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श्रील माध्वाचार्य जी

पवनदेव के प्रथम अवतार हैं श्रीहनुमान जी, द्वितीय अवतार हैं श्रीभीमसेन, व तृतीय अवतार हुए श्रीमध्वाचार्य जी।

एक दिन श्रील मध्वाचार्य जी उड़ुपि में समुद्र स्नान के लिये जा रहे थे। आप भगवान श्रीकृष्ण का चिन्तन करते-करते एक बालु की पहाड़ी पर चढ़ गये। आपने देखा कि द्वारिका के बहुत से द्रव्य ले के जा रही एक नौका, पानी व रेत में फंस गयी है।

आपने नौका को बाहर निकल कर किनारे आने का इशारा किया तो नौका स्वतः किनारे पर आ लगी। नाविकों ने जब यह अद्भुत चमत्कार देखा तो वे सब आपका आभार प्रकट करने के लिये कुछ भेंट का निवेदन लेकर आये।

बहुत मना करने पर भी जब वे नहीं माने तो आप नाव में रखा गोपी चन्दन लेने के लिये तैयार हो गये। नाविकों ने गोपी चन्दन का एक बड़ा सा ढेला आपको भेंट स्वरूप दिया। जब आपके बहुत से सेवक उसे उठा कर ला रहे थे, तो बड़वन्देश्वर नामक स्थान पर वह टूट गया, और उसमें से एक बहुत ही सुन्दर बालकृष्ण की मूर्ति प्रकट हो गयी, जिनके एक हाथ में दही मथने वाली मधानी थी और दूसरे हाथ में मधानी की रस्सी।

भगवान बालकृष्ण की ऐसी अद्भुत लीला कि वह मूर्ति इतनी भारी हो गयी कि तीस बलवान लोग मिलकर भी उस मूर्ति को उठा नहीं पा रहे थे। जबकि श्रीमध्वाचार्यजी ने अकेले ही उस भारी मूर्ति को अपने हाथों में उठा लिया और बड़े आराम से उन्हें अपने उड़ुपी मठ में ले आये।

श्रील मध्वाचार्यजी ने बहुत वर्षों तक अपने हाथों से श्रीबालकृष्णजी सेवा की। आज भी दक्षिण भारत के उड़ुपी मठ में भगवान श्रीबालकृष्ण के दर्शन होते हैं।

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महादेव का वरदान

गज और असुर के संयोग से एक असुर का जन्म हुआ. उसका मुख गज जैसा होने के कारण उसे गजासुर कहा जाने लगा.
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गजासुर शिवजी का बड़ा भक्त था और शिवजी के बिना अपनी कल्पना ही नहीं करता था. उसकी भक्ति से भोले भंडारी गजासुर पर प्रसन्न हो गए वरदान मांगने को कहा.
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गजासुर ने कहा- प्रभु आपकी आराधना में कीट-पक्षियों द्वारा होने वाले विघ्न से मुक्ति चाहिए. इसलिए मेरे शरीर से हमेशा तेज अग्नि निकलती रहे जिससे कोई पास न आए और मैं निर्विघ्न आपकी अराधना करता रहूं.
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महादेव ने गजासुरो को उसका मनचाहा वरदान दे दिया. गजासुर फिर से शिवजी की साधना में लीन हो गया.
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हजारो साल के घोर तप से शिवजी फिर प्रकट हुए और कहा- तुम्हारे तप से प्रसन्न होकर मैंने मनचाहा वरदान दिया था. मैं फिर से प्रसन्न हूं बोलो अब क्या मांगते हो ?
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गजासुर कुछ इच्छा लेकर तो तप कर नहीं रहा था. उसे तो शिव आराधना के सिवा और कोई काम पसंद नहीं था. लेकिन प्रभु ने कहा कि वरदान मांगो तो वह सोचने लगा.
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गजासुर ने कहा- वैसे तो मैंने कुछ इच्छा रख कर तप नहीं किया लेकिन आप कुछ देना चाहते हैं तो आप कैलाश छोड़कर मेरे उदर (पेट) में ही निवास करें.
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भोले भंडारी गजासुर के पेट में समा गए. माता पार्वती ने उन्हें खोजना शुरू किया लेकिन वह कहीं मिले ही नहीं. उन्होंने विष्णुजी का स्मरण कर शिवजी का पता लगाने को कहा.
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श्रीहरि ने कहा- बहन आप दुखी न हों. भोले भंडारी से कोई कुछ भी मांग ले, दे देते हैं. वरदान स्वरूप वह गजासुर के उदर में वास कर रहे हैं.
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श्रीहरि ने एक लीला की. उन्होंने नंदी बैल को नृत्य का प्रशिक्षण दिया और फिर उसे खूब सजाने के बाद गजासुर के सामने जाकर नाचने को कहा.
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श्रीहरि स्वयं एक ग्वाले के रूप में आए औऱ बांसुरी बजाने लगे. बांसुरी की धुन पर नंदी ने ऐसा सुंदर नृत्य किया कि गजासुर बहुत प्रसन्न हो गया.
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उसने ग्वाला वेशधारी श्रीहरि से कहा- मैं तुम पर प्रसन्न हूं. इतने साल की साधना से मुझमें वैराग्य आ गया था. तुम दोनों ने मेरा मनोरंजन किया है. कोई वरदान मांग लो.
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श्रीहरि ने कहा- आप तो परम शिवभक्त हैं. शिवजी की कृपा से ऐसी कोई चीज नहीं जो आप हमें न दे सकें. किंतु मांगते हुए संकोच होता है कि कहीं आप मना न कर दें.
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श्रीहरि की तारीफ से गजासुर स्वयं को ईश्वर तुल्य ही समझने लगा था. उसने कहा- तुम मुझे साक्षात शिव समझ सकते हो. मेरे लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं. तुम्हें मनचाहा वरदान देने का वचन देता हूं.
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श्रीहरि ने फिर कहा- आप अपने वचन से पीछे तो न हटेंगे. गजासुर ने धर्म को साक्षी रखकर हामी भरी तो श्रीहरि ने उससे शिवजी को अपने उदर से मुक्त करने का वरदान मांगा.
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गजासुर वचनबद्ध था. वह समझ गया कि उसके पेट में बसे शिवजी का रहस्य जानने वाला यह रहस्य यह कोई साधारण ग्वाला नहीं हैं, जरूर स्वयं भगवान विष्णु आए हैं.
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उसने शिवजी को मुक्त किया और शिवजी से एक आखिरी वरदान मांगा. उसने कहा- प्रभु आपको उदर में लेने के पीछे किसी का अहित करने की मंशा नहीं थी.
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मैं तो बस इतना चाहता था कि आपके साथ मुझे भी स्मरण किया जाए. शरीर से आपका त्याग करने के बाद जीवन का कोई मोल नहीं रहा.
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इसलिए प्रभु मुझे वरदान दीजिए कि मेरे शरीर का कोई अंश हमेशा आपके साथ पूजित हो. शिवजी ने उसे वह वरदान दे दिया.
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श्रीहरि ने कहा- गजासुर तुम्हारी शिव भक्ति अद्भुत है. शिव आराधना में लगे रहो. समय आने पर तुम्हें ऐसा सम्मान मिलेगा जिसकी तुमने कल्पना भी नहीं की होगी.
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जब गणेशजी का शीश धड़ से अलग हुआ तो गजासुर के शीश को ही श्रीहरि काट लाए और गणपति के धड़ से जोड़कर जीवित किया था. इस तरह वह शिवजी के प्रिय पुत्र के रूप में प्रथम आराध्य हो गया।

