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देवी अन्नपूर्णा – Goddess Annapurna

देवी अन्नपूर्णा हिन्दू धर्म की देवी हैं। देवी अन्नपूर्णा को धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। इन्हें “अन्न की पूर्ति“ करने वाली देवी कहा गया है। मान्यता है कि देवी अन्नपूर्णा भक्तों की भूख शांत करती हैं तथा जो इनकी आराधना करता है उसके घर में कभी भी अनाज की कमी नहीं होती है। हिन्दू ग्रंथों और पुराणों में कई बार मां अन्नपूर्णा का विवरण आया है। देवी अन्नपूर्णा से जुड़ी रोचक बातें निम्न हैं:

  1. वेदों में लिखा है कि लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व श्रीराम जी ने अपनी वानर सेना की भूख मिटाने के लिए देवी अन्नपूर्णा की पूजा की थी, जिसके बाद देवी ने सेनाओं की भूख को शांत किया था और विजय प्राप्ति का आशीर्वाद दिया था।
  2. ग्रंथों के अनुसार काशी में जब अन्न की भारी कमी आ गई थी, तब इस स्थिति से परेशान होकर शंकर भगवान ने देवी अन्नपूर्णा से भिक्षा ग्रहण किया था।
    देवी अन्नपूर्णा का रूप
    स्कंद पुराण के अनुसार देवी अन्नपूर्णा के तीन नेत्र हैं। इनके माथे पर अर्द्धचन्द्र बना है। मां अनेकों आभूषण धारण किये हुए हैं। देवी अन्नपूर्णा के एक हाथ में बर्तन और दूसरे में अन्न से भरा घड़ा है। जिस तरह लक्ष्मी जी को धन और वैभव की देवी माना जाता है, उसी प्रकार देवी अन्नपूर्णा भोजन की देवी मानी जाती हैं।
  3. हिन्दू धर्मानुसार देवी अन्नपूर्णा की आराधना विभिन्न तरीकों से की जाती है। देवी अन्नपूर्णा की पूजा में निम्न मंत्र का विशेष महत्त्व है:

अन्नपूर्णा देवी मंत्र

हिन्दू धर्मानुसार देवी अन्नपूर्णा की आराधना विभिन्न तरीकों से की जाती है। देवी अन्नपूर्णा की पूजा में निम्न मंत्र का विशेष महत्त्व है:

ऊं अन्नपूर्णे सदापूरणे
शंकरः प्राणवल्लभे ज्ञान-वैराग्य-सिध्यर्द्हम भिक्षाम देहि च पार्वती।।

काशी में बसती हैं देवी अन्नपूर्णा

स्कंद पुराण के काशी खंड में इस बात का वर्णन किया गया है कि भगवान शिव की भार्या देवी पार्वती ही अन्नपूर्णा देवी हैं। काशी में ही अन्नपूर्णा देवीपीठ भी है। मान्यता है कि अन्नपूर्णा देवी की कृपा से मनुष्य के जीवन में कभी भी खाने आदि की समस्या नहीं होती।

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इच्छापूर्ति वॄक्ष – Wishing Tree

एक घने जंगल में एक इच्छापूर्ति वृक्ष था, उसके नीचे बैठ कर किसी भी चीज की इच्छा करने से वह तुरंत पूरी हो जाती थी
यह बात बहुत कम लोग जानते थे..क्योंकि उस घने जंगल में जाने की कोई हिम्मत ही नहीं करता था

एक बार संयोग से एक थका हुआ इंसान उस वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ गया उसे पता ही नहीं चला कि कब उसकी नींद लग गई
जब वह जागा तो उसे बहुत भूख लग रही थी ,उसने आस पास देखकर कहा- ‘ काश कुछ खाने को मिल जाए !’ तत्काल स्वादिष्ट पकवानों से भरी थाली हवा में तैरती हुई उसके सामने आ गई
उस इंसान ने भरपेट खाना खाया और भूख शांत होने के बाद सोचने लगा..
‘ काश कुछ पीने को मिल जाए..’ तत्काल उसके सामने हवा में तैरते हुए कई तरह के शरबत आ गए शरबत पीने के बाद वह आराम से बैठ कर सोचने लगा- ‘ कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ’
हवा में से खाना पानी प्रकट होते पहले कभी नहीं देखा न ही सुना..जरूर इस पेड़ पर कोई भूत रहता है जो मुझे खिला पिला कर बाद में मुझे खा लेगा ऐसा सोचते ही तत्काल उसके सामने एक भूत आया और उसे खा गया.।

