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शनिश्चरा मंदिर मुरैना की कथा

सूर्य पुत्र शनिदेन सभी लोगो को उनके कर्मो के आधार पर सजा देते है, और उनके क्रोध और कुदृष्टि से सभी को भय होता है ! भारत मे शनिदेव के अनेक मन्दिर है,और इन मंदिरो मे सबसे प्राचिन मंदिर माना जाता है, “शनिश्चरा मंदिर” जो मध्य प्रदेश के मुरैना मे स्थित है !

ये मंदिर त्रेतायुग का माना जाता है, जो पुरे भारत मे प्रसिद्ध है और ऐसा माना जाता है की शनिदेव की यह प्रतिमा आसमान से टुट कर गिरी एक उल्का पिण्ड से बनी है ! शनिदेव का यह मंदिर अदभुत और प्रभावशाली है,तथा दुनिया भर से यहां लोग शनिदेव के दर्शन के लिए आते है ! यहां की एक अनोखी परम्परा है ,की शनिदेव की मंदिर मे भक्त शनिदेव की प्रतिमा मे तेल चढाने के बाद उनके गले मिलते है !

ऐसा माना जाता है की ऐसा एक भक्त अपने सभी दुख दर्द शनिदेव के साथ बांटते है ! इसके बाद भक्त घर जाने से पुर्व अपने धारण किये हुए वस्त्र,धोती,जुते,चप्पल मंदिर मे ही छोड जाते है !येसा करने से भक्त को उनके सभी पापो और दरिद्रताओं से मुक्ति मिलती है ! हर शनिचरी अमावश्या को यहां बहुत भिड होती है,और इस दिन यहां बहुत ही विशाल मेला लगता है, तथा लाखो लोग अपने कष्टो को दुर करने के लिए यहां आते है !

पौराणिक कथा के अनुसार रावण ने लंका मे शनिदेव को कैद कर रखा था,लंका जलाते समय हनुमान जी ने शनिदेव को रावण के कैद मे देखा, शनिदेव ने उन्हे इशारो मे निवेदन किया की अगर आप मुझे रावण की कैद से आजाद कर दो तो मै आपको रावण की लंका को नष्ट करने मे मदद करुंगा ! शनितेव रावण की कैद मे काफी दुर्बल हो चुके थे, हनुमान जी ने उन्हे सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के लिए उन्हे लंका से फेंका तब शनिदेव इस स्थान पर आकर प्रतिष्ठित हुए !यहां शनिदेव की असली प्रतिमा है ! महराष्ट्र की शिंगनापुर की प्रतिमा भी यही से लि गई है ! यह भी कहां जाता है की महाभारत युद्ध से पुर्व अर्जुन ने ब्रहाास्त्र पाने के लिए शनिदेव की यहा विधिवत पूजा अर्चना की थी ! इस मंदिर का निर्माण विक्रमादित्यने करवाया था,मराठो के शासन काल मे सिंधिया शासको ने इसका जिर्णोद्धार किया !

पौराणिक शास्त्रो के अनुसार शनि न्याय के देवता एवंभगवान सूर्य के पुत्र है ! शनि को किस्मत चमकाने वाला देवता भी कहा जाता है, शनिदेव मनुष्य के अच्छे कर्मो से प्रसन्न होते है !यही कारण है की उन्हे भाग्य विधाता भी कहां जाता है !

ऐसे भगवान शनिदेव के दस कल्याणकारी नामो का निरन्तर जाप करने से मनुष्य का कल्याण होता है .ज्सोतिष शास्त्रो के अनुसार शनि शुभ होने पर अपार सुख और समृद्धि देते है,

शनि के पवित्र कल्याणकारी नाम :–
१- कोणस्थ
२- पिंगल
३- कृष्ण
४- बभ्रु
५- रौद्रान्तक
६- यम
७- सौरी
८- शनैश्चर
९- मन्द
१०- पिप्पलाश्रय

ऊँ शं शनैश्चराय नमः

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श्रील माध्वाचार्य जी

पवनदेव के प्रथम अवतार हैं श्रीहनुमान जी, द्वितीय अवतार हैं श्रीभीमसेन, व तृतीय अवतार हुए श्रीमध्वाचार्य जी।

एक दिन श्रील मध्वाचार्य जी उड़ुपि में समुद्र स्नान के लिये जा रहे थे। आप भगवान श्रीकृष्ण का चिन्तन करते-करते एक बालु की पहाड़ी पर चढ़ गये। आपने देखा कि द्वारिका के बहुत से द्रव्य ले के जा रही एक नौका, पानी व रेत में फंस गयी है।

आपने नौका को बाहर निकल कर किनारे आने का इशारा किया तो नौका स्वतः किनारे पर आ लगी। नाविकों ने जब यह अद्भुत चमत्कार देखा तो वे सब आपका आभार प्रकट करने के लिये कुछ भेंट का निवेदन लेकर आये।

बहुत मना करने पर भी जब वे नहीं माने तो आप नाव में रखा गोपी चन्दन लेने के लिये तैयार हो गये। नाविकों ने गोपी चन्दन का एक बड़ा सा ढेला आपको भेंट स्वरूप दिया। जब आपके बहुत से सेवक उसे उठा कर ला रहे थे, तो बड़वन्देश्वर नामक स्थान पर वह टूट गया, और उसमें से एक बहुत ही सुन्दर बालकृष्ण की मूर्ति प्रकट हो गयी, जिनके एक हाथ में दही मथने वाली मधानी थी और दूसरे हाथ में मधानी की रस्सी।

भगवान बालकृष्ण की ऐसी अद्भुत लीला कि वह मूर्ति इतनी भारी हो गयी कि तीस बलवान लोग मिलकर भी उस मूर्ति को उठा नहीं पा रहे थे। जबकि श्रीमध्वाचार्यजी ने अकेले ही उस भारी मूर्ति को अपने हाथों में उठा लिया और बड़े आराम से उन्हें अपने उड़ुपी मठ में ले आये।

श्रील मध्वाचार्यजी ने बहुत वर्षों तक अपने हाथों से श्रीबालकृष्णजी सेवा की। आज भी दक्षिण भारत के उड़ुपी मठ में भगवान श्रीबालकृष्ण के दर्शन होते हैं।

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गौ माता का शास्त्र पुराणों में महात्मय

गाय की महिमा पर पवित्र ग्रंथों के उद्धरण:

स्वप्न में गाय का दर्शन:

  • स्वप्न में गाय अथवा वृषभ के दर्शन से कल्याण, लाभ एवं व्याधि का नाश होता है। स्वप्न में गाय के थन को चूसना भी श्रेष्ठ माना जाता है। स्वप्न में गाय का घर में ब्या देना, वृषभ की सवारी करना, तालाब के बीच में घी मिश्रित खीर का भोजन उत्तम माना गया है। घी सहित खीर का भोजन राज्य प्राप्ति का सूचक माना गया है।
  • स्वप्न में ताजे दुहे हुए फेन सहित दुग्ध का पान करने से अनेक भोगों की प्राप्ति होती है। दही देखने से प्रसन्नता मिलती है। जो व्यक्ति वृषभ से युक्त रथ पर स्वप्न में अकेला सवार होता है और उसी अवस्था में जाग जाता है, उसे शीघ्र धन मिलता है। स्वप्न में दही मिलने से धन की, घी मिलने से यश की, और दही खाने से यश की प्राप्ति निश्चित है।
  • यात्रा आरम्भ करते समय दही और दूध का दिखना शुभ शकुन माना गया है। स्वप्न में दही भात का भोजन करने से कार्य सिद्धि होती है तथा बैल पर चढ़ने से द्रव्य लाभ और व्याधि से छुटकारा मिलता है। स्वप्न में वृषभ अथवा गाय का दर्शन करने से कुटुम्ब की वृद्धि होती है। स्वप्न में सभी काली वस्तुओं का दर्शन निन्द्य माना गया है, केवल कृष्णा गाय का दर्शन शुभ होता है। (स्वप्न में गोदर्शन का फल, संतो के श्री मुख से सुना हुआ)

गाय की महिमा:

  • वृषभ को जगत का पिता और गायों को संसार की माता समझना चाहिए। उनकी पूजा से सम्पूर्ण पितरों और देवताओं की पूजा हो जाती है। जिनके गोबर से लीपने पर सभा भवन, पौसले, घर और देवमंदिर शुद्ध हो जाते हैं, उन गायों से बढ़कर और कौन प्राणी हो सकता है? जो व्यक्ति एक साल तक स्वयं भोजन करने से पहले प्रतिदिन दूसरे की गायों को मुट्ठी भर घास खिलाता है, उसे हर समय गौ सेवा का फल प्राप्त होता है। (महाभारत, आश्वमेधिकपर्व, वैष्णवधर्म)
  • देवता, ब्राह्मण, गाय, साधु और साध्वी स्त्रियों के बल पर यह सारा संसार टिका हुआ है, इसी से वे परम पूजनीय हैं। गायें जिस स्थान पर जल पीती हैं, वह स्थान तीर्थ है। गंगा आदि पवित्र नदियाँ गोस्वरूपा ही हैं। जहाँ गायें जलराशि को लांघती हुई नदी आदि को पार करती हैं, वहाँ गंगा, यमुना, सिंधु, सरस्वती आदि नदियाँ या तीर्थ निश्चित रूप से विद्यमान रहते हैं। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण, द्वितीय खंड ४२। ४९-५८)
  • हे ब्राह्मणों! गाय के खुर से उत्पन्न धूलि समस्त पापों को नष्ट कर देने वाली है। यह धूलि चाहे तीर्थ की हो चाहे निकृष्ट देशों की, यह सब प्रकार की मङ्गलकारिणी, पवित्र करने वाली और दुख दरिद्रता रूपी अलक्ष्मी को नष्ट करने वाली है। गायों के निवास से पृथ्वी भी शुद्ध हो जाती है। जहाँ गायें बैठती हैं, वह स्थान, वह घर सर्वथा पवित्र हो जाता है। वहाँ कोई दोष नहीं रहता। उनके श्वास की हवा देवताओं के लिये नीराज़न के समान है। गायों का स्पर्श बड़ा पुण्यदायक है और इससे समस्त दु:स्वप्न, पाप आदि नष्ट हो जाते हैं। गायों के गर्दन और मस्तक के बीच साक्षात् भगवती गंगा का निवास है। गायें सर्वदेवमयी और सर्वतीर्थमयी हैं। उनके रोएँ भी बड़े ही पवित्र और पुण्यदायक हैं। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण, भगवान् हंस ब्राह्मणों से)
  • ब्राह्मणों! गायों के शरीर को खुजलाने से या उनके शरीर के कीटाणुओं को दूर करने से मनुष्य अपने समस्त पापों को धो डालता है। गायों को गोग्रास दान करने से महान् पुण्य की प्राप्ति होती है। गायों को चराकर उन्हें जलाशय तक घुमाकर जल पिलाने से मनुष्य अनन्त वर्षों तक स्वर्ग में निवास करता है। गायों के प्रचार के लिये गोचर भूमि की व्यवस्था कर मनुष्य नि:संदेह अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है। गायों के लिये गोशाला का निर्माण कर मनुष्य पूरे नगर का स्वामी बन जाता है और उन्हें नमक खिलाने से महान सौभाग्य की प्राप्ति होती है। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण, भगवान् हंस ब्राह्मणों से)
  • विपत्ति में, कीचड़ में फंसी हुई, या चोर तथा बाघ आदि के भय से व्याकुल गाय को क्लेश से मुक्त कर मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है। रुग्णावस्था में गायों को औषधि प्रदान करने से स्वयं मनुष्य सभी रोगों से मुक्त हो जाता है। गायों को भय से मुक्त करने पर मनुष्य स्वयं भी सभी भय से मुक्त हो जाता है। चांडाल के हाथ से गाय को खरीद लेने पर गोमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। किसी अन्य के हाथ से गाय को खरीदकर उसका पालन करने से गोपालक को गोमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। गायों की शीत तथा धूप से रक्षा करने पर स्वर्ग की प्राप्ति होती है। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण, भगवान् हंस ब्राह्मणों से)
  • गोमूत्र, गोमय, गोदुग्ध, गोदधि, गोघृत और कुशोदक यह पञ्चगव्य स्नानीय और पेयद्रव्यों में परम पवित्र कहा गया है। ये सब मङ्गलमय पदार्थ भूत, प्रेत, पिशाच, राक्षस आदि से रक्षा करने वाले परममङ्गल तथा कलियुग के दुख-दोषों को नाश करने वाले हैं। गोरोचना भी इसी प्रकार राक्षस, सर्प विष तथा सभी रोगों को नष्ट करने वाली एवं परम धन्य है। जो प्रात:काल उठकर अपना मुख गोघृत पात्र में रखे घी में देखता है, उसकी दुख दरिद्रता सर्वदा के लिये समाप्त हो जाती है और फिर पाप का बोझ नहीं ठहरता। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण, राजनीति एवं धर्मशास्त्र के सम्यक ज्ञाता पुष्कर जी भगवान् परशुराम से)

• गायों, गोकुल, गोमय आदि पर थूकना नहीं चाहिए। (पुष्कर परशुराम संवाद)

• जो गौओं के चलने के मार्ग में या चरागाह में जल की व्यवस्था करता है, वह वरुणलोक को प्राप्त कर वहां दस हजार वर्षों तक विहार करता है। गोचरभूमि को हल आदि से जोतने पर चौदह इन्द्रों तक भीषण नरक की प्राप्ति होती है। हे परशुराम जी! जो गायों के पानी पीते समय विघ्न डालता है, उसे मानना चाहिए कि उसने घोर ब्रह्महत्या की। सिंह, व्याघ्र आदि के भय से डरी हुई गाय की जो रक्षा करता है और कीचड़ में फंसी हुई गाय का उद्धार करता है, वह कल्प पर्यन्त स्वर्गीय भोगों का भोग करता है। गायों को घास प्रदान करने से वह व्यक्ति अगले जन्म में रूपवान हो जाता है और उसे लावण्य तथा महान सौभाग्य की प्राप्ति होती है। (पुष्कर परशुराम संवाद)

