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श्रीकृष्ण के दिव्य आभूषण – Jewels of Shri Krishna

🎗 कृष्ण के ताबीज़ का नाम- महारक्षक
जिसमे 9 मोतिया है जिसे यशोदामैया कृष्ण जी के बाजु पर बाधती है.

🌈🌈कृष्ण के बाजूबंद – रंगदा (रंगने बाला)
दोन्हो हाथों के बाजू मे रत्न जड़ित

💍कृष्ण जी नामांकित अंगूठी- रत्नमुखी
💍💍💍💍💍💍

🔶कृष्ण जी के पीताम्बर का नाम – निगम शोभना
श्रुतियों की शोभा बढ़ाने बाला

💫कृष्ण जी करधनी- कला झंकारा
जिसकी खनक बहुत मधुर है

💫💫कृष्ण जी की पायल(नुपुर)- हंस गंजना
जिसकी मधुर ध्वनी हंसो के मधुर गीत की तरह है

जिनकी झंकार गोपियो के चित का हरण कर लेती है

🏵 कृष्ण जी के कंठीहार – तारावली
सितारों का किनारा हो जैसे

🏅कृष्ण जी मणियो की माला – तड़ित प्रभा
अर्थ –⚡बिजली की आभा

🎖 श्री कृष्ण जी के गले मे लॉकेट- ह्र्दयमोदन
(ह्रदय का आनंद💖💖)
जिसमे श्री राधारानी जी चित्र है

💧 कृष्ण जी की मणि – कौस्तुभमणि
सागर की मणि
जो कालिया नाग की पत्नियो ने भेंट दी थी

🌙🌙कृष्ण जी के मकराकृत कुंडल – रति रागाधिदैवता
(रसिक स्नेह के मूल विग्रह)

🌿कृष्ण जी मोर मुकुट –
नवरत्न विडम्ब
नो रत्न लगे है जिस मुकुट मे 💎💎💎💎💎💎💎💎💎

🎖कृष्ण जी गुंजा माला –
रागवल्ली
स्नेह की बेल

🌺 कृष्ण जी पाँच प्रकार के पुष्पो से बनी गुंफमाला –
वैजयन्ती माला
परम जय

🔺तिलक- दृस्टि मोहन
जिसके ललाट्भाल दर्शन मात्र से हम सब मंत्र मुग्ध हो जाते है.

💫💫कृष्ण के कंगन- शोभना

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राम नाम की महिमा – Power of Shri Ram

एक बार शिवजी कैलाश पर पहुंचे और पार्वती जी से भोजन माँगा।

पार्वती जी विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर रहीं थीं। पार्वती जी ने कहा अभी पाठ पूरा नही हुआ, कृपया थोड़ी देर प्रतीक्षा कीजिए।

शिव जी ने कहा कि इसमें तो समय और श्रम दोनों लगेंगे। संत लोग जिस तरह से सहस्र नाम को छोटा कर लेते हैं और नित्य जपते हैं वैसा उपाय कर लो। पार्वती जी ने पूछा वो उपाय कैसे करते हैं? मैं सुनना चाहती हूँ।

शिव जी ने बताया, केवल एक बार राम कह लो तुम्हें सहस्र नाम, भगवान के एक हज़ार नाम लेने का फल मिल जाएगा।

एक राम नाम हज़ार दिव्य नामों के समान है। पार्वती जी ने वैसा ही किया।

पार्वत्युवाच
केनोपायेन लघुना विष्णोर्नाम सहस्रकं?
पठ्यते पण्डितैर्नित्यम् श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो।।

ईश्वर उवाच
श्री राम राम रामेति, रमे रामे मनोरमे।
सहस्र नाम तत्तुल्यम राम नाम वरानने।।

यह राम नाम सभी आपदाओं को हरने वाला, सभी सम्पदाओं को देने वाला दाता है, सारे संसार को विश्राम/शान्ति प्रदान करने वाला है। इसीलिए मैं इसे बार बार प्रणाम करता हूँ।