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अति सुन्दर शिक्षा

रेल सफ़र में भीख़ माँगने के दौरान एक भिख़ारी को एक सूट बूट पहने सेठ जी उसे दिखे। उसने सोचा कि यह व्यक्ति बहुत अमीर लगता है, इससे भीख़ माँगने पर यह मुझे जरूर अच्छे पैसे देगा। वह उस सेठ से भीख़ माँगने लगा।

भिख़ारी को देखकर उस सेठ ने कहा, “तुम हमेशा मांगते ही हो, क्या कभी किसी को कुछ देते भी हो ?”

भिख़ारी बोला, “साहब मैं तो भिख़ारी हूँ, हमेशा लोगों से मांगता ही रहता हूँ, मेरी इतनी औकात कहाँ कि किसी को कुछ दे सकूँ ?”

सेठ:- जब किसी को कुछ दे नहीं सकते तो तुम्हें मांगने का भी कोई हक़ नहीं है। मैं एक व्यापारी हूँ और लेन-देन में ही विश्वास करता हूँ, अगर तुम्हारे पास मुझे कुछ देने को हो तभी मैं तुम्हे बदले में कुछ दे सकता हूँ।

तभी वह स्टेशन आ गया जहाँ पर उस सेठ को उतरना था, वह ट्रेन से उतरा और चला गया।

इधर भिख़ारी सेठ की कही गई बात के बारे में सोचने लगा। सेठ के द्वारा कही गयीं बात उस भिख़ारी के दिल में उतर गई। वह सोचने लगा कि शायद मुझे भीख में अधिक पैसा इसीलिए नहीं मिलता क्योकि मैं उसके बदले में किसी को कुछ दे नहीं पाता हूँ। लेकिन मैं तो भिखारी हूँ, किसी को कुछ देने लायक भी नहीं हूँ।लेकिन कब तक मैं लोगों को बिना कुछ दिए केवल मांगता ही रहूँगा।

बहुत सोचने के बाद भिख़ारी ने निर्णय किया कि जो भी व्यक्ति उसे भीख देगा तो उसके बदले मे वह भी उस व्यक्ति को कुछ जरूर देगा।
लेकिन अब उसके दिमाग में यह प्रश्न चल रहा था कि वह खुद भिख़ारी है तो भीख के बदले में वह दूसरों को क्या दे सकता है ?

