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भक्त रविदास और कंगन – Bhakt Ravidas and Bracelet

हमेशा की तरह सिमरन करते हुए अपने कार्य में तत्लीन रहने वाले भक्त रविदास जी आज भी अपने जूती गांठने के कार्य में ततलीन थे

अरे, मेरी जूती थोड़ी टूट गई है, इसे गाँठ दो, राह गुजरते एक पथिक ने भगत रविदास जी से थोड़ा दूर खड़े हो कर कहा

आप कहाँ जा रहे हैं श्रीमान? भगत जी ने पथिक से पूछा

मैं माँ गंगा स्नान करने जा रहा हूँ, तुम चमड़े का काम करने वाले क्या जानो गंगा जी के दर्शन और स्नान का महातम,

सत्य कहा श्रीमान, हम मलिन और नीच लोगो के स्पर्श से पावन गंगा भी अपवित्र हो जाएगी, आप भाग्यशाली हैं जो तीर्थ स्नान को जा रहे हैं, भगत जी ने कहा

सही कहा, तीर्थ स्नान और दान का बहुत महातम है,

ये लो अपनी मेहनत की कीमत एक कोड़ी, और मेरी जूती मेरी तरफ फेंको

आप मेरी तरफ कौड़ी को न फेंकिए, ये कौड़ी आप गंगा माँ को गरीब रविदास की भेंट कह कर अर्पित कर देना

पथिक अपने राह चला गया, रविदास पुनः अपने कार्य में लग गए

अपने स्नान ध्यान के बाद जब पथिक गंगा दर्शन कर घर वापिस चलने लगा तो उसे ध्यान आया

अरे उस शुद्र की कौड़ी तो गंगा जी के अर्पण की नही, नाहक उसका भार मेरे सिर पर रह जाता

ऐसा कह कर उसने कौड़ी निकाली और गंगा जी के तट पर खड़ा हो कर कहा

हे माँ गंगा, रविदास की ये भेंट स्वीकार करो

तभी गंगा जी से एक हाथ प्रगट हुआ और आवाज आई

लाओ भगत रविदास जी की भेंट मेरे हाथ पर रख दो

हक्के बक्के से खड़े पथिक ने वो कौड़ी उस हाथ पर रख दी

हैरान पथिक अभी वापिस चलने को था कि पुनः उसे वही स्वर सुनाई दिया

पथिक, ये भेंट मेरी तरफ से भगत रविदास जी को देना

गंगा जी के हाथ में एक रत्न जड़ित कंगन था,

हैरान पथिक वो कंगन ले कर अपने गंतव्य को चलना शुरू किया

उसके मन में ख्याल आया

रविदास को क्या मालूम, कि माँ गंगा ने उसके लिए कोई भेंट दी है,

अगर मैं ये बेशकीमती कंगन यहाँ रानी को भेंट दूँ तो राजा मुझे धन दौलत से मालामाल कर देगा

ऐसा सोच उसने राजदरबार में जा कर वो कंगन रानी को भेंट कर दिया, रानी वो कंगन देख कर बहुत खुश हुई, अभी वो अपने को मिलने वाले इनाम की बात सोच ही रहा था कि रानी ने अपने दूसरे हाथ के लिए भी एक समान दूसरे कंगन की फरमाइश राजा से कर दी

पथिक, हमे इसी तरह का दूसरा कंगन चाहिए, राजा बोला

आप अपने राज जौहरी से ऐसा ही दूसरा कंगन बनवा लें, पथिक बोला

पर इस में जड़े रत्न बहुत दुर्लभ हैं, ये हमारे राजकोष में नहीं हैं,

अगर पथिक इस एक कंगन का निर्माता है तो दूसरा भी बना सकता है, राजजोहरी ने राजा से कहा

पथिक अगर तुम ने हमें दूसरा कंगन ला कर नहीं दिया तो हम तुम्हे मृत्युदण्ड देंगे, राजा गुर्राया

पथिक की आँखों से आंसू बहने लगे

भगत रविदास से किया गया छल उसके प्राण लेने वाला था

पथिक ने सारा सत्य राजा को कह सुनाया और राजा से कहा

केवल एक भगत रविदास जी ही हैं जो गंगा माँ से दूसरा कंगन ले कर राजा को दे सकते हैं

राजा पथिक के साथ भगत रविदास जी के पास आया

भगत जी सदा की तरह सिमरन करते हुए अपने दैनिक कार्य में तत्तलीन थे

पथिक ने दौड़ कर उनके चरण पकड़ लिए और उनसे अपने जीवन रक्षण की प्रार्थना की

भगत रविदास जी ने राजा को निकट बुलाया और पथिक को जीवनदान देने की विनती की

राजा ने जब पथिक के जीवन के बदले में दूसरा कंगन माँगा

तो भगत रविदास जी ने अपनी नीचे बिछाई चटाई को हटा कर राजा से कहा

आओ और अपना दूसरा कंगन पहचान लो

राजा जब निकट गया तो क्या देखता है

भगत जी के निकट जमीन पारदर्शी हो गई है और उस में बेशकीमती रत्न जड़ित असंख्य ही कंगन की धारा अविरल बह रही है

पथिक और राजा भगत रविदास जी के चरणों में गिर गए और उनसे क्षमा याचना की

प्रभु के रंग में रंगे महात्मा लोग, जो अपने दैनिक कार्य करते हुए भी प्रभु का नाम सिमरन करते हैं उन से पवित्र और बड़ा कोई तीर्थ नही,

उन्हें तीर्थ वेद शास्त्र क्या व्यख्यान करेंगे उनका जीवन ही वेद है उनके दर्शन ही तीर्थ है।

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पीपल द्वारा नवग्रह दोष दूर करने के उपाय – Remove Navgraha Dosha

पीपल द्वारा नवग्रह दोष दूर करने के उपाय वैदिक दृष्टिकोण से

भारतीय संस्कृतिमें पीपल देववृक्ष है, इसके सात्विक प्रभाव के स्पर्श से अन्त: चेतना
पुलकित और प्रफुल्लित होती है।स्कन्द पुराणमें वर्णित है कि अश्वत्थ (पीपल) के मूल
में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं
के साथ अच्युत सदैव निवास करते हैं।पीपल भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत:
मूर्तिमान स्वरूप है। भगवानकृष्णकहते हैं- समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूँ।
स्वयं भगवान ने उससे अपनी उपमा देकर पीपल के देवत्व और दिव्यत्व को व्यक्त
किया है। शास्त्रों में वर्णित है कि पीपल की सविधि पूजा-अर्चना करने से सम्पूर्ण देवता
स्वयं ही पूजित हो जाते हैं।पीपल का वृक्ष लगाने वाले की वंश परम्परा कभी विनष्ट
नहीं होती। पीपल की सेवा करने वाले सद्गति प्राप्त करते हैं।

अश्वत्थ सुमहाभागसुभग प्रियदर्शन।
इष्टकामांश्चमेदेहिशत्रुभ्यस्तुपराभवम्॥

प्रत्येक नक्षत्र वाले दिन भी इसका विशिष्ट गुण भिन्नता लिए हुए होता है।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में कुल मिला कर 28 नक्षत्रों कि गणना है, तथा प्रचलित
केवल 27 नक्षत्र है उसी के आधार पर प्रत्येक मनुष्य के जन्म के समय नामकरण होता है।
अर्थात मनुष्य का नाम का प्रथम अक्षर किसी ना किसी नक्षत्र के अनुसार ही होता है।
तथा इन नक्षत्रों के स्वामी भी अलग अलग ग्रह होते है।विभिन्न नक्षत्र एवं उनके स्वामी
निम्नानुसार है यहां नक्षत्रों के स्वामियों के नाम कोष्ठक में है जिससे आपको जनलाभार्थ
ज्ञान वृद्धि हो-:-