• हे परशुराम जी! गायों को बेचना कल्याणकारी नहीं है। गायों का नाम लेने से भी मनुष्य पापों से शुद्ध हो जाता है। गौओं का स्पर्श सभी पापों का नाश करने वाला तथा सभी प्रकार के सौभाग्य एवं मङ्गल का विधायक है। गौओं का दान करने से अनेक कुलों का उद्धार होता है।

मातृकुल, पितृकुल और भार्याकुल में जहां एक भी गो माता निवास करती है वहां रजस्वला और प्रसूति की अपवित्रता भी नहीं आती और पृथ्वी में अस्थि, लोहा होने का, धरती के आकार प्रकार की विषमता का दोष भी नष्ट हो जाता है। गौओं के श्वास-प्रश्वास से घर में महान् शान्ति होती है। सभी शास्त्रों में गौओं के श्वास-प्रश्वास को महानीराजन कहा गया है। हे परशुराम! गौओं को छु देने मात्र से मनुष्यों के सारे पाप क्षीण हो जाते हैं। (पुष्कर परशुराम संवाद)

• जिसको गाय का दूध, दही और घी खाने का सौभाग्य नहीं प्राप्त होता, उसका शरीर मल के समान है। अन्न आदि पाँच रात तक, दूध सात रात तक, दही बीस रात तक और घी एक मास तक शरीर में अपना प्रभाव रखता है। जो लगातार एक मास तक बिना गव्य (गाय के दूध से उत्पन्न पदार्थ) भोजन करता है, उस मनुष्य के भोजन में प्रेतों को भाग मिलता है। इसलिये प्रत्येक युग में सब कार्यों के लिये एकमात्र गौ ही प्रशस्त मानी गयी है। गौ सदा और सब समय धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चारों पुरुषार्थ प्रदान करने वाली है। (पद्मपुराण, ब्रह्माजी और नारद मुनि संवाद)

• गायों से उत्पन्न दूध, दही, घी, गोबर, मूत्र और गोरोचना ये छ: अंग (गोषडङ्ग) अत्यन्त पवित्र हैं और प्राणियों के सभी पापों को नष्ट कर उन्हें शुद्ध करने वाले हैं। श्रीसम्पन्न बिल्व वृक्ष गौओं के गोबर से ही उत्पन्न हुआ है। यह भगवान् शिवजी को अत्यन्त प्रिय है। चूँकि उस वृक्ष में पद्महस्ता भगवती लक्ष्मी साक्षात् निवास करती हैं, इसलिये इसे श्रीवृक्ष भी कहा गया है। बाद में नीलकमल एवं रक्तकमल के बीज भी गोबर से ही उत्पन्न हुए थे। गौओं के मस्तक से उत्पन्न परम पवित्र गोरोचना सभी अभीष्टों की सिद्धि करने वाली तथा परम मङ्गलदायिनी है।

अत्यन्त सुगन्धित गुग्गुल नामक पदार्थ गौओं के मूत्र से ही उत्पन्न हुआ है। यह देखने से भी कल्याण करता है। यह गुग्गुल सभी देवताओं का आहार है, विशेष रूप से भगवान् शंकर का प्रिय आहार है। संसार के सभी मङ्गलप्रद बीज एवं सुन्दर से सुन्दर आहार तथा मिष्टान्न आदि सब के सब गाय के दूध से ही बनाये जाते हैं। सभी प्रकार की मङ्गल कामनाओं को सिद्ध करने के लिये गाय का दही लोकप्रिय है। देवताओं को तृप्त करने वाला अमृत नामक पदार्थ गाय के घी से ही उत्पन्न हुआ है। (भविष्यपुराण, उत्तरपर्व, अ.६९, भगवान् श्रीकृष्ण युधिष्ठीर संवाद)

• गायों को खुजलाना तथा उन्हें स्नान कराना भी गोदान के समान फल वाला होता है। जो भय से दुखी (भयग्रस्त) एक गाय की रक्षा करता है, उसे सौ गोदान का फल प्राप्त होता है। पृथ्वी में समुद्र से लेकर जितने भी बड़े तीर्थ-सरिता-सरोवर आदि हैं, वे सब मिलकर भी गौ के सींग के जल से स्नान करने के षोडशांश के तुल्य भी नहीं होते। (बृहत्पराशर स्मृति, अध्याय ५)

• राम-वनवास के समय भरत १४ वर्ष तक इसी कारण स्वस्थ रहकर आध्यात्मिक उन्नति करते रहे, क्योंकि वे अन्न के साथ गोमूत्र का सेवन करते थे।

गोमूत्रयावकं श्रुत्वा भ्रातरं वल्कलाम्बरम्।। (श्रीमद्भागवत ९ । १० । ३४)

• गोमाता का दर्शन एवं उन्हें नमस्कार करके उनकी परिक्रमा करें। ऐसा करने से सातों द्वीपों सहित भूमण्डल की प्रदक्षिणा हो जाती है। गौएँ समस्त प्राणियों की माताएँ एवं सारे सुख देने वाली हैं। वृद्धि की आकांक्षा करने वाले मनुष्य को नित्य गो माताओं की प्रदक्षिणा करनी चाहिए।

• जिस व्यक्ति के पास श्राद्ध के लिये कुछ भी न हो, वह यदि पितरों का ध्यान करके गो माता को श्रद्धापूर्वक घास खिला दे तो उसे श्राद्ध का फल मिल जाता है। (निर्णयसिंधु)

• गौ माताएँ समस्त प्राणियों की माता हैं और सारे सुखों को देने वाली हैं, इसलिये कल्याण चाहने वाले मनुष्य सदा गोओं की प्रदक्षिणा करें। गायों को लात न मारे। गायों के बीच से होकर न निकले। मङ्गल की आधारभूत गो-देवियों की सदा पूजा करें। (महा, अनु ६९ । ७-८)

• जब गायें चर रही हों या एकांत में बैठी हों, तब उन्हें तंग न करें। प्यास से पीड़ित होकर जब भी क्रोध से अपने स्वामी की ओर देखती है तो उसका बंधु-बांधव सहित नाश हो जाता है। राजाओं को चाहिए कि गोपालन और गो-रक्षण करें। उतनी ही संख्या में गायें रखें, जितनी का अच्छी तरह भरण-पोषण हो सके। गाय कभी भी भूख से पीड़ित न रहे, इस बात पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।

• जिसके घर में गाय भूख से व्याकुल होकर रोती है, वह निश्चय ही नरक में जाता है। जो पुरुष गायों के घर में सर्दी न पहुँचने का और जल के बर्तन को शुद्ध जल से भर रखने का प्रबन्ध कर देता है, वह ब्रह्मलोक में आनंद भोग करता है।

