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जानिए आपका कौनसा चक्र बिगड़ा है और उससे जुड़ी समस्या

जानिए आपका कौनसा चक्र बिगड़ा है और उससे जुड़ी समस्या

(1) मूलाधार चक्र

गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला ‘आधार चक्र’ है। आधार चक्र का ही एक दूसरा नाम मूलाधार चक्र भी है। इसके बिगड़ने से वीरता, धन, समृद्धि, आत्मबल, शारीरिक बल, रोजगार, कर्मशीलता, घाटा, असफलता, रक्त एवं हड्डी के रोग, कमर व पीठ में दर्द, आत्महत्या के विचार, डिप्रेशन, कैंसर आदि समस्याएं होती हैं।

(2) स्वाधिष्ठान चक्र

इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र लिंग मूल में है। इसकी छ: पंखुरियाँ हैं। इसके बिगड़ने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, नपुंसकता, बाँझपन, मंदबुद्धिता, मूत्राशय और गर्भाशय के रोग, आध्यात्मिक सिद्धि में बाधा, वैभव के आनंद में कमी आदि समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

(3) मणिपूर चक्र

नाभि में दस दल वाला मणिपूर चक्र है। इसके बिगड़ने पर तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह, अधूरी सफलता, गुस्सा, चिड़चिड़ापन, नशाखोरी, तनाव, शंकालुप्रवृत्ति, कई तरह की बीमारियाँ, दवाओं का काम न करना, अज्ञात भय, चेहरे का तेज गायब होना, धोखाधड़ी, डिप्रेशन, उग्रता, हिंसा, दुश्मनी, अपयश, अपमान, आलोचना, बदले की भावना, एसिडिटी, ब्लडप्रेशर, शुगर, थायराइड, सिर एवं शरीर के दर्द, किडनी, लीवर, कोलेस्ट्रॉल, खून के रोग आदि समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इसके बिगड़ने का मतलब है जिंदगी का बिगड़ जाना।

(4) अनाहत चक्र

हृदय स्थान में अनाहत चक्र है। यह बारह पंखुरियों वाला है। इसके बिगड़ने पर लिप्सा, कपट, तोड़-फोड़, कुतर्क, चिंता, नफरत, प्रेम में असफलता, प्यार में धोखा, अकेलापन, अपमान, मोह, दम्भ, अपनेपन में कमी, मन में उदासी, जीवन में वीरानी, सबकुछ होते हुए भी बेचैनी, छाती में दर्द, साँस लेने में दिक्कत, सुख का अभाव, हृदय व फेफड़े के रोग, कोलेस्ट्रॉल में बढ़ोतरी आदि समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

(5) विशुद्धख्य चक्र

कंठ में विशुद्धख्य चक्र है। यह सरस्वती का स्थान है। यह सोलह पंखुरियों वाला है। यहाँ सोलह कलाएँ, सोलह विभूतियाँ विद्यमान हैं। इसके बिगड़ने पर वाणी दोष, अभिव्यक्ति में कमी, गले, नाक, कान, दांत, थायराइड, आत्मजागरण में बाधा आती है।

(6) आज्ञाचक्र

भ्रूमध्य में आज्ञा चक्र है, यहाँ ‘ओं’, ‘उद्गीय’, ‘हूं’, ‘फट’, ‘विषद’, ‘स्वधा’, ‘स्वहा’, सप्त स्वर आदि का निवास है। इसके बिगड़ने पर एकाग्रता, जीने की चाह, निर्णय की शक्ति, मानसिक शक्ति, सफलता की राह आदि समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इसके बिगड़ने का मतलब है सबकुछ बिगड़ जाने का खतरा।

नमः शिवाय

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ताक़त

बहुत पहले आपने एक चिड़िया की कहानी सुनी होगी…

जिसका एक दाना पेड़ के कंदरे में कहीं फंस गया था…

चिड़िया ने पेड़ से बहुत अनुरोध किया उस दाने को दे देने के लिए लेकिन पेड़ उस छोटी सी चिड़िया की बात भला कहां सुनने वाला था…

हार कर चिड़िया बढ़ई के पास गई और उसने उससे अनुरोध किया कि तुम उस पेड़ को काट दो, क्योंकि वो उसका दाना नहीं दे रहा…

भला एक दाने के लिए बढ़ई पेड़ कहां काटने वाला था…

फिर चिड़िया राजा के पास गई और उसने राजा से कहा कि तुम बढ़ई को सजा दो क्योंकि बढ़ई पेड़ नहीं काट रहा और पेड़ दाना नहीं दे रहा…

राजा ने उस नन्हीं चिड़िया को डांट कर भगा दिया कि कहां एक दाने के लिए वो उस तक पहुंच गई है।
चिड़िया हार नहीं मानने वाली थी…

वो महावत के पास गई कि अगली बार राजा जब हाथी की पीठ पर बैठेगा तो तुम उसे गिरा देना, क्योंकि राजा बढ़ई को सजा नहीं देता…
बढ़ई पेड़ नहीं काटता…
पेड़ उसका दाना नहीं देता…
महावत ने भी चिड़िया को डपट कर भगा दिया…

चिड़िया फिर हाथी के पास गई और उसने अपने अनुरोध को दुहराया कि अगली बार जब महावत तुम्हारी पीठ पर बैठे तो तुम उसे गिरा देना क्योंकि वो राजा को गिराने को तैयार नहीं…

राजा बढ़ई को सजा देने को तैयार नहीं…
बढ़ई पेड़ काटने को तैयार नहीं…
पेड़ दाना देने को राजी नहीं।
हाथी बिगड़ गया…
उसने कहा, ऐ छोटी चिड़िया..
तू इतनी सी बात के लिए मुझे महावत और राजा को गिराने की बात सोच भी कैसे रही है?

