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दीये की रोशनी – Light of Lamp

एक गांव से दस मील की दूरी पर एक बहुत सुंदर पहाड़ था। उस पहाड़ पर एक मंदिर था। दूर-दूर के लोग उस मंदिर के दर्शन करने आते।

उस गांव का एक युवक भी सोचता था, मुझे भी जाकर देखना है। लेकिन करीब में था, तो विचार टलती गई। एक दिन उसने तय कर लिया कि आज मुझे जाना ही है देखने।

सुबह से धूप बढ़ जाती थी, इसलिए वह रात को ही उठा, लालटेन जलाई और गांव के बाहर आ गया। घनी अंधेरी रात थी, वह बहुत डर गया। उसने सोचा, छोटी सी लालटेन है, दो-तीन कदम तक प्रकाश पड़ता है, और फासला दस मील का है। दस मील का इतना विराट अंधेरा.. इतनी छोटी सी लालटेन से कैसे कटेगा? सूरज की राह देखनी चाहिए, यही ठीक होगा। वह वहीं बैठ गया, सुबह होने की प्रतीक्षा में।

तभी उसने देखा, एक बूढ़ा आदमी एक छोटा सा दीया.. हाथ में लिए चला आ रहा था। उसने बूढ़े से पूछा, पागल हो गए हो? कुछ गणित का पता है? दस मील लंबा रास्ता है और तुम्हारे दीये की रोशनी तो बमुश्किल एक कदम ई दूरी तक ही जा पाती है..कैसे तय कर पाओगे इतनी दूरी??

बूढ़े ने कहा- “पागल, एक कदम से ज्यादा कभी कोई चल पाया है क्या? कोई चल भी नहीं सकता एक कदम से ज्यादा, रोशनी चाहे हजार मील पड़ती रहे। फिर, जब तक हम एक कदम चलते हैं, तब तक रोशनी भी एक कदम आगे बढ़ जाती है। इस गणित से तो दस मील क्या, हम दस हजार मील पार कर लेंगे। उठ आ, तू बैठा क्यों है? तेरे पास तो अच्छी लालटेन है। एक कदम तू आगे चलेगा, रोशनी उतनी आगे बढ़ जाएगी।”

इसी तरह जिंदगी में भी, अगर कोई पूरा हिसाब पहले लगा ले, तो डर कर वहीं रुक जाएगा..बैठ जाएगा। जिंदगी में एक-एक कदम का हिसाब लगाने वाले, हजारों मील चल जाते हैं और हजारों मील का हिसाब लगाने वाले, एक कदम भी नहीं उठा पाते..!!

समझना अवश्य होगा इस सूत्र को।

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एक ससुराल ऐसा भी – Strange Mother in Law

एक ससुराल ऐसा भी
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गुडिया की शादी को आज लगभग पांच दिन हो गए , आज पहली बार उसे रसोई में जाने का मौका मिला । पहले तो घर मे रीति रिवाज और उसके बाद मेहमानों की इतनी भीड़ थी ।

आज जाकर उसने पहली बार रसोई में कदम रखा था । सभी मेहमान लगभग जा चुके थे और शादी के बाद पहली रसोई के शगुन के नाम से आज गुड़िया को रसोई में सभी के लिये खाना बनानी थी ।

पर ये क्या ? यहाँ तो पहले ही से सासु माँ खाना बनाने की तैयारी कर रही हैं , उसे लगा कि सासु माँ नाराज़ हैं डरते डरते उसने सासु माँ से पूछा , माँ जी ये सब ? आज तो मुझे ही सब खाना बनाना है ना ।
सासु माँ ने कहा ” हाँ बहु खाना तो तुम्हें ही बनाना है ,

लेकिन आज से हम दोनों मिलकर साथ साथ खाना बनायेंगी , अभी तीन चार दिन तो मुझे तुम्हे समझाना भी पड़ेगा कि हमारे यहां कैसा खाना बनता है , और दोनों ने मिल कर खाना बनाना शुरू कर दिया ।
खाना बनाते बनाते उसकी सासु माँ ने उससे काफी बातें की , जैसे उसे सबसे अच्छा क्या बनाना आता है , सबसे ज्यादा खाने में क्या पसन्द है , उनके घर मे खाना कौन और कैसे बनाता है , पर इन सबके बीच , सासु माँ ने कुछ ऐसा कहा की गुड़िया की आंखे खुली की खुली रह गयी !!

जब उन्होंने बताया कि हमारे यहाँ कोई बर्तन वाली नही आती ,बल्कि सब अपने अपने खाने के बर्तन खुद साफ करते हैं, गुड़िया ने आश्चर्य से उन्हें देखा , क्योंकि उसने ऐसा कभी कही भी नही देखा था।या तो हर घर मे कोई काम वाली आती थी या ये सब घर की ही महिला को ही करना पड़ता था।

उसे बहुत उत्सुकता हुई ये जानने की, कि कैसे उनके मन मे ये विचार आया ?? तो उन्होंने बताया , पहले तो जब मेरी शादी हुई तब मेरी सासु माँ और मैं मिल कर सब काम खुद ही करते थे , फिर धीरे धीरे चार बेटो की जिम्मेदारी बढ़ गयी , तो हमने काम वाली बाई रखने का फैसला लिया । पर उसकी रोज रोज की छुटियों से हम परेशान रहने लगे।
एक दिन सासु माँ ने भी बिस्तर पकड़ लिया । और रोज़ रोज़ की काम की झिक झिक सी रहने लगी तब मैंने तय किया कि सभी लोग अपना नाश्ता और खाना निपटा कर अपनेअपनेे बर्तन खुद मांज ले तो काफी सुकून हो जाएगा