• जो मनुष्य सिंह, बाघ अथवा और किसी भय से डरी हुई, कीचड़ में धंसी हुई या जल में डूबती हुई गाय को बचाता है, वह एक कल्प तक स्वर्ग-सुख का भोग करता है। गाय की रक्षा, पूजा और पालन अपनी सगी माता के समान करना चाहिए। जो मनुष्य गायों को ताड़ना देता है, उसे रौरव नरक की प्राप्ति होती है। (हेभाद्रि)

• गोबर और गोमूत्र से अलक्ष्मी का नाश होता है, इसलिये उनसे कभी घृणा न करें। जिसके घर में प्यासी गाय बंधी रहती है, रजस्वला कन्या अविवाहित रहती है और देवता बिना पूजन के रहते हैं, उसके पूर्वकृत सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं। गायें जब इच्छानुसार चरती होती हैं, उस समय जो मनुष्य उन्हें रोकता है, उसके पूर्व पितृगण पतनोन्मुख होकर कांप उठते हैं। जो मनुष्य मूर्खतावश गायों को लाठी से मारते हैं, उनको बिना हाथ के होकर यमपुरी में जाना पड़ता है। (पद्मपुराण, पाताल .अ १८)

• गाय को यथायोग्य नमक खिलाने से पवित्र लोक की प्राप्ति होती है और जो अपने भोजन से पहले गाय को घास चारा खिलाकर तृप्त करता है, उसे सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। (आदित्यपुराण)

• अपने माता-पिता की भांति श्रद्धापूर्वक गायों का पालन करना चाहिए। हलचल, दुर्दिन और विप्लव के अवसर पर गायों को घास और शीतल जल मिलता रहे, इस बात का प्रबन्ध करते रहना चाहिए। (ब्रह्मपुराण)

गोमाता को दर्शन एवं उन्हें नमस्कार करके उनकी परिक्रमा करें। ऐसा करने से सातों द्वीपों सहित भूमंडल की प्रदक्षिणा हो जाती है। गाएँ समस्त प्राणियों की माताएं एवं सारे सुख देने वाली हैं। वृद्धि की आकांक्षा करने वाले मनुष्य को नित्य गोमाताओं की प्रदक्षिणा करनी चाहिए।

जिस व्यक्ति के पास श्राद्ध के लिए कुछ भी न हो, वह यही पितरों का ध्यान करके गोमाता को श्रद्धापूर्वक घास खिला दे, तो उसको श्राद्ध का फल मिल जाता है। (निर्णयसिंधु)

महर्षि वसिष्ठ जी ने अनेक प्रकार से गोमाता की महिमा तथा उनके दान आदि की महिमा बताते हुए मनुष्यों के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपदेश तथा एक मर्यादा स्थापित करते हुए कहा –

“नाकीर्तयित्वा गा: सुप्यात् तासां संस्मृत्य चोत्पतेत्। सायंप्रातर्नमस्येच्च गास्तत: पुष्टिमाप्नुयात्।। गाश्च संकीर्तयेन्नित्यं नावमन्येेत तास्तथा। अनिष्ट स्वप्नमालक्ष्य गां नर: सम्प्रकीर्तयेत्।।” (महाभारत, अनु ७८। १६, १८)

अर्थात् ‘गौओं का नामकीर्तन किये बिना न सोये। उनका स्मरण करके ही उठे और सवेरे-शाम उन्हें नमस्कार करें। इससे मनुष्य को बल और पुष्टि प्राप्त होती है। प्रतिदिन गायों का जाम लें, उनका कभी अपमान न करें। यदि बुरे स्वप्न दिखाए तो मनुष्य गोमाता का नाम लें।

इसी प्रकार वे आगे कहते हैं कि जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक रात-दिन निम्न मन्त्र का बराबर कीर्तन करता है, वह सम अथवा विषम किसी भी स्थिति में भय से सर्वथा मुक्त हो जाता है और सर्वदेवमयी गोमाता का कृपा पात्र बन जाता है।

मंत्र इस प्रकार है – “गा वै पश्याम्यहं नित्यं जाब: पश्यन्तु मां सदा। गावोsस्माकं वयं तासां यतो गावस्ततो वयम्।।” (महाभारत, अनु ७८। २४)

अर्थात् मैं सदा गौओं का दर्शन करूँ और गौओं मुझपर कृपा दृष्टि करें। गौओं हमारी हैं और हम गौओं के हैं। जहाँ गौओं रहें, वहीं हम रहें, क्योंकि गौओं हैं इसी से हम भी हैं

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पितृ दोष दूर करने के उपाय

प्रातः सूर्य नमस्कार करें एवं सूर्यदेव को तांबे के लोटे से जल का अर्घ्य दें। ।

पूर्णिमा को चांदी के लोटे से दूध का अर्घ्य चंद्र देव को दें, व्रत भी करें।

बुजुर्गों या वरिष्ठों के चरण छू कर आशीर्वाद लें।

‘पितृ दोष शांति’ यंत्र को अपने पूजन स्थल पर प्राण प्रतिष्ठा द्वारा स्थापित कर, प्रतिदिन इसके स्तोत्र एवं मंत्र का जप करें।

पितृ गायत्री मंत्र द्वारा सवा लाख मंत्रों का अनुष्ठान अर्थात् जप, हवन, तर्पण आदि संकल्प लेकर विधि विधान सहित करायें।

अमावस्या का व्रत करें तथा ब्राह्मण भोज, दान आदि कराने से पितृ शांति मिलती है।

अपने घर में पितरों के लिये एक स्थान अवश्य बनायें तथा प्रत्येक शुभ कार्य के समय अपने पित्तरों को स्मरण करें। उनके स्थान पर दीपक जलाकर, भोग लगावें। ऐसा प्रत्येक त्योहार (उत्सव/पर्व) तथा पूर्वजों की मृत्यु तिथि के दिन करें। उपरोक्त पूजा स्थल घर की दक्षिण दिशा की तरफ करें तथा वहां पूर्वजों की फोटो-तस्वीर लगायें।

दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके कभी न सोयें।

अमावस्या को विभिन्न वस्तुओं जैसे – सफेद वस्त्र, मूली, रेवड़ी, दही व दक्षिणा आदि का दान करें।

प्रत्येक अमावस्या को श्री सत्यनारायण भगवान की कथा करायें और श्रवण करें।

विष्णु मंत्रों का जाप करें तथा श्रीमद् भागवत गीता का पाठ करें। विशेषकर ये श्राद्ध पक्ष में करायें।

एकादशी व्रत तथा उद्यापन करें।

पितरों के नाम से मंदिर, धर्मस्थल, विद्यालय, धर्मशाला, चिकित्सालय तथा निःशुल्क सेवा संस्थान आदि बनायें।

श्राद्ध-पक्ष में गंगाजी के किनारे पितरों की शांति एवं हवन-यज्ञ करायें।

पिंडदान करायें। ‘गया’ में जाकर पिंडदान करवाने से पितरों को तुरंत शांति मिलती हैं। अर्थात जो पुत्र ‘गया’ में जाकर पिंडदान करता हैं, उसी पुत्र से पिता अपने को पुत्रवान समझता हैं और गया में पिंड देकर पुत्र पितृण से मुक्त हो जाता है।