चिड़िया आखिर में चींटी के पास गई और वही अनुरोध दोहराकर कहा कि तुम हाथी की सूंढ़ में घुस जाओ…
चींटी ने चिड़िया से कहा, “चल भाग यहां से…बड़ी आई हाथी की सूंढ़ में घुसने को बोलने वाली।

अब तक अनुरोध की मुद्रा में रही चिड़िया ने रौद्र रूप धारण कर लिया…उसने कहा कि “मैं चाहे पेड़, बढ़ई, राजा, महावत, और हाथी का कुछ न बिगाड़ पाऊं…पर तुझे तो अपनी चोंच में डाल कर खा ही सकती हूँ…

चींटी डर गई…भाग कर वो हाथी के पास गई…हाथी भागता हुआ महावत के पास पहुंचा…महावत राजा के पास कि हुजूर चिड़िया का काम कर दीजिए नहीं तो मैं आपको गिरा दूंगा….राजा ने फौरन बढ़ई को बुलाया…उससे कहा कि पेड़ काट दो नहीं तो सजा दूंगा…बढ़ई पेड़ के पास पहुंचा…बढ़ई को देखते ही पेड़ बिलबिला उठा कि मुझे मत काटो…मैं चिड़िया को दाना लौटा दूंगा…

आपको अपनी ताकत को पहचानना होगा…आपको पहचानना होगा कि भले आप छोटी सी चिड़िया की तरह होंगे, लेकिन ताकत की कड़ियां कहीं न कहीं आपसे होकर गुजरती होंगी… हर सेर को सवा सेर मिल सकता है, बशर्ते आप अपनी लड़ाई से घबराएं नहीं…आप अगर किसी काम के पीछे पड़ जाएंगे तो वो काम होकर रहेगा… यकीन कीजिए…हर ताकत के आगे एक और ताकत होती है और अंत में सबसे ताकतवर आप होते हैं…

हिम्मत, लगन और पक्का इरादा ही हमारी ताकत की बुनियाद है…!!

बड़े सपनों को पाने वाले हर व्यक्ति को सफलता और असफलता के कई पड़ावों से गुजरना पड़ता है…

पहले लोग मजाक उड़ाएंगे…

फिर लोग साथ छोड़ेंगे…

फिर विरोध करेंगे…

फिर वही लोग कहेंगे हम तो पहले से ही जानते थे कि एक न एक दिन तुम कुछ बड़ा करोगे!

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प्रत्यक्ष नव दुर्गाऐं

नव दुर्गाओं की नव रात्रियों में हम हर साल पूजा करते हैं। कहते हैं कि वे अनेकों ऋद्धि-सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। सुख सुविधाओं की उपलब्धि के लिए, उनकी कृपा और सहायता करने के लिए विविध विधि साधन पूजन किये जाते हैं। जिस प्रकार देवलोक में निवासिनी नवदुर्गाऐं हैं उसी प्रकार भू-लोक में निवास करने वाली, हमारे अत्यन्त समीप-शरीर और मस्तिष्क में ही रहने वाली—नौ प्रत्यक्ष देवियाँ भी हैं और उनकी साधना का प्रत्यक्ष परिणाम भी मिलता है।

देव-लोक वासिनी देवियों के प्रसन्न होने और न होने की बात संदिग्ध भी हो सकती है पर शरीर लोक में रहने वाली इन देवियों की साधना का श्रम कभी भी व्यर्थ नहीं जा सकता। यदि थोड़ा भी प्रयत्न इनकी साधना के लिए किया जाय तो उसका भी समुचित लाभ मिल जाता है।

हमारे मनःक्षेत्र में विचरण करने वाली इन नौ देवियों के नाम हैं:—

  • (1) आकाँक्षा
  • (2) विचारणा
  • (3) भावना
  • (4) श्रद्धा
  • (5) निष्ठा
  • (6) प्रवृत्ति
  • (7) क्षमता
  • (8) क्रिया
  • (9) मर्यादा।

इनका संतुलित विकास करके मनुष्य अष्ट-सिद्धियों और नव-सिद्धियों का स्वामी बन सकता है। संसार के प्रत्येक प्रगतिशील मनुष्य को जाने या अनजाने में इनकी साधना करनी ही पड़ी है और इन्हीं के अनुग्रह से उन्हें उन्नति के उच्च शिखर पर चढ़ने का अवसर मिला है।