(१)अश्विनी(केतु), (१०)मघा(केतु), (१९)मूल(केतु),
(२)भरणी(शुक्र), (११)पूर्व फाल्गुनी(शुक्र), (२०)पूर्वाषाढा(शुक्र),
(३)कृतिका(सूर्य), (१२)उत्तराफाल्गुनी(सूर्य), (२१)उत्तराषाढा(सूर्य),
(४)रोहिणी(चन्द्र), (१३)हस्त(चन्द्र), (२२)श्रवण(चन्द्र),
(५)मृगशिर(मंगल), (१४)चित्रा(मंगल), (२३)धनिष्ठा(मंगल),
(६)आर्द्रा(राहू), (१५)स्वाति(राहू), (२४)शतभिषा(राहू),
(७)पुनर्वसु(वृहस्पति), (१६)विशाखा(वृहस्पति), (२५)पूर्वाभाद्रपद(वृहस्पति),
(८)पुष्य(शनि), (१७)अनुराधा(शनि), (२६)उत्तराभाद्रपद(शनि)
(९)आश्लेषा(बुध), (१८)ज्येष्ठा(बुध), (२७)रेवती(बुध)

ज्योतिष शास्त्र अनुसार प्रत्येक ग्रह 3, 3 नक्षत्रों के स्वामी होते है।
कोई भी व्यक्ति जिस भी नक्षत्र में जन्मा हो वह उसके स्वामी ग्रह से सम्बंधित दिव्य
पीपल के प्रयोगों को करके लाभ प्राप्त कर सकता है।
अपने जन्म नक्षत्र के बारे में अपनी जन्मकुंडली को देखें या अपनी जन्मतिथि और
समय व् जन्म स्थान लिखकर भेजे,या अपने विद्वान ज्योतिषी से संपर्क कर जन्म का
नक्षत्र ज्ञात कर के यह सर्व सिद्ध प्रयोग करके लाभ उठा सकते है।

सूर्य

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जिन नक्षत्रों के स्वामी भगवान सूर्य देव है, उन व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है।
(अ) रविवार के दिन प्रातःकाल पीपल वृक्ष की 5 परिक्रमा करें।
(आ) व्यक्ति का जन्म जिस नक्षत्र में हुआ हो उस दिन (जो कि प्रत्येक माह में अवश्य
आता है) भी पीपल वृक्ष की 5 परिक्रमा अनिवार्य करें।
(इ) पानी में कच्चा दूध मिला कर पीपल पर अर्पण करें।
(ई) रविवार और अपने नक्षत्र वाले दिन 5 पुष्प अवश्य चढ़ाए। साथ ही अपनी कामना
की प्रार्थना भी अवश्य करे तो जीवन की समस्त बाधाए दूर होने लगेंगी।

चन्द्र

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जिन नक्षत्रों के स्वामी भगवान चन्द्र देव है, उन व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है।
(अ) प्रति सोमवार तथा जिस दिन जन्म नक्षत्र हो उस दिन पीपल वृक्ष को सफेद
पुष्प अर्पण करें लेकिन पहले 4 परिक्रमा पीपल की अवश्य करें।
(आ) पीपल वृक्ष की कुछ सुखी टहनियों को स्नान के जल में कुछ समय तक रख
कर फिर उस जल से स्नान करना चाहिए।
(इ) पीपल का एक पत्ता सोमवार को और एक पत्ता जन्म नक्षत्र वाले दिन तोड़ कर
उसे अपने कार्य स्थल पर रखने से सफलता प्राप्त होती है और धन लाभ के मार्ग
प्रशस्त होने लगते है।
(ई) पीपल वृक्ष के नीचे प्रति सोमवार कपूर मिलकर घी का दीपक लगाना चाहिए।

मंगल

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जिन नक्षत्रो के स्वामी मंगल है. उन नक्षत्रों के व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है….
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन और प्रति मंगलवार को एक ताम्बे के लोटे में जल लेकर
पीपल वृक्ष को अर्पित करें।
(आ) लाल रंग के पुष्प प्रति मंगलवार प्रातःकाल पीपल देव को अर्पण करें।
(इ) मंगलवार तथा जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष की 8 परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए।
(ई) पीपल की लाल कोपल को (नवीन लाल पत्ते को) जन्म नक्षत्र के दिन स्नान के
जल में डाल कर उस जल से स्नान करें।
(उ) जन्म नक्षत्र के दिन किसी मार्ग के किनारे १ अथवा 8 पीपल के वृक्ष रोपण करें।
(ऊ) पीपल के वृक्ष के नीचे मंगलवार प्रातः कुछ शक्कर डाले।
(ए) प्रति मंगलवार और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन अलसी के तेल का दीपक पीपल
के वृक्ष के नीचे लगाना चाहिए।

बुध

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जिन नक्षत्रों के स्वामी बुध ग्रह है, उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग
करने चाहिए।
(अ) किसी खेत में जंहा पीपल का वृक्ष हो वहां नक्षत्र वाले दिन जा कर, पीपल के
नीचे स्नान करना चाहिए।
(आ) पीपल के तीन हरे पत्तों को जन्म नक्षत्र वाले दिन और बुधवार को स्नान के
जल में डाल कर उस जल से स्नान करना चाहिए।
(इ) पीपल वृक्ष की प्रति बुधवार और नक्षत्र वाले दिन 6 परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए।
(ई) पीपल वृक्ष के नीचे बुधवार और जन्म, नक्षत्र वाले दिन चमेली के तेल का दीपक
लगाना चाहिए।
(उ) बुधवार को चमेली का थोड़ा सा इत्र पीपल पर अवश्य लगाना चाहिए अत्यंत
लाभ होता है।

वृहस्पति


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जिन नक्षत्रो के स्वामी वृहस्पति है. उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग
करने चाहियें।(अ) पीपल वृक्ष को वृहस्पतिवार के दिन और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन पीले पुष्प
अर्पण करने चाहिए।
(आ) पिसी हल्दी जल में मिलाकर वृहस्पतिवार और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन
पीपल वृक्ष पर अर्पण करें।
(इ) पीपल के वृक्ष के नीचे इसी दिन थोड़ा सा मावा शक्कर मिलाकर डालना या
कोई भी मिठाई पीपल पर अर्पित करें।
(ई) पीपल के पत्ते को स्नान के जल में डालकर उस जल से स्नान करें।
(उ) पीपल के नीचे उपरोक्त दिनों में सरसों के तेल का दीपक जलाएं।

शुक्र

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जिन नक्षत्रो के स्वामी शुक्र है. उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग
करने चाहियें-:-
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष के नीचे बैठ कर स्नान करना।
(आ) जन्म नक्षत्र वाले दिन और शुक्रवार को पीपल पर दूध चढाना।
(इ) प्रत्येक शुक्रवार प्रातः पीपल की 7 परिक्रमा करना।
(ई) पीपल के नीचे जन्म नक्षत्र वाले दिन थोड़ासा कपूर जलाना।
(उ) पीपल पर जन्म नक्षत्र वाले दिन 7 सफेद पुष्प अर्पित करना।
(ऊ) प्रति शुक्रवार पीपल के नीचे आटे की पंजीरी सालना।

