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श्री श्री दामोदराष्टकं

नमामीश्वरं सच्चिदानन्दरूपं
लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम् ।
यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं
परामृष्टमत्यन्ततो द्रुत्य गोप्या ॥ १ ॥

वह भगवान जिनका रूप सत, चित और आनंद से परिपूर्ण है, जिनके मकरो के आकार के कुंडल इधर उधर हिल रहे है, जो गोकुल नामक अपने धाम में नित्य शोभायमान है, जो (दूध और दही से भरी मटकी फोड़ देने के बाद) मैय्या यशोदा की डर से ओखल से कूदकर अत्यंत तेजीसे दौड़ रहे है और जिन्हें यशोदा मैय्या ने उनसे भी तेज दौड़कर पीछे से पकड़ लिया है ऐसे श्री भगवान को मै नमन करता हू ।।1।।

रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं
कराम्भोजयुग्मेन सातङ्कनेत्रम् ।
मुहुः श्वासकम्पत्रिरेखाङ्ककण्ठ-
स्थितग्रैव-दामोदरं भक्तिबद्धम् ॥ २ ॥

(अपने माता के हाथ में छड़ी देखकर) वो रो रहे है और अपने कमल जैसे कोमल हाथो से दोनों नेत्रों को मसल रहे है, उनकी आँखे भय से भरी हुयी है और उनके गले का मोतियो का हार, जो शंख के भाति त्रिरेखा से युक्त है, रोते हुए जल्दी जल्दी श्वास लेने के कारण इधर उधर हिल-डुल रहा है , ऐसे उन श्री भगवान् को जो रस्सी से नहीं बल्कि अपने माता के प्रेम से बंधे हुए है मै नमन करता हुँ।।

इतीदृक् स्वलीलाभिरानन्दकुण्डे
स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम् ।
तदीयेषिताज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं
पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे ॥ ३ ॥

ऐसी बाल्यकाल की लीलाओ के कारण वे गोकुल के रहिवासीओ को आध्यात्मिक प्रेम के आनंद कुंड में डुबो रहे है, और जो अपने ऐश्वर्य सम्पूर्ण और ज्ञानी भक्तो को ये बतला रहे है की “मै अपने ऐश्वर्य हिन और प्रेमी भक्तो द्वारा जीत लिया गया हु”, ऐसे उन दामोदर भगवान को मै शत शत नमन करता हु ।।

वरं देव मोक्षं न मोक्षावधिं वा
न चान्यं वृणेऽहं वरेषादपीह ।
इदं ते वपुर्नाथ गोपालबालं
सदा मे मनस्याविरास्तां किमन्यैः ॥ ४ ॥

हे भगवन, आप सभी प्रकार के वर देने में सक्षम होने पर भी मै आप से ना ही मोक्ष की कामना करता हु, ना ही मोक्षका सर्वोत्तम स्वरुप श्री वैकुंठ की इच्छा रखता हु, और ना ही नौ प्रकार की भक्ति से प्राप्त किये जाने वाले कोई भी वरदान की कामना करता हु । मै तो आपसे बस यही प्रार्थना करता हु की आपका ये बालस्वरूप मेरे हृदय में सर्वदा स्थित रहे, इससे अन्य और कोई वस्तु का मुझे क्या लाभ ?

इदं ते मुखाम्भोजमत्यन्तनीलैर्-
वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश्च गोप्या ।
मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्तधरं मे
मनस्याविरास्तां अलं लक्षलाभैः ॥ ५ ॥

हे प्रभु, आपका श्याम रंग का मुखकमल जो कुछ घुंघराले लाल बालो से आच्छादित है, मैय्या यशोदा द्वारा बार बार चुम्बन किया जा रहा है, और आपके ओठ बिम्बफल जैसे लाल है, आपका ये अत्यंत सुन्दर कमलरुपी मुख मेरे हृदय में विराजीत रहे । (इससे अन्य) सहस्त्रो वरदानो का मुझे कोई उपयोग नहीं है ।

नमो देव दामोदरानन्त विष्णो
प्रसीद प्रभो दुःखजालाब्धिमग्नम् ।
कृपादृष्टिवृष्ट्यातिदीनं बतानु
गृहाणेश मां अज्ञमेध्यक्षिदृश्यः ॥ ६ ॥