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तीन सवाल

एक बार एक राजा था। एक दिन वह बड़ा प्रसन्न मुद्रा में था सो अपने वज़ीर के पास गया और कहा कि तुम्हारी जिंदगी की सबसे बड़ी ख़्वाहिश क्या हैं? वज़ीर शरमा गया और नज़रे नीचे करके बैठ गया। राजा ने कहा तुम घबराओ मत तुम अपनी सबसे बड़ी ख़्वाहिश बताओ। वज़ीर ने राजा से कहा हुज़ूर आप इतनी बड़ी सल्लतनत के मालिक हैं और जब भी मैं यह देखता हूँ तो मेरे दिल में ये चाह जाग्रत होती हैं कि काश मेरे पास इस सल्लतनत का यदि दसवां हिस्सा होता तो मैं इस दुनिया का बड़ा खुशनसीब इंसान होता।

ये कह कर वज़ीर खामोश हो गया। राजा ने कहा कि यदि मैं तुम्हें अपनी आधी जायदाद दे दूँ तो। वज़ीर घबरा गया और नज़रे ऊपर करके राजा से कहा कि हुज़ूर ये कैसे मुनकिन हैं? मैं इतना खुशनसीब इंसान कैसे हो सकता हूँ। राजा ने दरबार में आधी सल्लतनत के कागज तैयार करने का फरमान जारी करवाया और साथ के साथ वज़ीर की गर्दन धड़ से अलग करने का ऐलान भी करवाया। ये सुनकर वज़ीर बहुत घबरा गया। राजा ने वज़ीर की आँखों में आँखे डालकर कहा तुम्हारे पास तीस दिन हैं, इन तीस दिनों में तुम्हें मेरे तीन सवालों के जवाब पेश करना हैं। यदि तुम कामयाब हो जाओगे तो मेरी आधी सल्लतनत तुम्हारी हो जायेगी और यदि तुम मेरे तीन सवालों के जवाब तीस दिन के भीतर न दे पाये तो मेरे सिपाही तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर देंगे।

वज़ीर ओर ज्यादा परेशान हो गया। राजा ने कहा मेरे तीन सवाल लिख लो, वज़ीर ने लिखना शुरु किया। राजा ने कहा….

  • 1) इंसान की जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई क्या हैं?
  • 2) इंसान की जिंदगी का सबसे बड़ा धोखा क्या हैं?
  • 3) इंसान की जिंदगी की सबसे बड़ी कमजोरी क्या हैं?

राजा ने तीनों सवाल समाप्त करके कहा तुम्हारा समय अब शुरु होता हैं। वज़ीर अपने तीन सवालों वाला कागज लेकर दरबार से रवाना हुआ और हर संतो-महात्माओं, साधु-फक़ीरों के पास जाकर उन सवालों के जवाब पूछने लगा। मगर किसी के भी जवाबों से वह संतुष्ट न हुआ। धीरे-धीरे दिन गुजरते हुए जा रहे थे। अब उसके दिन-रात उन तीन सवालों को लिए हुए ही गुजर रहे थे। हर एक-एक गाँवों में जाने से उसके पहने लिबास फट चुके थे और जूते के तलवे भी फटने के कारण उसके पैर में छाले पड़ गये थे।

अंत में शर्त का एक दिन शेष रहा, वजीर हार चुका था तथा वह जानता था कि कल दरबार में उसका सिर धड़ से कलाम कर दिया जायेगा और ये सोचता-सोचता वह एक छोटे से गांव में जा पहुँचा। वहाँ एक छोटी सी कुटिया में एक फक़ीर अपनी मौज में बैठा हुआ था और उसका एक कुत्ता दूध के प्याले में रखा दूध बड़े ही चाव से जीभ से जोर-जोर से आवाज़ करके पी रहा था।

वज़ीर ने झोपड़ी के अंदर झाँका तो देखा कि फक़ीर अपनी मौज में बैठकर सुखी रोटी पानी में भिगोकर खा रहा था। जब फक़ीर की नजर वज़ीर की फटी हालत पर पड़ी तो वज़ीर से कहा कि जनाबेआली आप सही जगह पहुँच गये हैं और मैं आपके तीनों सवालों के जवाब भी दे सकता हूँ। वज़ीर हैरान होकर पूछने लगा आपने कैसे अंदाजा लगाया कि मैं कौन हूँ और मेरे तीन सवाल हैं? फक़ीर ने सूखी रोटी कटोरे में रखी और अपना बिस्तरा उठा कर खड़ा हुआ और वज़ीर से कहा साहिब अब आप समझ जायेंगे।

वजीर ने झुक कर देखा कि उसका लिबास हू ब हू वैसा ही था जैसा राजा उस को भेंट दिया करता था। फक़ीर ने वज़ीर से कहा मैं भी उस दरबार का वज़ीर हुआ करता था और राजा से शर्त लगा कर गलती कर बैठा। अब इसका नतीजा तुम्हारे सामने हैं। फक़ीर फिर से बैठा और सूखी रोटी पानी में डूबो कर खाने लगा। वज़ीर निराश मन से फक़ीर से पूछने लगा क्या आप भी राजा के सवालों के जवाब नहीं दे पाये थे। फक़ीर ने कहा कि नहीं मेरा केस तुम से अलग था।