शनि

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जिन नक्षत्रों के स्वामी शनि है. उस नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए..
(अ) शनिवार के दिन पीपल पर थोड़ा सा सरसों का तेल चडाना।
(आ) शनिवार के दिन पीपल के नीचे तिल के तेल का दीपक जलाना।
(इ) शनिवार के दिन और जन्म नक्षत्र के दिन पीपल को स्पर्श करते हुए उसकी
एक परिक्रमा करना।
(ई) जन्म नक्षत्र के दिन पीपल की एक कोपल चबाना।
(उ) पीपल वृक्ष के नीचे कोई भी पुष्प अर्पण करना।
(ऊ) पीपल के वृक्ष पर मोलि बंधन।

राहू

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जिन नक्षत्रों के स्वामी राहू है उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए…
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष की 21 परिक्रमा करना।
(आ) शनिवार वाले दिन पीपल पर शहद चडाना।
(इ) पीपल पर लाल पुष्प जन्म नक्षत्र वाले दिन चडाना।
(ई) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल के नीचे गौमूत्र मिले हुए जल से स्नान करना।
(उ) पीपल के नीचे किसी गरीब को मीठा भोजन दान करना।

केतु

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जिन नक्षत्रों के स्वामी केतु है, उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न उपाय
कर अपने जीवन को सुखमय बनाना चाहिए।
(अ) पीपल वृक्ष पर प्रत्येक शनिवार मोतीचूर का एक लड्डू या इमरती चडाना।
(आ) पीपल पर प्रति शनिवार गंगाजल मिश्रित जल अर्पित करना।
(इ) पीपल पर तिल मिश्रित जल जन्म नक्षत्र वाले दिन अर्पित करना।
(ई) पीपल पर प्रत्येक शनिवार सरसों का तेल चडाना।
(उ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल की एक परिक्रमा करना।
(ऊ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल की थोडीसी जटा लाकर उसे धूप दीप दिखा कर
अपने पास सुरक्षित रखना।

अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद में पीपल

के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। पीपल के वृक्ष के नीचे
मंत्र, जप और ध्यान तथा सभी प्रकार के संस्कारों को शुभ माना गया है। श्रीमद्भागवत्
में वर्णित है कि द्वापर युग में परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण इस दिव्य पीपल
वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए। यज्ञ में प्रयुक्त किए जाने वाले ‘उपभृत पात्र’
(दूर्वी, स्त्रुआ आदि) पीपल-काष्ट से ही बनाए जाते हैं। पवित्रता की दृष्टि से यज्ञ में
उपयोग की जाने वाली समिधाएं भी आम या पीपल की ही होती हैं। यज्ञ में अग्नि
स्थापना के लिए ऋषिगण पीपल के काष्ठ और शमी की लकड़ी की रगड़ से अग्नि
प्रज्वलित किया करते थे।ग्रामीण संस्कृति में आज भी लोग पीपल की नयी कोपलों
में निहित जीवनदायी गुणों का सेवन कर उम्र के अंतिम पडाव में भी सेहतमंद बने रहते हैं।

आयु: प्रजांधनंधान्यंसौभाग्यंसर्व संपदं।
देहिदेवि महावृक्षत्वामहंशरणंगत:॥

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तृष्णा – Greed

नीयत में होगी खोट तो भगवान करेंगे चोटः

कुछ धनी किसानों ने मिलकर खेती के लिए एक कुँआ बनवाया. सबकी अपनी-अपनी बारी बंधी थी. कुंआ एक निर्धन किसान के खेतों के पास था लेकिन उसे पानी नहीं मिलता था. धनी किसानों ने खेतों में बीज बोकर सिंचाई शुरू कर दी. निर्धन किसान बीज भी नहीं बो पा रहा था. उसने धनवानों की बड़ी आरजू मिन्नत की लेकिन एक न सुनी गई.

निर्धन बरसात से पहले खेत में बीज भी न बो पाया तो भूखा मर जाएगा. यह सोचकर अमीर किसानों ने उस पर दया की और बीज बोने के लिए एक रात तीन घंटे की सिंचाई का मौका दे दिया. उसे एक रात के लिए ही मौका मिला था. वह रात बेकार न जाए यह सोचकर एक किसान ने मजबूत बैलों का एक जोड़ा भी दे दिया ताकि वह पर्याप्त पानी निकाल ले

निर्धन तो जैसे इस मौके की तलाश में था. उसने सोचा इन लोगों ने उसे बहुत सताया है. आज तीन घंटे में ही इतना पानी निकाल लूंगा कि कुछ बचेगा ही नहीं. इसी नीयत से उसने बैलों को जोता पानी निकालने लगा. गाधी पर बैठा और बैलों को चलाकर पानी निकालने लगा. पानी निकालने का नियम है कि बीच-बीच में हौज और नाली की जांच कर लेनी चाहिए कि पानी खेतों तक जा रहा है या नहीं. लेकिन उसके मन में तो खोट था. उसने सोचा हौज और नाली सब दुरुस्त ही होंगी. बैलों को छोड़कर गया तो वे खड़े हो जाएंगे. उसे तो कुँआ खाली करना था. ताबडतोड़ बैलों परडंडे बरसाता रहा. डंडे के चोट से बैल भागते रहे और पानी निकलता रहा.

तीन घंटे बाद दूसरा किसान पहुंच गया जिसकी पानी निकालने की बारी थी. उसने बैल खोल लिए और अपने खेत देखने चला. वहां पहुंचकर वह छाती पीटकर रोने लगा. खेतों में तो एक बूंद पानी नहीं पहुंचा था. उसने हौज और नाली की तो चिंता ही नहीं की थी. सारा पानी उसके खेत में जाने की बजाय कुँए के पास एक गड़ढ़े में जमा होता रहा.

अंधेरे में वह किसान खुद उस गडढ़े में गिर गया. पीछे-पीछे आते बैल भी उसके ऊपर गिर पड़े. वह चिल्लाया तो दूसरा किसान भागकर आया और उसे किसी तरह निकाला. दूसरे किसान ने कहा- परोपकार के बदले नीयत खराब रखने की यही सजा होती है. तुम कुँआ खाली करना चाहते थे. यह पानी तो रिसकर वापस कुँए में चला जाएगा लेकिन तुम्हें अब कोई फिर कभी न अपने बैल देगा, न ही कुँआ.