आपदामपहर्तारम् दातारम् सर्वसंपदाम्।
लोकाभिरामम् श्रीरामम् भूयो भूयो नमयहम्।।

भव सागर के सभी समस्याओं और दुःख के बीजों को भूंज के रख देनेवाला/समूल नष्ट कर देने वाला, सुख संपत्तियों को अर्जित करने वाला, यम दूतों को खदेड़ने/भगाने वाला केवल राम नाम का गर्जन(जप) है।

इसीलिए हमारे देश में प्रणाम राम राम कहकर किया जाता है।
।।राम राम।।

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कुंभ स्नान से जुड़ीं एक रोचक कथा – Story of Kumbh

।। कुंभ स्नान से जुड़ीं एक रोचक कथा ।।

कुंभ स्नान चल रहा था। घाट पर भारी भीड़ लग रही थी।

शिव पार्वती आकाश से गुजरे। पार्वती ने इतनी भीड़ का कारण पूछा – शिव जी ने कहा – कुम्भ पर्व पर स्नान करने वाले स्वर्ग जाते है। उसी लाभ के लिए यह स्नानार्थियों की भीड़ जमा है।

पार्वती का कौतूहल तो शान्त हो गया पर नया संदेह उपज पड़ा, इतने लोग स्वर्ग कहां पहुंच पाते हैं ?

भगवती ने अपना नया सन्देह प्रकट किया और समाधान चाहा।

भगवान शिव बोले – शरीर को गीला करना एक बात है और मन की मलीनता धोने वाला स्नान जरूरी है। मन को धोने वाले ही स्वर्ग जाते हैं। वैसे लोग जो होंगे उन्हीं को स्वर्ग मिलेगा।

सन्देह घटा नहीं, बढ़ गया।

पार्वती बोलीं – यह कैसे पता चले कि किसने शरीर धोया किसने मन संजोया।

यह कार्य से जाना जाता है। शिवजी ने इस उत्तर से भी समाधान न होते देखकर प्रत्यक्ष उदाहरण से लक्ष्य समझाने का प्रयत्न किया।

मार्ग में शिव कुरूप कोढ़ी बनकर पढ़ रहे। पार्वती को और भी सुन्दर सजा दिया। दोनों बैठे थे। स्नानार्थियों की भीड़ उन्हें देखने के लिए रुकती। अनमेल स्थिति के बारे में पूछताछ करती।

पार्वती जी रटाया हुआ विवरण सुनाती रहतीं। यह कोढ़ी मेरा पति है। गंगा स्नान की इच्छा से आए हैं। गरीबी के कारण इन्हें कंधे पर रखकर लाई हूँ। बहुत थक जाने के कारण थोड़े विराम के लिए हम लोग यहाँ बैठे हैं।

अधिकाँश दर्शकों की नीयत डिगती दिखती। वे सुन्दरी को प्रलोभन देते और पति को छोड़कर अपने साथ चलने की बात कहते।

पार्वती लज्जा से गढ़ गई। भला ऐसे भी लोग स्नान को आते हैं क्या? निराशा देखते ही बनती थी।

संध्या हो चली। एक उदारचेता आए। विवरण सुना तो आँखों में आँसू भर लाए। सहायता का प्रस्ताव किया और कोढ़ी को कंधे पर लादकर तट तक पहुँचाया। जो सत्तू साथ में था उसमें से उन दोनों को भी खिलाया।

साथ ही सुन्दरी को बार-बार नमन करते हुए कहा – आप जैसी देवियां ही इस धरती की स्तम्भ हैं। धन्य हैं आप जो इस प्रकार अपना धर्म निभा रही हैं।

प्रयोजन पूरा हुआ। शिव पार्वती उठे और कैलाश की ओर चले गए। रास्ते में कहा – पार्वती इतनों में एक ही व्यक्ति ऐसा था, जिसने मन धोया और स्वर्ग का रास्ता बनाया। स्नान का महात्म्य तो सही है पर उसके साथ मन भी धोने की शर्त लगी है।

पार्वती तो समझ गई कि स्नान महात्म्य सही होते हुए भी…
क्यों लोग उसके पुण्य फल से वंचित रहते हैं?

