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विवाहिता स्त्री को गुरू करना चाहिये या नहीं ?

आइए इसके बारे में हमारे शास्त्र क्या कहते हैं, देखें।

शास्त्रीय दृष्टिकोण

पति प्रतिकूल जनम जहँ जाई। बिधवा होइ पाइ तरुनाई।

  1. पदम पुराण

“गुरूग्निद्विर्जातिनां वर्णाणां ब्रह्मणो गुरूः।
पतिरेकोगुरू स्त्रीणां सर्वस्याम्यगतो गुरूः।।”
(पदम पुं . स्वर्ग खं 40-75)

अर्थ: अग्नि ब्राह्मणों का गुरू है। अन्य वर्णों का ब्राह्मण गुरू है। एक मात्र उनका पति ही स्त्रियों का गुरू है, तथा अतिथि सब का गुरू है।

  1. ब्रह्मवैवर्त पुराण

“पतिर्बन्धु गतिर्भर्ता दैवतं गुरूरेव च।
सर्वस्याच्च परः स्वामी न गुरू स्वामीनः परः।।”
(ब्रह्मवैवतं पु. कृष्ण जन्म खं 57-11)

अर्थ: स्त्रियों का सच्चा बन्धु पति है, पति ही उसकी गति है। पति ही उसका एक मात्र देवता है। पति ही उसका स्वामी है और स्वामी से ऊपर उसका कोई गुरू नहीं।

  1. स्कन्द पुराण

“भर्ता देवो गुरूर्भता धर्मतीर्थव्रतानी च।
तस्मात सर्वं परित्यज्य पतिमेकं समर्चयेत्।।”
(स्कन्द पु. काशी खण्ड पूर्व 30-48)

अर्थ: स्त्रियों के लिए पति ही इष्ट देवता है। पति ही गुरू है। पति ही धर्म है, तीर्थ और व्रत आदि है। स्त्री को पृथक कुछ करना अपेक्षित नहीं है।

  1. श्रीमद् भागवत

“दुःशीलो दुर्भगो वृध्दो जड़ो रोग्यधनोSपि वा।
पतिः स्त्रीभिर्न हातव्यो लोकेप्सुभिरपातकी।।”
(श्रीमद् भा. 10-29-25)

अर्थ: पतिव्रता स्त्री को पति के अलावा और किसी को पूजना नहीं चाहिए, चाहे पति बुरे स्वभाव वाला हो, भाग्यहीन, वृद्ध, मूर्ख, रोगी या निर्धन हो। पर वह पातकी न होना चाहिए।

रामचरितमानस में माता अनसूया का उपदेश

माता अनसूया ने माता सीता को पतिव्रत धर्म का उपदेश देते हुए कहा:

मातु पिता भ्राता हितकारी। मितप्रद सब सुनु राजकुमारी॥ अमित दानि भर्ता बयदेही। अधम सो नारि जो सेव न तेही॥

भावार्थ: हे राजकुमारी! माता, पिता, भाई सभी हितकारी हैं, परंतु पति ही (मोक्ष रूप) असीम सुख देने वाला है। वह स्त्री अधम है, जो ऐसे पति की सेवा नहीं करती।

धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥ बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना। अंध बधिर क्रोधी अति दीना॥

भावार्थ: धैर्य, धर्म, मित्र और स्त्री की विपत्ति के समय ही परीक्षा होती है। वृद्ध, रोगी, मूर्ख, निर्धन, अंधा, बहरा, क्रोधी और अत्यंत दीन पति भी अपमान का पात्र नहीं है।

ऐसेहु पति कर किएँ अपमाना। नारि पाव जमपुर दुख नाना॥ एकइ धर्म एक ब्रत नेमा। कायँ बचन मन पति पद प्रेमा॥

भावार्थ: ऐसे पति का अपमान करने से स्त्री यमपुर में भाँति-भाँति के दुःख पाती है। शरीर, वचन और मन से पति के चरणों में प्रेम करना स्त्री के लिए सबसे बड़ा धर्म, व्रत और नियम है।

जग पतिब्रता चारि बिधि अहहीं। बेद पुरान संत सब कहहीं॥ उत्तम के अस बस मन माहीं। सपनेहुँ आन पुरुष जग नाहीं॥

