत्र उसी स्थान पर जलकर भस्म हो गए और पाप मुक्त न होने के कारण पृथ्वी पर भटकने लगे।

भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर राजा पुत्रों को मुक्ति दिलाने के लिए विष्णु जी ने देवी गंगा को धरती पर उतरने के लिए कहा। तेज आवेग के कारण वह प्रत्यक्ष रूप से धरती पर नहीं अवतरित हो सकती थीं। इसलिए शिव जी ने गंगा को अपनी जटाओं में बांध लिया तथा उनके कुछ धाराओं को ही धरती पर छोड़ा।

गंगा जी के मंत्र

गंगा में स्नान करते समय सभी पापों की क्षमा मांगने तथा मुक्ति प्राप्ति के लिए गंगा माता के इन मंत्रों का जाप करना चाहिए।

ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि,

गंगे माँ पावय पावय स्वाहा।।

गंगा जी का स्वरूप

देवी गंगा का चेहरा बहुत शांत और उज्ज्वल है। उनके चार हाथ हैं जिसमें से एक हाथ में कमल और एक हाथ में कलश है तथा दो अन्य हाथ वर और अभय मुद्रा में है। वे सफेद वस्त्र धारण किए हुए है जो शांति और कोमलता का प्रतीक है। इनके गले में फूलों की माला तथा माथे पर अर्धचंदाकार चंदन लगा है। यह कमल पर विराजमान रहती हैं। इनका निवास स्थान तीनों लोकों में है।
गंगा जी का परिवार
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार गंगा जी पर्वतों के राजा हिमवान तथा उनकी पत्नी देवी मीना की पुत्री हैं।

गंगा जी से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें

गंगा जी के चार हाथ हैं।

गंगा जी देवी पार्वती की बहन हैं।

ब्रह्मा जी के कहने पर देवी गंगा धरती पर लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए अवतरित हुई थीं।

गंगा स्नान का महत्व

मान्यता के अनुसार करोड़ो जन्मों के पाप गंगा की वायु के स्पर्श मात्र से समाप्त हो जाते हैं। स्पर्श और दर्शन की इच्छा और गंगा में मौसल स्नान करने से व्यक्ति को दस गुणा पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा समान्य दिन में स्नान करने से भी जन्मों के पास नष्ट हो जाते हैं। विशेष तिथियों और अवसरों पर गंगा स्नान का व्यक्ति को विशेष फल प्राप्त होता है।

गंगा जी के नाम

मंदाकिनी
गंगा जी
भोगवती
हरा-वल्लभ
भागीरथी
सावित्री
रम्य

गंगा जी के प्रसिद्ध मंदिर

गंगा मंदिर गंगोत्री
गंगा मंदिर, हरिद्वार
गंगा मंदिर, भरतपुर
गंगा मंदिर, गढ़मुक्तेश्वर
गंगा मंदिर, बैंग्लोर
गंगा मंदिर, वारणसि

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