हे प्रभु, मेरा आपको नमन है । हे दामोदर, हे अनंत, हे विष्णु, आप मुझपर प्रसन्न होवे (क्यूंकि) मै संसाररूपी दुःख के समुन्दर में डूबा जा रहा हु । मुझ दिन हिन पर आप अपनी अमृतमय कृपा की वृष्टि कीजिये और कृपया मुझे दर्शन दीजिये ।।

कुवेरात्मजौ बद्धमूर्त्यैव यद्वत्
त्वया मोचितौ भक्तिभाजौ कृतौ च ।
तथा प्रेमभक्तिं स्वकं मे प्रयच्छ
न मोक्षे ग्रहो मेऽस्ति दामोदरेह ॥ ७ ॥

हे दामोदर (जिनके पेट से रस्सी बंधी हुयी है वो), आपने माता यशोदा द्वारा ओखल में बंधे होने के बाद भी कुबेर के पुत्रो (मणिग्रिव तथा नलकुबेर) जो नारदजी के श्राप के कारण वृक्ष के रूप में मूर्ति की तरह स्थित थे, उनका उद्धार किया और उनको भक्ति का वरदान दिया, आप उसी प्रकार से मुझे भी प्रेमभक्ति प्रदान कीजिये, यही मेरा एकमात्र आग्रह है, किसी और प्रकार की कोई भी मोक्ष के लिए मेरी कोई कामना नहीं है ।

नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने ।
नमो राधिकायै त्वदीयप्रियायै
नमोऽनन्तलीलाय देवाय तुभ्यम् ॥ ८ ॥

हे दामोदर, आपके उदर से बंधी हुयी महान रज्जू (रस्सी) को प्रणाम है, और आपके उदर, जो निखिल ब्रह्म तेज का आश्रय है, और जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का धाम है, को भी प्रणाम है । श्रीमती राधिका जो आपको अत्यंत प्रिय है उन्हें भी प्रणाम है, और हे अनंत लीलाएँ करने वाले भगवन, आपको प्रणाम है ।

हरे कृष्ण


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मंदिर में दर्शन

मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है?

बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं, तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पैड़ी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठना चाहिए। क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है?

आजकल लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर, व्यापार, और राजनीति की चर्चा करते हैं, परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई थी। वास्तव में, मंदिर की पैड़ी पर बैठकर हमें एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं। आप इस श्लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं। यह श्लोक इस प्रकार है:

अनायासेन मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्ते तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम्।।

इस श्लोक का अर्थ है:

अनायासेन मरणम् – अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े-पड़े, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हों। चलते-फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं।

बिना देन्येन जीवनम् – अर्थात परवशता का जीवन ना हो। मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े, जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है। ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके।

देहांते तव सानिध्यम् – अर्थात जब भी मृत्यु हो, तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए थे और उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले।

देहि मे परमेश्वरम् – हे परमेश्वर, ऐसा वरदान हमें देना।

यह प्रार्थना करें। गाड़ी, लाडी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन यह सब नहीं मांगना है। यह तो भगवान आपकी पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं। इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। यह प्रार्थना है, याचना नहीं है। याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है, जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है, वह याचना है और वह भीख है।

हम प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है – विशिष्ट, श्रेष्ठ। अर्थना अर्थात निवेदन। ठाकुर जी से प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या करना है, यह श्लोक बोलना है।

जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं, तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए। उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं। आंखें बंद क्यों करना? हम तो दर्शन करने आए हैं। भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, मुखारविंद का, श्रंगार का, संपूर्ण आनंद लें। आंखों में भर लें स्वरूप को। दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठें तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं, उस स्वरूप का ध्यान करें।

मंदिर में नेत्र नहीं बंद करना। बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें, तब नेत्र बंद करें। अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें। नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें।

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प्रत्यक्ष नव दुर्गाऐं

नव दुर्गाओं की नव रात्रियों में हम हर साल पूजा करते हैं। कहते हैं कि वे अनेकों ऋद्धि-सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। सुख सुविधाओं की उपलब्धि के लिए, उनकी कृपा और सहायता करने के लिए विविध विधि साधन पूजन किये जाते हैं। जिस प्रकार देवलोक में निवासिनी नवदुर्गाऐं हैं उसी प्रकार भू-लोक में निवास करने वाली, हमारे अत्यन्त समीप-शरीर और मस्तिष्क में ही रहने वाली—नौ प्रत्यक्ष देवियाँ भी हैं और उनकी साधना का प्रत्यक्ष परिणाम भी मिलता है।