हाँ ! लेकिन खाना बनाने वाले बर्तन मैं खुद ही मांजती हूँ , बाकी सब अपने खाये बर्तन खुद मांजते हैं। मैंने घर के और भी काम बाटने चाहे थे , पर बच्चों की पढ़ाई में व्यस्तता को देखते हुए नही कर पाई ,
कभी – कभी मेरी तबियत ठीक नही होने के कारण बच्चे अपने कपड़े भी खुद धोने लगे थे , रोज़ रोज़ उनके लिए भी ये मुश्किल था तो इसीलिय वाशिंग मशीन लेनी पड़ी , पर आज भी बच्चे अपने अंडर गारमेंट्स खुद ही धोते है ।
गुड़िया ने ध्यान किया कि वो भी जब से इस घर मे आयी है उसने कभी बाथरूम में रोहित के कपड़े नही देखे । नही तो ये आम है , घर के मर्द नहाकर निकले नही , कि औरतों को उनके कपड़े धोने के लिए वहीं बाथरूम का रुख करना पड़ता है , और हां मैने अपने सब बच्चो को रसोई का इतना काम तो सिखा ही दिया है कि वो एक दो टाइम बिना किसी परेशानी के खाना बना सकते है , और हमे खिला भी सकते है ।

अब तुम्हे भी !! कहते हुए सासु माँ ने मुस्कुराते हुए गुड़िया को देखा , फिर कहने लगी कि तुम्हे ये जानकर और भी आश्चर्य होगा जहां आज कल के दौर में भी कोई माँ अपने लड़को से रसोई का काम करना उसकी बेइज्जती समझती है , मेरी सासु माँ ने इसका पूरा समर्थन किया था ।

आज गुडिया के सारे भ्रम दूर हो गए थे , जो शादी के नाम से ही उसके भीतर उसके अपनो ने ही पैदा कर दिए थे , जिसके कारण वो पिछले कितने ही महीनों से ढंग सो भी नही पा रही थी । उन्होंने कहा मेरा मानना सिर्फ यही है कि केवल बेटियो को ही ससुराल के लिए तैयार न करे , बल्कि बेटो को भी भविष्य में किसी और की बेटी के लिए तैयार करे ।अगर आप औरत का कदम से कदम मिला कर चलना और उसका नौकरी करना पसंद करते है तो घर के काम मे भी उसका सहयोग करे जैसे वो आपका सहयोग करती है ।

बहुत छोटी सी ही बात है लेकिन घर के काम तो दोनों को ही सिखाये जाने चाहिये , जब लड़कियों को इसीलिए पढ़ाया जाता है कि भले वो भविष्य में नौकरी करें या न करें, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर वो इतनी सामर्थ हो कि उसे मजबूर न होना पड़े या किसी का मोहताज न रहना पड़े , तो फिर लड़को को केवल एक ही शिक्षा क्यो ,जबकि घर का काम तो जब तक जीवन है तब तक तो करना ही पड़ता है।

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अक्षयवट की कहानी – Story of Akshayvat

अक्षयवट की कहानी

मत्स्य पुराण में वर्णन है कि जब प्रलय आता है, युग का अंत होता है. पृथ्वी जलमग्न हो जाती है और सबकुछ डूब जाता है. उस समय भी चार वटवृक्ष नही डूबते. उनमें सबसे महत्वपूर्ण है वह वटवृक्ष, जो प्रयागराज नगरी में यमुना के तट पर अवस्थित है. मान्यता है कि ईश्वर इस वृक्ष पर बालरूप में रहते हैं और प्रलय के बाद नई सृष्टि की रचना करते हैं. अपनी इसी विशिष्टता के कारण यह वटवृक्ष अक्षयवट के नाम से जाना जाता है. ऐसा वट जिसका क्षय नही हो सकता.

बीते 10 जनवरी, 2019 को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस वटवृक्ष को हिन्दू श्रद्धालुओं के लिये खोल दिया है. इसके साथ ही सरस्वती कूप में देवी सरस्वती की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा भी की गई. जैन मत में यह मान्यता है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी ने इसी वटवृक्ष के नीचे तपस्या की थी. बौद्ध मत में भी इस वृक्ष को पवित्र माना गया है. वाल्मीकि रामायण और कालिदास रचित ‘रघुवंश’ में भी इस वृक्ष की चर्चा है. आशा और जीवन का संदेश देता यह वटवृक्ष भारतीय संस्कृति का एक प्रतीक है. किंतु प्रश्न है कि इतने महत्वपूर्ण वटवृक्ष से हिंदुओं को 425 वर्षों से दूर क्यों रखा गया था?

अकबर जिस कथित गंगा जमुनी तहजीब को परवान चढ़ाना चाहता था, उसके लिए प्रयागराज जैसी नगरी में उसके सत्ता की धमक होनी जरूरी थी. ऐसे में अकबर ने वहाँ एक किला बनाने का निर्णय लिया. किले के लिए वो जगह चुनी गई जो हिंदुओं के लिए सर्वाधिक पवित्र थी. अक्षयवट वृक्ष और अन्य दर्जनों मन्दिर इस किले के अंदर आ गए. लेकिन अपने जीवन के उत्तरकाल में अकबर अपने पूर्ववर्ती शासकों और आने वाले उत्तराधिकारियों की तरह क्रूर नही था. इसलिए उसने किले के क्षेत्र में आने वाले मन्दिरों को तो नष्ट किया लेकिन मूर्तियों को छोड़ दिया. ये मूर्तियाँ और अक्षयवट वृक्ष का एक तना स्थानीय पुजारियों को सौंप दिया गया जिसे वे अन्यत्र पूज सकें. इन्ही मूर्तियों और शाखाओं से पातालपुरी मन्दिर बना जहाँ पिछले 425 वर्षों से हिन्दू श्रद्धालू दर्शन करते आ रहे थे जबकि असली अक्षयवट वृक्ष किले में हिंदुओं की पहुँच से दूर कर दिया गया.

वास्तव में यह वृक्ष जिस तरह सनातनता का विचार देता है, वह अत्यंत विपरीत समयकाल में भी हिंदुओं को भविष्य के लिये आशा का प्रतीक था. अकबर इसे एक चुनौती मानता था. इसीलिए उसके आदेश पर वर्षों तक गर्म तेल इस वृक्ष के जड़ों में डाला गया लेकिन यह वृक्ष फिर भी नष्ट नही हुआ. अकबर के बेटे जहाँगीर के शासनकाल में पहले अक्षयवट वृक्ष को जलाया गया. फिर भी वृक्ष नष्ट नही हुआ.