इस बात को सोचते हुए दिनभर गुजरा लेकिन उसे अपने प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिला।

दुसरे दिन जब वह स्टेशन के पास बैठा हुआ था तभी उसकी नजर कुछ फूलों पर पड़ी जो स्टेशन के आस-पास के पौधों पर खिल रहे थे, उसने सोचा, क्यों न मैं लोगों को भिख़ के बदले कुछ फूल दे दिया करूँ। उसको अपना यह विचार अच्छा लगा और उसने वहां से कुछ फूल तोड़ लिए।

वह ट्रेन में भीख मांगने पहुंचा। जब भी कोई उसे भीख देता तो उसके बदले में वह भीख देने वाले को कुछ फूल दे देता। उन फूलों को लोग खुश होकर अपने पास रख लेते थे। अब भिख़ारी रोज फूल तोड़ता और भीख के बदले में उन फूलों को लोगों में बांट देता था।

कुछ ही दिनों में उसने महसूस किया कि अब उसे बहुत अधिक लोग भीख देने लगे हैं। वह स्टेशन के पास के सभी फूलों को तोड़ लाता था। जब तक उसके पास फूल रहते थे तब तक उसे बहुत से लोग भीख देते थे। लेकिन जब फूल बांटते बांटते ख़त्म हो जाते तो उसे भीख भी नहीं मिलती थी,अब रोज ऐसा ही चलता रहा था।

एक दिन जब वह भीख मांग रहा था तो उसने देखा कि वही सेठ ट्रेन में बैठे है जिसकी वजह से उसे भीख के बदले फूल देने की प्रेरणा मिली थी।

वह तुरंत उस व्यक्ति के पास पहुंच गया और भीख मांगते हुए बोला, आज मेरे पास आपको देने के लिए कुछ फूल हैं, आप मुझे भीख दीजिये बदले में मैं आपको कुछ फूल दूंगा।

शेठ ने उसे भीख के रूप में कुछ पैसे दे दिए और भिख़ारी ने कुछ फूल उसे दे दिए। उस सेठ को यह बात बहुत पसंद आयी।

सेठ:- वाह क्या बात है..? आज तुम भी मेरी तरह एक व्यापारी बन गए हो, इतना कहकर फूल लेकर वह सेठ स्टेशन पर उतर गया।

लेकिन उस सेठ द्वारा कही गई बात एक बार फिर से उस भिख़ारी के दिल में उतर गई। वह बार-बार उस सेठ के द्वारा कही गई बात के बारे में सोचने लगा और बहुत खुश होने लगा। उसकी आँखे अब चमकने लगीं, उसे लगने लगा कि अब उसके हाथ सफलता की वह 🔑चाबी लग गई है जिसके द्वारा वह अपने जीवन को बदल सकता है।

वह तुरंत ट्रेन से नीचे उतरा और उत्साहित होकर बहुत तेज आवाज में ऊपर आसमान की ओर देखकर बोला, “मैं भिखारी नहीं हूँ, मैं तो एक व्यापारी हूँ..

मैं भी उस सेठ जैसा बन सकता हूँ.. मैं भी अमीर बन सकता हूँ !

लोगों ने उसे देखा तो सोचा कि शायद यह भिख़ारी पागल हो गया है, अगले दिन से वह भिख़ारी उस स्टेशन पर फिर कभी नहीं दिखा।

एक वर्ष बाद इसी स्टेशन पर दो व्यक्ति सूट बूट पहने हुए यात्रा कर रहे थे। दोनों ने एक दूसरे को देखा तो उनमे से एक ने दूसरे से हाथ मिलाया और कहा, “क्या आपने मुझे पहचाना ?”

सेठ:- “नहीं तो ! शायद हम लोग पहली बार मिल रहे हैं।

भिखारी:- सेठ जी.. आप याद किजीए, हम पहली बार नहीं बल्कि तीसरी बार मिल रहे हैं।

सेठ:- मुझे याद नहीं आ रहा, वैसे हम पहले दो बार कब मिले थे ?

अब पहला व्यक्ति मुस्कुराया और बोला
:- हम पहले भी दो बार इसी ट्रेन में मिले थे, मैं वही भिख़ारी हूँ जिसको आपने पहली मुलाकात में बताया कि मुझे जीवन में क्या करना चाहिए और दूसरी मुलाकात में बताया कि मैं वास्तव में कौन हूँ।

सेठ:- ओह..! याद आया। तुम वही भिखारी हो जिसे मैंने एक बार भीख देने से मना कर दिया था और दूसरी बार मैंने तुमसे कुछ फूल खरीदे थे लेकिन आज तुम सूट बूट पहने कहाँ जा रहे हो और आजकल क्या कर रहे हो ?

:- सेठ जी… मैं वही भिख़ारी हूँ। लेकिन आज मैं फूलों का एक बहुत बड़ा व्यापारी हूँ और इसी व्यापार के काम से दूसरे शहर जा रहा हूँ।

आपने मुझे पहली मुलाकात में प्रकृति का नियम बताया था… जिसके अनुसार हमें तभी कुछ मिलता है, जब हम कुछ देते हैं। लेन देन का यह नियम वास्तव में काम करता है, मैंने यह बहुत अच्छी तरह महसूस किया है, लेकिन मैं खुद को हमेशा भिख़ारी ही समझता रहा, इससे ऊपर उठकर मैंने कभी सोचा ही नहीं था और जब आपसे मेरी दूसरी मुलाकात हुई तब आपने मुझे बताया कि मैं एक व्यापारी बन चुका हूँ। अब मैं समझ चुका था कि मैं वास्तव में एक भिखारी नहीं बल्कि व्यापारी बन चुका हूँ।