देव-लोक वासिनी देवियों के प्रसन्न होने और न होने की बात संदिग्ध भी हो सकती है पर शरीर लोक में रहने वाली इन देवियों की साधना का श्रम कभी भी व्यर्थ नहीं जा सकता। यदि थोड़ा भी प्रयत्न इनकी साधना के लिए किया जाय तो उसका भी समुचित लाभ मिल जाता है।

हमारे मनःक्षेत्र में विचरण करने वाली इन नौ देवियों के नाम हैं:—

  • (1) आकाँक्षा
  • (2) विचारणा
  • (3) भावना
  • (4) श्रद्धा
  • (5) निष्ठा
  • (6) प्रवृत्ति
  • (7) क्षमता
  • (8) क्रिया
  • (9) मर्यादा।

इनका संतुलित विकास करके मनुष्य अष्ट-सिद्धियों और नव-सिद्धियों का स्वामी बन सकता है। संसार के प्रत्येक प्रगतिशील मनुष्य को जाने या अनजाने में इनकी साधना करनी ही पड़ी है और इन्हीं के अनुग्रह से उन्हें उन्नति के उच्च शिखर पर चढ़ने का अवसर मिला है।

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जीवन में सफलता की कुंजी है “सिद्ध कुंजिका”

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की महिमा

दुर्गा सप्तशती में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक अत्यंत चमत्कारिक और तीव्र प्रभाव दिखाने वाला स्तोत्र है। जो लोग पूरी दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते वे केवल कुंजिका स्तोत्र का पाठ करेंगे तो उससे भी संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का फल मिल जाता है। भगवान शंकर कहते हैं कि सिद्धकुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले को देवी कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास और यहां तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है। केवल कुंजिका के पाठ मात्र से दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जाता है।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ की विधि

कुंजिका स्तोत्र का पाठ वैसे तो किसी भी माह, दिन में किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि में यह अधिक प्रभावी होता है। नवरात्रि के प्रथम दिन से नवमी तक प्रतिदिन इसका पाठ किया जाता है। साधक प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर अपने पूजा स्थान को साफ करके लाल रंग के आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। सामान्य पूजन करें।

अपनी सुविधानुसार तेल या घी का दीपक लगाएं और देवी को हलवे या मिष्ठान्न् का नैवेद्य लगाएं। इसके बाद अपने दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प, एक रुपए का सिक्का रखकर नवरात्रि के नौ दिन कुंजिका स्तोत्र का पाठ संयम-नियम से करने का संकल्प लें। यह जल भूमि पर छोड़कर पाठ प्रारंभ करें। यह संकल्प केवल पहले दिन लेना है। इसके बाद प्रतिदिन उसी समय पर पाठ करें।

कुंजिका स्तोत्र के लाभ

  1. धन लाभ: जिन लोगों को सदा धन का अभाव रहता हो, लगातार आर्थिक नुकसान हो रहा हो, बेवजह के कार्यों में धन खर्च हो रहा हो, उन्हें कुंजिका स्तोत्र के पाठ से लाभ होता है। धन प्राप्ति के नए मार्ग खुलते हैं।
  2. शत्रु मुक्ति: शत्रुओं से छुटकारा पाने और मुकदमों में जीत के लिए यह स्तोत्र किसी चमत्कार की तरह काम करता है।
  3. रोग मुक्ति: दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ जीवन से रोगों का समूल नाश कर देते हैं।
  4. कर्ज मुक्ति: यदि किसी व्यक्ति पर कर्ज चढ़ता जा रहा है, तो कुंजिका स्तोत्र का नियमित पाठ जल्द कर्ज मुक्ति करवाता है।
  5. सुखद दांपत्य जीवन: दांपत्य जीवन में सुख-शांति के लिए कुंजिका स्तोत्र का नियमित पाठ किया जाना चाहिए।

इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक

  1. देवी दुर्गा की आराधना, साधना और सिद्धि के लिए तन, मन की पवित्रता होना अत्यंत आवश्यक है।
  2. साधना काल या नवरात्रि में इंद्रिय संयम रखना जरूरी है।
  3. कुंजिका स्तोत्र का पाठ बुरी कामनाओं, किसी के मारण, उच्चाटन और किसी का बुरा करने के लिए नहीं करना चाहिए।
  4. साधना काल में मांस, मदिरा का सेवन न करें। मैथुन के बारे में विचार भी मन में न लाएं।