इसके बाद जहाँगीर के आदेश पर इस वृक्ष को काट दिया गया. लेकिन जड़ो से फिर से शाखायें निकल आई. जहाँगीर के बाद भी मुगल शासन में अनेकों बार इस वृक्ष को नष्ट करने का प्रयास हुआ. लेकिन यह वृक्ष हर बार पुनर्जीवित होता रहा. ऐसा प्रतीत होता है मानो यह पवित्र वह वृक्ष बारम्बार पुनर्जीवित होकर इस्लामिक आक्रांताओं को यह कठोर संदेश देता रहा कि तुम चाहे जितने प्रयास कर लो किन्तु सनातन धर्म को समाप्त नही कर सकोगे. साथ ही अपने आस्तित्व को मिली हर चुनौती से सफलतापूर्वक निबटकर यह सनातनधर्मियों में नवीन आशा का संचार करता रहा.

मुगलों के बाद यह किला अंग्रेजों के पास रहा और उन्होंने भी मुगलों द्वारा लगाए प्रतिबन्ध को जारी रखा. स्वतंत्रता के पश्चात यह किला भारतीय सेना के नियंत्रण में है. यहाँ आम श्रद्धालुओं का आना सम्भव नही था. श्रद्धालुओं और सन्तों की लगातार मांग के बाद भी किसी सरकार ने इस वृक्ष के दर्शन के लिए सुलभ बनाने में रुचि नही दिखाई. किन्तु उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से यह सम्भव हो सका है जिसके लिए वह साधुवाद के पात्र है

यह सत्य/तथ्य/इतिहास सबको ज्ञात होना ही चाहिए.

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मधुर बाल लीला – Sweet Kids Story

बहुत ही आनंद आएगा पढ़े जरूर
ठाकुर जी ने एक बार ????”ताता” मिर्ची खायी, फिर बडो मजा आयो !

एक मधुर बाल लीला…..
ब्रजरानी यशोदा भोजन कराते-कराते थोड़ी सी छुंकि हुई मिर्च लेकर आ गई क्योंकि नन्द बाबा को बड़ी प्रिय थी।
लाकर थाली में एक और रख दई, तो अब ठाकुरजी बोले की बाबा हम आज और कछु नहीं खानो , ये खवाओ???? ये कहा है ? हम ये खाएंगे , तो नन्द बाबा डराने लगे की नाय-नाय लाला ये तो ‘ताता’ है , तेरो मुँह जल जावेगो , तो लाला बोलौे नाय बाबा अब तो ये ही ????खानो है मोय


ये बात सुन कें बाबा ने खूब ब्रजरानी यशोदा कूं डाँटो , कि मेहर तुम ये क्यों लैंके आई ? तुमकूं मालूम है ये बड़ो जिद्दी है , ये मानवै वारो नाय , फिर भी तुम लैंके आ गई !!!

अब मैया ते गलती तौ है गई , और इतकूं ठाकुर जी मचल गए बोले अब बाकी भोजन पीछे होयगो, पहले ये ताता ???? ही खानी है मोय, पहले ये खवाओ । बाबा पकड़ रहेैं , रोक रहे हते , पर इतने में तौ लाला उछल कें थाली के निकट पहुंचे और अपने हाथ से उठाकर मिर्च???? खा गये| और खाते ही ‘ताता’ है गयी; लग गई मिर्च, करवे लग गये सी~सी | वास्तव में ताता भी नहीं ” ता था थई ” है गई । अब लाला चारों तरफ भगौ डोले, रोतौ फिरे, ऑखन मे आँसू भर गये ,
लाला की रोवाराट सुन कें सखा आ गये , अपने सखा की ये दशा देख कें हंसवे लगे, और बोलें —- लै और खा ले मिर्च !!! भातई मिरचई ही खावेगो , और कछू नाय पायौ तोय खावेकूं |


मगर तुरत ही सबरे सखा गंभीर है गये , और अपने प्रान प्यारे कन्हैया की ‘ताता’ कूं दूर करिवे कौ उपाय ढूंढवे लगे |
इतकूं लाला ततईया को सों खायो भगौ डोले फिरे , सारे नन्द भवन में – बाबा मेरो मौह जर गयो , बाबा मेरो मौह जर गयो , मौह में आग पजर रही है????????अरि मईया मर गयौ , बाबा कछु करो कहतौ फिरौ डोलै !!!!और पीछे-पीछे ब्रजरानी यशोदा , नन्द बाबा भाग रहे है हाय-हाय हमारे लाला कूं मिर्च लग गई , हमारे कन्हैया कूं मिर्च लग गई ।
महाराज बडी मुश्किल ते लाला कूं पकड़ौ ;


(या लीला कूं आप पढ़ो मत बल्कि अनुभव करौ कि आपके सामने घटित है रही , फिर आवेगौ असली आनन्द ????????????)

लाला कूं गोदी में लैकें नन्द बाबा रो रहे है, और कह रहे है कि अरि महर अब तनिक बूरौ-खांड कछू तौ लैकें आ , मेरे लाला के मुख ते लगा | और इतनो ही नाय बालकृष्ण के मुख में नन्द बाबा फूँक मार रहे है । बडी देर बाद लाला की पीडा शान्त भई , तब कहीं जा कैं नन्दालय में सुकून परौ |


आप सोचो क्या ये सौभाग्य किसी को मिलेगा ? जैसे बच्चे को कुछ लग जाती है तो हम फूँक मारते है बेटा ठीक हे जाएगी वैसे ही बाल कृष्ण के मुख में बाबा नन्द फूँक मार रहे है ।