सर्वश्राप व पितृ दोष मुक्ति के लिये नारायण बली का पाठ, यज्ञ तथा नागबली करायें। पवित्र तीर्थ स्थानों में पिंडदान करें।

कनागत (श्राद्ध पक्ष) में पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन योग्य विद्वान ब्राह्मण से पितृदोष शांति करायें। इस दिन व्रत/उपवास करें तथा ब्राह्मण भोज करायें।
घर में हवन, यज्ञ आदि भी करायें। इसके अलावा, पितरों के लिए जल तर्पण करें।

श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों की पुण्यतिथि अनुसार ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, फल, वस्तु आदि दक्षिणा सहित दान करें। परिवार में होने वाले प्रत्येक शुभ एवं धार्मिक, मांगलिक आयोजनों में पूर्वजों को याद करें तथा क्षमतानुसार भोजन, वस्त्र आदि का दान करें।

सरसों के तेल का दीपक जलाकर, प्रतिदिन सर्पसूक्त एवं नवनाग स्तोत्र का पाठ करें।

सूर्य एवं चंद्र ग्रहण के समय/ दिन सात प्रकार के अनाज से तुला दान करें।

शिवलिंग पर प्रतिदिन दूध चढ़ायें। बिल्वपत्र सहित पंचोपचार पूजा करे।

”ऊँ नमः शिवाय” या महामृत्युंजय मंत्र का रुद्राक्ष माला से जप करें।

भगवान शिव की अधिक से अधिक पूजा करें। वर्ष में एक बार श्रावण माह व इसके सोमवार, महाशिवरात्रि पर रूद्राभिषेक करायें।

शत्रु नाश के लिये सोमवारी अमावस्या को सरसों के तेल से रूद्राभिषेक करायें। यदि यह सोमवारी अमावस्या श्रावण माह में आये तो ”सोने पर सुहागा” होगा।

नागपंचमी का व्रत करें तथा इस दिन सर्पपूजा करायें। नाग प्रतिमा की अंगूठी धारण करें।

प्रत्येक माह पंचमी तिथि (शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की) को चांदी के नाग-नागिन के जोड़े को बांधकर शिवलिंग पर चढ़ायें।

कालसर्प योग की शांति यंत्र को प्राण-प्रतिष्ठा द्वारा स्थापित कर प्रतिदिन सरसों के तेल के दीपक के साथ मंत्र – ”ऊँ नवकुल नागाय विद्महे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प प्रचोदयात् – ”की एक रुद्राक्ष माला जप प्रतिदिन करें।

घर एवं कार्यालय, दुकान पर मोर पंख लगावें।

घर में पूजा स्थल पर पारद शिवलिंग को चांदी या तांबे के पंचमुखी नाग पर प्राण प्रतिष्ठा द्वारा स्थापित कर प्रतिदिन पूजा करें।

ताजी मूली का दान करें। कोयले, बहते जल में प्रवाहित करें। महामृत्युंजय मंत्र का संकल्प लेकर सवा लाख मंत्रों का अनुष्ठान करायें। प्रातः पक्षियों को जौ के दाने खिलायें। जल पिलायें। इसके अलावा उड़द एवं बाजरा भी खिला सकते हैं।

पानी वाला नारियल हर शनिवार प्रातः या सायं बहते जल में प्रवाहित करें।

शिव उपासना एवं रुद्र सूक्त से अभिमंत्रित जल से स्नान करें। यदि संभव हो तो राहु एवं केतु के मंत्रों का क्रमशः 72000 एवं 68000 जप संकल्प लेकर करायें।

सरस्वती माता एवं गणेश भगवान की पूजा करें।

प्रत्येक सोमवार को शिव जी का अभिषेक दही से मंत्र – ”ऊँ हर-हर महादेव” जप के साथ करें।

प्रत्येक पुष्य नक्षत्र को शिवजी एवं गणेशजी पर दूध एवं जल चढ़ावें। रुद्र का जप एवं अभिषेक करें। भांग व बिल्वपत्र चढ़ायें।

गणेशजी को लड्डू का प्रसाद, दूर्वा का लाल पुष्प चढ़ायें।

सरस्वती माता को नीले पुष्प चढ़ायें। गोमेद एवं लहसुनिया लग्नानुसार, यदि सूट करे तो धारण करे।

कुलदेवता/देवी की प्रतिदिन पूजा करे। नाग योनि में पड़े पितरो के उद्धार तथा अपने हित के लिये नागपंचमी के दिन चांदी के नाग की पूजा करे।

हिजड़ों को साल में कम से कम एक बार नये वस्त्र, फल, मिठाई, सुगन्धित सौंदर्य प्रसाधन सामग्री एवं दक्षिणा आदि का सामर्थ्यानुसार दान करें।

यदि दांपत्य जीवन में बाधा आ रही है तो अपने जीवन साथी के साथ नियमित रूप से अर्थात् लगातार 7 शुक्रवार किसी भी देवी के मंदिर में 7 परिक्रमा लगाकर पान के पत्ते पर मिश्री एवं मक्खन का प्रसाद रखें। तथा साथ ही पति एवं पत्नी दोनों ही अलग-अलग सफेद फूलों की माला चढ़ायें तथा सफेद पुष्प चरणों में चढ़ायें।