इस प्रसंग से आप यह सीख सकते है कि हमारा मस्तिष्क ही इच्छापूर्ति वृक्ष है आप जिस चीज की प्रबल कामना करेंगे वह आपको अवश्य मिलेगी
अधिकांश लोगों को जीवन में बुरी चीजें इसलिए मिलती हैं..क्योंकि वे बुरी चीजों की ही कामना करते हैं।
इंसान ज्यादातर समय सोचता है-
कहीं बारिश में भीगने से मै बीमार न हों जाँऊ ..और वह बीमार हो जाता हैं..!

इंसान सोचता है – कहीं मुझे व्यापार में घाटा न हों जाए..
और घाटा हो जाता हैं..!

इंसान सोचता है – मेरी किस्मत ही खराब है ..
और उसकी किस्मत सचमुच खराब हो जाती हैं ..!

इंसान सोचता है – कहीं मेरा बाँस मुझे नौकरी से न निकाल दे..
और बाँस उसे नौकरी से निकाल देता है..!

इस तरह आप देखेंगे कि आपका अवचेतन मन इच्छापूर्ति वृक्ष की तरह आपकी इच्छाओं को ईमानदारी से पूर्ण करता है..!

इसलिए आपको अपने मस्तिष्क में विचारों को सावधानी से प्रवेश करने की अनुमति देनी चाहिए

अगर गलत विचार अंदर आ जाएगे तो गलत परिणाम मिलेंगे.
विचारों पर काबू रखना ही अपने जीवन पर काबू करने का रहस्य है..!
आपके विचारों से ही आपका जीवन या तो..
स्वर्ग बनता है या नरक..उनकी बदौलत ही आपका जीवन सुखमय या दुख:मय बनता है..
विचार जादूगर की तरह होते है , जिन्हें बदलकर आप अपना जीवन बदल सकते है..!

इसलिये हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए ..और यदि आप अच्छा सोचने लगते है तो पूरी कायनात उसे आपको देने में लग जाती है।
अपनी छोटी सी जिंदगी को यु ही न गवाईये, अच्छा खासा पाने की सोच के साथ हमारे साथ लग जाईये।

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सोने से पूर्व नित्य गीता स्वाध्याय – Read Geeta Before Going to Bed

एक श्लोक श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप से

अध्याय एक – कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण

श्लोक 14

तत: श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ ।
माधव: पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतु: ॥

शब्दार्थ

तत: – तत्पश्चात्; श्वेतै: – श्वेत; हयै: – घोड़ों से; युक्ते – युक्त; महति – विशाल; स्यन्दने – रथ में; स्थितौ – आसीन; माधव: – कृष्ण (लक्ष्मीपति) ने; पाण्डव: – अर्जुन (पाण्ड़ुपुत्र) ने; च – तथा; एव – निश्चय ही; दिव्यौ – दिव्य; शङ्खौ – शंख; प्रदध्मतु: – बजाये।

अनुवाद

दूसरी ओर से श्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये।

तात्पर्य

भीष्मदेव द्वारा बजाये गए शखं की तुलना में कृष्ण तथा अर्जुन के शंखों को दिव्य कहा गया है। दिव्य शंखों के नाद से यह सूचित हो रहा था कि दूसरे पक्ष की विजय की कोई आशा न थी क्योंकि कृष्ण पाण्डवों के पक्ष में थे।

जयस्तु पाण्डुपुत्राणां येषां पक्षे जनार्दन:

जय सदा पाण्ड़ु के पुत्र-जैसों की होती है क्योंकि भगवान् कृष्ण उनके साथ हैं।

और जहाँ जहाँ भगवान् विद्यमान हैं, वहीं वहीं लक्ष्मी भी रहती हैं क्योंकि वे अपने पति के बिना नहीं रह सकतीं।

अतः जैसा कि विष्णु या भगवान् कृष्ण के शंख द्वारा उत्पन्न दिव्य ध्वनि से सूचित हो रहा था, विजय तथा श्री दोनों ही अर्जुन की प्रतीक्षा कर रही थीं।

इसके अतिरिक्त, जिस रथ में दोनों मित्र आसीन थे वह अर्जुन को अग्नि देवता द्वारा प्रदत्त था और इससे सूचित हो रहा था कि तीनों लोकों में जहा

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बात पते की – Thing to Note

एक बच्चा घर से ढेर सारी खीर लेकर स्कूल पहुँचा। खीर मास्टर साहब को देते हुए बोला कि माँ ने आपको देने के लिए कहा है। मास्टर साहब बहुत खुश हुए। पहले तो भर पेट खीर खाई, फिर पूछा “बेटा, तेरी माँ ने आज मेरे लिए खीर क्यों भिजवाई?”
बच्चा मासूम था, बोल दिया, “कल रात माँ ने खीर बनाई थी। कहीं से एक बिल्ली आई और खीर में मुंह डाल दिया। माँ ने हम सबको खीर खाने से मना कर दिया। कहा कि कल स्कूल में मास्टर साहब को दे देना, वो खुश हो जाएंगे।”

दरअसल यह एक कुत्सित मानसिकता है। असल में हमारे भीतर ये भाव कूट-कूट कर भरा है कि दूसरों को बेवकूफ बनाओ। किसी भी तरह अपना उल्लू सीधा करो। कई ढाबों और होटलों में जब तक दाल, सब्जी खट्टी न हो जाए, ग्राहक को ही खिला देते हैं। हम खबरें सुनते हैं कि फलां स्कूल में बासी खाना खा कर बच्चे बीमार हुए। फलां जगह नकली दारू पीकर इतने लोग मर गए। नकली दवा से अस्पताल में मरीज की मौत। दरअसल हमारे यहाँ दवा से लेकर दारू तक का नकली कारोबार होता है।

हम पड़ोसियों से सुनते हैं, उनकी बहू ने आते ही घर में उधम मचाना शुरू कर दिया। फिर हम मुस्कुराते हैं और कहते हैं.. बहुत तेज बनती थी बुढ़िया, अब मिली है सजा। हम हर बात पर मजे लेते हैं। बिल्ली की जूठी खीर टिका देने से लेकर, अपनी बीमार बेटी को किसी की बहू बना देने तक।

जानते हैं, हम कब तक मजे लेते हैं? जब तक हम स्वयं भुक्तभोगी नहीं हो जाते.. जब तक कोई, हमें बिल्ली की जूठी खीर खिला नहीं देता, हम मजे लेते हैं। जिस दिन बासी खाना खा कर हमारी तबियत बिगड़ जाती है, उस दिन हम खिलाने वाले को कोसते हैं। जिस दिन नकली दवा खा कर.. हमारा कोई इस संसार से विदा हो जाता है, उस दिन हम अपना सिर पीटते हैं। जिस दिन हमारे परिवार में किसी ने झूठ-सच बोल कर अपनी बीमार बेटी टिका दी, हम अपनी किस्मत को कोसते हैं।

मित्रों, दुनिया के सभी धर्म ग्रथों में यही लिखा है कि दूसरों के साथ वैसा नहीं करना चाहिए, जो हमें खुद के लिए पंसद नहीं। जो जैसा देगा… वैसा ही पाएगा।
यह तय है… धोखा देने वाला, धोखा ही पायेगा।

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समाधान – Solution

दोस्तों…. क्या आपने कोई व्यक्ति देखा है, या आप किसी ऐसे व्यक्ति से मिले हैं, जिसकी जिंदगी शतप्रतिशत सही हो, जिसकी जिंदगी में कोई समस्या ही ना हो।