देवता जब ऊपर से ये दृश्य देखते है तो देवता रो पड़ते है और कहते है की प्यारे ऐसा सुख तो कभी स्वपन में भी हमको नहीं मिला जो इन ब्रजवासियो को मिल रहा है | और कामना कर रहे हैं कि आगे यदि जन्म देना तो इन ब्रजवासियो के घर का नौकर बना देना , यदि इनकी सेवा भी हमको मिल गई तो हम धन्य हो जाएंगे।

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मुकदमें में विजय – Win in a Court Case

मुकदमें में विजय पाने के कुछ खास उपाय

जब भी आप अदालत में जाएँ तो किसी भी हनुमान मंदिर में धूप अगरबत्ती जलाकर, लड्डू या गुड चने का भोग लगाकर एक बार हनुमान चालीसा और बजरंग बान का पाठ करके संकटमोचन बजरंग बलि से अपने मुकदमे में सफलता की प्रार्थना करें निसंदेह सफलता प्राप्त होगी ।

आप जब भी अदालत जाएँ तो गहरे रंग के कपड़े ही पहन कर जाएँ ।

अपने अधिवक्ता को उसके काम की कोई भी वास्तु जैसे कलम उपहार में अवश्य ही प्रदान करें ।

अपने कोर्ट के केस की फाइलें घर में बने मंदिर धार्मिक स्थान में रखकर ईश्वर से अपनी सफलता, अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करें ।

यदि ग्यारह हकीक पत्थर लेकर किसी मंदिर में चदा दें और कहें की मैं अमुक कार्य में विजय होना चाहता हूँ तो निश्चय ही उस कार्य में विजय प्राप्त होती है ।

यदि आप पर कोई मुसीबत आन पड़ी हो कोई रास्ता न सूझ रहा हो या आप कोर्ट कचहरी के मामलों में फँस गए हों, आपका धैर्य जबाब देने लगा हो, जीवन केवल संघर्ष ही रह गया हो, अक्सर हर जगह अपमानित ही महसूस करते हों, तो आपको सात मुखी, पंचमुखी अथवा ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने चाहियें ।

मुकदमे में विजय हेतु कोर्ट कचहरी में जाने से पहले ५ गोमती चक्र को अपनी जेब में रखकर , जो स्वर चल रहा हो वह पाँव पहले कोर्ट में रखे अगर स्वर ना समझ आ रहा हो तो दाहिना पैर पहले रखे , मुकदमे में निर्णय आपके पक्ष में होने की संभावना प्रबल होगी ।

जब आप पहली बार मुकदमें से वापिस आ रहे तो रास्ते में किसी भी मजार में गुलाब का पुष्प अर्पित करते हुए ही अपने निवास पर आएँ ।

मुकदमें अथवा किसी भी प्रकार के वाद विवाद में सफलता हेतु लाल सिंदूरी मूँगा त्रिकोण की आक्रति का सोने या तांबे मिश्रित अंगूठी में बनवाकर उसे दाहिने हाथ के अनामिका उंगली में धारण करें , इससे सफलता की संभावना और अधिक हो जाती है ।

मुकदमें में विजय प्राप्ति हेतु घर के पूजा स्थल में सिद्धि विनायक पिरामिड स्थापित करके प्रत्येक बुधवार को गन गणपतए नमो नमः मंत्र का जाप करें । जब भी अदालत जाएँ इस पिरामिड को लाल कपड़े में लपेटकर अपने साथ ले जाएँ, आपको शीघ्र ही सफलता प्राप्त होगी ।

यदि आपका किसी के साथ मुकदमा चल रहा हो और आप उसमें विजय पाना चाहते हैं तो थोडे से चावल लेकर कोर्ट / कचहरी में जांय और उन चावलों को कचहरी में कहीं पर फेंक दें ! जिस कमरे में आपका मुकदमा चल रहा हो उसके बाहर फेंकें तो ज्यादा अच्छा है ! परंतु याद रहे आपको चावल ले जाते या कोर्ट में फेंकते समय कोई देखे नहीं वरना लाभ नहीं होगा ! यह उपाय आपको बिना किसी को पता लगे करना होगा ।

अगर आपको किसी दिन कोर्ट कचहरी या किसी भी महत्वपूर्ण काम के लिए जाना हो , तो आप एक कागजी नींबू लेकर उसके चारों कोनो में एक साबुत लौंग गाड़ दें और ईश्वर से अपने कार्यों के सफलता के लिए प्रार्थना करते हुए उसे अपनी जेब में रखकर ही कहीं जाएँ ….उस दिन आपको सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होगी ।

भोज पत्र पर लाल चन्दन से अपने शत्रु का लिखकर शुद्द शहद में डुबोने से शत्रु के मन में आपके प्रति प्रेम और सहानुभूति के भाव जाग्रत हो जाते है।

सूर्योदय से पूर्व काले चावल के 11 दाने क्रीं बीज मन्त्र का 21 बार उच्चारण करते हुए दक्षिण दिशा में डाल दें शत्रु का व्यवहार आपके प्रति बदलना शुरू हो जायेगा ।

यदि आपको लगता है की आप सही है आपको गलत फंसाया गया है तो आप जब भी अदालत जाएँ लाल कनेर का फूल भिगो कर उसे पीस कर उसका तिलक लगा कर अदालत में जाएँ परिस्थितियाँ आपके अनुकूल होने लगेगी ।

एक मुट्ठी तिल में शक्कर मिलाकर किसी सुनसान जगह में ईश्वर से अपने शत्रु पर विजय की प्रार्थना करते हुए डाल दें फिर वापस आ जाएँ पीछे मुड़ कर न देखे शत्रु पक्ष धीरे धीरे शांत हो जायेगा ।

जिस दिन न्यायालय जाना हो उस दिन तीन साबुत काली मिर्च के दाने थोड़ी सी शक्कर के साथ मुँह में डालकर चबाते हुए जाएँ, न्यायालय में अनुकूलता रहेगी ।

यदि आपके वकील में ही आपके केस में विजय के प्रति संदेह हो, गवाह के मुकरने या आपके विरुद्ध होने का खतरा हो, जज आपके विपरीत हो तो विधि पूर्वक हत्था जोड़ी को अपने साथ ले जाएँ चमत्कारी परिवर्तन महसूस करेंगे ।
संकलित

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उत्तरायण / सूर्य मंत्र – Mantra for Sun

उत्तरायण / सूर्य मंत्र
सूर्य मंत्र है ..