मैने राजा के सवालों के जवाब भी दिये और आधी सल्लतनत के कागज को वहीं फाड़कर इस कुटिया में मेरे कुत्ते के साथ रहने लगा। वज़ीर ओर ज्यादा हैरान हो गया और पूछा क्या तुम मेरे सवाल के जवाब दे सकते हो? फक़ीर ने हाँ में सिर हिलाया और कहा मैं आपके दो सवाल के जवाब मुफ्त में दूँगा मगर तीसरे सवाल के जवाब में आपको उसकी कीमत अदा करनी पड़ेगी।

अब वजीर ने सोचा यदि बादशाह के सवालों के जवाब न दिये तो राजा मेरे सिर को धड़ से अलग करा देगा इसलिए उसने बिना कुछ सोचे समझे फक़ीर की शर्त मान ली। फक़ीर ने कहा तुम्हारे पहले सवाल का जवाब हैं “मौत”।

इंसान के जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई मौत हैं। मौत अटल हैं और ये अमीर-गरीब, राजा-फक़ीर किसी को नहीं देखती हैं। मौत निश्चित हैं। अब तुम्हारे दूसरे सवाल का जवाब हैं “जिंदगी”। इंसान की जिंदगी का सबसे बड़ा धोखा हैं जिंदगी। इंसान जिंदगी में झूठ-फरेब और बुरे कर्मं करके इसके धोखे में आ जाता हैं,अब आगे फक़ीर चुप हो गया। वज़ीर ने फक़ीर के वायदे के मुताबिक शर्त पूछी, तो फक़ीर ने वज़ीर से कहा कि तुम्हें मेरे कुत्ते के प्याले का झूठा दूध पीना होगा।

वज़ीर असमंजस में पड़ गया और कुत्ते के प्याले का झूठा दूध पीने से इंकार कर दिया। मगर फिर राजा द्वारा रखी शर्त के अनुसार सिर धड़ से अलग करने का सोचकर बिना कुछ सोचे समझे कुत्ते के प्याले का झूठा दूध बिना रुके एक ही सांस में पी गया।फक़ीर ने जवाब दिया कि यही तुम्हारे तीसरे सवाल का जवाब हैं। “गरज” इंसान की जिंदगी की सबसे बड़ी कमजोरी हैं “गरज”। गरज इंसान को न चाहते हुए भी वह काम कराती हैं जो इंसान कभी नहीं करना चाहता हैं। जैसे तुम!

तुम भी अपनी मौत से बचने के लिए और तीसरे सवाल का जवाब जानने के लिए एक कुत्ते के प्याले का झूठा दूध पी गये। गरज इंसान से सब कुछ करा देती हैं। मगर अब वज़ीर बहुत प्रसन्न था क्योंकि उसके तीनों सवालों के जवाब उसे मिल गये थे। वज़ीर ने फक़ीर को शुक्रिया अदा किया और महल की ओर रवाना हो गया। जैसे ही वज़ीर महल के दरवाजे पर पहुँचा उसे एक हिचकी आई और उसने वहीं अपना शरीर त्याग दिया। उसको मौत ने अपने आगोश में ले लिया।

अब हम भी विचार करें कि क्या कहीं हम भी तो जिंदगी की सच्चाई को भूले तो नहीं बैठे हैं? जी हाँ जिंदगी की सच्चाई ये मौत। ये मौत न छोटा देखती हैं न बड़ा, न सेठ साहूकार देखती हैं। ये तो न जाने कब किस को अपने आगोश में ले ले कुछ कहा नहीं जा सकता। क्योंकि ये अटल सत्य हैं और ये हर एक को आनी हैं। क्या हम जिंदगी के धोखे में तो नहीं आ पड़े हैं? हाँ जी बिल्कुल! हम धोखे में ही आये हुए हैं। हम जिंदगी को ऐसे जीते हैं जैसे ये जिंदगी कभी खत्म न होगी। हम जिंदगी में हर रोज नये-नये कर्मों का निर्माण करते हैं। इन कर्मों में कुछ अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे। हम जिंदगी के धोखे में ऐसे फंसे हुए हैं कभी भूल से भी मालिक का शुकर नहीं करते हैं, कभी सच्चे दिल से मालिक का भजन सिमरन नहीं करते हैं। बस जिंदगी को काटे जा रहे हैं। क्या हम भी तो जिंदगी की कमजोरी के शिकार तो नहीं बने बैठे हैं? जी हाँ, हम सभी गरज के तले दबे हुए हैं। कोई अपने परिवार को पालने की गरज में झूठ-फरेब की राह पर चलने लगता हैं तो कोई चोरी और लूटपाट। हम सभी गरज की दलदल में फंसे हुए हैं।

हमें भी चाहिए कि जिंदगी की सच्चाई मौत को ध्यान में रखते हुए, जिंदगी की झूठ में न फंसे। क्योंकि जितना हम जिंदगी की सच्चाई से मुख मोड़ेगें उतना ही हम धोखे का शिकार होते जायेंगे। अत: जिससे हम जीवन भर जिंदगी की कमजोरी गरज के दलदल में ही फंसे रहे और बाहर ही न निकल सकें। इसलिए समय रहते हुए मालिक का भजन सिमरन करते रहे और मालिक को याद करते हुए उनका शुक्रिया अदा करते रहें। क्योंकि न जाने कब मालिक का फरमान आ जाए।