भावार्थ: जगत में चार प्रकार की पतिव्रताएँ हैं। वेद, पुराण और संत कहते हैं कि उत्तम श्रेणी की पतिव्रता के मन में यह भाव होता है कि जगत में (मेरे पति को छोड़कर) दूसरा पुरुष स्वप्न में भी नहीं है।

मध्यम परपति देखइ कैसें। भ्राता पिता पुत्र निज जैसें॥ धर्म बिचारि समुझि कुल रहई। सो निकिष्ट त्रिय श्रुति अस कहई॥

भावार्थ: मध्यम श्रेणी की पतिव्रता पराए पति को अपने सगा भाई, पिता या पुत्र के समान देखती है। जो धर्म को विचारकर और अपने कुल की मर्यादा समझकर पतिव्रता बनी रहती है, अर्थात् इस दबाव में पतिव्रता बनी रहती है, वह निकृष्ट स्त्री है, ऐसा वेद कहते हैं।

बिनु अवसर भय तें रह जोई। जानेहु अधम नारि जग सोई॥ पति बंचक परपति रति करई। रौरव नरक कल्प सत परई॥

भावार्थ: जो स्त्री मौका न मिलने से या भयवश पतिव्रता बनी रहती है, उसे अधम स्त्री जानना। पति को धोखा देने वाली स्त्री पराए पति से रति करती है, वह सौ कल्प तक रौरव नरक में पड़ी रहती है।

छन सुख लागि जनम सत कोटी। दुख न समुझ तेहि सम को खोटी॥ बिनु श्रम नारि परम गति लहई। पतिब्रत धर्म छाड़ि छल गहई॥

भावार्थ: क्षणभर के सुख के लिए जो सौ करोड़ (असंख्य) जन्मों के दुःख को नहीं समझती, उसके समान दुष्टा कौन होगी। जो स्त्री छल छोड़कर पतिव्रत धर्म को ग्रहण करती है, वह बिना ही परिश्रम परम गति को प्राप्त करती है।

पति प्रतिकूल जनम जहँ जाई। बिधवा होइ पाइ तरुनाई॥

भावार्थ: जो पति के प्रतिकूल चलती है, वह जहाँ भी जाकर जन्म लेती है, वहीं जवानी पाकर विधवा हो जाती है।

सहज अपावनि नारि पति सेवत सुभ गति लहइ। जसु गावत श्रुति चारि अजहुँ तुलसिका हरिहि प्रिय॥

भावार्थ: स्त्री जन्म से ही अपवित्र है, किन्तु पति की सेवा करके वह अनायास ही शुभ गति प्राप्त कर लेती है। (पतिव्रत धर्म के कारण ही) आज भी ‘तुलसीजी’ भगवान को प्रिय हैं और चारों वेद उनका यश गाते हैं।

निष्कर्ष

वेदों, पुराणों, भागवत आदि शास्त्रों ने स्त्री को बाहर का गुरू न करने के लिए कहा है, यह शास्त्रों के उपरोक्त श्लोकों से ज्ञात होता है।

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शरद पूर्णिमा

वर्ष के बारह महीनों में शरद पूर्णिमा ऐसी पूर्णिमा है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, और धन की देवी महालक्ष्मी रात को यह देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं।

कोजागरी पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा का एक नाम कोजागरी पूर्णिमा भी है, यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं – “कौन जाग रहा है?” अश्विन महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है, इसलिए इस महीने का नाम अश्विन पड़ा है।

चंद्रमा की विशेषताएँ

एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें अश्विनी नक्षत्र सबसे पहला है, और इसकी पूर्णिमा आरोग्य देती है। केवल शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट होता है। चंद्रमा की किरणों से इस दिन अमृत बरसता है।

आयुर्वेद और शरद पूर्णिमा

आयुर्वेदाचार्य वर्ष भर इस पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखा जाता है। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से बनी दवाइयाँ रोगी पर तुरंत असर करती हैं।

चंद्रमा और मन

चंद्रमा को वेद-पुराणों में मन के समान माना गया है – चंद्रमा मनसो जातः। वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है।

शरद पूर्णिमा की खीर

शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन, और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का संचय हो जाता है, जो शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर से बाहर निकलता है।