ॐ ध्रीं सूर्य आदित्येम् ।

इसका जप करें । वो ब्रह्मवेत्ता महाव्याधि और भय, दरिद्रता और पाप से मुक्त हो जाता है ।

सूर्य देव का मूल मंत्र है —

ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नमः ।

ये पद्म पुराण में आता है ….
सूर्य नमस्कार करने से ओज, तेज और बुद्धि की बढोत्तरी होती है |

ॐ सूर्याय नमः ।
ॐ रवये नमः ।
ॐ भानवे नमः ।
ॐ खगाय नमः ।
ॐ अर्काय नमः ।

सूर्य नमस्कार करने से आदमी ओजस्वी, तेजस्वी और बलवान बनता है इसमें प्राणायाम भी हो जाते हैं ।
???? विशेष -15 जनवरी 2021 मंगलवार को मकर संक्रांति (पुण्यकाल : सूर्योदय से सूर्यास्त तक ) है ।

मकर संक्रांति

????नारद पुराण के अनुसार

“मकरस्थे रवौ गङ्गा यत्र कुत्रावगाहिता ।

पुनाति स्नानपानाद्यैर्नयन्तीन्द्रपुरं जगत् ।।”

सूर्य के मकर राशिपर रहते समय जहाँ कहीं भी गंगा में स्नान किया जाय , वह स्नान – पान आदि के द्वारा सम्पूर्ण जगत्‌‍ को पवित्र करती और अन्त में इन्द्रलोक पहुँचाती है।

पद्मपुराण के सृष्टि खंड अनुसार मकर संक्रांति में स्नान करना चाहिए। इससे दस हजार गोदान का फल प्राप्त होता है। उस समय किया हुआ तर्पण, दान और देवपूजन अक्षय होता है।

गरुड़पुराण के अनुसार मकर संक्रान्ति, चन्द्रग्रहण एवं सूर्यग्रहण के अवसर पर गयातीर्थ में जाकर पिंडदान करना तीनों लोकों में दुर्लभ है।

मकर संक्रांति के दिन लक्ष्मी प्राप्ति व रोग नाश के लिए गोरस (दूध, दही, घी) से भगवान सूर्य, विपत्ति तथा शत्रु नाश के लिए तिल-गुड़ से भगवान शिव, यश-सम्मान एवं ज्ञान, विद्या आदि प्राप्ति के लिए वस्त्र से देवगुरु बृहस्पति की पूजा महापुण्यकाल / पुण्यकाल में करनी चाहिए।

मकर संक्रांति के दिन तिल (सफ़ेद तथा काले दोनों) का प्रयोग तथा तिल का दान विशेष लाभकारी है। विशेषतः तिल तथा गुड़ से बने मीठे पदार्थ जैसे की रेवड़ी, गज्जक आदि। सुबह नहाने वाले जल में भी तिल मिला लेने चाहिए।

इस वर्ष मकर संक्रांति के दिन पुण्यकाल में अश्विनी नक्षत्र है। रोग मुक्ति के लिए काँसे के पात्र में घी भरकर मंदिर में दान करें।

विष्णु पुराण, द्वितीयांशः अध्यायः 8 के अनुसार

कर्कटावस्थिते भानौ दक्षिणायनमुच्यते ।

उत्तरायणम्प्युक्तं मकरस्थे दिवाकरे ।।

सूर्य के ‪‎कर्क‬ राशि में उपस्थित होने पर ‪‎दक्षिणायन‬ कहा जाता है और उसके ‪मकर ‬राशि पर आने से ‪उत्तरायण‬ कहलाता है ॥

धर्मसिन्धु के अनुसार

तिलतैलेन दीपाश्च देया: शिवगृहे शुभा:।

सतिलैस्तण्डुलैर्देवं पूजयेद्विधिवद् द्विजम्।।

तस्यां कृष्ण तिलै: स्नानं कार्ये चोद्वर्त्नम तिलै:

तिला देवाश्च होतव्या भक्ष्याश्चैवोत्तरायणे

उत्तरायण के दिन तिलों के तेल के दीपक से शिवमंदिर में प्रकाश करना चाहिए , तिलों सहित चावलों से विधिपूर्वक शिव पूजन करना चाहिए. ये भी बताया है की उत्तरायण में तिलों से उबटना, काले तिलों से स्नान, तिलों का दान, होम तथा भक्षण करना चाहिए .

अत्र शंभौ घृताभिषेको महाफलः . वस्त्रदानं महाफलं

मकर संक्रांति के दिन महादेव जी को घृत से अभिषेक (स्नान) कराने से महाफल होता है . गरीबों को वस्त्रदान से महाफल होता है .

अत्र क्षीरेण भास्करं स्नानपयेव्सूर्यलोकप्राप्तिः

इस संक्रांति को दूध से सूर्य को स्नान करावै तो सूर्यलोक की प्राप्ति होती है

नारद पुराण के अनुसार

क्षीराद्यैः स्नापयेद्यस्तु रविसंक्रमणे हरिम् ।

स वसेद्विष्णुसदने त्रिसप्तपुरुषैः सह ।।

जो सूर्यकी संक्रान्तिके दिन दूध आदिसे श्रीहरिको नहलाता है , वह इक्कीस पीढ़ियोंके साथ विष्णुलोक में वास करता है।

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सूर्य गोचर – Effect of Sun

धार्मिक और ज्योतिषीय दोनों ही दृष्टि से सूर्य का हमेशा से ही विशेष महत्व रहा है। वेदों में भी सूर्य को जगत की आत्मा से सम्मानित किया गया है। क्योंकि सूर्य ही अकेला सृष्टि को चलाने वाले एक मात्र प्रत्यक्ष देवता हैं।