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गृहस्थों के लिए विशेष उपयोगी – Tips for Households

गृहस्थों के लिए विशेष उपयोगी

1 जो केवल अपने लिए ही भोजन बनाता है; जो केवल काम सुख के लिए ही मैथुन करता है; जो केवल आजीविका प्राप्ति के लिए ही पढाई करता है; उसका जीवन निष्फल है (लघुव्यास संहिता)

2 जिस कुल में स्त्री से पति और पति से स्त्री संतुष्ट रहती है; उस कुल में सर्वदा मंगल होता है (मनुस्मृति)

3 राजा प्रजा के; गुरू शिष्य के; पति पत्नी के तथा पिता पुत्र के पुण्य-पाप का छठा अंश प्राप्त कर लेता है (पद्मपुराण)

4 मनुष्य को प्रयत्नपूर्वक स्त्री की रक्षा करनी चाहिएँ! स्त्री की रक्षा होने से सन्तान; आचरण; कुल; आत्मा; औऱ धर्म, इन सबकी रक्षा होती है (मनुस्मृति)

5 पिता की मृत्यु हो जाने पर बड़े भाई को ही पिता के समान समझना चाहिए (गरूड़पुराण)

6 अपने पुत्र से भी बढकर दौहित्र; भानजा व भाई का पालन करना चाहिएं; और अपनी पुत्री से बढकर भाई की स्त्री; पुत्रवधु और बहन का पालन करना चाहिएं (शुक्रनीति)

7 नौकर या पुत्र के सिवाय किसी दूसरे के हाथ से करवाया गया दानादि का छठा अंश दूसरे को मिल जाता है (पद्मपुराण)

8 जो दूसरों की धरोहर हड़प लेते हैं; रत्नादि की चोरी करते हैं; पितरों का श्राद्धकर्म छोड़ देते हैं; उनके वंश की वृद्धि नहीं होती (ब्रह्मपुराण)

9 अष्टमी;चतुर्दशी;अमावस्या;पूर्णिमा और सूर्य की संक्रान्ति —इन दिनों मे स्त्री संग करने वाले को नीच योनि तथा नरकों की प्राप्ति होती है (महाभारत)

10 रजस्वला स्त्री के साथ सहवास करने वाले पुरूष को ब्रह्महत्या लगती है और वह नरकों में जाता है (ब्रह्मवैवर्तपुराण)

11 गृहस्थ को माता-पिता, अतिथि और धनी पुरूष के साथ विवाद नहीं करना चाहिए (गरूड़पुराण)

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Health Tips and Tricks

जिंदगी बचाने के तरीके – Life Saving Hacks

ये संदेश जन उपयोगी है अतः ज्यादा से ज्यादा इसे सांझा करे।

जिंदगी बचाने के तरीके:

  1. गले मे कुछ फस जाए- तब केवल अपनी भुजाओं को ऊपर उठाएं।

न्यू जेर्सी अमेरिका में एक पांच वर्षीय बच्चे ने अपनी बहुत ही चतुराई से अपनी दादी के प्राणों की रक्षा बेहद साधारण तरीके से केवल उनके हाथों को ऊपर उठा कर, बचाये।

उसकी 56 वर्षीय दादी घर पर टेलीविज़न देखते हुए फल खा रही थी।

जब वो अपना सर हिला रही थी तब अचानक एक फल का टुकड़ा उसके गले मे फस गया। उसने अपने सीने को बहुत दबाया पर कुछ भी फायदा नही हुआ।

तब उस बच्चे ने दादी को परेशान देखा तो उसने पूछा कि “दादी माँ क्या आपके गले मे कुछ फस गया है?” वो कुछ भी उत्तर नही दे पाई।

“मुझे लगता है कि आपके गले मे कुछ फस गया है। अपने हाथ ऊपर करो, हाथ ऊपर करो” दादी माँ ने तुरंत अपने हाथ ऊपर कर दिए और वो जल्द ही फसे हुए फल के टुकड़े को गले से बाहर थूकने में कामयाब हो गयी।

उनके पोता बहुत शांत चित्त रहा और उसने बताया कि ये बात उसने अपने विद्यालय में सीखी थी।

  1. सुबह उठते वक्त होने वाले शरीर के दर्द

क्या आपको सुबह उठते वक्त शरीर मे दर्द होता है? क्या आपको सुबह उठते वक्त गर्दन में दर्द और अकड़न महसूस होती है? यदि आपको ये सब होता है तो आप क्या करे?