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जीवन में सफलता की कुंजी है “सिद्ध कुंजिका”

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की महिमा

दुर्गा सप्तशती में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक अत्यंत चमत्कारिक और तीव्र प्रभाव दिखाने वाला स्तोत्र है। जो लोग पूरी दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते वे केवल कुंजिका स्तोत्र का पाठ करेंगे तो उससे भी संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का फल मिल जाता है। भगवान शंकर कहते हैं कि सिद्धकुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले को देवी कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास और यहां तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है। केवल कुंजिका के पाठ मात्र से दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जाता है।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ की विधि

कुंजिका स्तोत्र का पाठ वैसे तो किसी भी माह, दिन में किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि में यह अधिक प्रभावी होता है। नवरात्रि के प्रथम दिन से नवमी तक प्रतिदिन इसका पाठ किया जाता है। साधक प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर अपने पूजा स्थान को साफ करके लाल रंग के आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। सामान्य पूजन करें।

अपनी सुविधानुसार तेल या घी का दीपक लगाएं और देवी को हलवे या मिष्ठान्न् का नैवेद्य लगाएं। इसके बाद अपने दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प, एक रुपए का सिक्का रखकर नवरात्रि के नौ दिन कुंजिका स्तोत्र का पाठ संयम-नियम से करने का संकल्प लें। यह जल भूमि पर छोड़कर पाठ प्रारंभ करें। यह संकल्प केवल पहले दिन लेना है। इसके बाद प्रतिदिन उसी समय पर पाठ करें।

कुंजिका स्तोत्र के लाभ

  1. धन लाभ: जिन लोगों को सदा धन का अभाव रहता हो, लगातार आर्थिक नुकसान हो रहा हो, बेवजह के कार्यों में धन खर्च हो रहा हो, उन्हें कुंजिका स्तोत्र के पाठ से लाभ होता है। धन प्राप्ति के नए मार्ग खुलते हैं।
  2. शत्रु मुक्ति: शत्रुओं से छुटकारा पाने और मुकदमों में जीत के लिए यह स्तोत्र किसी चमत्कार की तरह काम करता है।
  3. रोग मुक्ति: दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ जीवन से रोगों का समूल नाश कर देते हैं।
  4. कर्ज मुक्ति: यदि किसी व्यक्ति पर कर्ज चढ़ता जा रहा है, तो कुंजिका स्तोत्र का नियमित पाठ जल्द कर्ज मुक्ति करवाता है।
  5. सुखद दांपत्य जीवन: दांपत्य जीवन में सुख-शांति के लिए कुंजिका स्तोत्र का नियमित पाठ किया जाना चाहिए।

इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक

  1. देवी दुर्गा की आराधना, साधना और सिद्धि के लिए तन, मन की पवित्रता होना अत्यंत आवश्यक है।
  2. साधना काल या नवरात्रि में इंद्रिय संयम रखना जरूरी है।
  3. कुंजिका स्तोत्र का पाठ बुरी कामनाओं, किसी के मारण, उच्चाटन और किसी का बुरा करने के लिए नहीं करना चाहिए।
  4. साधना काल में मांस, मदिरा का सेवन न करें। मैथुन के बारे में विचार भी मन में न लाएं।

सिद्ध कुंजिका मंत्र

  1. संक्षिप्त मंत्र: “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।”
  2. संपूर्ण मंत्र: “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”

कैसे करें

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को अत्यंत सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए। प्रतिदिन की पूजा में इसको शामिल कर सकते हैं। लेकिन यदि अनुष्ठान के रूप में या किसी इच्छाप्राप्ति के लिए कर रहे हैं तो आपको कुछ सावधानी रखनी होंगी।

  1. संकल्प: सिद्ध कुंजिका पढ़ने से पहले हाथ में अक्षत, पुष्प और जल लेकर संकल्प करें। मन ही मन देवी मां को अपनी इच्छा कहें।
  2. जितने पाठ एक साथ (1, 2, 3, 5, 7, 11) कर सकें, उसका संकल्प करें। अनुष्ठान के दौरान माला समान रखें।
  3. सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के अनुष्ठान के दौरान जमीन पर शयन करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  4. प्रतिदिन अनार का भोग लगाएं। लाल पुष्प देवी भगवती को अर्पित करें।
  5. सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में दशों महाविद्या, नौ देवियों की आराधना है।

