Categories
Story

बात पते की – Thing to Note

एक बच्चा घर से ढेर सारी खीर लेकर स्कूल पहुँचा। खीर मास्टर साहब को देते हुए बोला कि माँ ने आपको देने के लिए कहा है। मास्टर साहब बहुत खुश हुए। पहले तो भर पेट खीर खाई, फिर पूछा “बेटा, तेरी माँ ने आज मेरे लिए खीर क्यों भिजवाई?”
बच्चा मासूम था, बोल दिया, “कल रात माँ ने खीर बनाई थी। कहीं से एक बिल्ली आई और खीर में मुंह डाल दिया। माँ ने हम सबको खीर खाने से मना कर दिया। कहा कि कल स्कूल में मास्टर साहब को दे देना, वो खुश हो जाएंगे।”

दरअसल यह एक कुत्सित मानसिकता है। असल में हमारे भीतर ये भाव कूट-कूट कर भरा है कि दूसरों को बेवकूफ बनाओ। किसी भी तरह अपना उल्लू सीधा करो। कई ढाबों और होटलों में जब तक दाल, सब्जी खट्टी न हो जाए, ग्राहक को ही खिला देते हैं। हम खबरें सुनते हैं कि फलां स्कूल में बासी खाना खा कर बच्चे बीमार हुए। फलां जगह नकली दारू पीकर इतने लोग मर गए। नकली दवा से अस्पताल में मरीज की मौत। दरअसल हमारे यहाँ दवा से लेकर दारू तक का नकली कारोबार होता है।

हम पड़ोसियों से सुनते हैं, उनकी बहू ने आते ही घर में उधम मचाना शुरू कर दिया। फिर हम मुस्कुराते हैं और कहते हैं.. बहुत तेज बनती थी बुढ़िया, अब मिली है सजा। हम हर बात पर मजे लेते हैं। बिल्ली की जूठी खीर टिका देने से लेकर, अपनी बीमार बेटी को किसी की बहू बना देने तक।

जानते हैं, हम कब तक मजे लेते हैं? जब तक हम स्वयं भुक्तभोगी नहीं हो जाते.. जब तक कोई, हमें बिल्ली की जूठी खीर खिला नहीं देता, हम मजे लेते हैं। जिस दिन बासी खाना खा कर हमारी तबियत बिगड़ जाती है, उस दिन हम खिलाने वाले को कोसते हैं। जिस दिन नकली दवा खा कर.. हमारा कोई इस संसार से विदा हो जाता है, उस दिन हम अपना सिर पीटते हैं। जिस दिन हमारे परिवार में किसी ने झूठ-सच बोल कर अपनी बीमार बेटी टिका दी, हम अपनी किस्मत को कोसते हैं।

मित्रों, दुनिया के सभी धर्म ग्रथों में यही लिखा है कि दूसरों के साथ वैसा नहीं करना चाहिए, जो हमें खुद के लिए पंसद नहीं। जो जैसा देगा… वैसा ही पाएगा।
यह तय है… धोखा देने वाला, धोखा ही पायेगा।

Categories
Religious

दुःख ईश्वर का प्रसाद है

जब भगवान सृष्टि की रचना कर रहे तो उन्होंने जीव को कहा कि तुम्हे मृतुलोक जाना पड़ेगा,मैं सृष्टि की रचना करने जा रहा हूँ.

ये सुन जीव की आँखों मे आंसू आ गए.वो बोला प्रभु कुछ तो ऐसा करो की मे लौटकर आपके पास ही आऊ. भगवान को दया आ गई. उन्होंने दो बाते की जीव के लिए.

पहला संसार की हर चीज़ मे अतृप्ति मिला दी, कि तुझे दुनिया मे कुछ भी मिल जाये तू तृप्त नहीं होगा.

तृप्ति तुझे तभी मिलेगी जब तू मेरे पास आएगा और दूसरा सभी के हिस्से मे थोडा-थोडा दुःख मिला दिया कि हम लौट कर ईश्वर के पास ही पहुचे.

इस तरह हर किसी के जीवन मे थोडा दुःख है. जीवन मे दुःख या विषाद हमें ईश्वर के पास ले जाने के लिए है,

लेकिन हम चूक जाते है. हमारी समस्या क्या है कि हर किसी को दुःख आता है, हम भागते है ज्योतिष के पास,अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के पास.

कुछ होने वाला नहीं.

थोड़ी देर का मानसिक संतोष बस. यदि दुखो से घबराये नहीं और ईश्वर का प्रसाद समझ कर आगे बढे तो बात बन जाती है.

यदि हम ईश्वर से विलग होने के दिनों को याद कर ले तो बात बन जाती है और जीव दुखो से भी पार हो जाता है.

दुःख तो ईश्वर का प्रसाद है. दुखो का मतलब है, ईश्वर का बुलावा है. वो हमें याद कर रहा है पहले भी ये विषाद और दुःख बहुत से संतो के लिए ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बन चुका है.