तब आप अपने पांव ऊपर उठाएं। अपने पांव के अंगूठे को बाहर की तरफ खेचे और धीरे धीरे उसकी मालिश करे और घड़ी की दिशा में एवं घड़ी की विपरीत दिशा में घुमाए।

  1. पांव में आने वाले बॉयटा या ऐठन

यदि आपके बाए पांव में बॉयटा आया है तो अपने दाए हाथ को जितना ऊपर उठा सकते है उठाये।

यदि ये बॉयटा आपके दाए पांव में आया है तो आप अपने बाए हाथ को जितना ऊपर ले जा सकते है ले जाये। इससे आपको तुरंत आराम आएगा।

  1. पांव का सुन्न होना

यदि आपका बाया पांव सुन्न होता है तो अपने दाएं हाथ को जोर से बाहर की ओर झुलाये या झटके दे। यदि आपका दाया पांव सुन्न है तो अपने बाया हाथ को जोर से बाहर की ओर झुलाये या झटका दे।

(तीन बचाव के तरीके)

  1. आधे शरीर मे लकवा
    (इस बात की परवाह किये बिना की ये मस्तिकाघात से है या रक्त वाहिका की रुकावट की वजह से है) आधे चेहरे का लकवा

एक सिलाई की सुई लेकर तुरन्त ही कानों की लोलिका के सबसे नीचे वाले भाग में सुई चुभा कर एक एक बूंद खून निकाले।

इससे रोगी को तुरंत आराम आजायेगा। उस पर से सब पक्षाघात के लक्षण भी मिट जायेगे।

  1. ह्रदय आघात की वजह से हृदय का रुकना

ऐसे व्यक्ति के पांव से जुराबें उतारकर (यदि पहनी है तो) सुई से उसकी दसों पांव की उंगलियों में सुई चुभो कर एक एक बूंद रक्त की निकाले।

इससे रोगी तुरन्त उठ जाएगा।

  1. यदि रोगी को सांस लेने में तकलीफ हो

चाहे ये दमा से हो या ध्वनि तंत्र की सूजन की वजह या और कोई कारण हो, जब तक कि रोगी का चेहरा सांस न ले पाने की वजह से लाल हो उसके नासिका के अग्रभाग पर सुई से छिद्र कर दौ बून्द काला रक्त निकाल दे।

उपरोक्त तीनो तरीको से कोई खतरा नही है और ये तीनों केवल 10 सेकेंड में ही किये जा सकते है।

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तुलसी जी – Tulsi Ji

तुलसी जी तुलसी जी को हिन्दू धर्म में बेहद पवित्र और पूजनीय माना जाता है। तुलसी के पेड़ और इसके पत्तों का धार्मिक महत्त्व होने के साथ वैज्ञानिक महत्त्व भी है।

तुलसी के पौधे को एंटी-बैक्टीरियल माना जाता है, स्वास्थ्य के नजरिए से यह बेहद लाभकारी होती हैं।

हिन्दू पुराणों में तुलसी जी को भगवान श्री हरी विष्णु को बहुत प्रिय हैं। तुलसी के पौधे को घर में लगाने, उसकी पूजा करने और कार्तिक माह में तुलसी विवाह आदि से जुड़ी कई कथाएं हिन्दू पुराणों में वर्णित हैं।

तुलसी जी से जुड़ी पौराणिक कथा

श्रीमद देवी भागवत के अनुसार प्राचीन समय में एक राजा था धर्मध्वज और उसकी पत्नी माधवी, दोनों गंधमादन पर्वत पर रहते थे। माधवी हमेशा सुंदर उपवन में आनंद किया करती थी। ऐसे ही काफी समय बीत गया और उन्हें इस बात का बिलकुल भी ध्यान नहीं रहा। परंतु कुछ समय पश्चात धर्मध्वज के हृदय में ज्ञान का उदय हुआ और उन्होंने विलास से अलग होने की इच्छा की। दूसरी तरफ माधवी गर्भ से थी। कार्तिक पूर्णिमा के दिन माधवी के गर्भ से एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ। इस कन्या की सुंदरता देख इसका नाम तुलसी रखा गया।