ज्योतिष शास्त्र की माने तो सूर्य आत्मा, पिता, पूर्वज, सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक होता है। जिसके चलते व्यक्ति की कुंडली में सूर्य की शुभ स्थिति मनुष्य को मान-सम्मान और सरकारी सेवा में उच्च पद की प्राप्ति कराती है।

वहीं यदि किसी कुंडली में सूर्य कमजोर हो तो व्यक्ति को नेत्र संबंधी पीड़ा, पिता को कष्ट और कुंडली में पितृ दोष झेलना पड़ता है।

सूर्य गोचर का समय

इस वर्ष 14 जनवरी सोमवार सायं काल 7:44:29 बजे सूर्य मकर राशि में गोचर करेगा। सूर्य के मकर राशि में इस समय प्रवेश करने पर देशभर में मकर संक्रांति, पोंगल और उत्तरायण पर्व 15 जनवरी 2019 को मनाये जायेंगे। मान्यता है कि इस दिन स्नान, दान और धर्म का बड़ा महत्व होता है। एक महीने की इस अवधि के बाद 14 फरवरी को सूर्य मकर से कुंभ राशि में प्रवेश करेगा। इसलिए इसका प्रभाव हर राशि पर अलग-अलग देखने को मिलेगा।

तो आईये अब जानते हैं सूर्य के मकर राशि में गोचर का समस्त राशियों पर क्या प्रभाव होगा?

यह राशिफल चंद्र राशि पर आधारित है।

मेष

सूर्य आपके पंचम भाव का स्वामी है और इसका गोचर आपके दशम भाव में होगा। सूर्य का यह गोचर आपके लिए काफी अच्छा रहेगा। इस दौरान आपको कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। यदि आप नौकरी करते हैं तो आपको मेहनत का अच्छा फल मिलेगा।

वृषभ

सूर्य आपके चतुर्थ भाव का स्वामी हैं और इस का गोचर आपके नवम भाव में होगा। इस दौरान आपके पिताजी का स्वास्थ्य कुछ कमजोर रह सकता है अथवा आप से उनका मतभेद होने की भी संभावना है। इस दौरान आपकी आमदनी में भी असर पड़ेगा।

मिथुन

सूर्य आपके तृतीय भाव का स्वामी होकर आपके अष्टम भाव में गोचर करेगा। इस दौरान आपके पुराने राज खुलकर सामने आ सकते हैं। यदि पूर्व में आपने कोई विधि के विरुद्ध कार्य किया है तो आपको न्यायालय का सामना करना पड़ सकता है।

कर्क

सूर्य आपके द्वितीय भाव का स्वामी है और सूर्य का गोचर आपके सप्तम भाव में होगा। इस दौरान आपके दांपत्य जीवन में परेशानी आ सकती हैं और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य भी पीड़ित हो सकता है।

सिंह

सूर्य आपकी राशि का स्वामी है और गोचर की अवधि में सूर्य आपके षष्ठम भाव में होगा। सूर्य के गोचर की यह अवधि आपके लिए बेहतरीन सिद्ध होगी। सरकारी नौकरी हेतु प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे लोगों को शुभ फल देने वाला होगा।

कन्या

सूर्य आपके द्वादश भाव का स्वामी है और सूर्य का गोचर आपके पंचम भाव में होगा। इस दौरान आपके मन में व्याकुलता बनी रहेगी। आपको अपने मित्रों से किसी प्रकार की परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

तुला

सूर्य आपके एकादश भाव का स्वामी होकर गोचर के दौरान आपके चतुर्थ भाव में विराजमान होगा। इस गोचर अवधि के समय आपके पारिवारिक जीवन में कुछ शांति का वातावरण रहेगा। आपकी माताजी का स्वास्थ्य बिगड़ सकता है।

वृश्चिक

सूर्य आपके दशम भाव का स्वामी है और गोचर की अवधि में सूर्य आपके तृतीय भाव में स्थित होगा। इस दौरान आपको स्वास्थ्य लाभ होगा और आपको अपने प्रयासों के उचित परिणाम प्राप्त होंगे।

धनु

सूर्य आपके नवम भाव का स्वामी है। सूर्य का गोचर आपके द्वितीय भाव में होगा। इस गोचर की अवधि में आपको अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना होगा क्योंकि उसमें कर्कशता बढ़ने के कारण आपको परेशानी हो सकती है।

मकर

सूर्य आपके अष्टम भाव का स्वामी होकर आपकी ही राशि में गोचर के दौरान प्रवेश करेगा, इसलिए इस गोचर का विशेष रूप से प्रभाव आपके ऊपर पड़ेगा। इस गोचर के दौरान आप को अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना होगा।

कुंभ

सूर्य आपके सप्तम भाव का स्वामी है और इस गोचर के दौरान सूर्य आपके द्वादश भाव में प्रवेश करेगा। इस दौरान आप विदेश यात्रा पर जा सकते हैं। कुछ समय के लिए संभव है कि आपको अपने परिजनों से दूर जाना पड़े।

मीन

सूर्य आपके षष्ठम भाव का स्वामी होकर गोचर के दौरान आपके एकादश भाव में प्रवेश करेगा। गोचर की इस अवधि में आपके लिए विभिन्न प्रकार के लाभ के मार्ग खुलेंगे। वरिष्ठ अधिकारी आपके पक्ष में रहेंगे।

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भगवान् के दर्शन – God’s Darshan

महर्षि रमण से कुछ भक्तों ने पूछा, ‘क्या हमें भगवान् के दर्शन हो सकते हैं ?’