“मुझे तो आज तक ऐसा कोई नहीं मिला”।

किसी को पैसे की समस्या है,किसी को सेहत की, किसी के रिश्ते ठीक नहीं हैं। और कभी-कभी कई लोग ऐसे मिलते है, जिन्हें देखने से लगता है क़ि इनकी जीवन में सब ठीक है.. मगर फिर भी उनका चेहरा बुझा-बुझा सा रहता है।

दोस्तों … जब कोई समस्या आती है, तो हम सोचना शुरू कर देते हैं कि ये समस्या आई क्यों ? मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है. जो हुआ वो ना होता, ऐसा होता, तो ऐसा हो जाता, पता नहीं कितने सवाल हमारे दिमाग में आते जाते है।और हम समस्या के बारे में इतना सोचते हैं कि हल की तरफ से हमारा ध्यान हट जाता है।

कभी-कभी ऑफिस में या घर में समस्याओं का हल निकालने के लिए सब साथ बैठते है, तब भी समस्याओं की ही चर्चा कर रहे होते हैं। धीरे-धीरे एक दूसरे पर आरोप लगाना शुरू कर देते हैं।

घरों में अक्सर ऐसा होता है, सब एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं। एक दूसरे की गलतियाँ बताने लगते हैं। और कहीं ना कहीं एक दूसरे को सुधारना आरंभ कर देते हैं।जबकि, अगर हम समस्या के बारे में ना सोचें। अपने दिमाग को स्थिर रखकर हल के बारे में सोचें, तो हल मिल जायेगा। दुनिया में ऐसी कोई समस्या ही नहीं, जिसका हल ना हो। अगर सिर्फ एक व्यक्ति भी ऐसा सोचे जो हुआ सो हुआ अब आगे क्या।

अगर आप पिछली सारी बातों कोभूलकर अपना मन शांत करने में कामयाब हो जाते हैं, तो आपको पता नहीं उस समस्या से निकलने के कितने सारे रास्ते नजर आने लगेंगे। समस्याएं तो आयेंगी, फिर जायेंगी। फिर से आयेंगी, फिर से जायेंगी और यही जिन्दगी है।

लेकिन आपको अन्दर से मजबूत रहना है। ये सब जो भी बाहर हो रहा है, उसका आपके मन पर असर नहीं होना चाहिए।जितनी ज्यादा समस्या का आपने सामना कर लिया , और उसका हल आपने निकाल लिया। उतनी ही ज्यादा जिंदगी आपके लिए सरल होती चली जायेगी। जैसे गणित में आप जितना ज्यादा हल करते हैं, गणित उतना ही ज्यादा सरल विषय बन जाता है। और अगर आपको गणित के एक ही प्रश्न से डर लग गया तो सबसे ज्यादा कठिन विषय बन जाता है।

अगर आप एक ही समस्या को लेकर बैठे रहे, और उसका जिम्मेदार किसी और को ठहराकर हल नहीं निकाला। तब जैसे ही दूसरी समस्या आयेगी आपके
अन्दर उसको सामना करने की हिम्मत नहीं होगी। तब आप धीरे-धीरे टूटते चले जाओगे।ये दुनिया सिर्फ उन्ही की है जिन्होंने पिछला सब को छोड़कर वर्तमान के बारे में सोचा है। उनका भविष्य अपने आप उज्ज्वल हो जाता है।

तो दोस्तों आज से और अभी से अपनी सारी समस्या की जिम्मेदारी खुद लें। और जैसे ही कोई समस्या आये, सबसे पहले ये सोचें की उसे हल कैसे करूँ। सफलता की तरफ बढ़ने का रास्ता यही है, जिस पर छोटे- छोटे पत्थरों से घबराकर हम रुक जाते हैं।

ये जिन्दगी एक प्रश्नपत्र है जिसे आपको हल
करते जाना है।

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अनजाने में किये हुये पाप का प्रायश्चित कैसे होता है – Penance

बहुत सुन्दर प्रश्न है, यदि हमसे अनजाने में कोई पाप हो जाए तो क्या उस पाप से मुक्ती का कोई उपाय है।