यह खीर एक विशेष विधि से बनाई जाती है। पूरी रात चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट इसे खाने से सभी रोग दूर होते हैं, और शरीर निरोगी होता है।

रास पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण से भी यह पूर्णिमा जुड़ी है। इस रात को श्रीकृष्ण अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ महारास रचाते हैं। कहते हैं, जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी।

उत्सव और परंपराएँ

गुजरात में शरद पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाएँ पूरी होती हैं।

कुमार पूर्णिमा

ओडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं।

ऋतु परिवर्तन और कार्तिक स्नान

शरद पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है। इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है।


शरद पूर्णिमा की महिमा अनंत है और इसकी धार्मिक, सांस्कृतिक और स्वास्थ्य संबंधी महत्ता अद्वितीय है। यह पूर्णिमा हमें तन, मन और धन की समृद्धि का संदेश देती है और हमें अपने जीवन को शुद्ध और पवित्र बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है।

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पाँच अपवित्र पवित्र वस्तुएँ

पाँच वस्तु जो अपवित्र होते हुए भी पवित्र मानी जाती हैं

उच्छिष्टं शिवनिर्माल्यं वमनं शवकर्पटम्। काकविष्टा ते पञ्चैते, पवित्राति मनोहरा॥

  1. उच्छिष्ट – गाय का दूध, गाय का दूध पहले उसका बछड़ा पीकर उच्छिष्ट करता है, फिर भी वह पवित्र होता है और शिव पर चढ़ता है।
  2. शिव निर्माल्यं – गंगा का जल, गंगा जी का अवतरण स्वर्ग से सीधा शिव जी के मस्तक पर हुआ। नियमानुसार शिव जी पर चढ़ाई हुई हर चीज़ निर्माल्य है, पर गंगाजल पवित्र है।
  3. वमनम् – उल्टी, शहद। मधुमख्खी जब फूलों का रस लेकर अपने छत्ते पर आती है, तब वो अपने मुख से उस रस की शहद के रूप में उल्टी करती है, जो पवित्र कार्यों में उपयोग किया जाता है।
  4. शव कर्पटम् – रेशमी वस्त्र, धार्मिक कार्यों को सम्पादित करने के लिए पवित्रता की आवश्यकता रहती है। रेशमी वस्त्र को पवित्र माना गया है, पर रेशम को बनाने के लिए रेशमी कीड़े को उबलते पानी में डाला जाता है और उसकी मौत हो जाती है। उसके बाद रेशम मिलता है, तो हुआ शव कर्पट, फिर भी पवित्र है।
  5. काक विष्टा – कौए का मल, कौवा पीपल पेड़ों के फल खाता है और उन पेड़ों के बीज अपनी विष्टा में इधर-उधर छोड़ देता है, जिसमें से पेड़ों की उत्पत्ति होती है। आपने देखा होगा कि कहीं भी पीपल के पेड़ उगते नहीं हैं, बल्कि पीपल काक विष्टा से उगता है, फिर भी पवित्र है।
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दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम

एक समय की बात है श्री गुरू नानक देव जी महाराज और उनके दो शिष्य, बाला और मरदाना, किसी गाँव में जा रहे थे। चलते-चलते रास्ते में एक मकई का खेत आया। बाला स्वभाविक रूप से बहुत कम बोलता था, मगर मरदाना बातों की तह में जाना पसंद करता था। मकई का खेत देखकर मरदाने ने गुरू नानक जी महाराज से सवाल किया, “बाबा जी, इस मकई के खेत में जितने दाने हैं, क्या वे सब पहले से निर्धारित कर दिए गए हैं कि कौन उनका हकदार है और ये किसके मुँह में जाएँगे?”