‘हां, क्यों नहीं हो सकते ? परंतु भगवान् को देखने के लिए उन्हें पहचानने वाली आंखें चाहिए होती हैं,’ महर्षि रमण ने भक्तों को बताया।

‘एक सप्ताह तक चलने वाले समारोह के अंतिम दिन भगवान् आएंगे, उन्हें पहचानकर, उनके दर्शन कर तुम सब स्वयं को धन्य कर सकते हो,’ महर्षि ने कहा।

भगवान् के स्वयं आने की बात सुनकर भक्तों ने मंदिर को सजाया, अत्यंत सुदंर ढंग से भगवान् का श्रृंगार किया तथा संकीर्तन शुरू कर दिया।

महर्षि रमण भी समय-समय पर संकीर्तन में जाकर बैठ जाते।

सातवें दिन भंडारा करने का कार्यक्रम था। भगवान् के भोग के लिए तरह-तरह के व्यंजन बनाए गए थे।

भगवान् को भोग लगाने के बाद उन व्यंजनों का प्रसाद स्वरूप वितरण शुरू हुआ।

मंदिर के ही सामने एक पेड़ था जिसके नीचे मैले कपड़े पहने एक कोढ़ी खड़ा हुआ था।

वह एकटक देख रहा था और इस आशा में था कि शायद उसे भी कोई प्रसाद देने आए।

एक व्यक्ति दया करके साग-पूरी से भरा एक दोना उसके लिए ले जाने लगा तो एक ब्राह्मण ने उसे लताड़ते हुए कहा, ‘यह प्रसाद भक्तजनों के लिए हैं, किसी कंगाल कोढ़ी के लिए नहीं बनाया गया।’

ब्राह्मण की लताड़ सुनकर वह साग-पूरी से भरा दोना वापस ले गया। महर्षि रमण मंदिर के प्रांगण में बैठे यह दृश्य देख रहे थे।

भंडारा संम्पन्न होने पर भक्तों ने महर्षि से पूछा, ‘आज सातवां दिन है, किंतु भगवान् तो नहीं आए।’

‘मंदिर के बाहर जो कोढ़ी खड़ा था, वे ही तो भगवान् थे। तुम्हारे चर्म चक्षुओं ने उन्हें कहां पहचाना ?

भंडारे के प्रसाद को बांटते समय भी तुम्हें इंसानों में अंतर नजर आता है,’ महर्षि ने कहा।

इतना सुनना था कि भगवान् के दर्शनों के इच्छुक लोगों का मुंह उतर गया।
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ध्यान रखो जब कभी खाना खाते समय कोई गरीब…भिखारी…कोढ़ी-कंगला ….तुमसे खाना खाने की लिये आय माँगे ..तो लताड़ो नही उसे फटकारो नही बेशक तुम भूखे रह जाओ लेकिन उसको अवश्य खाना खिलाओ पता नही कौन किस रूप मेँ आ जाये ………!!

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किसी का भगवान – God for Someone

एक मेजर के नेतृत्व में 15 जवानों की एक टुकड़ी हिमालय के अपने रास्ते पर थी उन्हें ऊपर कहीं अगले तीन महीने के लिए दूसरी टुकड़ी की जगह तैनात होना था दुर्गम स्थान, ठण्ड और बर्फ़बारी ने चढ़ाई की कठिनाई और बढ़ा दी थी बेतहाशा ठण्ड में मेजर ने सोचा की अगर उन्हें यहाँ एक कप चाय मिल जाती तो आगे बढ़ने की ताकत आ जाती लेकिन रात का समय था आपस कोई बस्ती भी नहीं थी ।


लगभग एक घंटे की चढ़ाई के पश्चात् उन्हें एक जर्जर चाय की दुकान दिखाई दी लेकिन अफ़सोस उस पर ताला लगा था. भूख और थकान की तीव्रता के चलते जवानों के आग्रह पर मेजर साहब दुकान का ताला तुड़वाने को राज़ी हो गया खैर ताला तोडा गया तो अंदर उन्हें चाय बनाने का सभी सामान मिल गया, जवानों ने चाय बनाई साथ वहां रखे बिस्किट आदि खाकर खुद को राहत दी थकान से उबरने के पश्चात् सभी आगे बढ़ने की तैयारी करने लगे लेकिन मेजर साहब को यूँ चोरों की तरह दुकान का ताला तोड़ने के कारण आत्मग्लानि हो रही थी, उन्होंने अपने पर्स में से एक हज़ार का नोट निकाला और चीनी के डब्बे के नीचे दबाकर रख दिया तथा दुकान का शटर ठीक से बंद करवाकर आगे बढ़ गए. इससे मेजर की आत्मग्लानि कुछ हद तक कम हो गई और टुकड़ी अपने गंतव्य की और बढ़ चली वहां पहले से तैनात टुकड़ी उनका इंतज़ार कर रही थी इस टुकड़ी ने उनसे अगले तीन महीने के लिए चार्ज लिया व अपनी ड्यूटी पर तैनात हो गए हो गए


तीन महीने की समाप्ति पर इस टुकड़ी के सभी 15 जवान सकुशल अपने मेजर के नेतृत्व में उसी रास्ते से वापिस आ रहे थे रास्ते में उसी चाय की दुकान को खुला देखकर वहां विश्राम करने के लिए रुक गए। उस दुकान का मालिक एक बूढ़ा चाय वाला था जो एक साथ इतने ग्राहक देखकर खुश हो गया और उनके लिए चाय बनाने लगा। चाय की चुस्कियों और बिस्कुटों के बीच वो बूढ़े चाय वाले से उसके जीवन के अनुभव पूछने लगे खासतौर पर इतने बीहड़ में दूकान चलाने के बारे में। बूढ़ा उन्हें कईं कहानियां सुनाता रहा और साथ ही भगवान का शुक्र अदा करता रहा।
तभी एक जवान बोला “बाबा आप भगवान को इतना मानते हो अगर भगवान सच में होता तो फिर उसने तुम्हे इतने बुरे हाल में क्यों रखा हुआ है।”


बाबा बोला “नहीं साहब ऐसा नहीं कहते, भगवान् तो है और सच में है …. मैंने देखा है।”