अष्ट मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

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महादेव का वरदान

गज और असुर के संयोग से एक असुर का जन्म हुआ. उसका मुख गज जैसा होने के कारण उसे गजासुर कहा जाने लगा.
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गजासुर शिवजी का बड़ा भक्त था और शिवजी के बिना अपनी कल्पना ही नहीं करता था. उसकी भक्ति से भोले भंडारी गजासुर पर प्रसन्न हो गए वरदान मांगने को कहा.
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गजासुर ने कहा- प्रभु आपकी आराधना में कीट-पक्षियों द्वारा होने वाले विघ्न से मुक्ति चाहिए. इसलिए मेरे शरीर से हमेशा तेज अग्नि निकलती रहे जिससे कोई पास न आए और मैं निर्विघ्न आपकी अराधना करता रहूं.
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महादेव ने गजासुरो को उसका मनचाहा वरदान दे दिया. गजासुर फिर से शिवजी की साधना में लीन हो गया.
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हजारो साल के घोर तप से शिवजी फिर प्रकट हुए और कहा- तुम्हारे तप से प्रसन्न होकर मैंने मनचाहा वरदान दिया था. मैं फिर से प्रसन्न हूं बोलो अब क्या मांगते हो ?
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गजासुर कुछ इच्छा लेकर तो तप कर नहीं रहा था. उसे तो शिव आराधना के सिवा और कोई काम पसंद नहीं था. लेकिन प्रभु ने कहा कि वरदान मांगो तो वह सोचने लगा.
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गजासुर ने कहा- वैसे तो मैंने कुछ इच्छा रख कर तप नहीं किया लेकिन आप कुछ देना चाहते हैं तो आप कैलाश छोड़कर मेरे उदर (पेट) में ही निवास करें.
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भोले भंडारी गजासुर के पेट में समा गए. माता पार्वती ने उन्हें खोजना शुरू किया लेकिन वह कहीं मिले ही नहीं. उन्होंने विष्णुजी का स्मरण कर शिवजी का पता लगाने को कहा.
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श्रीहरि ने कहा- बहन आप दुखी न हों. भोले भंडारी से कोई कुछ भी मांग ले, दे देते हैं. वरदान स्वरूप वह गजासुर के उदर में वास कर रहे हैं.
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श्रीहरि ने एक लीला की. उन्होंने नंदी बैल को नृत्य का प्रशिक्षण दिया और फिर उसे खूब सजाने के बाद गजासुर के सामने जाकर नाचने को कहा.
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श्रीहरि स्वयं एक ग्वाले के रूप में आए औऱ बांसुरी बजाने लगे. बांसुरी की धुन पर नंदी ने ऐसा सुंदर नृत्य किया कि गजासुर बहुत प्रसन्न हो गया.
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उसने ग्वाला वेशधारी श्रीहरि से कहा- मैं तुम पर प्रसन्न हूं. इतने साल की साधना से मुझमें वैराग्य आ गया था. तुम दोनों ने मेरा मनोरंजन किया है. कोई वरदान मांग लो.
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श्रीहरि ने कहा- आप तो परम शिवभक्त हैं. शिवजी की कृपा से ऐसी कोई चीज नहीं जो आप हमें न दे सकें. किंतु मांगते हुए संकोच होता है कि कहीं आप मना न कर दें.
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श्रीहरि की तारीफ से गजासुर स्वयं को ईश्वर तुल्य ही समझने लगा था. उसने कहा- तुम मुझे साक्षात शिव समझ सकते हो. मेरे लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं. तुम्हें मनचाहा वरदान देने का वचन देता हूं.
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श्रीहरि ने फिर कहा- आप अपने वचन से पीछे तो न हटेंगे. गजासुर ने धर्म को साक्षी रखकर हामी भरी तो श्रीहरि ने उससे शिवजी को अपने उदर से मुक्त करने का वरदान मांगा.
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गजासुर वचनबद्ध था. वह समझ गया कि उसके पेट में बसे शिवजी का रहस्य जानने वाला यह रहस्य यह कोई साधारण ग्वाला नहीं हैं, जरूर स्वयं भगवान विष्णु आए हैं.
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उसने शिवजी को मुक्त किया और शिवजी से एक आखिरी वरदान मांगा. उसने कहा- प्रभु आपको उदर में लेने के पीछे किसी का अहित करने की मंशा नहीं थी.
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मैं तो बस इतना चाहता था कि आपके साथ मुझे भी स्मरण किया जाए. शरीर से आपका त्याग करने के बाद जीवन का कोई मोल नहीं रहा.
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इसलिए प्रभु मुझे वरदान दीजिए कि मेरे शरीर का कोई अंश हमेशा आपके साथ पूजित हो. शिवजी ने उसे वह वरदान दे दिया.
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श्रीहरि ने कहा- गजासुर तुम्हारी शिव भक्ति अद्भुत है. शिव आराधना में लगे रहो. समय आने पर तुम्हें ऐसा सम्मान मिलेगा जिसकी तुमने कल्पना भी नहीं की होगी.
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जब गणेशजी का शीश धड़ से अलग हुआ तो गजासुर के शीश को ही श्रीहरि काट लाए और गणपति के धड़ से जोड़कर जीवित किया था. इस तरह वह शिवजी के प्रिय पुत्र के रूप में प्रथम आराध्य हो गया।

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अति सुन्दर शिक्षा

रेल सफ़र में भीख़ माँगने के दौरान एक भिख़ारी को एक सूट बूट पहने सेठ जी उसे दिखे। उसने सोचा कि यह व्यक्ति बहुत अमीर लगता है, इससे भीख़ माँगने पर यह मुझे जरूर अच्छे पैसे देगा। वह उस सेठ से भीख़ माँगने लगा।

भिख़ारी को देखकर उस सेठ ने कहा, “तुम हमेशा मांगते ही हो, क्या कभी किसी को कुछ देते भी हो ?”

भिख़ारी बोला, “साहब मैं तो भिख़ारी हूँ, हमेशा लोगों से मांगता ही रहता हूँ, मेरी इतनी औकात कहाँ कि किसी को कुछ दे सकूँ ?”

सेठ:- जब किसी को कुछ दे नहीं सकते तो तुम्हें मांगने का भी कोई हक़ नहीं है। मैं एक व्यापारी हूँ और लेन-देन में ही विश्वास करता हूँ, अगर तुम्हारे पास मुझे कुछ देने को हो तभी मैं तुम्हे बदले में कुछ दे सकता हूँ।

तभी वह स्टेशन आ गया जहाँ पर उस सेठ को उतरना था, वह ट्रेन से उतरा और चला गया।

इधर भिख़ारी सेठ की कही गई बात के बारे में सोचने लगा। सेठ के द्वारा कही गयीं बात उस भिख़ारी के दिल में उतर गई। वह सोचने लगा कि शायद मुझे भीख में अधिक पैसा इसीलिए नहीं मिलता क्योकि मैं उसके बदले में किसी को कुछ दे नहीं पाता हूँ। लेकिन मैं तो भिखारी हूँ, किसी को कुछ देने लायक भी नहीं हूँ।लेकिन कब तक मैं लोगों को बिना कुछ दिए केवल मांगता ही रहूँगा।

बहुत सोचने के बाद भिख़ारी ने निर्णय किया कि जो भी व्यक्ति उसे भीख देगा तो उसके बदले मे वह भी उस व्यक्ति को कुछ जरूर देगा।
लेकिन अब उसके दिमाग में यह प्रश्न चल रहा था कि वह खुद भिख़ारी है तो भीख के बदले में वह दूसरों को क्या दे सकता है ?

इस बात को सोचते हुए दिनभर गुजरा लेकिन उसे अपने प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिला।

दुसरे दिन जब वह स्टेशन के पास बैठा हुआ था तभी उसकी नजर कुछ फूलों पर पड़ी जो स्टेशन के आस-पास के पौधों पर खिल रहे थे, उसने सोचा, क्यों न मैं लोगों को भिख़ के बदले कुछ फूल दे दिया करूँ। उसको अपना यह विचार अच्छा लगा और उसने वहां से कुछ फूल तोड़ लिए।

वह ट्रेन में भीख मांगने पहुंचा। जब भी कोई उसे भीख देता तो उसके बदले में वह भीख देने वाले को कुछ फूल दे देता। उन फूलों को लोग खुश होकर अपने पास रख लेते थे। अब भिख़ारी रोज फूल तोड़ता और भीख के बदले में उन फूलों को लोगों में बांट देता था।

कुछ ही दिनों में उसने महसूस किया कि अब उसे बहुत अधिक लोग भीख देने लगे हैं। वह स्टेशन के पास के सभी फूलों को तोड़ लाता था। जब तक उसके पास फूल रहते थे तब तक उसे बहुत से लोग भीख देते थे। लेकिन जब फूल बांटते बांटते ख़त्म हो जाते तो उसे भीख भी नहीं मिलती थी,अब रोज ऐसा ही चलता रहा था।