मैंने समझ लिया था कि लोग मुझे इतनी भीख क्यों दे रहे हैं क्योंकि वह मुझे भीख नहीं दे रहे थे बल्कि उन फूलों का मूल्य चुका रहे थे। सभी लोग मेरे फूल खरीद रहे थे क्योकि इससे सस्ते फूल उन्हें कहाँ मिलते।

मैं लोगों की नजरों में एक छोटा व्यापारी था लेकिन मैं अपनी नजरों में एक भिख़ारी ही था। आपके बताने पर मुझे समझ आ गया कि मैं एक छोटा व्यापारी हूँ। मैंने ट्रेन में फूल बांटने से जो पैसे इकट्ठे किये थे, उनसे बहुत से फूल खरीदे और फूलों का व्यापारी बन गया।

यहाँ के लोगों को फूल बहुत पसंद हैं और उनकी इसी पसंद ने मुझे आज फूलों का एक बहुत बड़ा व्यापारी बना दिया।

स्टेशन आने पर दोनो साथ उतरे और अपने-अपने व्यापार की बात करते हुए आगे बढ़ गए।

इस कहानी से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। कहानी में सेठ जी ‘ लो’ और ‘दो’ के नियम को बहुत अच्छी तरह जानता था, दुनिया के सभी बड़े व्यापारी पूँजीपती इसी नियमो का पालन करके ही बड़े व्यापारी बने हैं।

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शक्ति का बिखराव

एक बार कबूतरों का झुण्ड, बहेलिया के बनाये जाल में फंस गया सारे कबूतरों ने मिलकर फैसला किया और जाल सहित उड़ गये “एकता की शक्ति” की ये कहानी आपने यहाँ तक पढ़ी है इसके आगे क्या हुआ वो आज प्रस्तुत है:

बहेलिया उड़. रहे जाल के पीछे पीछे भाग रहा था .एक सज्जन मिलेऔर पूछा क्यों बहेलिये तुझे पता नही की “एकता में शक्ति “होती है तो फिर क्यों अब पीछा कर रहा है ?

बहेलिया बोला “आप को शायद पता नही की शक्तियों का दंभ खतरनाक होता है जहां जितनी ज्यादा शक्ति होती है उसके बिखरने के अवसर भी उतने ज्यादा होते है”.

सज्जन कुछ समझे नही .बहेलिया बोला आप भी मेरे साथ आइये .

सज्जन भी उसके साथ हो लिए.

उड़ते उड़ते कबूतरों ने उतरने के बारे में सोचा …

एक नौजवान कबूतर जिसकी कोई राजनीतिक विचारधारा नहीं थी ने कहा किसी खेत में उतरा जाये … वहां इस जाल को कटवाएँगे और दाने भी खायेंगे.

एक समाजवादी टाइप के कबूतर ने तुरंत विरोध किया की गरीब किसानो का हक़ हमने बहुत मारा .
अब और नही !!

एक दलित कबूतर ने कहा ,
जहाँ भी उतरे पहले मुझे दाना देना और जाल से पहले मैं निकलूंगा
क्योकि इस जाल को उड़ाने में सबसे ज्यादा मेहनत मैंने की थी .

दल के सबसे बुजुर्ग कबूतर ने कहा ,
मै सबसे बड़ा हूँ और इस जाल को उड़ाने का प्लान और नेतृत्व मेरा था
अत: मेरी बात सबको माननी पड़ेगी

एक तिलक वाले कबूतर ने कहा
किसी मंदिर पर उतरा जाए.
बन्शीवाले भगवन की कृपा से खाने को भी मिलेगा और जाल भी कट जायेंगे.

अंत में सभी कबूतर
एक दुसरे को धमकी देने लगे कि
मैंने उड़ना बंद किया तो कोई नहीं उड़ नही पायेगा
क्योकि सिर्फ मेरे दम पर ही ये जाल उड़ रहा है
और सभी ने धीरे धीरे करके उड़ना बंद कर दिया .

परिणाम क्या हुआ कि
अंत में वो सभी धरती पर आ गये और बहेलिया ने आकर उनको जाल सहित पकड़ लिया.

सज्जन गहरी सोच में पड गए .

बहेलिया बोला
क्या सोच रहे है महाराज !!

सज्जन बोले “मै ये सोच रहा हूँ की ऐसी ही गलती तो हम सब भी इस समाज में रहते हुए कर रहे है .

बहेलिया ने पूछा ,कैसे ?

सज्जन बोले , हर व्यक्ति शुरू में समाज सेवा करने और समाज में अच्छा बदलाव लाने की चाह रखते हुए काम शुरू करता है पर जब उसे ऐसा लगने लगता है कि उससे ही ये समाज चल रहा है अत: सभी को उसके हिसाब से चलना चाहिए.तब समस्या की शुरुआत होती है, क्योकि जब लोग उस के तरीके से नहीं चलते तो उस व्यक्ति की अपनी समाज सेवा तो जरूर बंद हो जाती है, यद्यपि समाज तब भी चलता रहा था और बाद में भी चलता रहता ह।

पर हाँ इस कारण जो उस व्यक्ति ने जो काम और दायित्व लिया था वो जरूर अधूरा रह जाता है ।
जैसा इन कबूतरों के दल के साथ हुआ

क्योकि जाल उड़ाने के लिए हर कबूतर के प्रयास जरूरी थे और सिर्फ किसी एक कबूतर से जाल नही उड़ सकता था.