हमें ये बात अच्छे से समझनी चाहिए कि संसार मे हर चीज़ मे अतृप्ति है और दुःख और विषाद ईश्वर प्राप्ति का साधन है.

“जय श्री गणेश”

Categories
Story

समाधान – Solution

दोस्तों…. क्या आपने कोई व्यक्ति देखा है, या आप किसी ऐसे व्यक्ति से मिले हैं, जिसकी जिंदगी शतप्रतिशत सही हो, जिसकी जिंदगी में कोई समस्या ही ना हो।

“मुझे तो आज तक ऐसा कोई नहीं मिला”।

किसी को पैसे की समस्या है,किसी को सेहत की, किसी के रिश्ते ठीक नहीं हैं। और कभी-कभी कई लोग ऐसे मिलते है, जिन्हें देखने से लगता है क़ि इनकी जीवन में सब ठीक है.. मगर फिर भी उनका चेहरा बुझा-बुझा सा रहता है।

दोस्तों … जब कोई समस्या आती है, तो हम सोचना शुरू कर देते हैं कि ये समस्या आई क्यों ? मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है. जो हुआ वो ना होता, ऐसा होता, तो ऐसा हो जाता, पता नहीं कितने सवाल हमारे दिमाग में आते जाते है।और हम समस्या के बारे में इतना सोचते हैं कि हल की तरफ से हमारा ध्यान हट जाता है।

कभी-कभी ऑफिस में या घर में समस्याओं का हल निकालने के लिए सब साथ बैठते है, तब भी समस्याओं की ही चर्चा कर रहे होते हैं। धीरे-धीरे एक दूसरे पर आरोप लगाना शुरू कर देते हैं।

घरों में अक्सर ऐसा होता है, सब एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं। एक दूसरे की गलतियाँ बताने लगते हैं। और कहीं ना कहीं एक दूसरे को सुधारना आरंभ कर देते हैं।जबकि, अगर हम समस्या के बारे में ना सोचें। अपने दिमाग को स्थिर रखकर हल के बारे में सोचें, तो हल मिल जायेगा। दुनिया में ऐसी कोई समस्या ही नहीं, जिसका हल ना हो। अगर सिर्फ एक व्यक्ति भी ऐसा सोचे जो हुआ सो हुआ अब आगे क्या।

अगर आप पिछली सारी बातों कोभूलकर अपना मन शांत करने में कामयाब हो जाते हैं, तो आपको पता नहीं उस समस्या से निकलने के कितने सारे रास्ते नजर आने लगेंगे। समस्याएं तो आयेंगी, फिर जायेंगी। फिर से आयेंगी, फिर से जायेंगी और यही जिन्दगी है।

लेकिन आपको अन्दर से मजबूत रहना है। ये सब जो भी बाहर हो रहा है, उसका आपके मन पर असर नहीं होना चाहिए।जितनी ज्यादा समस्या का आपने सामना कर लिया , और उसका हल आपने निकाल लिया। उतनी ही ज्यादा जिंदगी आपके लिए सरल होती चली जायेगी। जैसे गणित में आप जितना ज्यादा हल करते हैं, गणित उतना ही ज्यादा सरल विषय बन जाता है। और अगर आपको गणित के एक ही प्रश्न से डर लग गया तो सबसे ज्यादा कठिन विषय बन जाता है।

अगर आप एक ही समस्या को लेकर बैठे रहे, और उसका जिम्मेदार किसी और को ठहराकर हल नहीं निकाला। तब जैसे ही दूसरी समस्या आयेगी आपके
अन्दर उसको सामना करने की हिम्मत नहीं होगी। तब आप धीरे-धीरे टूटते चले जाओगे।ये दुनिया सिर्फ उन्ही की है जिन्होंने पिछला सब को छोड़कर वर्तमान के बारे में सोचा है। उनका भविष्य अपने आप उज्ज्वल हो जाता है।

तो दोस्तों आज से और अभी से अपनी सारी समस्या की जिम्मेदारी खुद लें। और जैसे ही कोई समस्या आये, सबसे पहले ये सोचें की उसे हल कैसे करूँ। सफलता की तरफ बढ़ने का रास्ता यही है, जिस पर छोटे- छोटे पत्थरों से घबराकर हम रुक जाते हैं।

ये जिन्दगी एक प्रश्नपत्र है जिसे आपको हल
करते जाना है।

Categories
Story

अनजाने में किये हुये पाप का प्रायश्चित कैसे होता है – Penance

बहुत सुन्दर प्रश्न है, यदि हमसे अनजाने में कोई पाप हो जाए तो क्या उस पाप से मुक्ती का कोई उपाय है।

श्रीमद्भागवत जी के षष्ठम स्कन्ध में , महाराज परीक्षित जी ,श्री शुकदेव जी से ऐसा प्रश्न कर लिए।

बोले भगवन – आपने पञ्चम स्कन्ध में जो नरको का वर्णन किया ,उसको सुनकर तो गुरुवर रोंगटे खड़े जाते हैं।