श्रीमद्भागवत जी के षष्ठम स्कन्ध में , महाराज परीक्षित जी ,श्री शुकदेव जी से ऐसा प्रश्न कर लिए।

बोले भगवन – आपने पञ्चम स्कन्ध में जो नरको का वर्णन किया ,उसको सुनकर तो गुरुवर रोंगटे खड़े जाते हैं।

प्रभूवर मैं आपसे ये पूछ रहा हूँ की यदि कुछ पाप हमसे अनजाने में हो जाते हैं ,जैसे चींटी मर गयी,हम लोग स्वास लेते हैं तो कितने जीव श्वासों के माध्यम से मर जाते हैं। भोजन बनाते समय लकड़ी जलाते हैं ,उस लकड़ी में भी कितने जीव मर जाते हैं। और ऐसे कई पाप हैं जो अनजाने हो जाते हैं। तो उस पाप से मुक्ती का क्या उपाय है भगवन।


आचार्य शुकदेव जी ने कहा राजन ऐसे पाप से मुक्ती के लिए रोज प्रतिदिन पाँच प्रकार के यज्ञ करने चाहिए।

महाराज परीक्षित जी ने कहा, भगवन एक यज्ञ यदि कभी करना पड़ता है तो सोंचना पड़ता है ।आप पाँच यज्ञ रोज कह रहे हैं ।

यहां पर आचार्य शुकदेव जी हम सभी मानव के कल्याणार्थ कितनी सुन्दर बात बता रहे हैं ।

  • बोले राजन पहली यज्ञ है – जब घर में रोटी बने तो पहली रोटी गऊ ग्रास के लिए निकाल देना चाहिए ।
  • दूसरी यज्ञ है राजन – चींटी को दस पाँच ग्राम आटा रोज वृक्षों की जड़ो के पास डालना चाहिए।
  • तीसरी यज्ञ है राजन् – पक्षियों को अन्न रोज डालना चाहिए ।
  • चौथी यज्ञ है राजन् – आँटे की गोली बनाकर रोज जलाशय में मछलियो को डालना चाहिए ।
  • पांचवीं यज्ञ है राजन् – भोजन बनाकर अग्नि भोजन , रोटी बनाकर उसके टुकड़े करके उसमे घी चीनी मिलाकर अग्नि को भोग लगाओ।

राजन् अतिथि सत्कार खूब करें, कोई भिखारी आवे तो उसे जूठा अन्न कभी भी भिक्षा में न दे ।

राजन् ऐसा करने से अनजाने में किये हुए पाप से मुक्ती मिल जाती है। हमे उसका दोष नहीं लगता ।उन पापो का फल हमे नहीं भोगना पड़ता।

राजा ने पुनः पूछ लिया ,भगवन यदि
गृहस्त में रहकर ऐसी यज्ञ न हो पावे तो और कोई उपाय हो सकता है क्या।

तब यहां पर श्री शुकदेव जी कहते हैं
राजन्

कर्मणा कर्मनिर्हांरो न ह्यत्यन्तिक इष्यते।

अविद्वदधिकारित्वात् प्रायश्चितं विमर्शनम् ।।

नरक से मुक्ती पाने के लिए हम प्रायश्चित करें। कोई व्यक्ति तपस्या के द्वारा प्रायश्चित करता है। कोई ब्रह्मचर्य पालन करके प्रायश्चित करता है। कोई व्यक्ति यम,नियम,आसन के द्वारा प्रायश्चित करता है। लेकिन मैं तो ऐसा मानता हूँ राजन्!