तृष्णा यही है. मानव देह बड़ी मुश्किल सेमिलता है. इंद्रियां रूपी बैल मिले हैं हमें अपना जीवन सत्कर्मों से सींचने के लिए लेकिन तृष्णा में फंसा मन सारी बेईमानी पर उतर आता है. परोपकार को भी नहीं समझता ईश्वर से क्या छुपा. वह कर्मों का फल देते हैं लेकिन फल देने से पहले परीक्षा की भी परंपरा है. उपकार के बदले अपकार नहीं बल्कि ऋणी होना चाहिए तभी प्रभु आपको इतना क्षमतावान बनाएंगे कि आप किसीपर उपकार का सुख ले सकें.जो कहते हैं कि लाख जतन से भी प्रभु कृपालु नहीं हो रहे, उन्हें विचारना चाहिए कि कहीं उनके कर्मों में कोई ऐसा दोष तो नहीं जिसकी वह किसान की तरह अनदेखी कर रहे हैं और भक्ति स्वीकर नहीं हो रही।

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कृष्णभक्त मीर माधव – Meer Madhav

बहुत समय पहले की बात हैं मुल्तान ( पंजाब ) का रहने वाले एक ब्राह्मण उत्तर भारत में आकर बस गये
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जिस घर में वह रहता थे । उसकी ऊपरी मंजिल में कोई मुग़ल-दरबारी रहता था।
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प्रातः नित्य ऐसा संयोग बन जाता की जिस समय ब्राह्मण नीचे गीतगोविन्द के पद गाया करते उसी समय मुग़ल ऊपर से उतरकर दरबार को जाया करता था।
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ब्राह्मण के मधुर स्वर तथा गीतगोविन्द की ललित आभा से आकृष्ट होकर वह सीढ़ियों में ही कुछ देर रुककर सुना करता था।
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जब ब्राह्मण को इस बात का पता चला तो उसने उस मुग़ल से पूछा की – “सरकार ! आप इन पदों को सुनते हैं पर कुछ समझ में भी आता है ?
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मुग़ल, समझ में तो एक लफ्ज (अक्षर) भी नही आता पर न जाने क्यों उन्हें सुनकर मेरा दिल गिरफ्त हो जाता है। तबियत होती है की खड़े खड़े इन्हें ही सुनता रहूं ।
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आखिर किस किताब में से आप इन्हें गाया करते है ?
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ब्राह्मण, सरकार ! “गीतगोविन्द” के पद है ये, यदि आप पढ़ना चाहे तो मैं आपको पढ़ा दूंगा।
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इस प्रस्ताब को मुग़ल ने स्वीकार कर लिया और कुछ ही दिन में उन्हें सीखकर स्वयं उन्हें गाने लग गया।
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एक दिन ब्राह्मण ने उन्हें कहा, आप गाते तो है लेकिन हर किसी जगह इन पदों को नही गाना चाहिये,
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आप इन अद्भुत अष्टापदियो के रहस्य को नही जानते।
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क्योकि जहाँ कहीं ये गाये जाते है भगवान श्रीकृष्ण वहाँ स्वयं उपस्थित रहते है।
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इसलिए आप एक काम करिये। जब कभी भी आप इन्हें गाये तो श्याम सुन्दर के लिए एक अलग आसान बिछा दिया करे।
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मुग़ल ने कहा – वह तो बहुत मुश्किल है, बात ये है की हम लोग दूसरे के नौकर है, और अक्सर ऐसा होता है की दरबार से वक्त वेवक्त बुलावा आ जाता है, और हमको जाना पड़ता है।
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ब्राह्मण – तो ऐसा करिये जब आपका सरकारी काम ख़त्म हो जाया करे तब आप इन्हें एकांत में गाया करिये।
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मुग़ल – यह भी नही हो सकता आदत जो पड़ गयी है ! और रही घर बैठकर गाने की बात सो कभी तो ऐसा होता है की दो दो – तीन तीन दिन और रात भी हमे घोड़े की पीठ पर बैठकर गुजारनी पड़ती है।
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ब्राह्मण – अच्छा तो फिर ऐसा किया जा सकता हैं कि घोड़े की जीन के आगे एक बिछौना श्यामसुंदर के विराजने के लिए बिछा लिया करे।
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और यह भावना मन में रख ले की आपके पद सुनने के लिए श्यामसुंदर वहाँ आकर बैठे हुए है।
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मुग़ल ने स्वीकार कर यहीं नियम बना लिया और घर पर न रहने की हालात में घोड़े पर चलता हुआ ही गीतगोविन्द के पद गुनगुनाया करता।
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एक दिन अपने अफसर के हुकुम से उसे जैसा खड़ा था उसी हालात में घोड़े पर सवार होकर कहीं जाना पड़ा,
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वह घोड़े की जीन के आगे बिछाने के लिए बिछौना भी साथ नही ले जा सका।
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रास्ते में चलते चलते वह आदत के अनुसार पदों का गायन करने लगा।
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गायन करते करते अचानक उसे लगा की घोड़े के पीछे पीछे घुंघरुओं ( नूपुर ) की झनकार आ रही है।
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पहले तो वह समझा की वहम हुआ है, लेकिन जब उस झंकार में लय का आभास हुआ तो घोडा रोक लिया और उतर कर देखने लगा।
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तत्क्षण श्यामसुंदर ने प्रकट होकर पूछा – ‘सरदार’ ! आप घोड़े से क्यों उतर पड़े ? और आपने इतना सुन्दर गायन बीच में ही क्यों बंद कर दिया ?
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मुग़ल तो हक्का -बक्का होकर सामने खड़ा देखता ही रह गया।
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भगवान की रूपमाधुरी को देखकर वह इतना विहल हो गया की मुँह से आवाज ही नही निकलती थी।
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आखिर बोला – आप संसार के मालिक होकर भी मुझ मुग़ल के घोड़े के पीछे पीछे क्यों भाग रहे थे ?
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भगवान् ने मुस्कुराते हुए कहा – भाग नही रहा। मैं तो आपके पीछे पीछे नाचता हुआ आ रहा हूं।
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क्या तुम जानते नही हो की जिन पदों को तुम गा रहे थे वो कोई साधारण काव्य नही है।
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तुम आज मेरे लिए घोड़े पे गद्दी बिछाना भूल गए तो क्या मैं भी नाचना भूल जाऊ क्या ?
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मुग़ल को अब मालूम हुआ की मुझसे अब कितना भारी अपराध बन गया है। यह सब इसलिए हुआ की वह पराधीन था।
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दूसरे दिन प्रातः ही उसने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और वैराग्य लेकर श्यामसुंदर के भजन में लग गया।
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सही है एक बार उन महाप्रभु की रूप माधुरी को देख लेने के बाद संसार में ओर क्या शेष रह जाता है।
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यहीं मुग़ल भक्त बाद में प्रभु कृपा से ‘ मीर माधव ‘ नाम से विख्यात हुए।

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Spiritual

आध्यात्मिक परिपक्वता – Spiritual Maturity

आध्यात्मिक परिपक्वता क्या है?

जब आप दूसरों को बदलने के प्रयास छोड़ के स्वयं को बदलना प्रारम्भ करें। तब आप आध्यात्मिक कहलाते हो

जब आप दुसरे जैसे है, वैसा उन्हें स्वीकारते हो तो आप आध्यात्मिक हो।

जब आप समझते है कि हर किसी का दृष्टिकोण उनके लिए सही है, तो आप आध्यात्मिक हो।जब आप घटनाओं और हो रहे वक्त का स्वीकार करते हो, तो आप आध्यात्मिक हो।

जब आप आपके सारे संबंधों से अपेक्षाओं को समाप्त करके सिर्फ सेवा के भाव से संबंधों का ध्यान रखते हो, तो आप आध्यात्मिक हो।

जब आप यह जानकर के सारे कर्म करते हो की आप जो भी कर रहे हो वो दुसरो के लिए न होकर के स्वयं के लिए कर रहे हो, तो आप आध्यात्मिक हो।

जब आप दुनिया को स्वयं के महत्त्व के बारे में जानकारी देने की चेश्टा नहीं करते , तो आप आध्यात्मिक हो।

अगर आपको स्वयं पर भरोसा रखने के लिए और आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए दुनियां के लोगों के वचनों की या तारीफों की ज़रूरत न हो तो आप आध्यात्मिक हो।

अगर आपने भेदभाव करना बंद कर दिया है, तो आप आध्यात्मिक हो।

अगर आपकी प्रसन्नता के लिए आप सिर्फ स्वयं पर निर्भर है, दुनिया पर नहीं,तो आप आध्यात्मिक हो।

जब आप आपकी निजी ज़रूरतों और इच्छाओं के बीच अंतर समझ के अपने सारे इच्छाओं का त्याग कर पातें है , तो आप आध्यात्मिक हो।

अगर आपकी खुशियां या आनंद भौतिक, पारिवारिक और सामाजिकता पर निर्भर नहीं होता, तो आप आध्यात्मिक हो।

आइये कुछ आध्यात्मिक परिपक्वता की ओर बढे।

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Tips and Tricks

बचें धन की हानि से – How to avoid losses?