प्रभूवर मैं आपसे ये पूछ रहा हूँ की यदि कुछ पाप हमसे अनजाने में हो जाते हैं ,जैसे चींटी मर गयी,हम लोग स्वास लेते हैं तो कितने जीव श्वासों के माध्यम से मर जाते हैं। भोजन बनाते समय लकड़ी जलाते हैं ,उस लकड़ी में भी कितने जीव मर जाते हैं। और ऐसे कई पाप हैं जो अनजाने हो जाते हैं। तो उस पाप से मुक्ती का क्या उपाय है भगवन।


आचार्य शुकदेव जी ने कहा राजन ऐसे पाप से मुक्ती के लिए रोज प्रतिदिन पाँच प्रकार के यज्ञ करने चाहिए।

महाराज परीक्षित जी ने कहा, भगवन एक यज्ञ यदि कभी करना पड़ता है तो सोंचना पड़ता है ।आप पाँच यज्ञ रोज कह रहे हैं ।

यहां पर आचार्य शुकदेव जी हम सभी मानव के कल्याणार्थ कितनी सुन्दर बात बता रहे हैं ।

  • बोले राजन पहली यज्ञ है – जब घर में रोटी बने तो पहली रोटी गऊ ग्रास के लिए निकाल देना चाहिए ।
  • दूसरी यज्ञ है राजन – चींटी को दस पाँच ग्राम आटा रोज वृक्षों की जड़ो के पास डालना चाहिए।
  • तीसरी यज्ञ है राजन् – पक्षियों को अन्न रोज डालना चाहिए ।
  • चौथी यज्ञ है राजन् – आँटे की गोली बनाकर रोज जलाशय में मछलियो को डालना चाहिए ।
  • पांचवीं यज्ञ है राजन् – भोजन बनाकर अग्नि भोजन , रोटी बनाकर उसके टुकड़े करके उसमे घी चीनी मिलाकर अग्नि को भोग लगाओ।

राजन् अतिथि सत्कार खूब करें, कोई भिखारी आवे तो उसे जूठा अन्न कभी भी भिक्षा में न दे ।

राजन् ऐसा करने से अनजाने में किये हुए पाप से मुक्ती मिल जाती है। हमे उसका दोष नहीं लगता ।उन पापो का फल हमे नहीं भोगना पड़ता।

राजा ने पुनः पूछ लिया ,भगवन यदि
गृहस्त में रहकर ऐसी यज्ञ न हो पावे तो और कोई उपाय हो सकता है क्या।

तब यहां पर श्री शुकदेव जी कहते हैं
राजन्

कर्मणा कर्मनिर्हांरो न ह्यत्यन्तिक इष्यते।

अविद्वदधिकारित्वात् प्रायश्चितं विमर्शनम् ।।

नरक से मुक्ती पाने के लिए हम प्रायश्चित करें। कोई व्यक्ति तपस्या के द्वारा प्रायश्चित करता है। कोई ब्रह्मचर्य पालन करके प्रायश्चित करता है। कोई व्यक्ति यम,नियम,आसन के द्वारा प्रायश्चित करता है। लेकिन मैं तो ऐसा मानता हूँ राजन्!

केचित् केवलया भक्त्या वासुदेव परायणः ।

राजन् केवल हरी नाम संकीर्तन से ही
जाने और अनजाने में किये हुए को नष्ट करने की सामर्थ्य है ।

इसलिए सदैव कहीं भी कभी भी किसी भी समय सोते जागते उठते बैठते राम नाम रटते रहो।

Categories
Spiritual

ईश्वर को दोष – Blaming God

हम जीव स्वयं को इतना चालाक समझते हैं कि हर बुरे कर्मों के फल का जिम्मेदार या दोष ईश्वर को देते हैं और जब सुख के पल हमारे जीवन में आते हैं तब हम कहते हैं कि ये सब हमारी मेहनत के फल का नतीजा हैं। यानि हर बुरे कर्मों के फल का जिम्मेदार परमात्मा और हर अच्छे कर्मों के फल का श्रेय हम स्वयं को देते हैं।

अब आईये हम बारिकी से समझे की कैसे हम ईश्वर को हर बुरे कर्मों के फल का दोषी मानते हैं। ईश्वर ने हम सभी को एक समान इस धरती पर भेजा था, मगर जात-पात, धर्म, भेद-भाव, छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब यह सब किसने बनाया?? हम इंसानों ने बनाया।

अब देखे एक व्यक्ति जो बहुत अधिक शराब का सेवन करता हैं और अंत में जब बीमार होता हैं तो इलाज के लिए डाक्टर को दिखाता हैं, डाक्टर उसे बताता हैं कि अापके लीवर खराब हो गये हैं। अब वह व्यक्ति ईश्वर को दोष देना शुरु कर देता हैं कि ईश्वर ने मेरे स्वास्थ को स्वस्थ नहीं रखा। भई ईश्वर ने तो नहीं कहा था न कि आप धरती पर जाओ और खुब मजे से शराब का सेवन करो और मैं तुम्हे कुछ नहीं होने दुंगा। गलत कर्म हम करे और दोष ईश्वर को दें।