सिद्धकुंजिका स्तोत्र के पाठ का समय

  1. रात्रि 9 बजे करें तो अत्युत्तम।
  2. रात को 9 से 11.30 बजे तक का समय रखें।

आसन

लाल आसन पर बैठकर पाठ करें

दीपक

घी का दीपक दायें तरफ और सरसो के तेल का दीपक बाएं तरफ रखें।

किस इच्छा के लिए कितने पाठ करने हैं

  1. विद्या प्राप्ति के लिए: पांच पाठ (अक्षत लेकर अपने ऊपर से तीन बार घुमाकर किताबों में रख दें)
  2. यश-कीर्ति के लिए: पांच पाठ (देवी को चढ़ाया हुआ लाल पुष्प लेकर सेफ आदि में रख लें)
  3. धन प्राप्ति के लिए: नौ पाठ (सफेद तिल से अग्यारी करें)
  4. मुकदमे से मुक्ति के लिए: सात पाठ (पाठ के बाद एक नींबू काट दें। दो ही हिस्से हों ध्यान रखें। इनको बाहर अलग-अलग दिशा में फेंक दें)
  5. ऋण मुक्ति के लिए: सात पाठ (जौं की 21 आहुतियां देते हुए अग्यारी करें। जिसको पैसा देना हो या जिससे लेना हो, उसका बस ध्यान कर लें)
  6. घर की सुख-शांति के लिए: तीन पाठ (मीठा पान देवी को अर्पण करें)
  7. स्वास्थ्य के लिए: तीन पाठ (देवी को नींबू चढ़ाएं और फिर उसका प्रयोग कर लें)
  8. शत्रु से रक्षा के लिए: 3, 7 या 11 पाठ (लगातार पाठ करने से मुक्ति मिलेगी)
  9. रोजगार के लिए: 3, 5, 7 और 11 (ऐच्छिक) (एक सुपारी देवी को चढ़ाकर अपने पास रख लें)
  10. सर्वबाधा शांति: तीन पाठ (लोंग के तीन जोड़े अग्यारी पर चढ़ाएं या देवी जी के आगे तीन जोड़े लोंग के रखकर फिर उठा लें और खाने या चाय में प्रयोग कर लें)
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श्री बजरंग बाण का पाठ

दोहा :

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

चौपाई :

जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥

जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥

बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥

अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥

अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥

जय हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥

बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥

इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥

जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥

बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥

जय जय जय धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥

उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥

ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥

यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥

यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥

दोहा :

उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥

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श्री हनुमान चालीसा

दोहा :

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई :

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।

रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।

कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। कांधे मूंज जनेऊ साजै।।

संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बन्दन।।

विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना।।

जुग सहस्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।

दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।

संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।

और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।

साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।

राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम-जनम के दुख बिसरावै।।

अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।

दोहा :

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

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🏹 रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य 🏹

  1. लंका में राम जी = 111 दिन रहे।
  2. लंका में सीता जी = 435 दिन रहीं।
  3. मानस में श्लोक संख्या = 27 है।
  4. मानस में चोपाई संख्या = 4608 है।
  5. मानस में दोहा संख्या = 1074 है।
  6. मानस में सोरठा संख्या = 207 है।
  7. मानस में छन्द संख्या = 86 है।
  8. सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का।
  9. सीता रानी बनीं = 33 वर्ष की उम्र में।
  10. मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी।
  11. पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी।
  12. रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला।
  13. राम रावण युद्ध = 32 दिन चला।
  14. सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ।
  15. नल-नील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं।
  16. त्रिजटा के पिता = विभीषण हैं।
  17. विश्वामित्र राम को ले गए = 10 दिन के लिए।
  18. राम ने रावण को सबसे पहले मारा था = 6 वर्ष की उम्र में।
  19. रावण को जिन्दा किया = सुखेन बेद ने नाभि में अमृत रखकर।

श्री राम के दादा-परदादा का नाम

  1. ब्रह्मा जी से मरीचि हुए।
  2. मरीचि के पुत्र कश्यप हुए।
  3. कश्यप के पुत्र विवस्वान थे।
  4. विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए।
  5. वैवस्वत मनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था, जिन्होंने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की।
  6. इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए।
  7. कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था।
  8. विकुक्षि के पुत्र बाण हुए।
  9. बाण के पुत्र अनरण्य हुए।
  10. अनरण्य से पृथु हुए।
  11. पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ।
  12. त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए।
  13. धुंधुमार के पुत्र युवनाश्व थे।
  14. युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए।
  15. मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ।
  16. सुसन्धि के दो पुत्र हुए – ध्रुवसन्धि और प्रसेनजित।
  17. ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए।
  18. भरत के पुत्र असित हुए।
  19. असित के पुत्र सगर हुए।
  20. सगर के पुत्र का नाम असमंज था।
  21. असमंज के पुत्र अंशुमान हुए।
  22. अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए।
  23. दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए, जिन्होंने गंगा को पृथ्वी पर उतारा।
  24. भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे।
  25. ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, जिनके कारण इस वंश का नाम रघुवंश पड़ा और श्री राम के कुल को रघु कुल कहा गया।
  26. रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए।
  27. प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे।
  28. शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए।
  29. सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था।
  30. अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए।
  31. शीघ्रग के पुत्र मरु थे।
  32. मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे।
  33. प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष थे।
  34. अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था।
  35. नहुष के पुत्र ययाति थे।
  36. ययाति के पुत्र नाभाग थे।
  37. नाभाग के पुत्र अज थे।
  38. अज के पुत्र दशरथ थे।
  39. दशरथ के चार पुत्र – राम, भरत, लक्ष्मण, और शत्रुघ्न थे।