एक दिन जब वह भीख मांग रहा था तो उसने देखा कि वही सेठ ट्रेन में बैठे है जिसकी वजह से उसे भीख के बदले फूल देने की प्रेरणा मिली थी।

वह तुरंत उस व्यक्ति के पास पहुंच गया और भीख मांगते हुए बोला, आज मेरे पास आपको देने के लिए कुछ फूल हैं, आप मुझे भीख दीजिये बदले में मैं आपको कुछ फूल दूंगा।

शेठ ने उसे भीख के रूप में कुछ पैसे दे दिए और भिख़ारी ने कुछ फूल उसे दे दिए। उस सेठ को यह बात बहुत पसंद आयी।

सेठ:- वाह क्या बात है..? आज तुम भी मेरी तरह एक व्यापारी बन गए हो, इतना कहकर फूल लेकर वह सेठ स्टेशन पर उतर गया।

लेकिन उस सेठ द्वारा कही गई बात एक बार फिर से उस भिख़ारी के दिल में उतर गई। वह बार-बार उस सेठ के द्वारा कही गई बात के बारे में सोचने लगा और बहुत खुश होने लगा। उसकी आँखे अब चमकने लगीं, उसे लगने लगा कि अब उसके हाथ सफलता की वह 🔑चाबी लग गई है जिसके द्वारा वह अपने जीवन को बदल सकता है।

वह तुरंत ट्रेन से नीचे उतरा और उत्साहित होकर बहुत तेज आवाज में ऊपर आसमान की ओर देखकर बोला, “मैं भिखारी नहीं हूँ, मैं तो एक व्यापारी हूँ..

मैं भी उस सेठ जैसा बन सकता हूँ.. मैं भी अमीर बन सकता हूँ !

लोगों ने उसे देखा तो सोचा कि शायद यह भिख़ारी पागल हो गया है, अगले दिन से वह भिख़ारी उस स्टेशन पर फिर कभी नहीं दिखा।

एक वर्ष बाद इसी स्टेशन पर दो व्यक्ति सूट बूट पहने हुए यात्रा कर रहे थे। दोनों ने एक दूसरे को देखा तो उनमे से एक ने दूसरे से हाथ मिलाया और कहा, “क्या आपने मुझे पहचाना ?”

सेठ:- “नहीं तो ! शायद हम लोग पहली बार मिल रहे हैं।

भिखारी:- सेठ जी.. आप याद किजीए, हम पहली बार नहीं बल्कि तीसरी बार मिल रहे हैं।

सेठ:- मुझे याद नहीं आ रहा, वैसे हम पहले दो बार कब मिले थे ?

अब पहला व्यक्ति मुस्कुराया और बोला
:- हम पहले भी दो बार इसी ट्रेन में मिले थे, मैं वही भिख़ारी हूँ जिसको आपने पहली मुलाकात में बताया कि मुझे जीवन में क्या करना चाहिए और दूसरी मुलाकात में बताया कि मैं वास्तव में कौन हूँ।

सेठ:- ओह..! याद आया। तुम वही भिखारी हो जिसे मैंने एक बार भीख देने से मना कर दिया था और दूसरी बार मैंने तुमसे कुछ फूल खरीदे थे लेकिन आज तुम सूट बूट पहने कहाँ जा रहे हो और आजकल क्या कर रहे हो ?

:- सेठ जी… मैं वही भिख़ारी हूँ। लेकिन आज मैं फूलों का एक बहुत बड़ा व्यापारी हूँ और इसी व्यापार के काम से दूसरे शहर जा रहा हूँ।

आपने मुझे पहली मुलाकात में प्रकृति का नियम बताया था… जिसके अनुसार हमें तभी कुछ मिलता है, जब हम कुछ देते हैं। लेन देन का यह नियम वास्तव में काम करता है, मैंने यह बहुत अच्छी तरह महसूस किया है, लेकिन मैं खुद को हमेशा भिख़ारी ही समझता रहा, इससे ऊपर उठकर मैंने कभी सोचा ही नहीं था और जब आपसे मेरी दूसरी मुलाकात हुई तब आपने मुझे बताया कि मैं एक व्यापारी बन चुका हूँ। अब मैं समझ चुका था कि मैं वास्तव में एक भिखारी नहीं बल्कि व्यापारी बन चुका हूँ।

मैंने समझ लिया था कि लोग मुझे इतनी भीख क्यों दे रहे हैं क्योंकि वह मुझे भीख नहीं दे रहे थे बल्कि उन फूलों का मूल्य चुका रहे थे। सभी लोग मेरे फूल खरीद रहे थे क्योकि इससे सस्ते फूल उन्हें कहाँ मिलते।

मैं लोगों की नजरों में एक छोटा व्यापारी था लेकिन मैं अपनी नजरों में एक भिख़ारी ही था। आपके बताने पर मुझे समझ आ गया कि मैं एक छोटा व्यापारी हूँ। मैंने ट्रेन में फूल बांटने से जो पैसे इकट्ठे किये थे, उनसे बहुत से फूल खरीदे और फूलों का व्यापारी बन गया।

यहाँ के लोगों को फूल बहुत पसंद हैं और उनकी इसी पसंद ने मुझे आज फूलों का एक बहुत बड़ा व्यापारी बना दिया।

स्टेशन आने पर दोनो साथ उतरे और अपने-अपने व्यापार की बात करते हुए आगे बढ़ गए।

इस कहानी से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। कहानी में सेठ जी ‘ लो’ और ‘दो’ के नियम को बहुत अच्छी तरह जानता था, दुनिया के सभी बड़े व्यापारी पूँजीपती इसी नियमो का पालन करके ही बड़े व्यापारी बने हैं।

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भगवती सरस्वती की वन्दना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना । या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥

भावार्थ :
जो कुन्द के फूल, चन्द्रमा, बर्फ और हार के समान श्वेत हैं, जो शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ उत्तम वीणा से सुशोभित हैं, जो श्वेत कमलासन पर बैठती हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देव जिनकी सदा स्तुति करते हैं और जो सब प्रकार की जड़ता हर लेती हैं, वे भगवती सरस्वती मेरा पालन करें ।

शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे । सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् ॥

भावार्थ :
शरत्काल में उत्पन्न कमल के समान मुखवाली और सब मनोरथों को देनेवाली शारदा सब सम्पत्तियों के साथ मेरे मुख में सदा निवास करें ।

सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम् । देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जना: ॥

भावार्थ :
वाणी की अधिष्ठात्री उन देवी सरस्वती को प्रणाम करता हूँ, जिनकी कृपा से मनुष्य देवता बन जाता है ।

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं । वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् । हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां वन्दे ताम् परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥

भावार्थ :
जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ ।

पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्न: सरस्वती । प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या ॥

भावार्थ :
बुद्धिरूपी सोने के लिए कसौटी के समान सरस्वती जी, जो केवल वचन से ही विद्धान् और मूर्खों की परीक्षा कर देती है, हमलोगों का पालन करें ।

सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने । विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोऽस्तु ते ॥ भावार्थ :

भावार्थ :
हे महाभाग्यवती ज्ञानरूपा कमल के समान विशाल नेत्र वाली, ज्ञानदात्री सरस्वती ! मुझको विद्या दो, मैं आपको प्रणाम करता हूँ ।

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चौघड़िया

दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।

चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।

शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥

रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।

अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥

अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।

उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।

शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।

लाभ में व्यापार करें ।

रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।

काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।

अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।

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शक्ति का बिखराव

एक बार कबूतरों का झुण्ड, बहेलिया के बनाये जाल में फंस गया सारे कबूतरों ने मिलकर फैसला किया और जाल सहित उड़ गये “एकता की शक्ति” की ये कहानी आपने यहाँ तक पढ़ी है इसके आगे क्या हुआ वो आज प्रस्तुत है:

बहेलिया उड़. रहे जाल के पीछे पीछे भाग रहा था .एक सज्जन मिलेऔर पूछा क्यों बहेलिये तुझे पता नही की “एकता में शक्ति “होती है तो फिर क्यों अब पीछा कर रहा है ?

बहेलिया बोला “आप को शायद पता नही की शक्तियों का दंभ खतरनाक होता है जहां जितनी ज्यादा शक्ति होती है उसके बिखरने के अवसर भी उतने ज्यादा होते है”.

सज्जन कुछ समझे नही .बहेलिया बोला आप भी मेरे साथ आइये .

सज्जन भी उसके साथ हो लिए.

उड़ते उड़ते कबूतरों ने उतरने के बारे में सोचा …

एक नौजवान कबूतर जिसकी कोई राजनीतिक विचारधारा नहीं थी ने कहा किसी खेत में उतरा जाये … वहां इस जाल को कटवाएँगे और दाने भी खायेंगे.

एक समाजवादी टाइप के कबूतर ने तुरंत विरोध किया की गरीब किसानो का हक़ हमने बहुत मारा .
अब और नही !!

एक दलित कबूतर ने कहा ,
जहाँ भी उतरे पहले मुझे दाना देना और जाल से पहले मैं निकलूंगा
क्योकि इस जाल को उड़ाने में सबसे ज्यादा मेहनत मैंने की थी .

दल के सबसे बुजुर्ग कबूतर ने कहा ,
मै सबसे बड़ा हूँ और इस जाल को उड़ाने का प्लान और नेतृत्व मेरा था
अत: मेरी बात सबको माननी पड़ेगी

एक तिलक वाले कबूतर ने कहा
किसी मंदिर पर उतरा जाए.
बन्शीवाले भगवन की कृपा से खाने को भी मिलेगा और जाल भी कट जायेंगे.

अंत में सभी कबूतर
एक दुसरे को धमकी देने लगे कि
मैंने उड़ना बंद किया तो कोई नहीं उड़ नही पायेगा
क्योकि सिर्फ मेरे दम पर ही ये जाल उड़ रहा है
और सभी ने धीरे धीरे करके उड़ना बंद कर दिया .

परिणाम क्या हुआ कि
अंत में वो सभी धरती पर आ गये और बहेलिया ने आकर उनको जाल सहित पकड़ लिया.

सज्जन गहरी सोच में पड गए .

बहेलिया बोला
क्या सोच रहे है महाराज !!

सज्जन बोले “मै ये सोच रहा हूँ की ऐसी ही गलती तो हम सब भी इस समाज में रहते हुए कर रहे है .

बहेलिया ने पूछा ,कैसे ?

सज्जन बोले , हर व्यक्ति शुरू में समाज सेवा करने और समाज में अच्छा बदलाव लाने की चाह रखते हुए काम शुरू करता है पर जब उसे ऐसा लगने लगता है कि उससे ही ये समाज चल रहा है अत: सभी को उसके हिसाब से चलना चाहिए.तब समस्या की शुरुआत होती है, क्योकि जब लोग उस के तरीके से नहीं चलते तो उस व्यक्ति की अपनी समाज सेवा तो जरूर बंद हो जाती है, यद्यपि समाज तब भी चलता रहा था और बाद में भी चलता रहता ह।

पर हाँ इस कारण जो उस व्यक्ति ने जो काम और दायित्व लिया था वो जरूर अधूरा रह जाता है ।
जैसा इन कबूतरों के दल के साथ हुआ

क्योकि जाल उड़ाने के लिए हर कबूतर के प्रयास जरूरी थे और सिर्फ किसी एक कबूतर से जाल नही उड़ सकता था.

इसलिए यदि अन्य लोग भी ऐसी नकारात्मक सोच रखेंगे और अपने प्रयास बंद कर देंगे तो समाज में भी उतनी ही गिरावट आएगी, क्योकि यदि हम जिस समाज में रहते है और उससे अपेक्षा रखते और उसमे अच्छा बदलाव देखना चाहते है, तो हमें अपने हिस्से के प्रयास को कभी भी बंद नहीं करना चाहिए और अपना काम करते रहना चाहिए।

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पाँच वस्तु जो अपवित्र होते हुए भी पवित्र है

उच्छिष्टं शिवनिर्माल्यं
वमनं शवकर्पटम्।
काकविष्टा ते पञ्चैते
पवित्राति मनोहरा॥

1. उच्छिष्ट — गाय का दूध ।
गाय का दूध पहले उसका बछड़ा पीकर उच्छिष्ट करता है। फिर भी वह पवित्र ओर शिव पर चढ़ता हे।

2. शिव निर्माल्यं –
गंगा का जल
गंगा जी का अवतरण स्वर्ग से सीधा शिव जी के मस्तक पर हुआ। नियमानुसार शिव जी पर चढ़ायी हुई हर चीज़ निर्माल्य है पर गंगाजल पवित्र है।

3. वमनम्—
उल्टी — शहद..
मधुमख्खी जब फूलों का रस लेकर अपने छत्ते पर आती है, तब वो अपने मुख से उस रस की शहद के रूप में उल्टी करती है, जो पवित्र कार्यों मे उपयोग किया जाता है।

4. शव कर्पटम्— रेशमी वस्त्र
धार्मिक कार्यों को सम्पादित करने के लिये पवित्रता की आवश्यकता रहती है, रेशमी वस्त्र को पवित्र माना गया है, पर रेशम को बनाने के लिये रेशमी कीडे़ को उबलते पानी में डाला जाता है ओर उसकी मौत हो जाती है उसके बाद रेशम मिलता है तो हुआ शव कर्पट फिर भी पवित्र है,

5. काक विष्टा— कौए का मल
कौवा पीपल पेड़ों के फल खाता है ओर उन पेड़ों के बीज अपनी विष्टा में इधर उधर छोड़ देता है जिसमें से पेड़ों की उत्पत्ति होती है ,आपने देखा होगा की कही भी पीपल के पेड़ उगते नही हे बल्कि पीपल काक विष्टा से उगता है, फिर भी पवित्र है।

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