ऐसे ही एक जगह ओर विचार करें एक व्यापारी जिसे अपने व्यापार में बहुत घाटा (नुकसान) होता हैं वो भी इसके लिए ईश्वर को कोसता हैं कि ईश्वर ने मेरे साथ ऐसा किया, और एक व्यापारी जिसे अपने व्यापार में बहुत मुनाफा (लाभ) होता हैं तो वो ईश्वर का शक्रिया करने की बजाय उस लाभ का श्रेय स्वयं को देता हैं कि ये सब इतनी धन-दौलत मैने अपनी मेहनत से कमाई हैं।

अब हम स्वयं विचार करे कि ईश्वर के रज़ा के बिना तो एक पत्ता तक नहीं हिलता तो किसी व्यापारी को घाटा और किसी व्यापारी को मुनाफा कैसे हो सकता हैं। जबकि ईश्वर ने हम सभी को एक समान इस धरती पर भेजा था तो इतना फर्क क्यों करेगा ईश्वर हम सभी के साथ। यह सब हमारे कर्मों के फल का नतीजा हैं, जो हमारे भाग्य में लिखा हैं न हमें उससे कम मिलेगा और न ही ज्यादा।

जैसे किसी पिता की दो संतान हैं, एक बेटा सपूत हैं और एक कपूत तो पिता उनमें तो कोई फर्क नहीं करेगा ना। उसे तो दोनो ही प्यारे हैं फिर चाहे वो कपूत बेटे को थोड़ा डांट देगा, उस पर गुस्सा करेगा , मगर खुद से जुदा तो नहीं करेगा ना। ऐसे ही हम सभी उस एक परमात्मा की संतान हैं। उसने हम सभी को एक समान भेजा था, ये तो सब हमारे कर्मों के फल हैं जिस कारण हमें सुख-दुख दोनों को भोगना लिखा हैं। हमें तो हर वेले ईश्वर का शुकर करना चाहिए कि हे ईश्वर मैं तेरा रज़ा में राजी हूँ, जिस हाल में तू रखे, हर पल तेरा शुकराना हैं।

इसीलिए हम जीव भी विचार करें और अपने जीवन की बची सांसो व पलों में शुभकर्म करते रहें ताकि इस चौरासी की जेलखाने के फिर से कैदी न बनकर मालिक से मिलाप करें।

Categories
Story Religious

भाव कथा – Story of Feelings

एक छोटी – सी भाव कथा भक्त

एक भगवान जी के भक्त हुए थे, उन्होंने 20 साल तक लगातार भगवत गीता जी का पाठ किया।

अंत में भगवान ने उनकी परिक्षा लेते हुऐ कहा:- अरे भक्त ! तू सोचता है कि मैं तेरे गीता के पाठ से खुश हूँ, तो ये तेरा वहम है।

मैं तेरे पाठ से बिलकुल भी प्रसन्न नही हुआ।

जैसे ही भक्त ने सुना तो वो नाचने लगा, और झूमने लगा।

भगवान ने बोला:- अरे ! मैंने कहा कि मैं तेरे पाठ करने से खुश नहीं हूँ और तू नाच रहा है।

वो भक्त बोला:- भगवान जी आप खुश हो या नहीं हो ये बात मैं नही जानता।

लेकिन मैं तो इसलिए खुश हूँ की आपने मेरा पाठ कम से कम सुना तो सही, इसलिए मैं नाच रहा हूँ।

ये होता है भाव….

थोड़ा सोचिये जब द्रौपदी जी ने भगवान कृष्ण को पुकारा तो क्या भगवान ने नहीं सुना?
भगवान ने सुना भी और लाज भी बचाई।

जब गजेन्द्र हाथी ने ग्राह से बचने के लिए भगवान को पुकारा तो क्या भगवान ने नहीं सुना?
बिल्कुल सुना और भगवान अपना भोजन छोड़कर आये।

कबीरदास जी, तुलसीदास जी, सूरदास जी, हरिदास जी, मीरा बाई जी, सेठ हरदयाल गोयनका जी, भाई जी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी, राधाबाबा जी, संत श्री रामसुखदास जी और न जाने अनेकानेक संत हुए हैं जो भगवान से बात करते रहे और भगवान भी उनकी सुनते थे।

इसलिए जब भी भगवान को याद करो , उनका नाम जप करो तो ये मत सोचना कि भगवान पुकार सुनते होंगे या नहीं?