जानिए क्यों इतना अशुभ माना जाता हैं रसोई में जूठे बर्तन, बचें धन की हानि से

  • रात को सोने से पहले घर की रसोई में एक बाल्टी पानी भरकर रखें। इससे कर्ज से मुक्ति मिलती है। साथ ही बाथरूम में बाल्टी में पानी भरकर रखेंगे तो जीवन में उन्नति के रास्ते खुलते जाएंगे।
  • वास्तु और ज्योतिष से जुड़ी ऐसी कई छोटी-छोटी बातें जिन्हें हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अपनाकर घर में बरकत ला सकते हैं।
  • घर के मुख्य द्वार के पास कभी भी कूड़ेदान ना रखें। कहा जाता है कि ऐसा करने से आपके पड़ोसी आपके शत्रु बन सकते हैं।
  • रसोई में रात को जूठे बर्तन नहीं छोड़ने चाहिए। अगर आप रात में बर्तन साफ नहीं कर सकते तो उन्हें सिर्फ पानी से धोकर रख दें। इससे धन हानि होने से बचेगी।
  • सूर्यास्त के समय किसी को भी दूध, दही या प्याज न दें। ऐसी मान्यता है कि इससे घर की बरकत और सुख-समृद्धि समाप्त हो जाती है।
  • रात को सोने से पहले घर की रसोई में एक बाल्टी पानी भरकर रखें। इससे कर्ज से मुक्ति मिलती है। साथ ही बाथरूम में बाल्टी में पानी भरकर रखेंगे तो जीवन में उन्नति के रास्ते खुलते जाएंगे।
  • बिस्तर पर बैठकर कभी भी खाना नहीं खाना चाहिए। इससे घर में अशांति फैलती है और घर में रहने वाले सदस्यों पर कर्ज चढ़ने की संभावना बनी रहती है।
  • कलश या छोटे पात्र को घर में बने पूजा स्थल या मंदिर के ईशान कोण में हमेशा जल से भरकर रखें। ऐसा करना घर में रहने वाले लोगों के लिए शुभ माना जाता है।
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सुंदर कांड की रोचक प्रश्नोत्तरी – Sundar Kand Questionnaire

1 :- सुंदरकाण्ड का नाम सुंदरकाण्ड क्यों रखा गया?

हनुमानजी, सीताजी की खोज में लंका गए थे और लंका त्रिकुटांचल पर्वत पर बसी हुई थी। त्रिकुटांचल पर्वत यानी यहां 3 पर्वत थे।
पहला सुबैल पर्वत, जहां के मैदान में युद्ध हुआ था।
दुसरा नील पर्वत, जहां राक्षसों के महल बसे हुए थे।
तीसरे पर्वत का नाम है सुंदर पर्वत, जहां अशोक वाटिका निर्मित थी। इसी वाटिका में हनुमानजी और सीताजी की भेंट हुई थी।
इस काण्ड की सबसे प्रमुख घटना यहीं हुई थी, इसलिए इसका नाम सुंदरकाण्ड रखा गया।

2 :- शुभ अवसरों पर सुंदरकाण्ड का पाठ क्यों?

शुभ अवसरों पर गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का पाठ किया जाता है। शुभ कार्यों की शुरूआत से पहले सुंदरकाण्ड का पाठ करने का विशेष महत्व माना गया है।
जबकि किसी व्यक्ति के जीवन में ज्यादा परेशानियाँ हों, कोई काम नहीं बन पा रहा हो, आत्मविश्वास की कमी हो या कोई और समस्या हो, सुंदरकाण्ड के पाठ से शुभ फल प्राप्त होने लग जाते हैं, कई ज्योतिषी या संत भी विपरित परिस्थितियों में सुंदरकाण्ड करने की सलाह देते हैं।

3 :- सुंदरकाण्ड का पाठ विषेश रूप से क्यों किया जाता है?

माना जाता हैं कि सुंदरकाण्ड के पाठ से हनुमानजी प्रशन्न होते हैं।
सुंदरकाण्ड के पाठ में बजरंगबली की कृपा बहुत ही जल्द प्राप्त हो जाती है।
जो लोग नियमित रूप से सुंदरकाण्ड का पाठ करते हैं, उनके सभी दुखः दुर हो जाते हैं, इस काण्ड में हनुमानजी ने अपनी बुद्धि और बल से सीता माता की खोज की है।
इसी वजह से सुंदरकाण्ड को हनुमानजी की सफलता के लिए याद किया जाता है।

4 :- सुंदरकाण्ड से क्यों मिलता है मनोवैज्ञानिक लाभ?

वास्तव में श्रीरामचरितमानस के सुंदरकाण्ड की कथा सबसे अलग है, संपूर्ण श्रीरामचरितमानस भगवान श्रीराम के गुणों और उनके पुरूषार्थ को दर्शाती है, सुंदरकाण्ड एक मात्र ऐसा अध्याय है जो श्रीराम के भक्त हनुमान की विजय का काण्ड है।

मनोवैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो यह आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला काण्ड है, सुंदरकाण्ड के पाठ से व्यक्ति को मानसिक शक्ति प्राप्त होती है, किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए आत्मविश्वास मिलता है।

5 :- सुंदरकाण्ड से क्यों मिलता है धार्मिक लाभ?

सुंदरकाण्ड के वर्णन से मिलता है धार्मिक लाभ, हनुमानजी की पूजा सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली मानी गई है। बजरंगबली बहुत जल्दी प्रशन्न होने वाले देवता हैं, शास्त्रों में इनकी कृपा पाने के कई उपाय बताए गए हैं, इन्हीं उपायों में से एक उपाय सुंदरकाण्ड का पाठ करना है, सुंदरकाण्ड के पाठ से हनुमानजी के साथ ही श्रीराम की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है।

किसी भी प्रकार की परेशानी हो सुंदरकाण्ड के पाठ से दूर हो जाती है, यह एक श्रेष्ठ और सरल उपाय है, इसी वजह से काफी लोग सुंदरकाण्ड का पाठ नियमित रूप से करते हैं,

हनुमानजी जो कि वानर थे, वे समुद्र को लांघकर लंका पहुंच गए वहां सीता माता की खोज की, लंका को जलाया सीता माता का संदेश लेकर श्रीराम के पास लौट आए, यह एक भक्त की जीत का काण्ड है, जो अपनी इच्छाशक्ति के बल पर इतना बड़ा चमत्कार कर सकता है, सुंदरकाण्ड में जीवन की सफलता के महत्वपूर्ण सूत्र भी दिए गए हैं, इसलिए पुरी रामायण में सुंदरकाण्ड को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि यह व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ाता है, इसी वजह से सुंदरकाण्ड का पाठ विशेष रूप से किया जाता है।