इस पर गुरू नानक जी महाराज ने कहा, “बिल्कुल मरदाना जी, इस संसार में कहीं भी कोई भी खाने योग्य वनस्पति है, उस पर मोहर पहले से ही लग गई है और जिसके नाम की मोहर होगी वही जीव उसका ग्रास करेगा।”

गुरू जी की इस बात ने मरदाने के मन में कई सवाल खड़े कर दिए। मरदाने ने मकई के खेत से एक मक्का तोड़ लिया और उसका एक दाना निकाल कर हथेली पर रख लिया। फिर वह गुरू नानक जी महाराज से पूछने लगा, “बाबा जी, कृपा करके आप मुझे बताएँ कि इस दाने पर किसका नाम लिखा है।”

गुरू नानक जी महाराज ने जवाब दिया, “इस दाने पर एक मुर्गी का नाम लिखा है।” मरदाने ने गुरू जी के सामने बड़ी चालाकी दिखाते हुए मकई का वह दाना अपने मुँह में फेंक लिया और कहने लगा, “कुदरत का यह नियम तो बड़ी आसानी से टूट गया।”

जैसे ही मरदाने ने वह दाना निगला, वह दाना उसकी श्वास नली में फंस गया। अब मरदाने की हालत तीर लगे कबूतर जैसी हो गई। मरदाने ने गुरू नानक देव जी को कहा, “बाबा जी, कुछ कीजिए नहीं तो मैं मर जाऊँगा।”

गुरू नानक देव जी महाराज ने कहा, “मरदाना जी, मैं क्या करूँ? कोई वैद्य या हकीम ही इसको निकाल सकता है। पास के गाँव में चलते हैं, वहाँ किसी हकीम को दिखाते हैं।” मरदाने को लेकर वे पास के एक गाँव में चले गए। वहाँ एक हकीम मिला। उस हकीम ने मरदाने की नाक में नसवार डाल दी। नसवार बहुत तेज थी। नसवार सूंघते ही मरदाने को छींके आनी शुरू हो गईं। मरदाने के छींकने से मकई का वह दाना गले से निकल कर बाहर गिर गया। जैसे ही दाना बाहर गिरा, पास ही खड़ी मुर्गी ने झट से वह दाना खा लिया।

मरदाने ने गुरू नानक देव जी से क्षमा माँगी और कहा, “बाबा जी, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने आपकी बात पर शक किया।”

हम जीवों की हालत भी ऐसी ही है। हम इस त्रिलोक में फंसे हुए अंधे कीड़े हैं, जो दर-दर की ठोकरें खाते हैं और खुद को बहुत सियाना समझते हैं। बड़े अच्छे भाग्य से हमें यह शरीर मिला है, बड़े भाग्य से सेवा मिली, सत्संग मिला और सतगुरु ने हम जैसे कीड़ों की जिम्मेदारी लेकर नामदान की बख्शिश भी कर दी। मगर क्या हमने बाबा जी का कहना माना? क्या हमारे संशय खत्म हो गए?

बाबा जी ने हम अंधों को अपना हाथ पकड़ाया है और वह सत्पुरुष हम जीवों को परमात्मा से जरूर मिलाएगा। हमें बिना किसी तर्क-वितर्क, कैसे, क्यों, कहाँ को छोड़कर गुरू का हुक्म मानना चाहिए।

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शनिश्चरा मंदिर मुरैना की कथा

सूर्य पुत्र शनिदेन सभी लोगो को उनके कर्मो के आधार पर सजा देते है, और उनके क्रोध और कुदृष्टि से सभी को भय होता है ! भारत मे शनिदेव के अनेक मन्दिर है,और इन मंदिरो मे सबसे प्राचिन मंदिर माना जाता है, “शनिश्चरा मंदिर” जो मध्य प्रदेश के मुरैना मे स्थित है !

ये मंदिर त्रेतायुग का माना जाता है, जो पुरे भारत मे प्रसिद्ध है और ऐसा माना जाता है की शनिदेव की यह प्रतिमा आसमान से टुट कर गिरी एक उल्का पिण्ड से बनी है ! शनिदेव का यह मंदिर अदभुत और प्रभावशाली है,तथा दुनिया भर से यहां लोग शनिदेव के दर्शन के लिए आते है ! यहां की एक अनोखी परम्परा है ,की शनिदेव की मंदिर मे भक्त शनिदेव की प्रतिमा मे तेल चढाने के बाद उनके गले मिलते है !

ऐसा माना जाता है की ऐसा एक भक्त अपने सभी दुख दर्द शनिदेव के साथ बांटते है ! इसके बाद भक्त घर जाने से पुर्व अपने धारण किये हुए वस्त्र,धोती,जुते,चप्पल मंदिर मे ही छोड जाते है !येसा करने से भक्त को उनके सभी पापो और दरिद्रताओं से मुक्ति मिलती है ! हर शनिचरी अमावश्या को यहां बहुत भिड होती है,और इस दिन यहां बहुत ही विशाल मेला लगता है, तथा लाखो लोग अपने कष्टो को दुर करने के लिए यहां आते है !