इस प्रकार, ब्रह्मा की 39वीं पीढ़ी में श्री राम का जन्म हुआ।

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इच्छायें और संतुष्टि

एक सिद्ध महात्मा से मिलने पहुंचे एक गरीब दम्पत्ति ने देखा कि कूड़े के ढेर पर सोने का चिराग पड़ा हुआ था।
दम्पत्ति ने महात्मा से पूछा तो महात्मा ने बताया कि यह तीन इच्छायें पूरी करने वाला बेकार चिराग है। यह बहुत खतरनाक भी है, जो इसको उठाकर ले जाता है, वापस यहीं कूड़े में फेंक जाता है।
गरीब दम्पत्ति ने जाते समय वह चिराग उठा लिया और घर पहुंचकर उससे तीन वरदान मांगने बैठ गए।

दम्पत्ति गरीब थे और उन्होंने सबसे पहले दस लाख रुपये मांगकर चिराग को टेस्ट करने की सोची।
जैसे ही उन्होंने रुपये मांगे तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। जाकर खोला तो एक आदमी रुपयों से भरा बैग और एक लिफाफा थमा गया।
लिफाफे में एक पत्र था जिसमें लिखा हुआ था कि मेरी कार से टकराकर आपके पुत्र की मृत्यु हो गई, जिसके पश्चात्ताप स्वरूप ये दस लाख रुपये भेज रहा हूँ। मुझे माफ करियेगा।

अब दम्पत्ति को काटो तो खून नहीं। पत्नी दहाड़े मार कर रोने लगी।
तभी पति को ख्याल आया और उसने चिराग से दूसरी इच्छा बोल दी कि उनका बेटा वापस आ जाए।
थोड़ी देर बाद दरवाजे पर दस्तक हुई और पूरे घर में अजीब सी आवाजें आने लगीं। घर के बल्ब तेजी से जलने बुझने लगे। उनका बेटा प्रेत बनकर वापस आ गया था।

दम्पत्ति ने प्रेत रूप देखा तो बुरी तरह डर गए, और हड़बड़ी में चिराग से तीसरी इच्छा के रूप में प्रेत रूपी पुत्र की मुक्ति मांग ली।
बेटे की मुक्ति के बाद रातों-रात वे आश्रम पहुंचे, चिराग को कूड़े के ढेर पर फेंक कर दुखी मन से वापस लौट आए।

मित्रों, हम सभी अपनी जिंदगी में उस दम्पत्ति की तरह हैं। हमारी इच्छायें बेहिसाब हैं।
जब एक इच्छा पूरी होती है तो दूसरी सताने लगती है, और जब दूसरी पूरी हो जाये तो तीसरी।
इसलिए ईश्वर ने हमें जो भी दिया है, उसमें संतुष्ट रहना चाहिए।

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निंदा की लीद

प्राचीन समय की बात है।

काशीनरेश ने एक बार रात्रि में स्वप्न देखा। स्वप्न में देवदूत ने उनसे कहाः
“नरेश ! तुम बड़े पुण्यात्मा हो। तुम्हारे लिए स्वर्ग में एक आवास बना है और जब चाहो तब तुम उसमें आराम कर सकते हो।”

यह देखकर राजा को अपने पुण्यात्मा होने का गर्व हुआ। गर्व मनुष्य की योग्यता को मार डालता है। राजा को हुआ कि जब स्वर्ग में मेरे लिए आवास की तैयारी है तो अब मुझे क्या चिन्ता?

अज्ञानी जीव को जब संसार की तुच्छ चीजें भी मिल जाती हैं तो वह निरंकुश हो जाता है।

एक बार काशीनरेश जंगल में गया तो खुशनसीबी से वहाँ उसे एक महात्मा का झोंपड़ा दिखा। उसने सोचाः ‘चलो, जरा सुन लें महात्मा के दो वचन।’

महात्मा के पास जाकर उसने पुकारा किन्तु महात्मा तो बैठे थे निर्विकल्प समाधी में। वे क्या जवाब देते? राजा को हुआ किः ‘मैं काशी नरेश ! इतना धर्मात्मा ! ये मेरे राज्य में रहते हैं फिर भी मेरी आवाज तक नहीं सुनते ! इनको कुछ सबक सिखाना चाहिए।

सत्ता और अहंकार आदमी को अंधा बना देते हैं। राजा ने घोड़े की लीद उठाकर बाबा के सिर पर रख दी। संत तो समाधिस्थ थे किन्तु प्रकृति से यह न सहा गया।

थोड़े दिन बाद पुनः वही देवदूत राजा के सपने में दिखा और कहाः
“राजन ! स्वर्ग में तुम्हारे लिए जो आवास बना था, वह तो है किन्तु पूरा लीद से भर गया है। उसमें एक मक्खी तक के लिए जगह नहीं है तो तम उसमें कैसे घुस सकोगे?”