कोई संदेह मत करना, बस ह्रदय से उनको पुकारना, खुद लगेगा कि हाँ, भगवान पुकार को सुन रहे हैं।

Categories
Spiritual

प्रार्थना की अद्भुत ताकत – Power of Prayer

प्रार्थनाएं भी नष्ट कर सकती हैं आपका जीवन, भूल से भी ना करें ये गलतियां

प्रार्थना की अद्भुत ताकत

सकारात्मकता वो चीज है, जो बुरी चीजों को भी अच्छा नजरिया देती है। आप यकीन करें या ना करें, लेकिन सकारात्मक सोच अनहोनी चीजों को भी होनी में बदल सकती है। प्रार्थना में यह सकारात्मकता देने की अद्भुत ताकत है, लेकिन ये पूरी तरह प्रार्थना करने के तरीके पर निर्भर करता है। कहीं आपकी प्रार्थना भी ऐसी तो नहीं होती? आजमाकर देखिए, ये आपको जरूर लाभ देगा।

जीवन में हालातों से परेशान होना कोई नई बात नहीं, ना ही इसे अनुभव करने वाला दुनिया का कोई अजूबा है। संसार में हर प्राणी समस्याओं से घिरा है, जो सामान्य बात है, पर हां, कोई इनसे कैसे निकलता है, हर मनुष्य की सोच के साथ निदान पाने की वो प्रक्रिया हर बार बहुत नयी होती है।

प्रार्थना भी परेशानियों से निकलने की वही प्रक्रिया है। अध्यात्म में इसका बेहद महत्व है। आप कर्मकांड मानने वाले हैं या विशुद्ध सांसारिक प्राणी आस्तिक हों या नास्तिक, लेकिन प्रार्थना अध्यात्म की वो प्रक्रिया है जो नश्वर संसार में मनुष्य को प्रकृति या ईश्ववर से जोड़ती है।

आप ईश्वर को मानते हों या अल्लाह या यीशु को।। हर रूप में आपका विश्वास एक अदृश्य शक्ति के साथ जुड़ा है। हो सकता है कि इनमें आप किसी को भी ना मानते हों और ‘स्वयं या आत्मशक्ति’ ही आपके अनुसार सर्वशक्तिशाली हो, या चाहे आप प्रकृति की पूजा करते हों

उपरोक्त हर स्थिति में किसी क्षण, किसी भी तरह आपने एक प्रार्थना जरूर की होगी, कोई इच्छा जरूर प्रकट की होगी कि “काश ऐसा हो जाए या काश! ऐसा ना हो!” आपकी इसी चाह में एक बहुत बड़ा रहस्य छुपा है और आपके सफल या असफल होने की ताकत भी!

इसे जानने से पूर्व सर्वप्रथम खुद से ईमानदारी से इन सवालों के जवाब पूछिए: “क्या कभी आपने किसी और के लिए कुछ नहीं करते हुए अपने लिए अच्छा करने की प्रार्थना या इच्छा की है?”;

क्या आपकी हर प्रार्थना या इच्छा में किसी ना किसी रूप में ‘नहीं’ शब्द शामिल होता है?”; “क्या कभी अपनी प्रार्थना में इच्छाएं पूरी करने की चाह के अलावा ‘पूरी हुई इच्छाओं के लिए धन्यवाद’ किया है आपने?”

आप जिस भी धर्म को मानते हों, या आत्मशक्ति को मानने वाले हों, यकीन कीजिए जैसे ही आप अपनी इच्छाओं में ‘नहीं’ शब्द जोड़ते हैं, आपकी चीजें नकारात्मक शक्तियों के साथ जुड़ जाती हैं।

एक प्रेरक प्रसंग के अनुसार भगवान ‘नहीं’ शब्द सुनने से वंचित हैं। इसलिए जब भी आप “हे भगवान! काश कि ऐसा नहीं हो” या “काश कि ऐसा नहीं हो!” सोचते हैं या प्रार्थना करते हैं, तो उस अदृश्य शक्ति के पास ‘नहीं’ को हटाते हुए वह इस रूप में पहुंचती है: “हे भगवान! काश कि ऐसा हो!” या “काश कि ऐसा हो!” दूसरे शब्दों में, इस तरह अनजाने में आप जो नहीं चाहते हैं, वही होने की प्रार्थना कर रहे होते हैं।

इसी तरह जब आप किसी का बुरा चाहते हुए अपना अच्छा करने की सोचते हैं, तो इसका सीधा अर्थ किसी के लिए कुछ ‘नहीं’ करते हुए आपके लिए कुछ करने का होता है। यहां भी अध्यात्म का यह नियम लागू होता है। इसलिए अक्सर आपने देखा होगा और कहा भी जाता है कि बुरा चाहने वालों का खुद ही बुरा होता है।

वास्तविकता की जमीन पर यह कोई चमत्कृत करनी वाली चीज या टोटका नहीं है, लेकिन यह आपकी सोच को वह दिशा देता है जो आपके उस काम को पूरा करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। और वह दिशा है ‘सकारात्मक या नकारात्मक सोच’!