इसलिए यदि अन्य लोग भी ऐसी नकारात्मक सोच रखेंगे और अपने प्रयास बंद कर देंगे तो समाज में भी उतनी ही गिरावट आएगी, क्योकि यदि हम जिस समाज में रहते है और उससे अपेक्षा रखते और उसमे अच्छा बदलाव देखना चाहते है, तो हमें अपने हिस्से के प्रयास को कभी भी बंद नहीं करना चाहिए और अपना काम करते रहना चाहिए।

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पाँच वस्तु जो अपवित्र होते हुए भी पवित्र है

उच्छिष्टं शिवनिर्माल्यं
वमनं शवकर्पटम्।
काकविष्टा ते पञ्चैते
पवित्राति मनोहरा॥

1. उच्छिष्ट — गाय का दूध ।
गाय का दूध पहले उसका बछड़ा पीकर उच्छिष्ट करता है। फिर भी वह पवित्र ओर शिव पर चढ़ता हे।

2. शिव निर्माल्यं –
गंगा का जल
गंगा जी का अवतरण स्वर्ग से सीधा शिव जी के मस्तक पर हुआ। नियमानुसार शिव जी पर चढ़ायी हुई हर चीज़ निर्माल्य है पर गंगाजल पवित्र है।

3. वमनम्—
उल्टी — शहद..
मधुमख्खी जब फूलों का रस लेकर अपने छत्ते पर आती है, तब वो अपने मुख से उस रस की शहद के रूप में उल्टी करती है, जो पवित्र कार्यों मे उपयोग किया जाता है।

4. शव कर्पटम्— रेशमी वस्त्र
धार्मिक कार्यों को सम्पादित करने के लिये पवित्रता की आवश्यकता रहती है, रेशमी वस्त्र को पवित्र माना गया है, पर रेशम को बनाने के लिये रेशमी कीडे़ को उबलते पानी में डाला जाता है ओर उसकी मौत हो जाती है उसके बाद रेशम मिलता है तो हुआ शव कर्पट फिर भी पवित्र है,

5. काक विष्टा— कौए का मल
कौवा पीपल पेड़ों के फल खाता है ओर उन पेड़ों के बीज अपनी विष्टा में इधर उधर छोड़ देता है जिसमें से पेड़ों की उत्पत्ति होती है ,आपने देखा होगा की कही भी पीपल के पेड़ उगते नही हे बल्कि पीपल काक विष्टा से उगता है, फिर भी पवित्र है।

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हनुमान जी की प्रतिमा को महिलाएं स्पर्श क्यों नहीं करती

हनुमान जी सदा ब्रह्मचारी रहें। शास्त्रों में हनुमान जी की शादी होने का वर्णन मिलता है। लेकिन ये शादी भी हनुमान जी ने वैवाहिक सुख प्राप्त करने की इच्छा से नहीं की। बल्कि उन 4 प्रमुख विद्याओं की प्राप्ति के लिए की थी। जिन विद्याओं का ज्ञान केवल एक विवाहित को ही दिया जा सकता था।
इस कथा के अनुसार हनुमान जी ने सूर्य देवता को अपना गुरु बनाया था। सूर्य देवता ने नौ प्रमुख विद्याओं में से पांच विद्या अपने शिष्य हनुमान को सिखा दी थी। लेकिन जैसे ही बाकी चार विद्याओं को सिखाने की बारी आई। तब सूर्य देव ने हनुमान जी से शादी कर लेने के लिए कहा क्योंकि ये विद्याओं का ज्ञान केवल एक विवाहित को ही दिया जा सकता था। अपने गुरु की आज्ञा से हनुमान ने विवाह करने का निश्चय कर लिया। हनुमान जी से विवाह के लिए किस कन्या का चयन किया जाए, जब यह समस्या सामने आई।

तब सूर्य देव ने अपनी परम तेजस्वी पुत्री सुवर्चला से हनुमान को शादी करने की प्रस्ताव दिया। हनुमान जी और सुवर्चला की शादी हो गई। सुवर्चला परम तपस्वी थी। शादी होने के बाद सुवर्चला तपस्या में मग्न हो गई। उधर हनुमान जी अपनी बाकी चार विद्याओं के ज्ञान को हासिल करने में लग गए। इस प्रकार विवाहित होने के बाद भी हनुमान जी का ब्रह्मचर्य व्रत नहीं टूटा।

हनुमान जी ने प्रत्येक स्त्री को मां समान दर्जा दिया है। यही कारण है कि किसी भी स्त्री को अपने सामने प्रणाम करते हुए नहीं देख सकते बल्कि स्त्री शक्ति को वे स्वयं नमन करते हैं। यदि महिलाएं चाहे तो हनुमान जी की सेवा में दीप अर्पित कर सकती हैं। हनुमान जी की स्तुति कर सकती हैं। हनुमान जी को प्रसाद अर्पित कर सकती हैं। लेकिन 16 उपचारों जिनमें चरण स्पर्श, मुख्य स्नान, वस्त्र, चोला चढ़ाना आते हैं, ये सब सेवाएं किसी महिला के द्वारा किया जाना हनुमान जी स्वीकार नहीं करते हैं।