राजा समझ गया किः ‘अरे ! संत का जो अपमान किया था, उसी का यह परिणाम है।’ जिनके चित्त में इच्छा और द्वेष नहीं है उनको आप जैसी चीज देते हो वह अनंतगुनी हो जाती है। आप अगर आदर देते हो तो आपका आदर अनंतगुना हो जाता है। अगर आप उनसे प्रीति करते हो तो आपके हृदय की प्रीति अनंतगुनी हो जाती है। आप उनमें दोष देखते हो या उनसे द्वेष करते हो तो आपके अंदर अनेक दोष आ जाते हैं। जैसे, खेत में आप जो बोते हो वही उगता है। हो सकता है कि खेत में कोई बीज न भी उगे, किन्तु ब्रह्मवेत्ता के खेत में तो सब उग जाता है। तभी नानक देव जी ने कहा हैः

करनी आपो आपणी, के नेड़े के दूर।

अपनी करनी से ही आप अपने भगवान के, महापुरुषों के करीब महसूस करते हो और अपनी ही करनी से आप अपने को उनसे दूर महसूस करते हो।

कभी हम अपने को ईश्वर के नजदीक महसूस करते हैं और कभी दूर महसूस करते हैं क्योंकि हम जब इच्छा और द्वेष के चंगुल में आ जाते हैं तो ईश्वर से दूरी महसूस करते हैं और सात्त्विक भाव में आते हैं तो ईश्वर के नजदीक महसूस करते हैं। किन्तु यदि इच्छा और द्वेष से रहित हो गये तो फिर ईश्वर और हम दो नहीं बचते बल्कि ‘हम न तुम, दफ्तर गुम…’ ऐसी स्थिति आ जाती
है।

उस काशी नरेश ने देवदूत की बात समझ ली कि मैंने महापुरुष का अपमान किया इसलिए स्वर्ग में मेरा जो आवास था, वह लीद से भर गया है।

सुबह उठकर उसने वजीरों से बात कीः “कैसे भी करके वह लीद का भण्डार खाली हो जाये ऐसी युक्ति बताओ।”

चतुर वजीरों ने कहाः “राजन ! एक ही उपाय है। आप ऐसा कुछ प्रचार करवाओ ताकि लोग आपकी निंदा करने लग जायें। लोग जितनी निंदा करेंगे उतनी लीद उनके भाग्य में चली जायेगी। आपका निवास साफ हो जायेगा।”

राजा ने न किये हों ऐसे दुराचरणों का, दुर्व्यवहारों का कुप्रचार राज्य में करवाया और लोग राजा की निंदा करने लगे। कुछ ही दिनों के बाद देवदूत ने स्वप्न में आकर कहाः

“राजन ! तुम्हारा वह करीब-करीब खाली हो गया है। अब एक कोने में थोड़ी सी लीद बच गयी है। वह लीद तुमको ही खानी पड़ेगी।”

राजा ने देवदूत से प्रार्थना कीः “उसको खत्म करने का उपाय बता दीजिए।”

देवदूतः “नगर के और लोग तो तुम्हारे दुराचरणों का प्रचार सुनकर निंदा करने लग गये हैं लेकिन एक लुहार ने तुम्हारी अभी तक निंदा नहीं की क्योंकि वह लुहार सोचता है कि जब ‘जब ईश्वर ने सृष्टि बनाई तो मैं क्यों किसी की निंदा सुनकर द्वेष करूँ और किसी की प्रशंसा
सुनकर इच्छा करूँ? मैं इच्छा-द्वेष नहीं करता। मैं तो मस्त हूँ अपने आप में’ वह है तो लुहार लेकिन है मस्त… इच्छा-द्वेष से बचा हुआ है। वह लुहार अगर तुम्हारी थोड़ी-सी निंदा कर ले तो तुम्हारे महल की एकदम सफाई हो जायेगी।”

यह सुनकर राजा वेश बदल कर लुहार के पास आया और राजा की निंदा करने लगा। तब लुहार ने कहाः

“आप भले राजा की निंदा करो लेकिन मैं आपके चक्कर में आने वाला नहीं हूँ। अब बाकी की बची जो लीद है, वह आपको ही खानी पड़ेगी। मुझे मत खिलाओ।”

तब राजा ने आश्चर्यचकित होकर पूछाः “तुम कैसे जान गये?”
लुहारः “परमात्मा सर्वव्यापक है। वह मेरे हृदय में भी है। ये देवदूत या देवता क्या होते हैं? सबको सत्ता देने वाला अनंत ब्रह्माण्डनायक मेरा आत्मा है। वेश बदलने पर भी आपको मैं जान गया और देवदूत आपको सपना देता है यह भी जान गया। वह लीद आपको ही खानी पड़ेगी।”

जब इच्छा और द्वेष होता है तभी सब उलटा दिखता है। जिसके जीवन में इच्छा-द्वेष नहीं होते उसे सब साफ-साफ दिखता है। जैसे, दर्पण के सामने जो भी रख दो वह साफ-साफ दिखता है वैसे ही इच्छा-द्वेषरहित महापुरुषों का हृदय होता है। श्रीकृष्ण के ये दो ही वचन अगर जीवन में उतर जायें तो काफी हैं।

अज्ञानता को कैसे दूर किया जा सकता है? श्रेष्ठ कर्मों के आचरण से अपने पापों को नष्ट करके मनुष्य द्वन्द्व रूप मोह को दूर कर सकता है एवं प्रभु का भजन दृढ़ता पूर्वक कर सकता है।

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