आप जीवन में घोर निराशा का सामना कर रहे हों; किसी मुश्किल सी लगने वाली चीज को सफलतपूर्वक करना चाहते हों; आपके लिए जो विकट परिस्थितियां ला सकता है, ऐसे व्यक्ति या ऐसी स्थिति से बचना चाहते हों।। वहां ‘प्रार्थना’ शब्दों का वह रूप है जो आभासी अस्तित्व के साथ मस्तिष्क के किसी कोने में आपको यह यकीन दिलाता है कि ‘ऐसा हो सकता है’।

यह एक संभावना आपके लिए उस क्षण में बहुत छोटी ही क्यों ना हो, लेकिन कहीं ना कहीं आपके अंतर्मन को उस कार्य या चाह के सफल होने का विश्वास दिलाती है। यह आपको दोगुने प्रयासों से उस कार्य को करने के लिए प्रेरित करता है और आप ऐसा करते भी हैं।

वही प्रयास आपके उस कार्य को सकारात्मक या नकारात्मक रूप में सफल होने की ओर अग्रसर करते हैं। इसे इस तरह समझ सकते हैं।

फर्ज कीजिए, आपने सोचा कि “काश ऐसा नहीं होता!” इस वाक्य में एक नकारात्मकता जुड़ी है, जो सीधे-सीधे इस संभावना से जोड़ता है कि इस कार्य के होने की उम्मीद बहुत कम है।

चेतन मन में आप चाहे समझ ना पाएं, लेकिन ये आपको निराशा से ऊपर उठने नहीं देता और आप उस काम में अपना पूरा योगदान नहीं दे पाते, या बेमन से करते हैं क्योंकि कहीं आपकी सोच में ये पहले ही तय होता है कि इसका होना मुश्किल है।

दूसरी तरफ जब आप सोचते हैं “काश ऐसा होता!”। तो सीधे-सीधे आपके मस्तिष्क तक यह संदेश जाता है कि बहुत संभव है, यह कार्य पूरा हो ही जाए। अचेतन मस्तिष्क में ये आपमें उत्साह भरता है और आप पहले से भी ज्यादा लगन से काम करते हैं। जो उसे हर हाल में सफल बनाता है।

यह कोई जादू या चमत्कार नहीं होता, बल्कि पूरी तरह आपकी सकारात्मक सोच का प्रभाव होता है। नकारात्मक सोच आपको निष्क्रिय बनाती है, जो हर प्रकार से आपको असफलता देने और मन के विपरीत कार्यों के होने का कारण बनते हैं।

इससे ठीक उलट, सकारात्मक सोच आपको विपरीत से विपरीत और कठोर से कठोर परिस्थितियों में भी विजयी बनने के लिए प्रेरित करते हैं। यह आपसे ना सिर्फ कोशिश, बल्कि बार-बार कोशिशें कराता है और अंतत: वही होता है जो आप चाहते हैं।

इसलिए हमेशा याद रखें, विकट परिस्थितियों में भी प्रार्थना करना मनुष्य के लिए संजीवनी बूटी के समान है, जो उसमें मनोनुकूल चीजें होने के लिए उम्मीद की किरण जगाती है। किंतु प्रार्थना हमेशा सिर्फ अच्छे स्वरूप में हो। अपनी अच्छी चाह को सोचें, बुरी चाह को शब्दों का रूप ना लेने दें।

आपको पता नहीं चलता कि कब बुरी चाह आपकी सोच में आ जाती है। इस तरह नकारात्मकता को आप अपने जीवन से दूर नहीं रख पाते। इसलिए जब भी प्रार्थना करें या कोई इच्छा स्वयं से या किसी और से प्रकट करें, सोच के शब्दों पर ध्यान दें कि किसी भी वाक्य में ‘ना या नहीं’ शब्द हर रूप में दूर रहे।

अभ्यास से यह संभव है। शुरुआत में कई बार आपको लगेगा कि ऐसा कैसे संभव है, पर हर भाषा में वाक्यों के दो स्वरूप होते हैं, एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक।

आप पहले स्वरूप को हर बार उपयोग करने की कोशिश करें। “किसी भी वाक्य में ‘ना या नहीं’ शब्द हर रूप में दूर रहे।” को इस प्रकार भी लिखा जा सकता था – “किसी भी वाक्य में ‘ना या नहीं’ शब्द किसी भी तरह प्रयोग ना करें”, जो नकारात्मक वाक्यों की श्रेणी में आएगा।

लोग अक्सर ‘धन्यवाद’ शब्द का अर्थ ‘औपचारिक व्यवहार’ के लिए लेते हैं, जबकि इससे इतर यह हमारे जीवन में कई बेहद महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाता है।

किसी कार्य के सफल संपादन के लिए ‘धन्यवाद ज्ञापन’ का अर्थ है खुद को यह विश्वास दिलाना कि हां, आप ऐसा करने में सक्षम रहे! हो सकता है आप धन्यवाद किसी और को कह रहे हों, किंतु अगर आप ऐसा कह रहे हैं तो निश्चित तौर पर इसलिए क्योंकि आपका कोई काम सफल हुआ है।

किसके कारण सफल हुआ, यह वहां मायने नहीं रखता, क्योंकि किसी और के कारण या किसी और के प्रयासों से भी कुछ ऐसा होना जो आपके लिए अच्छा रहा, इसका अर्थ यही है कि आपने उसे सफल बनाने के लिए उस माध्यम को चुनने में प्रयास किए और इसलिए ये आपकी सक्षमता है।

इसलिए बहुत ज़रूरी है कि जब भी परेशानियों के बाद उससे निजात मिलने का एहसास आए या कुछ बहुत मुश्किल हल हो जाना समझ आए, तो इसके लिए भगवान, प्रकृति या स्वयं, जिसमें भी आप विश्वास रखते हों, उसे धन्यवाद करना ना भूलें।

यह आपका आत्मविश्वास बढ़ाता है और अगली बार आपके सफल होने की संभावनाएं दोगुनी बढ़ जाती हैं। इसमें भी वही सकारात्मक और नकारात्मक सोच की और उसके साथ की स्थितियां पैदा होने के मूल नियम लागू होते हैं।

इनकी सफलता निश्चित है, आजमाइए और हमें बताइए कितना बदला इसने आपके जीवन को!