।। जय श्री राम ।।

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विट्ठल रुक्मिणी के भक्त – Devotees of Shri Vitthal

छत्रपति शिवाजी महाराज के समय की बात है।
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मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में उज्जैनी के पास एक छोटे ग्राम में गणेशनाथ का जन्म हुआ।
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यह कुल भगवान् का भक्त था। माता पिता भगवान की पूजा करते और भगवन्नाम का कीर्तन करते थे। बचपन से ही गणेशनाथ में भक्ति के संस्कार पड़े।
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माता उन्हें प्रोत्साहित करती और वे तुतलाते हुए भगवान का नाम ले लेकर नाचते।
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पिता ने भी उन्हें संसार के विषयो में लगने की शिक्षा देने के बदले भगवान का माहात्म्य ही सुनाया था।
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धन्य हैं वे माता पिता, जो अपने बालक को विषतुल्य विषय भोगो में नहीं लगाते, बल्कि उसे भगवान के पावन चरणों में लगने की प्रेरणा देते हैं।
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पिता – माता से गणेशनाथ ने भगवन्नाम कीर्तन का प्रेम और वैराग्य का संस्कार पैतृक धन के रूपमें पाया।
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माता पिता गणेशनाथ की युवावस्था प्रारम्भ होने के पूर्व ही परलोक वासी हो गये थे। घर मे अकेले गणेशनाथ रह गये।
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किंतु उन्हें अब चिन्ता क्या ? हरिनाम का रस उन्हें मिल चुका था। कामिनी काञ्चन का माया जाल उनके चित्त को कभी आकर्षित नहीं कर सका।
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वे तो अब सत्संग और अखण्ड भजन के लिये उत्सुक हो उठे। उन्होंने एक लंगोटी लगा ली। जाड़ा हो, गरमी हो या है वर्षा हो, अब उनको दूसरे किसी वस्त्र से काम नहीं था।
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वे भगवान् का नाम कीर्तन करते, पद गाते आनन्दमय हो नृत्य करने लगते थे। धीरे धीरे वैराग्य बढता ही गया।
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दिनभर जंगल में जाकर एकान्त में उच्चस्वर से नाम कीर्तन करते और रात्रि को घर लौट आते। रात को गाँव के लोगों को भगवान् की यथा सुनाते।
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कुछ समय बीतनेपर ये गांव छोड़कर पण्ढरपुर चले आये और वहीं श्री कृष्ण का भजन करने लगे।
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एक बार छत्रपति शिवाजी महाराज पण्ढरपुर पधारे। पण्ढरपुर में उन दिनों अपने वैराग्य तथा संकीर्तन प्रेम के कारण साधु गणेशनाथ प्रसिद्ध को चुके थे।
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शिवाजी महाराज इनके दर्शन करने गये। उस समय ये कीर्तन करते हुए नृत्य कर रहे थे। बहुत रात बीत गयी, पर इन्हें तो शरीर का पता ही नहीं था।
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छत्रपति चुपचाप देखते रहे। जब कीर्तन समाप्त हुआ, तब शिवाजी ने इनके चरणोंमें मुकुट रखकर अपने खीमें में रात्रि विश्राम करने की इनसे प्रार्थना को।
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भक्त बड़े संकोच में पड़ गये। अनेक प्रकार से उन्होंने अस्वीकार करना चाहा, पर शिवाजी महाराज आग्रह करते ही गये।
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अन्त में उनकी प्रार्थना स्वीकार करके गणेशनाथ बहुत से कंकड़ चुनकर अपने वस्त्र में बाँधने लगे।
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छत्रपति ने आश्चर्य से पूछा -इनका क्या होगा ?
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आपने कहा- ये भगवान् का स्मरण दिलायेंगे।
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राज़शिबिर में गणेशनाथ जी के सत्कार के लिये सब प्रकार की उत्तम व्यवस्था की गयी। सुन्दर पकवान सोनेके थाल में सजाये गये,
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सुगन्धित जलसे उनके चरण धोये स्वयं छत्रपति ने, इत्र आदि उपस्थित किया गया और स्वर्ण के पलंग पर कोमल गद्दे के ऊपर फूल बिछाये गये उनको सुलानेके लिये।
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गणेशनाथ ने यह सब देखा तो सन्न रह गये। जैसे कोई शेर गायके छोटे बछड़े को उठाकर अपनी मांदमें ले जाये और वह बेचारा बछड़ा भयके मारे भागने का रास्ता न पा मके, यही दशा गणेशनाथ की हो गयी।
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उन्हें भोग के ये सारे पदार्थ जलती हुई अग्नि के समान जान पड़ते थे । किसी प्रकार थोड़ा सा कुछ खाकर वे विश्राम करने गये।
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उस फूल बिछी शय्यापर अपने साथ लायी बडी गठरी के कंकडों को बिछाकर उनपर बैठ गये।
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वे रोते रोते कहते जाते थे- पाण्डुरंग। मेरे स्वामी। तुमने मुझे कहां लाकर डाल दिया ? अवश्य मेरे कपटी हदय मे इन भोगो के प्रति कहीं कुछ आसक्ति थी, तभी तो तुमने मुझे यहाँ भेजा है।
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विट्ठल ! मुझे ये पदार्थ नरक की यन्त्रणा जैसे जान पड़ते हैं। मुझे तो तुम्हारा ही स्मरण चाहिये।
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किसी प्रकार रात बीती। सबेरे शिवाजी महाराज ने आकर प्रणाम करके पूछा – महाराज ! रात्रि सुखसे तो व्यतीत हुई ?
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गणेशनाथ जी ने उत्तर दिया- जो क्षण विट्ठल का नाम लेने में बीते, वही सफल है। आज की रात हरिनाम लेने-में व्यतीत हुई अत : वह सफल हुई।
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शिवाजी ने जब संत के भाव सुने, तब उनके नेत्रोंसे आसू बहने लगे। साधुको आग्रह करके अपने यहाँ ले आने का उन्हें पश्चात्ताप हुआ। उन्होंने चरणों में गिरकर क्षमा मांगी।
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साधक के लिये एक सबसे बडा विघ्न है लोक प्रख्याति। प्रतिष्ठा के कारण जितना शीघ्र साधक मोह मे पड़ता है, उतनी शीघ्रता से पतन दूसरे किसी विघ्न से नहीं होता।
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अतएव साधकक्रो सदा सावधान होकर शूकरो विष्ठाके समान प्रतिष्ठा से दूर रहना चाहिये।
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गणेशनाथ जी ने देखा कि पंढरपुर में अब लोग मुझें जान गये हैं, अब मनुष्यों की भीड़ मेरे पास एकत्र होने लगी है, तब वे घने जंगल में चले गये।
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परंतु फूल खिलेगा तो सुगन्धि फैलेगी ही और उससे आकर्षित होकर भौरे भी वहां एकत्र होंगे ही।
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गणेशनाथ जी में भगवान का जो दिव्य अनुराग प्रकट हुआ था, उससे आकर्षित होकर भगवान् के प्रेमी भक्त वनमें भी उनके पास एकत्र होने लगे।
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गणेशनाथ जी का भगवत् प्रेम ऐसा था कि वे जिसे भी छू देते थे, वही उन्मत्त की भाँति नाचने लगता था। वही भगवन्नाम का कीर्तन करने लगता था।
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श्री चैंतन्य महाप्रभु ने अपने भक्तोंसे एक बार कहा था- सच्चा भगवद भक्त वह है, जिसके पास जाते ही दूसरे इच्छा न होनेपर भी विवश् की भाँति अपने आप भगवान् का नाम लेने लगे। गणेशनाथ जी इसी प्रकार के भगवान् के भक्त थे।
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श्री गणेशनाथ जी के प्रेम की महिमा अपार है। वे जब भगवान के प्रेम में उन्मत्त होकर पांडुरंग विट्ठल पांडुरंग विट्ठल ! विट्ठल रुक्मिणी ! कहकर नृत्य करने लगते थे, तब वहां के सब मनुष्य उनके साथ कीर्तन करने को जैसे विवश हो जाते थे।
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ऐसे भगवद्भक्त तो नित्य भगवान् को प्राप्त हैं। वे भगवन्मय हैं। उनके स्मरण से, उनके चरित का हदयमें चिन्तन करने से मनुष्य के पाप ताप नष्ट हो जाते हैं और मानुष हृदय में भगवान् का अनुराग जागृत हो जाता है।