केचित् केवलया भक्त्या वासुदेव परायणः ।

राजन् केवल हरी नाम संकीर्तन से ही
जाने और अनजाने में किये हुए को नष्ट करने की सामर्थ्य है ।

इसलिए सदैव कहीं भी कभी भी किसी भी समय सोते जागते उठते बैठते राम नाम रटते रहो।

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भाव कथा – Story of Feelings

एक छोटी – सी भाव कथा भक्त

एक भगवान जी के भक्त हुए थे, उन्होंने 20 साल तक लगातार भगवत गीता जी का पाठ किया।

अंत में भगवान ने उनकी परिक्षा लेते हुऐ कहा:- अरे भक्त ! तू सोचता है कि मैं तेरे गीता के पाठ से खुश हूँ, तो ये तेरा वहम है।

मैं तेरे पाठ से बिलकुल भी प्रसन्न नही हुआ।

जैसे ही भक्त ने सुना तो वो नाचने लगा, और झूमने लगा।

भगवान ने बोला:- अरे ! मैंने कहा कि मैं तेरे पाठ करने से खुश नहीं हूँ और तू नाच रहा है।

वो भक्त बोला:- भगवान जी आप खुश हो या नहीं हो ये बात मैं नही जानता।

लेकिन मैं तो इसलिए खुश हूँ की आपने मेरा पाठ कम से कम सुना तो सही, इसलिए मैं नाच रहा हूँ।

ये होता है भाव….

थोड़ा सोचिये जब द्रौपदी जी ने भगवान कृष्ण को पुकारा तो क्या भगवान ने नहीं सुना?
भगवान ने सुना भी और लाज भी बचाई।

जब गजेन्द्र हाथी ने ग्राह से बचने के लिए भगवान को पुकारा तो क्या भगवान ने नहीं सुना?
बिल्कुल सुना और भगवान अपना भोजन छोड़कर आये।

कबीरदास जी, तुलसीदास जी, सूरदास जी, हरिदास जी, मीरा बाई जी, सेठ हरदयाल गोयनका जी, भाई जी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी, राधाबाबा जी, संत श्री रामसुखदास जी और न जाने अनेकानेक संत हुए हैं जो भगवान से बात करते रहे और भगवान भी उनकी सुनते थे।

इसलिए जब भी भगवान को याद करो , उनका नाम जप करो तो ये मत सोचना कि भगवान पुकार सुनते होंगे या नहीं?

कोई संदेह मत करना, बस ह्रदय से उनको पुकारना, खुद लगेगा कि हाँ, भगवान पुकार को सुन रहे हैं।

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Story Tips and Tricks

मंजिल सामने है – Achieve Your Target

एक बार एक सन्यासी संत के आश्रम में एक व्यक्ति आया. वह देखने में बहुत दुखी लग रहा था.

आते ही वह स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला -“महाराज मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ.

मैं अपने दैनिक जीवन में बहुत मेहनत करता हूँ, काफी लगन से काम करता हूँ, लेकिन फिर भी कभी सफल नहीं हो पाया.

मेरे सभी रिश्तेदार मुझ पर हँसते हैं. भगवान ने मुझे ऐसा नसीब क्यों दिया है कि मैं पढ़ा-लिखा और मेहनती होते हुए भी कभी कामयाब नहीं हो पाया ?”

स्वामी जी के पास एक छोटा सा पालतू कुत्ता था. उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, “तुम पहले वो सामने दिख रही इमारत तक ज़रा मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ, फिर मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा.”

आदमी को यह बात अच्छी तो नहीं लगी परन्तु फिर भी वह कुत्ते को लेकर सैर कराने निकल पड़ा.

जब वह लौटकर आया तो स्वामी जी ने देखा कि आदमी बुरी तरह हाँफ रहा था और थका हुआ सा लग रहा था.

स्वामी जी ने पूछा – “अरे भाई, तुम ज़रा सी दूर में ही इतना ज्यादा कैसे थक गए ?”

आदमी बोला – “मैं तो सीधा सादा अपने रास्ते पर चल रहा था परन्तु ये कुत्ता रास्ते में मिलने वाले हर कुत्ते पर भौंक रहा था और उनके पीछे दौड़ रहा था. इसको पकड़ने के चक्कर में मुझे भी दौड़ना पड़ता था इसलिए ज्यादा थक गया…”

स्वामी जी बोले – “यही तुम्हारे प्रश्नों का भी जवाब है. तुम्हारी मंज़िल तो उस इमारत की तरह सामने ही होती है लेकिन तुम मंज़िल की ओर सीधे जाने की बजाय दूसरे लोगों के पीछे भागते रहते हो और इसीलिए मंज़िल तुमसे दूर ही बनी रहती है.