सिद्ध कुंजिका मंत्र

  1. संक्षिप्त मंत्र: “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।”
  2. संपूर्ण मंत्र: “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”

कैसे करें

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को अत्यंत सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए। प्रतिदिन की पूजा में इसको शामिल कर सकते हैं। लेकिन यदि अनुष्ठान के रूप में या किसी इच्छाप्राप्ति के लिए कर रहे हैं तो आपको कुछ सावधानी रखनी होंगी।

  1. संकल्प: सिद्ध कुंजिका पढ़ने से पहले हाथ में अक्षत, पुष्प और जल लेकर संकल्प करें। मन ही मन देवी मां को अपनी इच्छा कहें।
  2. जितने पाठ एक साथ (1, 2, 3, 5, 7, 11) कर सकें, उसका संकल्प करें। अनुष्ठान के दौरान माला समान रखें।
  3. सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के अनुष्ठान के दौरान जमीन पर शयन करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  4. प्रतिदिन अनार का भोग लगाएं। लाल पुष्प देवी भगवती को अर्पित करें।
  5. सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में दशों महाविद्या, नौ देवियों की आराधना है।

सिद्धकुंजिका स्तोत्र के पाठ का समय

  1. रात्रि 9 बजे करें तो अत्युत्तम।
  2. रात को 9 से 11.30 बजे तक का समय रखें।

आसन

लाल आसन पर बैठकर पाठ करें

दीपक

घी का दीपक दायें तरफ और सरसो के तेल का दीपक बाएं तरफ रखें।

किस इच्छा के लिए कितने पाठ करने हैं

  1. विद्या प्राप्ति के लिए: पांच पाठ (अक्षत लेकर अपने ऊपर से तीन बार घुमाकर किताबों में रख दें)
  2. यश-कीर्ति के लिए: पांच पाठ (देवी को चढ़ाया हुआ लाल पुष्प लेकर सेफ आदि में रख लें)
  3. धन प्राप्ति के लिए: नौ पाठ (सफेद तिल से अग्यारी करें)
  4. मुकदमे से मुक्ति के लिए: सात पाठ (पाठ के बाद एक नींबू काट दें। दो ही हिस्से हों ध्यान रखें। इनको बाहर अलग-अलग दिशा में फेंक दें)
  5. ऋण मुक्ति के लिए: सात पाठ (जौं की 21 आहुतियां देते हुए अग्यारी करें। जिसको पैसा देना हो या जिससे लेना हो, उसका बस ध्यान कर लें)
  6. घर की सुख-शांति के लिए: तीन पाठ (मीठा पान देवी को अर्पण करें)
  7. स्वास्थ्य के लिए: तीन पाठ (देवी को नींबू चढ़ाएं और फिर उसका प्रयोग कर लें)
  8. शत्रु से रक्षा के लिए: 3, 7 या 11 पाठ (लगातार पाठ करने से मुक्ति मिलेगी)
  9. रोजगार के लिए: 3, 5, 7 और 11 (ऐच्छिक) (एक सुपारी देवी को चढ़ाकर अपने पास रख लें)
  10. सर्वबाधा शांति: तीन पाठ (लोंग के तीन जोड़े अग्यारी पर चढ़ाएं या देवी जी के आगे तीन जोड़े लोंग के रखकर फिर उठा लें और खाने या चाय में प्रयोग कर लें)
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श्री बजरंग बाण का पाठ

दोहा :

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

चौपाई :

जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥

जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥

बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥

अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥

अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥

जय हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥

बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥

इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥

जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥

बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥

जय जय जय धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥

उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥

ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥

यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥

यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥

दोहा :

उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥

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श्री हनुमान चालीसा

दोहा :

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई :

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।

रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।

कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। कांधे मूंज जनेऊ साजै।।

संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बन्दन।।

विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना।।

जुग सहस्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।

दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।

संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।

और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।

साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।

राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम-जनम के दुख बिसरावै।।

अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।

दोहा :

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

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गौ माता का शास्त्र पुराणों में महात्मय