तुलसी विवाह

बालिका तुलसी बचपन से ही परम विष्णु भक्त थी। कुछ समय के बाद तुलसी बदरीवन में कठोर तप करने चली गई। वह नारायण को अपना स्वामी बनाना चाहती थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उनसे वर मांगने को कहा, तब तुलसी जी भगवान विष्णु को अपने पति रूप में प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की। ब्रह्मा जी ने उन्हें मनोवांछित वर दिया।

इसके बाद उनका विवाह शंखचूड से हुआ। शंखचूड एक परम ज्ञानी और शक्तिशाली राजा था उसने देवताओं के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था। शंखचूड के पास अपनी शक्ति के साथ तुलसी के पतिव्रत धर्म की भी शक्ति थी। देवताओं ने तुलसी का पतिव्रत भंग करने के लिए एक योजना बनाई और उसके सूत्रधार बने श्री हरि विष्णु जी।

भगवान विष्णु जी ने माया से शंखचूड का रूप धारण कर तुलसी के पतिव्रत भंग कर दिया। जब देवी तुलसी को इस बात की जानकारी मिली तो वह बेहद क्रोधित हुईं और उन्होंने विष्णु जी को पाषाण यानि पत्थर का बन जाने का श्राप दिया। तभी से विष्णु जी शालिग्राम के रूप में पूजे जाने लगे।

तुलसी जी की उत्पत्ति के विषय में कई अन्य कथाएं भी हैं लेकिन समय के साथ बदलने वाली इन कथाओं का मर्म एक ही है। भगवान विष्णु की प्राण प्रिय जब देवी तुलसी ने विष्णु जी को श्राप दिया तो विष्णु जी ने उनका क्रोध शांत करने के लिए उन्हें वरदान दिया कि देवी तुलसी के केशों से तुलसी वृक्ष उत्पन्न होंगे जो आने वाले समय में पूजनीय और विष्णु जी को प्रिय माने जाएंगे। विष्णु जी की कोई भी पूजा बिना तुलसी के पत्तों के अधूरी मानी जाएगी। साथ ही उन्हें वरदान दिया कि आने वाले युग में लोग खुशी से विष्णु जी के पत्थर स्वरूप और तुलसी जी का विवाह कराएंगे। (अधिक जानकारी के लिए तुलसी विवाह कथा पढ़े)

तुलसी से जुड़ी मुख्य बातें

तुलसी जी को सभी पौधों की प्रधान देवी माना जाता है।

तुलसी के पत्तों के बिना विष्णु जी की पूजा अधूरी होती है।

पतिव्रता स्त्रियों के लिए तुलसी के पौधे की पूजा करना पुण्यकारी माना जाता है।

कार्तिक माह में तुलसी विवाह का त्यौहार मनाया जाता है जिसमें विष्णु जी के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी जी के साथ कराया जाता है।

तुलसी जी का परिवार

तुलसी की माता का नाम माधवी तथा पिता का नाम धर्मध्वज था। उनका विवाह भगवान विष्णु के अंश से उत्पन्न शंखचूड़ से हुआ था।

तुलसी जी के अन्य नाम और उनके अर्थ

वृंदा – सभी वनस्पति व वृक्षों की आधि देवी

वृन्दावनी – जिनका उद्भव व्रज में हुआ

विश्वपूजिता – समस्त जगत द्वारा पूजित

विश्व -पावनी – त्रिलोकी को पावन करने वाली

पुष्पसारा – हर पुष्प का सार

नंदिनी – ऋषि मुनियों को आनंद प्रदान करने वाली

कृष्ण-जीवनी – श्री कृष्ण की प्राण जीवनी

तुलसी – अद्वितीय

तुलसी जी के मंत्र

मान्यतानुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि के दिन जो जातक तुलसी जी पूजा करता है उसे कई जन्मों का पुण्य फल प्राप्त होता है। इस दिन तुलसी जी की पूजा में निम्न मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है:

वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।

पुष्पसारा नन्दिनी च तुलसी कृष्ण जीवनी।

एतन्नामाष्टंक चैव स्त्रोत्रं नामार्थसंयुतमू।

यः पठेत् तां च सम्पूज्य सोडश्वमेधफलं लभेत।।

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गंगा जी – Ganga Ji

देवी गंगा हिन्दू धर्म की देवी हैं। हिन्दू धर्म में इन्हें बहुत पवित्र माना जाता है। मान्यता के अनुसार देवी गंगा लोगों के पाप धोकर उन्हें जीवन मृत्यु के चक्कर से बाहर निकालती हैं तथा मोक्ष प्रदान करती हैं। ग्रंथों और पुराणों के अनुसार भक्तों के पाप मिटाने के लिए ही गंगा जी धरती पर अवतरित हुईं थी।

गंगा जी का नदी के रूप में अवतरण

एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार एक राजा के साठ हजार पुत्र थे। राजा के पुत्रों ने एक बार कपिल मुनि की तपस्या में बाध डाल दी जिससे क्रोधित होकर मुनि ने उन्हें श्राप दे दिया। इससे राजा के सारे पुत्र उसी स्थान पर जलकर भस्म हो गए और पाप मुक्त न होने के कारण पृथ्वी पर भटकने लगे।

भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर राजा पुत्रों को मुक्ति दिलाने के लिए विष्णु जी ने देवी गंगा को धरती पर उतरने के लिए कहा। तेज आवेग के कारण वह प्रत्यक्ष रूप से धरती पर नहीं अवतरित हो सकती थीं। इसलिए शिव जी ने गंगा को अपनी जटाओं में बांध लिया तथा उनके कुछ धाराओं को ही धरती पर छोड़ा।

गंगा जी के मंत्र

गंगा में स्नान करते समय सभी पापों की क्षमा मांगने तथा मुक्ति प्राप्ति के लिए गंगा माता के इन मंत्रों का जाप करना चाहिए।

ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि,

गंगे माँ पावय पावय स्वाहा।।

गंगा जी का स्वरूप

देवी गंगा का चेहरा बहुत शांत और उज्ज्वल है। उनके चार हाथ हैं जिसमें से एक हाथ में कमल और एक हाथ में कलश है तथा दो अन्य हाथ वर और अभय मुद्रा में है। वे सफेद वस्त्र धारण किए हुए है जो शांति और कोमलता का प्रतीक है। इनके गले में फूलों की माला तथा माथे पर अर्धचंदाकार चंदन लगा है। यह कमल पर विराजमान रहती हैं। इनका निवास स्थान तीनों लोकों में है।
गंगा जी का परिवार
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार गंगा जी पर्वतों के राजा हिमवान तथा उनकी पत्नी देवी मीना की पुत्री हैं।

गंगा जी से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें

गंगा जी के चार हाथ हैं।

गंगा जी देवी पार्वती की बहन हैं।

ब्रह्मा जी के कहने पर देवी गंगा धरती पर लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए अवतरित हुई थीं।

गंगा स्नान का महत्व

मान्यता के अनुसार करोड़ो जन्मों के पाप गंगा की वायु के स्पर्श मात्र से समाप्त हो जाते हैं। स्पर्श और दर्शन की इच्छा और गंगा में मौसल स्नान करने से व्यक्ति को दस गुणा पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा समान्य दिन में स्नान करने से भी जन्मों के पास नष्ट हो जाते हैं। विशेष तिथियों और अवसरों पर गंगा स्नान का व्यक्ति को विशेष फल प्राप्त होता है।

गंगा जी के नाम

मंदाकिनी
गंगा जी
भोगवती
हरा-वल्लभ
भागीरथी
सावित्री
रम्य

गंगा जी के प्रसिद्ध मंदिर

गंगा मंदिर गंगोत्री
गंगा मंदिर, हरिद्वार
गंगा मंदिर, भरतपुर
गंगा मंदिर, गढ़मुक्तेश्वर
गंगा मंदिर, बैंग्लोर
गंगा मंदिर, वारणसि

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देवी अन्नपूर्णा – Goddess Annapurna

देवी अन्नपूर्णा हिन्दू धर्म की देवी हैं। देवी अन्नपूर्णा को धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। इन्हें “अन्न की पूर्ति“ करने वाली देवी कहा गया है। मान्यता है कि देवी अन्नपूर्णा भक्तों की भूख शांत करती हैं तथा जो इनकी आराधना करता है उसके घर में कभी भी अनाज की कमी नहीं होती है। हिन्दू ग्रंथों और पुराणों में कई बार मां अन्नपूर्णा का विवरण आया है। देवी अन्नपूर्णा से जुड़ी रोचक बातें निम्न हैं:

  1. वेदों में लिखा है कि लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व श्रीराम जी ने अपनी वानर सेना की भूख मिटाने के लिए देवी अन्नपूर्णा की पूजा की थी, जिसके बाद देवी ने सेनाओं की भूख को शांत किया था और विजय प्राप्ति का आशीर्वाद दिया था।
  2. ग्रंथों के अनुसार काशी में जब अन्न की भारी कमी आ गई थी, तब इस स्थिति से परेशान होकर शंकर भगवान ने देवी अन्नपूर्णा से भिक्षा ग्रहण किया था।
    देवी अन्नपूर्णा का रूप
    स्कंद पुराण के अनुसार देवी अन्नपूर्णा के तीन नेत्र हैं। इनके माथे पर अर्द्धचन्द्र बना है। मां अनेकों आभूषण धारण किये हुए हैं। देवी अन्नपूर्णा के एक हाथ में बर्तन और दूसरे में अन्न से भरा घड़ा है। जिस तरह लक्ष्मी जी को धन और वैभव की देवी माना जाता है, उसी प्रकार देवी अन्नपूर्णा भोजन की देवी मानी जाती हैं।
  3. हिन्दू धर्मानुसार देवी अन्नपूर्णा की आराधना विभिन्न तरीकों से की जाती है। देवी अन्नपूर्णा की पूजा में निम्न मंत्र का विशेष महत्त्व है:

अन्नपूर्णा देवी मंत्र

हिन्दू धर्मानुसार देवी अन्नपूर्णा की आराधना विभिन्न तरीकों से की जाती है। देवी अन्नपूर्णा की पूजा में निम्न मंत्र का विशेष महत्त्व है:

ऊं अन्नपूर्णे सदापूरणे
शंकरः प्राणवल्लभे ज्ञान-वैराग्य-सिध्यर्द्हम भिक्षाम देहि च पार्वती।।

काशी में बसती हैं देवी अन्नपूर्णा

स्कंद पुराण के काशी खंड में इस बात का वर्णन किया गया है कि भगवान शिव की भार्या देवी पार्वती ही अन्नपूर्णा देवी हैं। काशी में ही अन्नपूर्णा देवीपीठ भी है। मान्यता है कि अन्नपूर्णा देवी की कृपा से मनुष्य के जीवन में कभी भी खाने आदि की समस्या नहीं होती।

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इच्छापूर्ति वॄक्ष – Wishing Tree

एक घने जंगल में एक इच्छापूर्ति वृक्ष था, उसके नीचे बैठ कर किसी भी चीज की इच्छा करने से वह तुरंत पूरी हो जाती थी
यह बात बहुत कम लोग जानते थे..क्योंकि उस घने जंगल में जाने की कोई हिम्मत ही नहीं करता था

एक बार संयोग से एक थका हुआ इंसान उस वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ गया उसे पता ही नहीं चला कि कब उसकी नींद लग गई
जब वह जागा तो उसे बहुत भूख लग रही थी ,उसने आस पास देखकर कहा- ‘ काश कुछ खाने को मिल जाए !’ तत्काल स्वादिष्ट पकवानों से भरी थाली हवा में तैरती हुई उसके सामने आ गई
उस इंसान ने भरपेट खाना खाया और भूख शांत होने के बाद सोचने लगा..
‘ काश कुछ पीने को मिल जाए..’ तत्काल उसके सामने हवा में तैरते हुए कई तरह के शरबत आ गए शरबत पीने के बाद वह आराम से बैठ कर सोचने लगा- ‘ कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ’
हवा में से खाना पानी प्रकट होते पहले कभी नहीं देखा न ही सुना..जरूर इस पेड़ पर कोई भूत रहता है जो मुझे खिला पिला कर बाद में मुझे खा लेगा ऐसा सोचते ही तत्काल उसके सामने एक भूत आया और उसे खा गया.।

इस प्रसंग से आप यह सीख सकते है कि हमारा मस्तिष्क ही इच्छापूर्ति वृक्ष है आप जिस चीज की प्रबल कामना करेंगे वह आपको अवश्य मिलेगी
अधिकांश लोगों को जीवन में बुरी चीजें इसलिए मिलती हैं..क्योंकि वे बुरी चीजों की ही कामना करते हैं।
इंसान ज्यादातर समय सोचता है-
कहीं बारिश में भीगने से मै बीमार न हों जाँऊ ..और वह बीमार हो जाता हैं..!