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ईश्वर पर विश्वास – Trust God

हर समय माला लेकर बैठे रहते हो । कुछ पैसे धेले का इंतजाम करो लड़की के लिए लड़का नहीं देखना । निर्मला ने रोज की तरह सुबह से ही बड़बड़ाना शुरु कर दिया।

ईश्वर पर विश्वास रखो , समय पर सब हो जाएगा । चौबे जी ने अपना गमछा संभालते हुए कहा ।

ईश्वर तो जैसे घर बैठे ही लड़का भेज देंगे। उनके पास तो कोई काम है नहीं सिर्फ आपका ध्यान रखने के अलावा ।

अरे क्यों पूरा दिन चकचक करती रहती हो ? चौबे जी कभी गुस्सा नहीं होते । वो तो बस पूरा दिन बस लड्डू गोपाल के बारे में ही सोचते हैं ।

जयपुर वाली मौसी बता रही थी , उनके रिश्तेदारी में एक लड़का है । अब देखकर तो जब आओगे , जब जेब में1000 , 2000 रुपए होंगे । जो दो चार रुपए बचते हैं , उन्हें अपने दोस्तों को उधार दे देते हो । आज तक लौटाए हैं किसी ने।

आज तक किसी चीज की कोई कमी हुई है । आगे भी नहीं होगी ईश्वर की कृपा से । तुम तो मुझे भजन भी नहीं करने देती ।

भजन ही करना था तो शादी क्यों की ? अब वो बैठे-बिठाए तुम्हारी लड़की की शादी भी कर जाएंगे।

हां रहने दो बस । लो थैला पकड़ो और जाओ सब्जी ले आओ ।और हां , जिस लडके के बारे में मैंने बात की है ।उसके बारे में जरा सोचना परसों जाना है तुम्हें ।अब थोड़े बहुत पैसों के लिए एफडी तो तुडवाओगे नहीं । जो यार दोस्तों को उधार दे रखे हैं उनसे जरा मांग लो।

थैला लेकर निकल तो गए लेकिन विचार यही है मन में ।पैसों का इंतजाम कैसे होगा ? सब्जी लेने से पहले जरा अपने दोस्त से अपने पैसों की बात कर ली जाए । जिस शोरूम में काम करता है , वो भी पास ही है ।

राकेश ने अपने मित्र को देखा तो गले लगा लिया । चौबे कैसे आना हुआ ?

कुछ ना भैया कुछ समस्या आन पड़ी है । पैसो की सख्त जरुरत है ? अपने ही पैसे चौबे जी ऐसे मांग रहे हैं , जैसे उधार मांग रहे हो ।
देखता हूं साहब से मांगता हूं ।6 दिन पहले ही विदेश से आए हैं । ऐसे 6 शोरूम है उनके पास । बात करके तुम्हें बता दूंगा ।

और बताओ ललिया ठीक है ? कैसा चल रहा है उसका योगा क्लास ?

बढ़िया चल रहा है सुबह 5:00 बजे जाती है ,पूरा 5000 कमाती है । चौबे जी ने बड़े गर्व से कहा

सर्वगुण संपन्न है हमारी लाली। कैबिन से बाहर निकले ही थे , एक जगह नज़र टिकी गई। इतनी सुंदर मूर्ति लड्डू गोपाल की । चौबे जी अपलक देख रहे थे जैसे अभी बात करने लगेगी। तभी राकेश ने ध्यान भंग करते हुए कहा ,” बडे साहब ने आर्डर पर बनवाई है । बाहर से बनकर आई है । ऐसी 3 बनवाई हैं ।”

रास्ते भर मूर्ति की छवि उनकी नजरों से ओझल नहीं हो रही थी । काश वो मूर्ति उनके पास होती ।भूल नहीं पा रहे हैं अगर उनके पास होती कैसे निहलाते , क्या क्या खिलाते ,घर कब आया पता ही नहीं चला ।लेकिन घर के सामने इतनी भीड़ क्यों है ? गाड़ी तो काफी महंगी लग रही है ? अपने घर के दरवाजे में घुसने ही वाले थे कि थैला हाथ से छीनकर निर्मला ने मुस्कुराकर उनका स्वागत किया ।

कौन आया है ? अंदर सूट बूट में एक आदमी बैठा है ।चौबे जी को देखते ही वो हाथ जोड़कर खड़ा हो गया ।

राधे राधे चौबे जी ने कहा । बैठिए । क्षमा कीजिए मैंने आपको पहचाना नहीं ।

अरे आप कैसे पहचानेंगे ? हम पहली बार मिल रहे हैं । उसने बड़ी शालीनता के साथ जवाब दिया।
जी कहिए , मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं ?

दरअसल मैं आपसे कुछ मांगने आया हूं ।

सीधा-सीधा बताइए चौबे जी सोच में पडे थे जाने क्या मांग ले ? इतने बड़े आदमी को मुझसे क्या चाहिए ?

आज से चार दिन पहले मैं मॉर्निंग वॉक के लिए गया था ।लेकिन उस दिन मेरे साथ एक दुर्घटना हुई ।मुझे हार्टअटैक आ गया । आसपास कोई नहीं था मदद के लिए ।ना मैं कुछ बोल पा रहा था । तभी एक लड़की स्कूटी पर आती दिखी । मुझे सडक पर पड़े हुए देखकर उसने अपनी स्कूटी रोकी । अकेली वो मुझे उठा नहीं सकती थी । फिर अपनी स्कूटी से दूर की दुकान पर जाकर एक आदमी को बुलाकर लाई । उसकी मदद से उसने मुझे अपनी स्कूटी पर बिठाया और मुझे हॉस्पिटल लेकर गई । अगर थोड़ी सी भी देर हो जाती शायद मेरा अन्त निश्चित था ।और वो लड़की कोई और नहीं , आपकी बेटी थी ।

उस आदमी ने हाथ जोड़ते हुए कहा , अगर आप लायक समझे , तो मैं अपने बेटे के लिए आपकी बेटी का हाथ मांगता हूं ।जो अनजान की मदद कर सकती है । वो अपने परिवार का कितना ध्यान रखेगी ।”