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कहां गया भगवान गणेश का मस्तक

श्री गणेश के जन्म के सम्बन्ध में दो पौराणिक मान्यता है। प्रथम मान्यता के अनुसार जब माता पार्वती ने श्रीगणेश को जन्म दिया, तब इन्द्र, चन्द्र सहित सारे देवी-देवता उनके दर्शन की इच्छा से उपस्थित हुए। इसी दौरान शनिदेव भी वहां आए, जो श्रापित थे कि उनकी क्रूर दृष्टि जहां भी पड़ेगी, वहां हानि होगी। इसलिए जैसे ही शनि देव की दृष्टि गणेश पर पड़ी और दृष्टिपात होते ही श्रीगणेश का मस्तक अलग होकर चन्द्रमण्डल में चला गया।

इसी तरह दूसरे प्रसंग के मुताबिक माता पार्वती ने अपने तन के मैल से श्रीगणेश का स्वरूप तैयार किया और स्नान होने तक गणेश को द्वार पर पहरा देकर किसी को भी अंदर प्रवेश से रोकने का आदेश दिया। इसी दौरान वहां आए भगवान शंकर को जब श्रीगणेश ने अंदर जाने से रोका, तो अनजाने में भगवान शंकर ने श्रीगणेश का मस्तक काट दिया, जो चन्द्र लोक में चला गया। बाद में भगवान शंकर ने रुष्ट पार्वती को मनाने के लिए कटे मस्तक के स्थान पर गजमुख या हाथी का मस्तक जोड़ा।

ऐसी मान्यता है कि श्रीगणेश का असल मस्तक चन्द्रमण्डल में है, इसी आस्था से भी धर्म परंपराओं में संकट चतुर्थी तिथि पर चन्द्रदर्शन व अर्घ्य देकर श्रीगणेश की उपासना व भक्ति द्वारा संकटनाश व मंगल कामना की जाती है।

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What People Think About Me!

जानिए, आपके बारे में क्या सोचते हैं लोग
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एक बार की बात है एक राजा और उसका वजीर भेष बदल कर सैर पर जा रहे थे। अचानक राजा के मन में विचार आया कि लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं? वजीर से सलाह की तो वजीर ने भी सहमति जताई तथा कहा, ‘‘राजन, लोग भी आपके बारे में वही कुछ सोचते हैं जो कुछ आप लोगों के बारे में सोचते हैं। फिर भी पुष्टि करने के लिए लोगों से पूछ लेते हैं। ’’
भेस बदला ही था, लोग पहचान नहीं रहे थे। इतने में सामने से एक लकड़हारा आता दिखाई दिया। वजीर ने पहले राजा से लकड़हारे के बारे में विचार जानने चाहे। राजा बोला, ‘‘लकड़हारा बड़ा धूर्त है। इसने जंगल काट-काट कर खाली कर दिए हैं। फिर भी गरीब होने का ढोंग करता है। मेरा तो दिल करता है कि इसकी सिर की लकड़ियों की चिता बना दूं।’’
इतने में लकड़हारा पास आ गया तो वजीर ने पूछा, ‘‘ए भाई! आप यहां के राजा के बारे में क्या सोचते हो? लकड़हारा बोला, ‘‘यहां के राजा के राज में हमें गरीबी से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। कभी महंगाई बढ़ा देता है, तो कभी इसके आदमी हमसे लकडिय़ां छीन लेते हैं। ऐसे क्रूर राजा से तो मौत ही छुटकारा दिला सकती है।’’
तभी सामने से एक बूढ़ी औरत आती दिखाई दी तो वजीर ने राजा के विचार पूछे। राजा, ‘‘यह औरत बहुत बूढ़ी है। पता नहीं कैसे गुजर-बसर कर रही है? चाहता हूं कि इसकी कुछ पैंशन लगा दूं।’’
इतने में बूढ़ी औरत पास आ पहुंची तो वजीर ने उससे भी राजा के बारे में पूछा। बूढ़ी औरत बोली, ‘‘हमारा राजा बड़ा दयावान है और बहुत अच्छा है। मेरी उम्र भी मेरे राजा को लग जाए।’’
इतने में सामने से बनिया आता दिखाई दिया। उसके बारे में राजा के विचार थे, ‘‘यह ब्याजखोर बनिया ब्याज पर ब्याज खाता है। इसने मेरी सारी प्रजा को ही गरीब कर दिया है। मेरा दिल चाहता है कि इसका सारा पैसा छीनकर लोगों में बांट दूं।’’
वजीर ने बनिए से भी राजा के बारे में पूछा तो बनिया बोला, ‘‘ऐसा कंजूस, मक्खीचूस व्यक्ति राजा बनने के योग्य नहीं है, मेरा बस चले तो राजा को गद्दी से उतार कर खजाना लोगों को बांट दूं।’’
सारांश : जो आप लोगों के बारे में सोचते हैं, लोग भी आपके बारे में वही या वैसा ही कुछ सोचते हैं। यानी कि आपके विचार ही वापस आपके पास आ जाते हैं, अत: औरों के बारे में सदा शुभ ही सोचो।