पौराणिक कथा के अनुसार रावण ने लंका मे शनिदेव को कैद कर रखा था,लंका जलाते समय हनुमान जी ने शनिदेव को रावण के कैद मे देखा, शनिदेव ने उन्हे इशारो मे निवेदन किया की अगर आप मुझे रावण की कैद से आजाद कर दो तो मै आपको रावण की लंका को नष्ट करने मे मदद करुंगा ! शनितेव रावण की कैद मे काफी दुर्बल हो चुके थे, हनुमान जी ने उन्हे सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के लिए उन्हे लंका से फेंका तब शनिदेव इस स्थान पर आकर प्रतिष्ठित हुए !यहां शनिदेव की असली प्रतिमा है ! महराष्ट्र की शिंगनापुर की प्रतिमा भी यही से लि गई है ! यह भी कहां जाता है की महाभारत युद्ध से पुर्व अर्जुन ने ब्रहाास्त्र पाने के लिए शनिदेव की यहा विधिवत पूजा अर्चना की थी ! इस मंदिर का निर्माण विक्रमादित्यने करवाया था,मराठो के शासन काल मे सिंधिया शासको ने इसका जिर्णोद्धार किया !

पौराणिक शास्त्रो के अनुसार शनि न्याय के देवता एवंभगवान सूर्य के पुत्र है ! शनि को किस्मत चमकाने वाला देवता भी कहा जाता है, शनिदेव मनुष्य के अच्छे कर्मो से प्रसन्न होते है !यही कारण है की उन्हे भाग्य विधाता भी कहां जाता है !

ऐसे भगवान शनिदेव के दस कल्याणकारी नामो का निरन्तर जाप करने से मनुष्य का कल्याण होता है .ज्सोतिष शास्त्रो के अनुसार शनि शुभ होने पर अपार सुख और समृद्धि देते है,

शनि के पवित्र कल्याणकारी नाम :–
१- कोणस्थ
२- पिंगल
३- कृष्ण
४- बभ्रु
५- रौद्रान्तक
६- यम
७- सौरी
८- शनैश्चर
९- मन्द
१०- पिप्पलाश्रय

ऊँ शं शनैश्चराय नमः

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Powerful Prayer

This prayer takes about one minute! Pray it sincerely, and then those you send it to, will pray for you!

God bless me even while I’m reading this prayer and bless the one that sent this to me in a special way.

Open supernatural doors and miracles in our lives today.

Give us a double portion of your Spirit as we regain

Emotional Health, Physical Health, Finances, Success, Loving Relationships, Businesses, Children, Jobs, Homes, Marriages.

I thank you that nothing is over until YOU say it is over.

By Your Grace:

  1. Our households are blessed.
  2. Our offices are blessed.
  3. Our health is blessed.
  4. Our wealth is blessed.
  5. Our mind is blessed.
  6. Our spirit is blessed.
  7. Our relationships are blessed.
  8. Our finances are blessed.
  9. Our businesses are blessed.
  10. Our jobs are blessed
  11. Our grandparents are blessed.
  12. Our parents are blessed.
  13. Our children are blessed.
  14. Our siblings are blessed.
  15. Our grandchildren are blessed.
  16. Our whole family is blessed.
  17. Our friends are blessed.
  18. Our relatives are blessed.
  19. Our temples are blessed.
  20. Our decisions are blessed.
  21. Our dreams are blessed.
  22. Our future is blessed.
  23. Good opportunities are on the way.
    24.Our states, our country and all its people are blessed.
  24. Our Earth is blessed.
  25. Our planets are blessed.
  26. Our Gurumandala is blessed.

Our hearts’ desires are on the way according to YOUR perfect will and plan for our lives.