Categories
Spiritual

परमात्मा से रिश्ता – Relationship with God

परमात्मा से रिश्ता

कहते हैं कि, अगर किसी के साथ रिश्ता बनाना हो तो, उसके लिये समय निकालना पड़ता है, उससे प्यार करना पड़ता है, तब जाकर कहीं एक रिश्ता बनता है I

फिर हमने कैसे सोच लिया कि, मंदिर गये, घण्टी बजाया और प्रसाद लिया, चलो भगवान से रिशता बन गया,

नहीं
उससे रिश्ता बनाना है तो, उस परमात्मा के लिये समय निकालना पडेगा, उसे याद करना पडेगा, उससे प्यार करना पडे़गा, तब जाकर वो मिलेगा….

जब हम कोई कपड़ा धोते हैं तो बगैर इस्त्री किये नहीं पहनते।
अगर कपडे में ज्यादा सिलवटे हो, तो इस्त्री ज्यादा गर्म करनी पड़ती है और, अगर सिलवटे फिर भी ना निकले तो हम पानी का छिड़काव करते हैं, जिससे इस्त्री की गर्मायीश और ज्यादा हो जाती है और सिलवटें निकल जाती है।

इसी तरह मालिक हमारी रुह को जब इस्त्री करते हैं तो उस पर से कर्म रूपी सिलवटें हटाने के लिए अलग-अलग तापमान की गर्माईश देते हैं। अगर आप बहुत ज्यादा परेशानी में हैं तो समझ लेना कोई सिलवट गहरी होगी जिसे निकालने के लिए उस मालिक ने इस्त्री की गर्मी बढ़ाई है।

इस कठिन घड़ी के बाद हमारी रुह उस कुल मालिक के लायक बन जाएगी।

Categories
Story Tips and Tricks

मंजिल सामने है – Achieve Your Target

एक बार एक सन्यासी संत के आश्रम में एक व्यक्ति आया. वह देखने में बहुत दुखी लग रहा था.

आते ही वह स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला -“महाराज मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ.

मैं अपने दैनिक जीवन में बहुत मेहनत करता हूँ, काफी लगन से काम करता हूँ, लेकिन फिर भी कभी सफल नहीं हो पाया.

मेरे सभी रिश्तेदार मुझ पर हँसते हैं. भगवान ने मुझे ऐसा नसीब क्यों दिया है कि मैं पढ़ा-लिखा और मेहनती होते हुए भी कभी कामयाब नहीं हो पाया ?”

स्वामी जी के पास एक छोटा सा पालतू कुत्ता था. उन्होंने उस व्यक्ति से कहा, “तुम पहले वो सामने दिख रही इमारत तक ज़रा मेरे कुत्ते को सैर करा लाओ, फिर मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा.”

आदमी को यह बात अच्छी तो नहीं लगी परन्तु फिर भी वह कुत्ते को लेकर सैर कराने निकल पड़ा.

जब वह लौटकर आया तो स्वामी जी ने देखा कि आदमी बुरी तरह हाँफ रहा था और थका हुआ सा लग रहा था.

स्वामी जी ने पूछा – “अरे भाई, तुम ज़रा सी दूर में ही इतना ज्यादा कैसे थक गए ?”

आदमी बोला – “मैं तो सीधा सादा अपने रास्ते पर चल रहा था परन्तु ये कुत्ता रास्ते में मिलने वाले हर कुत्ते पर भौंक रहा था और उनके पीछे दौड़ रहा था. इसको पकड़ने के चक्कर में मुझे भी दौड़ना पड़ता था इसलिए ज्यादा थक गया…”

स्वामी जी बोले – “यही तुम्हारे प्रश्नों का भी जवाब है. तुम्हारी मंज़िल तो उस इमारत की तरह सामने ही होती है लेकिन तुम मंज़िल की ओर सीधे जाने की बजाय दूसरे लोगों के पीछे भागते रहते हो और इसीलिए मंज़िल तुमसे दूर ही बनी रहती है.

यदि तुम अपने पड़ोसी और रिश्तेदारों की बातों पर ध्यान न देकर केवल अपनी मंज़िल पर नज़र रखोगे तो कोई कारण नहीं कि वह तुम्हें न मिले.”