यदि तुम अपने पड़ोसी और रिश्तेदारों की बातों पर ध्यान न देकर केवल अपनी मंज़िल पर नज़र रखोगे तो कोई कारण नहीं कि वह तुम्हें न मिले.”

आदमी की समझ में बात आ गई थी. उसने स्वामी जी को प्रणाम किया और वहाँ से चल पड़ा।

जय जय श्री राधे

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नारायण नारायण नारायण – Narayan Narayan Narayan

एक बहुत सुंदर कहानी है। नारद मुनि जहां भी जाते थे, बस ‘नारायण, नारायण’ कहते रहतेथे। नारद को तीनों लोकों में जाने की छूट थी। वह आराम से कहीं भी आ-जा सकते थे। एक दिन उन्होंने देखा कि एक किसान परमानंद की अवस्था में अपनी जमीन जोत रहा था।

नारद को यह जानने की उत्सुकता हुई कि उसके आनंद का राज क्या है। जब वह उस किसान से बात करने पहुंचे, तो वह अपनी जमीन को जोतने में इतना डूबा हुआ था, कि उसने नारद पर ध्यान भी नहीं दिया। दोपहर के समय, उसने काम से थोड़ा विराम लिया और खाना खाने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठा। उसने बर्तन को खोला, जिसमें थोड़ा सा भोजन था। उसने सिर्फ ‘नारायण, नारायण, नारायण’ कहा और खाने लगा।

आप जिस पल जीवन के एक आयाम से दूसरे आयाम में जाते हैं उस समय अगर आप सिर्फ अपनी जागरूकता कायम रख पाएं, तो आपको मुक्ति मिल सकती है।किसान अपना खाना उनके साथ बांटना चाहता था मगर जाति व्यवस्था के कारण नारद उसके साथ नहीं खा सकते थे।

नारद ने पूछा, ‘तुम्हारे इस आनंद की वजह क्या है?’ किसान बोला, ‘हर दिन नारायण अपने असली रूप में मेरे सामने आते हैं। मेरे आनंद का बस यही कारण है।’ नारद ने उससे पूछा, ‘तुम कौन सी साधना करतेहो?’ किसान बोला, ‘मुझे कुछ नहीं आता। मैं एक अज्ञानी, अनपढ़ आदमी हूं। बस सुबह उठने के बाद मैं तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं। अपना काम शुरू करते समय मैं तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं। अपना काम खत्म करने के बाद मैं फिर तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं। जब मैं खाता हूं, तो तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं और जब सोने जाता हूं, तो भी तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं।’

नारद ने गिना कि वह खुद 24 घंटे में कितनी बार ‘नारायण’ बोलते हैं। वह लाखों बार ऐसा करते थे। मगर फिर भी उन्हें नारायण से मिलने के लिए वैकुण्ठ तक जाना पड़ता था, जो बहुत ही दूर था। मगर खाने, हल चलाने या बाकी कामों से पहले सिर्फ तीन बार ‘नारायण’ बोलने वाले इस किसान के सामने नारायण वहीं प्रकट हो जाते थे। नारद को लगा कि यह ठीक नहीं है, इसमें जरूर कहीं कोई त्रुटि है।

वह तुरंत वैकुण्ठ पहुंच गए और उन्होंने विष्णु से पुछा, ‘मैं हर समय आपका नाम जपता रहता हूं, मगर आप मेरे सामने नहीं प्रकट नहीं होते। मुझे आकर आपके दर्शन करने पड़ते हैं। मगर उस किसान के सामने आप रोज प्रकट होते हैं और वह परमानंद में जीवन बिता रहा है!’