Pray this prayer, then send it to EVERYBODY YOU KNOW

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कटु सत्य – Harsh Truth

ईसाईयों को इंग्लिश आती है वो बाइबिल पढ लेते है,
उधर मुस्लिम को उर्दू आती है वो कुरान शरीफ़ पढ लेते हैं,

सिखों को गुरबानी का पता है वो श्री गुरू ग्रन्थ साहिब पढ लेते है ।

हिन्दूओ को संस्कृत नही आती वो ना वेद पढ पाते है न उपनिषद ।

इस से बडा दुर्भाग्य क्या होगा हमारा 🔔🌿

संस्कृत ही विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषा है इसे अवश्य सीखें

प्रतिदिन स्मरण योग्य शुभ सुंदर मंत्र। संग्रह

🔹 प्रात: कर-दर्शनम्🔹

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥

     *🔸पृथ्वी क्षमा प्रार्थना🔸*

समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥

🔺त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण🔺

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥

          *♥️ स्नान मन्त्र ♥️*

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥

       *🌞 सूर्यनमस्कार🌞*

ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥

ॐ मित्राय नम:
ॐ रवये नम:
ॐ सूर्याय नम:
ॐ भानवे नम:
ॐ खगाय नम:
ॐ पूष्णे नम:
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
ॐ मरीचये नम:
ॐ आदित्याय नम:
ॐ सवित्रे नम:
ॐ अर्काय नम:
ॐ भास्कराय नम:
ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥

            *🔥दीप दर्शन🔥*

शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥

दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥

        *🌷 गणपति स्तोत्र 🌷*

गणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:।
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥
विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥
विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।

विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय।
लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय।
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं।
प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥

    *⚡आदिशक्ति वंदना ⚡*

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

       *🔴 शिव स्तुति 🔴*

कर्पूर गौरम करुणावतारं,
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।
सदा वसंतं हृदयार विन्दे,
भवं भवानी सहितं नमामि॥

          *🔵 विष्णु स्तुति 🔵*

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

        *⚫ श्री कृष्ण स्तुति ⚫*

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥

मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्‌।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्‌॥

        *⚪ श्रीराम वंदना ⚪*

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥

           *♦श्रीरामाष्टक♦*

हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥

*🔱 एक श्लोकी रामायण 🔱*

आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥

       *🍁सरस्वती वंदना🍁*

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती
निःशेषजाड्याऽपहा॥

        *🔔हनुमान वंदना🔔*

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्‌।
दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्‌।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्‌।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥

     *🌹 स्वस्ति-वाचन 🌹*

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

        *❄ शांति पाठ ❄*

ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्‌ पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:,
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥

॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

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कुम्भ, कुम्भक और मंथन – Kumbh and Churn

कुम्भ, कुम्भक और मंथन!!!!!!!

किस कुंभ में हमें स्नान करना है? प्राचीन काल से ही हम कुंभ में स्नान के इस अनुष्ठान से अवगत हैं। कुंभ मेले के चार स्थल हैं – प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। आमतौर पर हर तीन साल के अंतराल में सांसारिकजन और साधुमण्डली को एक साथ लाने के लिए कुंभ आयोजित किया जाता है, हाँलांकि नासिक और उज्जैन सिंहस्थ कुंभ में, अंतराल कम है। 12 साल का एक चक्र इन चार शहरों में से प्रत्येक में कुंभ के रूप में जाना जाता है। आखिरकार 12 साल का महत्व क्या है?
12 राशियों , 12 ज्योतिर्लिंग और प्रयाग में पूर्णकुंभ का 12 साल का चक्र; संबंध क्या है? हर मनुष्य के बौद्धिक स्तर में 12 साल की अवधि में प्रत्यक्ष परिवर्तन होता है जैसे 0-12, 13-24, 25-36…क्रमानुसार! 12 साल की यह चक्रीयश्रृंखला हमारे सूक्ष्म और कारण शरीर में स्थित छह चक्रों के ध्रुवीकरण (6*2=12) में हुए परिवर्तन की प्रतीति को दर्शाती है।

उदाहरण के लिए प्रयाग में तीन नदियों का मिलन स्थल है; गंगा, यमुना और रहस्यवादी-अनदेखी सरस्वती का संगम। प्रयाग कुंभ में स्नान का अनुष्ठान करने के लिए दूर-दूर से सब पापों को धोने जाते हैं। इस अनुष्ठान की अवधारणा को समझने के लिए वास्तव में गहरा गोता लगाना होगा:

  1. प्रयाग अर्थार्त संगम बिंदु – प्रणव के साथ। भ्रूमध्य ही प्रयाग है।
  2. गंगा अर्थार्त पिंगला नाड़ी, यमुना नदी का मतलब है ईड़ा नाड़ी और सरस्वती यानि सुषुम्ना नाड़ी।
  3. कुंभ अर्थार्त कुंभक, या श्वासरहित चैतन्यराज्य में मन से परे जाने के लिए किपाट खोलना।
  4. सरस्वती, गंगा और यमुना के बीच बह रही नदी – यानि केंद्रिय नाड़ी।
  5. स्नान करने का मतलब है, श्वासरहित स्थूलशरीर में दिव्य चेतना के उस क्षण में डुबकी लेना।
  6. पापों का धुलना अर्थार्त मानव चेतना का दिव्य चेतना में परिवर्तन।
  7. समुद्रमंथन की रूपक कथा में इन चार शहरों में अमृत गिरना – अर्थार्त सनातन चेतना का दिव्य अमृत इन चार शहरों में, प्राचीनकाल से योग प्रथाओं के व्यापक रूप से प्रचलित प्रयासों के कारण अधिक सूक्ष्म ऊर्जारूप में होना।
  8. प्रयाग और हरिद्वार में छह वर्षीय अर्द्ध कुंभ और प्रयाग में 12 साल मानस विकास चक्र का पूर्णकुंभ।
  9. कुंभ मेले का राशि चक्र के अनुसार आयोजन, यानि आंतरिक प्रकृति के साथ आकाशीय प्रकृति का एकीकरण सिद्धांत।
  10. समुद्र मंथन उपरांत अमृत निकलना, यानि सात्विकता तथा काम जनित राग-द्वेष के द्वारा मन का मंथन और फलस्वरूप जन्म-मरण चक्र से बाहर निकल अमरता प्राप्ति।
  11. मंधर पर्वत यानि एकाग्रता और वासुकी मतलब वासनाएं एवं कछुए द्वारा पर्वत को डूबने न देना, यानि प्रत्याहार की शक्ति।
  12. सर्वप्रथम मंथन के परिणामस्वरूप विष निकलना, यानि प्रारंभिक बाधाएँ; एवं शिव का उसको पीना, अर्थार्त योगी की दृद़ता ही उसका हल।
  13. विभिन्न अलौकिक वस्तुओं के निकलने का मतलब, विभिन्न मनोगत शक्तियों एवं सिद्धियों की प्राप्ति।
  14. देवी लक्ष्मी के प्रकट होनेपर उनको विष्णु को उपहार में देना, यानि धर्ता ऊर्जा का ईश्वर को समर्पण।
  15. धनवंतरि (दैवीय चिकित्सक) द्वारा अमृत कलश थामना, यानि अमरता का वरदान।
    (16) मोहिनी द्वारा अमृत का वितरण सिर्फ देवों को – अर्थार्त भगवान अंतत: धर्म के साथ, न कि किसी जाति या संप्रदाय के साथ।

जो ईश्वर को मनरूपी सागर का मंथन कर अंतर में खोज लेगा उसे बाह्रय व्याप्त ईश्वरीय एकत्व भी हासिल होता है; और जो बाह्रय व्याप्त ईश्वर को खोजता है – वह जन्म जन्मांतर खोजता ही रह जाता है।

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कबीर – Kabir ke Dohe

कबीर संगत साधु की, नित प्रति कीजै जाय |
दुरमति दूर बहावासी, देशी सुमति बताय ||

गुरु कबीर जी कहते हैं कि प्रतिदिन जाकर संतों की संगत करो | इससे तुम्हारी दुबुद्धि दूर हो जायेगी और सन्त सुबुद्धि बतला देंगे |

कबीर संगत साधु की, जौ की भूसी खाय |
खीर खांड़ भोजन मिलै, साकत संग न जाय ||

सन्त कबीर जी कहते हैं, सतों की संगत मैं, जौं की भूसी खाना अच्छा है | खीर और मिष्ठान आदि का भोजन मिले, तो भी साकत के संग मैं नहीं जाना चहिये |