इंसान सोचता है – कहीं मुझे व्यापार में घाटा न हों जाए..
और घाटा हो जाता हैं..!

इंसान सोचता है – मेरी किस्मत ही खराब है ..
और उसकी किस्मत सचमुच खराब हो जाती हैं ..!

इंसान सोचता है – कहीं मेरा बाँस मुझे नौकरी से न निकाल दे..
और बाँस उसे नौकरी से निकाल देता है..!

इस तरह आप देखेंगे कि आपका अवचेतन मन इच्छापूर्ति वृक्ष की तरह आपकी इच्छाओं को ईमानदारी से पूर्ण करता है..!

इसलिए आपको अपने मस्तिष्क में विचारों को सावधानी से प्रवेश करने की अनुमति देनी चाहिए

अगर गलत विचार अंदर आ जाएगे तो गलत परिणाम मिलेंगे.
विचारों पर काबू रखना ही अपने जीवन पर काबू करने का रहस्य है..!
आपके विचारों से ही आपका जीवन या तो..
स्वर्ग बनता है या नरक..उनकी बदौलत ही आपका जीवन सुखमय या दुख:मय बनता है..
विचार जादूगर की तरह होते है , जिन्हें बदलकर आप अपना जीवन बदल सकते है..!

इसलिये हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए ..और यदि आप अच्छा सोचने लगते है तो पूरी कायनात उसे आपको देने में लग जाती है।
अपनी छोटी सी जिंदगी को यु ही न गवाईये, अच्छा खासा पाने की सोच के साथ हमारे साथ लग जाईये।

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सोने से पूर्व नित्य गीता स्वाध्याय – Read Geeta Before Going to Bed

एक श्लोक श्रीमद्-भगवद्-गीता यथारूप से

अध्याय एक – कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण

श्लोक 14

तत: श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ ।
माधव: पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतु: ॥

शब्दार्थ

तत: – तत्पश्चात्; श्वेतै: – श्वेत; हयै: – घोड़ों से; युक्ते – युक्त; महति – विशाल; स्यन्दने – रथ में; स्थितौ – आसीन; माधव: – कृष्ण (लक्ष्मीपति) ने; पाण्डव: – अर्जुन (पाण्ड़ुपुत्र) ने; च – तथा; एव – निश्चय ही; दिव्यौ – दिव्य; शङ्खौ – शंख; प्रदध्मतु: – बजाये।

अनुवाद

दूसरी ओर से श्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये।

तात्पर्य

भीष्मदेव द्वारा बजाये गए शखं की तुलना में कृष्ण तथा अर्जुन के शंखों को दिव्य कहा गया है। दिव्य शंखों के नाद से यह सूचित हो रहा था कि दूसरे पक्ष की विजय की कोई आशा न थी क्योंकि कृष्ण पाण्डवों के पक्ष में थे।

जयस्तु पाण्डुपुत्राणां येषां पक्षे जनार्दन:

जय सदा पाण्ड़ु के पुत्र-जैसों की होती है क्योंकि भगवान् कृष्ण उनके साथ हैं।

और जहाँ जहाँ भगवान् विद्यमान हैं, वहीं वहीं लक्ष्मी भी रहती हैं क्योंकि वे अपने पति के बिना नहीं रह सकतीं।

अतः जैसा कि विष्णु या भगवान् कृष्ण के शंख द्वारा उत्पन्न दिव्य ध्वनि से सूचित हो रहा था, विजय तथा श्री दोनों ही अर्जुन की प्रतीक्षा कर रही थीं।

इसके अतिरिक्त, जिस रथ में दोनों मित्र आसीन थे वह अर्जुन को अग्नि देवता द्वारा प्रदत्त था और इससे सूचित हो रहा था कि तीनों लोकों में जहा

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