विष्णु ने नारद की ओर देखा और लक्ष्मी को तेल से लबालब भरा हुआ एक बर्तन लाने को कहा। उन्होंने नारद से कहा, ‘पहले आपको एक काम करना पड़ेगा। तेल से भरे इस बर्तन को भूलोक ले जाइए। मगर इसमें से एक बूंद भी तेल छलकना नहीं चाहिए। इसे वहां छोड़कर आइए, फिर हम इस प्रश्न का जवाब देंगे।’

नारद तेल से भरा बर्तन ले कर भूलोक गए, उसे वहां छोड़ कर वापस आ गए और बोले, ‘अब मेरे प्रश्न का जवाब दीजिए।’ विष्णु ने पूछा, ‘जब आप तेल से भरा यह बर्तन लेकर जा रहे थे, तो आपने कितनी बार नारायण बोला?’ नारद बोले, ‘उस समय मैं नारायण कैसे बोल सकता था? आपने कहा था कि एक बूंद तेल भी नहीं गिरना चाहिए, इसलिए मुझे पूरा ध्यान उस पर देना पड़ा। मगर वापस आते समय मैंने बहुत बार ‘नारायण’ कहा।’

विष्णु बोले, ‘यही आपके प्रश्न का जवाब है। उस किसान का जीवन तेल से भरा बर्तन ढोने जैसा है जो किसी भी पलछलक सकता है। उसे अपनी जीविका कमानी पड़ती है, उसे बहुत सारी चीजें करनी पड़ती हैं। मगर उसके बावजूद, वह नारायण बोलता है।

जब आप इस बर्तन में तेल लेकर जा रहे थे, तो आपने एक बार भी नारायण नहीं कहा। यानी यह आसान तब होता है जब आपके पास करने के लिए कुछ नहीं होता।’

नारायण नारायण नारायण !!!

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दीये की रोशनी – Light of Lamp

एक गांव से दस मील की दूरी पर एक बहुत सुंदर पहाड़ था। उस पहाड़ पर एक मंदिर था। दूर-दूर के लोग उस मंदिर के दर्शन करने आते।

उस गांव का एक युवक भी सोचता था, मुझे भी जाकर देखना है। लेकिन करीब में था, तो विचार टलती गई। एक दिन उसने तय कर लिया कि आज मुझे जाना ही है देखने।

सुबह से धूप बढ़ जाती थी, इसलिए वह रात को ही उठा, लालटेन जलाई और गांव के बाहर आ गया। घनी अंधेरी रात थी, वह बहुत डर गया। उसने सोचा, छोटी सी लालटेन है, दो-तीन कदम तक प्रकाश पड़ता है, और फासला दस मील का है। दस मील का इतना विराट अंधेरा.. इतनी छोटी सी लालटेन से कैसे कटेगा? सूरज की राह देखनी चाहिए, यही ठीक होगा। वह वहीं बैठ गया, सुबह होने की प्रतीक्षा में।

तभी उसने देखा, एक बूढ़ा आदमी एक छोटा सा दीया.. हाथ में लिए चला आ रहा था। उसने बूढ़े से पूछा, पागल हो गए हो? कुछ गणित का पता है? दस मील लंबा रास्ता है और तुम्हारे दीये की रोशनी तो बमुश्किल एक कदम ई दूरी तक ही जा पाती है..कैसे तय कर पाओगे इतनी दूरी??

बूढ़े ने कहा- “पागल, एक कदम से ज्यादा कभी कोई चल पाया है क्या? कोई चल भी नहीं सकता एक कदम से ज्यादा, रोशनी चाहे हजार मील पड़ती रहे। फिर, जब तक हम एक कदम चलते हैं, तब तक रोशनी भी एक कदम आगे बढ़ जाती है। इस गणित से तो दस मील क्या, हम दस हजार मील पार कर लेंगे। उठ आ, तू बैठा क्यों है? तेरे पास तो अच्छी लालटेन है। एक कदम तू आगे चलेगा, रोशनी उतनी आगे बढ़ जाएगी।”

इसी तरह जिंदगी में भी, अगर कोई पूरा हिसाब पहले लगा ले, तो डर कर वहीं रुक जाएगा..बैठ जाएगा। जिंदगी में एक-एक कदम का हिसाब लगाने वाले, हजारों मील चल जाते हैं और हजारों मील का हिसाब लगाने वाले, एक कदम भी नहीं उठा पाते..!!

समझना अवश्य होगा इस सूत्र को।

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