कबीर संगति साधु की, निष्फल कभी न होय |
ऐसी चंदन वासना, नीम न कहसी कोय ||

संतों की संगत कभी निष्फल नहीं होती | मलयगिर की सुगंधी उड़कर लगने से नीम भी चन्दन हो जाता है, फिर उसे कभी कोई नीम नहीं कहता |

एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध |
कबीर संगत साधु की, कटै कोटि अपराध ||

एक पल आधा पल या आधे का भी आधा पल ही संतों की संगत करने से मन के करोडों दोष मिट जाते हैं |

कोयला भी हो ऊजला, जरि बरि हो जो सेत |
मूरख होय न अजला, ज्यों कालम का खेत ||

कोयला भी उजला हो जाता है जब अच्छी तरह से जलकर उसमे सफेदी आ जाती है | लकिन मुर्ख का सुधरना उसी प्रकार नहीं होता जैसे ऊसर खेत में बीज नहीं उगते |

ऊँचे कुल की जनमिया, करनी ऊँच न होय |
कनक कलश मद सों भरा, साधु निन्दा कोय ||

जैसे किसी का आचरण ऊँचे कुल में जन्म लेने से,ऊँचा नहीं हो जाता | इसी तरह सोने का घड़ा यदि मदिरा से भरा है, तो वह महापुरषों द्वारा निन्दित ही है |

जीवन जोवत राज मद, अविचल रहै न कोय |
जु दिन जाय सत्संग में, जीवन का फल सोय ||

जीवन, जवानी तथा राज्य का भेद से कोई भी स्थिर नहीं रहते | जिस दिन सत्संग में जाइये, उसी दिन जीवन का फल मिलता है |

साखी शब्द बहुतक सुना, मिटा न मन का मोह |
पारस तक पहुँचा नहीं, रहा लोह का लोह ||

ज्ञान से पूर्ण बहुतक साखी शब्द सुनकर भी यदि मन का अज्ञान नहीं मिटा, तो समझ लो पारस – पत्थर तक न पहुँचने से, लोहे का लोहा ही रह गया |

सज्जन सो सज्जन मिले, होवे दो दो बात |
गदहा सो गदहा मिले, खावे दो दो लात ||

सज्जन व्यक्ति किसी सज्जन व्यक्ति से मिलता है तो दो दो अच्छी बातें होती हैं | लकिन गधा गधा जो मिलते हैं, परस्पर दो दो लात खाते हैं |

कबीर विषधर बहु मिले, मणिधर मिला न कोय |
विषधर को मणिधर मिले, विष तजि अमृत होय ||

सन्त कबीर जी कहते हैं कि विषधर सर्प बहुत मिलते है, मणिधर सर्प नहीं मिलता | यदि विषधर को मणिधर मिल जाये, तो विष मिटकर अमृत हो जाता है |

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वरमाला पवित्र कार्य बनता मजाक

आजकल शादियों में ये बात काफी नजर आ रही है, कि शादी के समय स्टेज पर वरमाला के वक्त वर या दूल्हा बड़ा तनकर खड़ा हो जाता है, जिससे दुल्हन को वरमाला डालने में काफी कठिनाई होती है, कभी कभी वर पक्ष के लोग दूल्हे को गोद में उठा लेते हैं, और फिर वधु पक्ष के लोग भी वधु को गोद में उठाकर जैसे तैसे वरमाला कार्यक्रम सम्पन्न करवा पाते हैं

आखिर ऐसा क्यों? क्या करना चाहते हैं हम? हम एक पवित्र संबंध जोड़ रहे हैं, या इस नये संबंध को मजाक बना रहे है, और अपनी जीवनसँगनी को हजार-पांच सौ लोगो के बीच हम उपहास का पात्र बनाकर रह जाते हैं, कोई प्रतिस्पर्धा नही हो रही है, दंगल या अखाड़े का मैदान नही है, पवित्र मंडप है जहां देवी-देवताओं और पवित्र अग्नि का आवाहन होता है।

भगवान् प्रभु श्रीराम जी ने सम्मान सहित कितनी सहजता से सिर झुकाकर सीता जी से वरमाला पहनी थी?

रामो विग्रहवानो धर्म:।

यही हमारी परंपरा है।
विवाह एक पवित्र बंधन है, संस्कार है, कृपया इसको मजाक ना बनने दे।

जय श्रीराधे कृष्णा

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