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गलतियां – Faults

एक विचार:
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गलतियां हमेशा क्षमा की जा सकती हैं, यदि आपके पास उन्हें स्वीकारने का साहस हो ।।

एक कथा:
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“आज ये जाने की क्या मेरी भी जरूरत हैं सबको” राजीव आज फिर लता को उसकी औकात दिखा कर दफ्तर के लिये निकल गया और वो दिखाये भी क्यों ना,क्योंकि लता एक घरेलू महिला है,वो कोई ज्यादा पढ़ी लिखी लड़की नहीं।
न ही वो कोई कामकाजी सफल महिला है।
उसका काम सिर्फ कपड़े धोना,खाना पकाना,बिस्तर लगाना,घर की सफाई करना, बच्चो को अच्छी तालीम देना,घर के बड़े-बूढों का ध्यान रखना और घर में आये मेहमानों का स्वागत करना ही तो हैं। इन सब काम की क्या अहमियत,यह तो कोई नौकरानी भी कर सकती हैं।
यह सब सोचकर लता ने अपने गालों से आँसुओं की बूंदों को साफ किया और फिर से अपने कामों मे जुट गई।रोज की तरह राजीव का फोन आया,
कि वो देर से घर आयेगा खाना बाहर ही खायेगा।
लता समझ गई थी कि पियेगा भी बाहर।
पहले तो लता रोज राजीव से इस बात के लिए लड़ती थी, और वो यह कहकर फटकार देता है कि वो मेहनत करता है और कमाता हैं।वो जो चाहे करे।पर अब तो जैसै वो थक चुकी थी वो राजीव के मुँह ही नही लगना चाहती थी।
क्योंकि राजीव कई बार कह चुका था कि उसे इस घर की जरूरत है ना कि इस घर को उसकी जरूरत।वो जब चाहे इस घर को छोड़कर जा सकती हैं।
लता यह सोचकर चुप हो जाती कि शायद राजीव सही कह रहा हैं
वो जायेगी भी कहॉ? मायका तो बचपन से ही पराया होता है।
अगर घर की बेटी चार दिन भी ज्यादा रूक ले
तो आस पड़ोस वालो के कान खड़े हो जाते है,
नाते रिश्तेदार चुटकियॉ लेना शुरू कर देते है
और बात मॉ बाप की ईज्जत पर बन आती है यही सब सोचकर लता अपमान के घूंट पी जाती हैं।अगले दिन लता की तबियत कुछ ठीक सी नहीं लग रही थी।
उसने नापा तो उसे बुखार था।लता ने घर पर ही रखी दवा ले ली और जैसे तैसे नाश्ता और बच्चो का टिफ़िन लगा दिया और कमरे में जाकर लेट गई।राजीव यह कह कर चला गया कि डाक्टर को दिखा लेना।
शाम तक लता का बुखार बढ़ गया उसकी तबियत में जरा भी सुधार नही हुआ,
उसने राजीव को फोन करा तो उसने कहा वो घर आते वक्त दवा लेता आयेगा।
राजीव ने लता के पास दवा रख दी और कहा ले लो।
क्योंकि उसने दवा लाने का इतना महान काम जो किया।पत्नी ऐसा नही कर सकती वो दवा देगी
और प्यार से उसके माथे पर हाथ भी फेरेगी।
उधर सासुमॉ ने खाना बनाकर आज रात के लिऐ यह मौहर लगा दी कि वाकई में इस घर को लता की जरूरत नही। रात को लता ने खाना नही खाया।वो बैचेन होकर तड़प रही थी।
उधर राजीव चैन की नींद सो रहा था।
सोये भी क्यों न उसे अगले दिन काम पर जो जाना था,वो कमाता हैं,
इस घर को उसकी बहुत आवश्यकता हैं।
अगले दिन राजीव दवा की कहकर चला गया और रात के डाक्टर के चलना,
अपना महान फ़र्ज़ निभाकर चला गया।
उधर सास ने भी बीमारी मे हाथ पैर चलाने की नसीहत देकर महानता का उदाहरण दे दिया।
शाम को लता की तबियत और बिगड़ गई,सास ने राजीव को फोन करा।
राजीव ने कहा वो अभी आता है पर राजीव को यह कहे भी एक घण्टा हो गया।
फिर राजीव को दोबारा फोन करा जब तक लता मौत के करीब पहुँच चुकी थी।
राजीव घर आकर उसे अस्पताल ले गया तब तक लता मर चुकी थी।
अब लता को किसी की जरूरत नही थी,पर अब लता की सबको जरूरत थी।
आज लता की तेरहवीं हो चुकी थी।दिलासा देने वाले मेहमान सब जा चुके थे।
अब राजीव को दफ्तर जल्दी नही जाना था,
जाता भी कैसै अब उसे घर के बहुत से काम करने थे।
जो लता के होने पर उसे पता भी नही चलता था।
आज उसे पता लगा इस घर को लता की कितनी जरूरत है।
*आज राजीव को अपने तौलिये, रूमाल, अपनी दफ्तर की फाईल,
यहॉ तक की वो छोटी छोटी चीज़े जिसका उसे आभास भी नही था,नही मिल रही थी।
उसे पता भी नही था कि उसे लता की कितनी जरूरत हैं।
आज लता के जाने के बाद घर,घर नही चिड़ियाघर नजर आता था।
सास की दवाई और बच्चो को समय पर खाना नही मिलता था।
राजीव को रात को अपना बिस्तर लगा नही मिलता था।
आज राजीव का घर पर इन्तजार करने वाला कोई नही था।
उसको किसी को बताने की आवश्यकता नही की वो कहॉ है और कब आयेगा,
क्योकि कोई पूछने वाला ही नही। आज राजीव को लता की बहुत जरूरत है।
पर लता को यह साबित करने के लिए कि मेरी भी जरूरत है सबको…मौत को गले लगाना पड़ा।
उसे अपनी अहमियत बताने के लिये इस दुनिया से विदा होना पड़ा।
आज सबने मान लिया की लता को इस घर की नही,इस घर को लता की ज्यादा जरूरत हैं।
एक सबक:
जागो और अपने इस जीवन साथी को वो दो जो वो चाहती है,नहीं दोगों तो याद करोगे अपनी उस गलती को जिसका तुम्हें आभास तो था पर अपने उस पर गौर नहीं किया।