चौबे जी एक दम जड़ हो गए । विश्वास नहीं कर पा रहे थे क्या यह सच में ये हो रहा है कि मुझे किसी के दरवाजे पर ना जाना पड़े । इस स्थिति से बाहर नहीं निकले थे कि तभी उन्होंने अपने पास रखे हुए बैग में से एक बड़ा सा बक्सा निकाला । इसमें वही मूर्ति थी , जिसे अभी शोरूम में देखकर आए थे । जो आंखो के सामने से ओझल नहीं। हो रही थी । जिसे देखते ही मन में ये ख्याल आया था कि काश मेरे मंदिर में होती । ऊपरवाले ने प्रमाणित कर दिया की मुझे उसका जितना ख्याल है उसे मेरा मुझसे ज्यादा है ।

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धन की तीन गति – Three ways of Money

मोहवश संसार के भोगों में फँसाकर जन्म-मृत्यु के चक्कर में डालने वाले पिता-माता तो बहुत होते हैं, परंतु अज्ञान के बन्धन से छूटने का सरल उपाय बतलाने वाले तो आप-सरीखे पिता विरले ही होते हैं।

दक्षिण में पुलिवेंदला के समीप पापघ्नी नदी के तट पर एक छोटे से गाँव में बेंकट नामक एक ब्राह्मण निवास करता था।

ब्राह्मण भगवान् श्रीरंगनाथजी का बड़ा भक्त था, वह दिन-रात भगवान् के पवित्र नाम का जप करता।

ब्राह्मण की पत्नी का नाम था रमाया, वह भी पति की भाँति ही भगवान् का भजन किया करती थी।

माता-पिता मर गये थे और कोई संतान थी नहीं, इसलिये घर में ब्राह्मण, ब्राह्मणी दो ही व्यक्ति थे, दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था, वे अपने व्यवहार-बर्ताव से सदा एक-दूसरे को सुख पहुँचाते रहते थे।

पिता राजपुरोहित थे, इससे उन्हें अपने यजमानों से यथेष्ट धन-संपत्ति मिली थी, वे बहुत ही सदाचारी, विद्वान् भगवदभक्त और ज्ञानी थे।

उन्होंने मरते समय बेंकट से कहा था:-‘बेटा, मेरी पूजा के कमरे से दक्षिण वाली कोठरी में आँगन के बीचों बीच सोने की मोहरों के सात कलश गड़े हैं।

मैंने बड़े परिश्रम से धन कमाया है, मुझे बड़ा दु:ख है कि मैं अपने जीवन में इसका सदुपयोग नहीं कर सका।

बेटा, धन की तीन गति होती है, सबसे उत्तम गति तो वह है कि अपने ही हाथों उसे सत्कार्य के द्वारा भगवान् की सेवा में लगा दिया जाय।

मध्यम गति वह है कि उसे अपने तथा अपनी संतान के शास्त्रविहित सुख भोगार्थ खर्च कर दिया जाय।

और तीसरी अधम गति उस धन की होती है जो न तो भगवान् की सेवा में लगता है और न सुखोपभोग में ही लगता है।

वह गति है उसका दूसरों के द्वारा छीन लिया जाना अथवा अपने या पराये हाथों बुरे कर्मों में खर्च होना।

यदि भगवान् की कृपा से पुत्र सतोगुणी होता है तो मरने के बाद धन सत्कार्य में लग जाता है, नहीं तो वही धन कुपुत्र के द्वारा बुरे-से-बुरे काम- शराब, वेश्या और जुए आदि में लगकर पीढ़ियों तक को नरक पहुँचाने में कारण बनता है।

बेटा, तू सपूत है इससे मुझे विश्वास है कि तू धन का दुरुपयोग नहीं करेगा, मैं चाहता हूँ-इस सारे धन को तू भगवान् की सेवा में लगाकर मुझे शान्ति दे।

बेटा, धन तभी अच्छा है जब कि उससे भगवत्स्वरूप दु:खी प्राणियों की सेवा होती है, केवल इसीलिये धनवानों को भाग्यवान कहा जाता है, नहीं तो, धन के समान बुरी चीज नहीं है।

धन में एक नशा होता है जो मनुष्य के विवेक को हर लेता है और नाना प्रकार से अनर्थ उत्पन्न करके उसे अपराधों के गड्ढे में गिरा देता है।

बेटा, मैं इस बात को जानता था, इसीसे मैंने तुझको आज तक इस धन की बात नहीं बतायी।

मैं चाहता था इसे अपने हाथ से भगवान् की सेवा में लगा दूँ, परंतु संयोग ऐसे बनते गये कि मेरी इच्छा पूरी न हो सकी।

मनुष्य को चाहिये कि वह दान और भजन-जैसे सत्यकार्यों को विचार के भरोसे कल पर न छोड़े, उन्हें तो तुरंत कर ही डाले।

पता नहीं कल क्या होगा, इस ‘कल-कल’ में ही मेरा जीवन बीत गया।

मेरे प्यारे बेंकट, संसार में सभी पिता अपने पुत्र के लिये धन कमाकर छोड़ जाना चाहते हैं, परंतु मैं ऐसा नहीं चाहता।

बेटा, मुझे प्रत्यक्ष दीखता है कि धन से मनुष्य में दुर्बुद्धि उत्पन्न होती है, इससे मैं तुझे अर्थ का धनी देखकर भजन का धनी देखना चाहता हूँ।

इसीलिये तुझसे यह कहता हूँ कि इस सारे धन को तू भगवान् की सेवा में लगा देना।

तेरे निर्वाह के लिये घर में जो कुछ पैतृक संपत्ति है- जमीन है, खेत है और थोड़ी-बहुत यजमानी है, वही काफी है।

जीवन को सादा, संयमी और ब्राह्मणोचित त्याग से संपन्न रखना, सदा सत्य का सेवन करना और करना श्रीरंगनाथ भगवान् का भजन।

इसीसे तू कृतार्थ हो जायगा और इसीसे तू पुरखों को तारने वाला बनेगा, बेटा मेरी इस अन्तिम सीख को याद रखना।’

बेंकट अपने पिता से भी बढ़कर विवेकी था, उसने कहा:- ‘पिताजी आपकी इस सीख का एक-एक अक्षर अनमोल है, सच्चे हितैषी पिता के बिना ऐसी सीख कौन दे सकता है।

मोहवश संसार के भोगों में फँसाकर जन्म-मृत्यु के चक्कर में डालने वाले पिता-माता तो बहुत होते हैं, परंतु अज्ञान के बन्धन से छूटने का सरल उपाय बतलाने वाले तो आप-सरीखे पिता विरले ही होते हैं।

मुझे यह धन न देकर आपने मेरा बड़ा उपकार किया है, परंतु पिताजी मालूम होता है, मेरी कमजोरी देखकर ही आपने धन की इतनी बुराइयाँ बतलाकर धन को महत्व दिया है।

वस्तुत: धन की ओर भजनानन्दियों का ध्यान ही क्यों जाना चाहिये, धन में और धूल में फर्क ही क्या है?

जो कुछ भी हो-मैं आपकी आज्ञा को सिर चढ़ाता हूँ और आपके संतोष के लिये धन की ओर ध्यान देकर इसे शीघ्र ही भगवान् की सेवा में लगा दूँगा।

अब आप इस धन का ध्यान छोड़कर भगवान् श्रीरंगनाथजी का ध्यान कीजिये और शान्ति के साथ उनके परम धाम में पधारिये।

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