आदमी की समझ में बात आ गई थी. उसने स्वामी जी को प्रणाम किया और वहाँ से चल पड़ा।

जय जय श्री राधे

Categories
Story

नारायण नारायण नारायण – Narayan Narayan Narayan

एक बहुत सुंदर कहानी है। नारद मुनि जहां भी जाते थे, बस ‘नारायण, नारायण’ कहते रहतेथे। नारद को तीनों लोकों में जाने की छूट थी। वह आराम से कहीं भी आ-जा सकते थे। एक दिन उन्होंने देखा कि एक किसान परमानंद की अवस्था में अपनी जमीन जोत रहा था।

नारद को यह जानने की उत्सुकता हुई कि उसके आनंद का राज क्या है। जब वह उस किसान से बात करने पहुंचे, तो वह अपनी जमीन को जोतने में इतना डूबा हुआ था, कि उसने नारद पर ध्यान भी नहीं दिया। दोपहर के समय, उसने काम से थोड़ा विराम लिया और खाना खाने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठा। उसने बर्तन को खोला, जिसमें थोड़ा सा भोजन था। उसने सिर्फ ‘नारायण, नारायण, नारायण’ कहा और खाने लगा।

आप जिस पल जीवन के एक आयाम से दूसरे आयाम में जाते हैं उस समय अगर आप सिर्फ अपनी जागरूकता कायम रख पाएं, तो आपको मुक्ति मिल सकती है।किसान अपना खाना उनके साथ बांटना चाहता था मगर जाति व्यवस्था के कारण नारद उसके साथ नहीं खा सकते थे।

नारद ने पूछा, ‘तुम्हारे इस आनंद की वजह क्या है?’ किसान बोला, ‘हर दिन नारायण अपने असली रूप में मेरे सामने आते हैं। मेरे आनंद का बस यही कारण है।’ नारद ने उससे पूछा, ‘तुम कौन सी साधना करतेहो?’ किसान बोला, ‘मुझे कुछ नहीं आता। मैं एक अज्ञानी, अनपढ़ आदमी हूं। बस सुबह उठने के बाद मैं तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं। अपना काम शुरू करते समय मैं तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं। अपना काम खत्म करने के बाद मैं फिर तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं। जब मैं खाता हूं, तो तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं और जब सोने जाता हूं, तो भी तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं।’

नारद ने गिना कि वह खुद 24 घंटे में कितनी बार ‘नारायण’ बोलते हैं। वह लाखों बार ऐसा करते थे। मगर फिर भी उन्हें नारायण से मिलने के लिए वैकुण्ठ तक जाना पड़ता था, जो बहुत ही दूर था। मगर खाने, हल चलाने या बाकी कामों से पहले सिर्फ तीन बार ‘नारायण’ बोलने वाले इस किसान के सामने नारायण वहीं प्रकट हो जाते थे। नारद को लगा कि यह ठीक नहीं है, इसमें जरूर कहीं कोई त्रुटि है।

वह तुरंत वैकुण्ठ पहुंच गए और उन्होंने विष्णु से पुछा, ‘मैं हर समय आपका नाम जपता रहता हूं, मगर आप मेरे सामने नहीं प्रकट नहीं होते। मुझे आकर आपके दर्शन करने पड़ते हैं। मगर उस किसान के सामने आप रोज प्रकट होते हैं और वह परमानंद में जीवन बिता रहा है!’

विष्णु ने नारद की ओर देखा और लक्ष्मी को तेल से लबालब भरा हुआ एक बर्तन लाने को कहा। उन्होंने नारद से कहा, ‘पहले आपको एक काम करना पड़ेगा। तेल से भरे इस बर्तन को भूलोक ले जाइए। मगर इसमें से एक बूंद भी तेल छलकना नहीं चाहिए। इसे वहां छोड़कर आइए, फिर हम इस प्रश्न का जवाब देंगे।’

नारद तेल से भरा बर्तन ले कर भूलोक गए, उसे वहां छोड़ कर वापस आ गए और बोले, ‘अब मेरे प्रश्न का जवाब दीजिए।’ विष्णु ने पूछा, ‘जब आप तेल से भरा यह बर्तन लेकर जा रहे थे, तो आपने कितनी बार नारायण बोला?’ नारद बोले, ‘उस समय मैं नारायण कैसे बोल सकता था? आपने कहा था कि एक बूंद तेल भी नहीं गिरना चाहिए, इसलिए मुझे पूरा ध्यान उस पर देना पड़ा। मगर वापस आते समय मैंने बहुत बार ‘नारायण’ कहा।’

विष्णु बोले, ‘यही आपके प्रश्न का जवाब है। उस किसान का जीवन तेल से भरा बर्तन ढोने जैसा है जो किसी भी पलछलक सकता है। उसे अपनी जीविका कमानी पड़ती है, उसे बहुत सारी चीजें करनी पड़ती हैं। मगर उसके बावजूद, वह नारायण बोलता है।

जब आप इस बर्तन में तेल लेकर जा रहे थे, तो आपने एक बार भी नारायण नहीं कहा। यानी यह आसान तब होता है जब आपके पास करने के लिए कुछ नहीं होता।’

नारायण नारायण नारायण !!!

Exit mobile version