गाय की महिमा पर पवित्र ग्रंथों के उद्धरण:

स्वप्न में गाय का दर्शन:

  • स्वप्न में गाय अथवा वृषभ के दर्शन से कल्याण, लाभ एवं व्याधि का नाश होता है। स्वप्न में गाय के थन को चूसना भी श्रेष्ठ माना जाता है। स्वप्न में गाय का घर में ब्या देना, वृषभ की सवारी करना, तालाब के बीच में घी मिश्रित खीर का भोजन उत्तम माना गया है। घी सहित खीर का भोजन राज्य प्राप्ति का सूचक माना गया है।
  • स्वप्न में ताजे दुहे हुए फेन सहित दुग्ध का पान करने से अनेक भोगों की प्राप्ति होती है। दही देखने से प्रसन्नता मिलती है। जो व्यक्ति वृषभ से युक्त रथ पर स्वप्न में अकेला सवार होता है और उसी अवस्था में जाग जाता है, उसे शीघ्र धन मिलता है। स्वप्न में दही मिलने से धन की, घी मिलने से यश की, और दही खाने से यश की प्राप्ति निश्चित है।
  • यात्रा आरम्भ करते समय दही और दूध का दिखना शुभ शकुन माना गया है। स्वप्न में दही भात का भोजन करने से कार्य सिद्धि होती है तथा बैल पर चढ़ने से द्रव्य लाभ और व्याधि से छुटकारा मिलता है। स्वप्न में वृषभ अथवा गाय का दर्शन करने से कुटुम्ब की वृद्धि होती है। स्वप्न में सभी काली वस्तुओं का दर्शन निन्द्य माना गया है, केवल कृष्णा गाय का दर्शन शुभ होता है। (स्वप्न में गोदर्शन का फल, संतो के श्री मुख से सुना हुआ)

गाय की महिमा:

  • वृषभ को जगत का पिता और गायों को संसार की माता समझना चाहिए। उनकी पूजा से सम्पूर्ण पितरों और देवताओं की पूजा हो जाती है। जिनके गोबर से लीपने पर सभा भवन, पौसले, घर और देवमंदिर शुद्ध हो जाते हैं, उन गायों से बढ़कर और कौन प्राणी हो सकता है? जो व्यक्ति एक साल तक स्वयं भोजन करने से पहले प्रतिदिन दूसरे की गायों को मुट्ठी भर घास खिलाता है, उसे हर समय गौ सेवा का फल प्राप्त होता है। (महाभारत, आश्वमेधिकपर्व, वैष्णवधर्म)
  • देवता, ब्राह्मण, गाय, साधु और साध्वी स्त्रियों के बल पर यह सारा संसार टिका हुआ है, इसी से वे परम पूजनीय हैं। गायें जिस स्थान पर जल पीती हैं, वह स्थान तीर्थ है। गंगा आदि पवित्र नदियाँ गोस्वरूपा ही हैं। जहाँ गायें जलराशि को लांघती हुई नदी आदि को पार करती हैं, वहाँ गंगा, यमुना, सिंधु, सरस्वती आदि नदियाँ या तीर्थ निश्चित रूप से विद्यमान रहते हैं। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण, द्वितीय खंड ४२। ४९-५८)
  • हे ब्राह्मणों! गाय के खुर से उत्पन्न धूलि समस्त पापों को नष्ट कर देने वाली है। यह धूलि चाहे तीर्थ की हो चाहे निकृष्ट देशों की, यह सब प्रकार की मङ्गलकारिणी, पवित्र करने वाली और दुख दरिद्रता रूपी अलक्ष्मी को नष्ट करने वाली है। गायों के निवास से पृथ्वी भी शुद्ध हो जाती है। जहाँ गायें बैठती हैं, वह स्थान, वह घर सर्वथा पवित्र हो जाता है। वहाँ कोई दोष नहीं रहता। उनके श्वास की हवा देवताओं के लिये नीराज़न के समान है। गायों का स्पर्श बड़ा पुण्यदायक है और इससे समस्त दु:स्वप्न, पाप आदि नष्ट हो जाते हैं। गायों के गर्दन और मस्तक के बीच साक्षात् भगवती गंगा का निवास है। गायें सर्वदेवमयी और सर्वतीर्थमयी हैं। उनके रोएँ भी बड़े ही पवित्र और पुण्यदायक हैं। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण, भगवान् हंस ब्राह्मणों से)
  • ब्राह्मणों! गायों के शरीर को खुजलाने से या उनके शरीर के कीटाणुओं को दूर करने से मनुष्य अपने समस्त पापों को धो डालता है। गायों को गोग्रास दान करने से महान् पुण्य की प्राप्ति होती है। गायों को चराकर उन्हें जलाशय तक घुमाकर जल पिलाने से मनुष्य अनन्त वर्षों तक स्वर्ग में निवास करता है। गायों के प्रचार के लिये गोचर भूमि की व्यवस्था कर मनुष्य नि:संदेह अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है। गायों के लिये गोशाला का निर्माण कर मनुष्य पूरे नगर का स्वामी बन जाता है और उन्हें नमक खिलाने से महान सौभाग्य की प्राप्ति होती है। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण, भगवान् हंस ब्राह्मणों से)
  • विपत्ति में, कीचड़ में फंसी हुई, या चोर तथा बाघ आदि के भय से व्याकुल गाय को क्लेश से मुक्त कर मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है। रुग्णावस्था में गायों को औषधि प्रदान करने से स्वयं मनुष्य सभी रोगों से मुक्त हो जाता है। गायों को भय से मुक्त करने पर मनुष्य स्वयं भी सभी भय से मुक्त हो जाता है। चांडाल के हाथ से गाय को खरीद लेने पर गोमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। किसी अन्य के हाथ से गाय को खरीदकर उसका पालन करने से गोपालक को गोमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। गायों की शीत तथा धूप से रक्षा करने पर स्वर्ग की प्राप्ति होती है। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण, भगवान् हंस ब्राह्मणों से)
  • गोमूत्र, गोमय, गोदुग्ध, गोदधि, गोघृत और कुशोदक यह पञ्चगव्य स्नानीय और पेयद्रव्यों में परम पवित्र कहा गया है। ये सब मङ्गलमय पदार्थ भूत, प्रेत, पिशाच, राक्षस आदि से रक्षा करने वाले परममङ्गल तथा कलियुग के दुख-दोषों को नाश करने वाले हैं। गोरोचना भी इसी प्रकार राक्षस, सर्प विष तथा सभी रोगों को नष्ट करने वाली एवं परम धन्य है। जो प्रात:काल उठकर अपना मुख गोघृत पात्र में रखे घी में देखता है, उसकी दुख दरिद्रता सर्वदा के लिये समाप्त हो जाती है और फिर पाप का बोझ नहीं ठहरता। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण, राजनीति एवं धर्मशास्त्र के सम्यक ज्ञाता पुष्कर जी भगवान् परशुराम से)

• गायों, गोकुल, गोमय आदि पर थूकना नहीं चाहिए। (पुष्कर परशुराम संवाद)

• जो गौओं के चलने के मार्ग में या चरागाह में जल की व्यवस्था करता है, वह वरुणलोक को प्राप्त कर वहां दस हजार वर्षों तक विहार करता है। गोचरभूमि को हल आदि से जोतने पर चौदह इन्द्रों तक भीषण नरक की प्राप्ति होती है। हे परशुराम जी! जो गायों के पानी पीते समय विघ्न डालता है, उसे मानना चाहिए कि उसने घोर ब्रह्महत्या की। सिंह, व्याघ्र आदि के भय से डरी हुई गाय की जो रक्षा करता है और कीचड़ में फंसी हुई गाय का उद्धार करता है, वह कल्प पर्यन्त स्वर्गीय भोगों का भोग करता है। गायों को घास प्रदान करने से वह व्यक्ति अगले जन्म में रूपवान हो जाता है और उसे लावण्य तथा महान सौभाग्य की प्राप्ति होती है। (पुष्कर परशुराम संवाद)

• हे परशुराम जी! गायों को बेचना कल्याणकारी नहीं है। गायों का नाम लेने से भी मनुष्य पापों से शुद्ध हो जाता है। गौओं का स्पर्श सभी पापों का नाश करने वाला तथा सभी प्रकार के सौभाग्य एवं मङ्गल का विधायक है। गौओं का दान करने से अनेक कुलों का उद्धार होता है।