आखरी वाक्य सुनकर सभी जवान कोतुहल से बूढ़े की ओर देखने लगे। बूढ़ा बोला, साहब मै बहुत मुसीबत में था एक दिन मेरे इकलौते बेटे को आतंकवादीयों ने पकड़ लिया उन्होंने उसे बहुत मारा पीटा लेकिन उसके पास कोई जानकारी नहीं थी इसलिए उन्होंने उसे मारपीट कर छोड़ दिया। मैं दुकान बंद करके उसे हॉस्पिटल ले गया मै बहुत तंगी में था साहब और आतंकवादियों के डर से किसी ने उधार भी नहीं दिया


मेरे पास दवाइयों के पैसे भी नहीं थे और मुझे कोई उम्मीद नज़र नहीं आती थी उस रात साहब मै बहुत रोया और मैंने भगवान से प्रार्थना की और मदद मांगी और साहब … उस रात भगवान मेरी दुकान में खुद आए। मै सुबह अपनी दुकान पर पहुंचा ताला टूटा देखकर मुझे लगा की मेरे पास जो कुछ भी थोड़ा बहुत था वो भी सब लुट गया। मै दुकान में घुसा तो देखा 1000 रूपए का एक नोट, चीनी के डब्बे के नीचे भगवान ने मेरे लिए रखा हुआ है।


साहब ….. उस दिन एक हज़ार के नोट की कीमत मेरे लिए क्या थी शायद मै बयान न कर पाऊं … लेकिन भगवान् है साहब … भगवान् तो है”, बूढ़ा फिर अपने आप में बड़बड़ाया। भगवान् के होने का आत्मविश्वास उसकी आँखों में साफ़ चमक रहा था यह सुनकर वहां सन्नाटा छा गया। पंद्रह जोड़ी आंखे मेजर की तरफ देख रही थी जिसकी आंख में उन्हें अपने लिए स्पष्ट आदेश था चुप रहो। मेजर साहब उठे, चाय का बिल अदा किया और बूढ़े चाय वाले को गले लगाते हुए बोले “हाँ बाबा मै जनता हूँ भगवान् है, और तुम्हारी चाय भी शानदार थी।


दोस्तों सच्चाई यही है कि भगवान तुम्हे कब किसी का भगवान बनाकर कहीं भेज दे ये खुद तुम भी नहीं जानते।

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जो सर्वश्रेष्ठ हो वही अपने ईश्वर को समर्पित हो – Offer Your Best

जो सर्वश्रेष्ठ हो वही अपने ईश्वर को समर्पित हो
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एक नगर मे एक महात्मा जी रहते थे और नदी के बीच मे भगवान का मन्दिर था और वहाँ रोज कई व्यक्ति दर्शन को आते थे और ईश्वर को चढाने को कुछ न कुछ लेकर आते थे! एक दिन महात्मा जी अपने कुछ शिष्यों के साथ नगर भ्रमण को गये तो बीच रास्ते मे उन्हे एक फल वाले के वहाँ एक आदमी कह रहा था की कुछ सस्ते फल दे दो भगवान के मन्दिर चढाने है! थोड़ा आगे बढे तो एक दुकान पर एक आदमी कह रहा था की दीपक का घी देना और वो घी ऐसा की उससे अच्छा तो तेल है! आगे बढे तो एक आदमी कह रहा था की दो सबसे हल्की धोती देना एक पण्डित जी को और एक किसी और को देनी है!

• फिर जब वो मन्दिर गये तो जो नजारा वहाँ देखा तो वो दंग रह गये!

• उस राज्य की राजकुमारी भगवान के आगे अपना मुंडन करवा रही थी और वहाँ पर एक किसान जिसके स्वयं के वस्त्र फटे हुये थे पर वो कुछ लोगों को नये नये वस्त्र दान कर रहा था! जब महात्मा जी ने उनसे पूछा तो किसान ने कहा हॆ महात्मन चाहे हम ज्यादा न कर पाये पर हम अपने ईश्वर को वो समर्पित करने की ईच्छा रखते है जो हमें भी नसीब न हो और जब मैं इन वस्त्रहीन लोगों को देखता हूँ तो मेरा बड़ा मना करता है की इन्हे उतम वस्त्र पहनावे!

• और जब राजकुमारी से पूछा तो उस राजकुमारी ने कहा हॆ देव एक नारी के लिये उसके सिर के बाल अति महत्वपुर्ण है और वो उसकी बड़ी शोभा बढ़ाते है तो मैंने सोचा की मैं अपने इष्टदेव को वो समर्पित करूँ जो मेरे लिये बहुत महत्वपुर्ण है इसलिये मैं अपने ईष्ट को वही समर्पित कर रही हूँ!

• जब उन दोनो से पूछा की आप अपने ईष्ट को सर्वश्रेष्ठ समर्पित कर रहे हो तो फिर आपकी माँग भी सर्वश्रेष्ठ होगी तो उन दोनो ने ही बड़ा सुन्दर उत्तर दिया!

• हे देव हमें व्यापारी नही बनना है और जहाँ तक हमारी चाहत का प्रश्न है तो हमें उनकी निष्काम भक्ति और निष्काम सेवा के अतिरिक्त कुछ भी नही चाहिये!

• जब महात्मा जी मन्दिर के अन्दर गये तो वहाँ उन्होने देखा वो तीनों व्यक्ति जो सबसे हल्का घी, धोती और फल लेकर आये साथ मे अपनी मांगो की एक बड़ी सूची भी साथ लेकर आये और भगवान के सामने उन मांगो को रख रहे है!

• तब महात्मा जी ने अपने शिष्यों से कहा हॆ मेरे अतिप्रिय शिष्यों जो तुम्हारे लिये सबसे अहम हो जो शायद तुम्हे भी नसीब न हो जो सर्वश्रेष्ठ हो वही ईश्वर को समर्पित करना और बदले मे कुछ माँगना मत और माँगना ही है तो बस निष्काम-भक्ति और निष्काम-सेवा इन दो के सिवा अपने मन मे कुछ भी चाह न रखना!

इसीलिये एक बात हमेशा याद रखना की भले ही थोड़ा ही समर्पित हो पर जो सर्वश्रेष्ठ हो बस वही समर्पित हो!

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