जीवन साथी का साथ, हमारी खुशियों का विकास।

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मौनी अमावस्या कथा

कांचीपुरी में देवस्वामी नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम धनवती था। उनके सात पुत्र तथा एक पुत्री थी। पुत्री का नाम गुणवती था। ब्राह्मण ने सातों पुत्रों को विवाह करके बेटी के लिए वर खोजने अपने सबसे बड़े पुत्र को भेजा। उसी दौरान किसी पण्डित ने पुत्री की जन्मकुण्डली देखी और बताया- “सप्तपदी होते-होते यह कन्या विधवा हो जाएगी।” तब उस ब्राह्मण ने पण्डित से पूछा- “पुत्री के इस वैधव्य दोष का निवारण कैसे होगा?” पंडित ने बताया- “सोमा का पूजन करने से वैधव्य दोष दूर होगा।” फिर सोमा का परिचय देते हुए उसने बताया- “वह एक धोबिन है। उसका निवास स्थान सिंहल द्वीप है। उसे जैसे-तैसे प्रसन्न करो और गुणवती के विवाह से पूर्व उसे यहाँ बुला लो।” तब देवस्वामी का सबसे छोटा लड़का बहन को अपने साथ लेकर सिंहल द्वीप जाने के लिए सागर तट पर चला गया। सागर पार करने की चिंता में दोनों एक वृक्ष की छाया में बैठ गए। उस पेड़ पर एक घोंसले में गिद्ध का परिवार रहता था। उस समय घोंसले में सिर्फ़ गिद्ध के बच्चे थे। गिद्ध के बच्चे भाई-बहन के क्रिया-कलापों को देख रहे थे। सायंकाल के समय उन बच्चों (गिद्ध के बच्चों) की माँ आई तो उन्होंने भोजन नहीं किया। वे माँ से बोले- “नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं। जब तक वे कुछ नहीं खा लेते, तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे।” तब दया और ममता के वशीभूत गिद्ध माता उनके पास आई और बोली- “मैंने आपकी इच्छाओं को जान लिया है। इस वन में जो भी फल-फूल, कंद-मूल मिलेगा, मैं ले आती हूं। आप भोजन कर लीजिए। मैं प्रात:काल आपको सागर पार कराकर सिंहल द्वीप की सीमा के पास पहुंचा दूंगी।” और वे दोनों भाई-बहन माता की सहायता से सोमा के यहाँ जा पहुंचे। वे नित्य प्रात: उठकर सोमा का घर झाड़कर लीप देते थे।

एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा- “हमारे घर कौन बुहारता है, कौन लीपता-पोतता है?” सबने कहा- “हमारे सिवाय और कौन बाहर से इस काम को करने आएगा?” किंतु सोमा को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। एक दिन उसने रहस्य जानना चाहा। वह सारी रात जागी और सब कुछ प्रत्यक्ष देखकर जान गई। सोमा का उन बहन-भाई से वार्तालाप हुआ। भाई ने सोमा को बहन संबंधी सारी बात बता दी। सोमा ने उनकी श्रम-साधना तथा सेवा से प्रसन्न होकर उचित समय पर उनके घर पहुंचने का वचन देकर कन्या के वैधव्य दोष निवारण का आश्वासन दे दिया। किंतु भाई ने उससे अपने साथ चलने का आग्रह किया। आग्रह करने पर सोमा उनके साथ चल दी। चलते समय सोमा ने बहुओं से कहा- “मेरी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहान्त हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट मत करना। मेरा इन्तजार करना।” और फिर सोमा बहन-भाई के साथ कांचीपुरी पहुंच गई। दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया। सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया। सोमा ने तुरन्त अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया। तुरन्त ही उसका पति जीवित हो उठा। सोमा उन्हें आशीर्वाद देकर अपने घर चली गई। उधर गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जामाता तथा पति की मृत्यु हो गई। सोमा ने पुण्य फल संचित करने के लिए मार्ग में अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष की छाया में विष्णु जी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं कीं। इसके पूर्ण होने पर उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे।

निष्काम भाव से सेवा का फल मधुर होता है, यही मौनी अमावस्या के व्रत का लक्ष्य है।

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