मातृकुल, पितृकुल और भार्याकुल में जहां एक भी गो माता निवास करती है वहां रजस्वला और प्रसूति की अपवित्रता भी नहीं आती और पृथ्वी में अस्थि, लोहा होने का, धरती के आकार प्रकार की विषमता का दोष भी नष्ट हो जाता है। गौओं के श्वास-प्रश्वास से घर में महान् शान्ति होती है। सभी शास्त्रों में गौओं के श्वास-प्रश्वास को महानीराजन कहा गया है। हे परशुराम! गौओं को छु देने मात्र से मनुष्यों के सारे पाप क्षीण हो जाते हैं। (पुष्कर परशुराम संवाद)

• जिसको गाय का दूध, दही और घी खाने का सौभाग्य नहीं प्राप्त होता, उसका शरीर मल के समान है। अन्न आदि पाँच रात तक, दूध सात रात तक, दही बीस रात तक और घी एक मास तक शरीर में अपना प्रभाव रखता है। जो लगातार एक मास तक बिना गव्य (गाय के दूध से उत्पन्न पदार्थ) भोजन करता है, उस मनुष्य के भोजन में प्रेतों को भाग मिलता है। इसलिये प्रत्येक युग में सब कार्यों के लिये एकमात्र गौ ही प्रशस्त मानी गयी है। गौ सदा और सब समय धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चारों पुरुषार्थ प्रदान करने वाली है। (पद्मपुराण, ब्रह्माजी और नारद मुनि संवाद)

• गायों से उत्पन्न दूध, दही, घी, गोबर, मूत्र और गोरोचना ये छ: अंग (गोषडङ्ग) अत्यन्त पवित्र हैं और प्राणियों के सभी पापों को नष्ट कर उन्हें शुद्ध करने वाले हैं। श्रीसम्पन्न बिल्व वृक्ष गौओं के गोबर से ही उत्पन्न हुआ है। यह भगवान् शिवजी को अत्यन्त प्रिय है। चूँकि उस वृक्ष में पद्महस्ता भगवती लक्ष्मी साक्षात् निवास करती हैं, इसलिये इसे श्रीवृक्ष भी कहा गया है। बाद में नीलकमल एवं रक्तकमल के बीज भी गोबर से ही उत्पन्न हुए थे। गौओं के मस्तक से उत्पन्न परम पवित्र गोरोचना सभी अभीष्टों की सिद्धि करने वाली तथा परम मङ्गलदायिनी है।

अत्यन्त सुगन्धित गुग्गुल नामक पदार्थ गौओं के मूत्र से ही उत्पन्न हुआ है। यह देखने से भी कल्याण करता है। यह गुग्गुल सभी देवताओं का आहार है, विशेष रूप से भगवान् शंकर का प्रिय आहार है। संसार के सभी मङ्गलप्रद बीज एवं सुन्दर से सुन्दर आहार तथा मिष्टान्न आदि सब के सब गाय के दूध से ही बनाये जाते हैं। सभी प्रकार की मङ्गल कामनाओं को सिद्ध करने के लिये गाय का दही लोकप्रिय है। देवताओं को तृप्त करने वाला अमृत नामक पदार्थ गाय के घी से ही उत्पन्न हुआ है। (भविष्यपुराण, उत्तरपर्व, अ.६९, भगवान् श्रीकृष्ण युधिष्ठीर संवाद)

• गायों को खुजलाना तथा उन्हें स्नान कराना भी गोदान के समान फल वाला होता है। जो भय से दुखी (भयग्रस्त) एक गाय की रक्षा करता है, उसे सौ गोदान का फल प्राप्त होता है। पृथ्वी में समुद्र से लेकर जितने भी बड़े तीर्थ-सरिता-सरोवर आदि हैं, वे सब मिलकर भी गौ के सींग के जल से स्नान करने के षोडशांश के तुल्य भी नहीं होते। (बृहत्पराशर स्मृति, अध्याय ५)

• राम-वनवास के समय भरत १४ वर्ष तक इसी कारण स्वस्थ रहकर आध्यात्मिक उन्नति करते रहे, क्योंकि वे अन्न के साथ गोमूत्र का सेवन करते थे।

गोमूत्रयावकं श्रुत्वा भ्रातरं वल्कलाम्बरम्।। (श्रीमद्भागवत ९ । १० । ३४)

• गोमाता का दर्शन एवं उन्हें नमस्कार करके उनकी परिक्रमा करें। ऐसा करने से सातों द्वीपों सहित भूमण्डल की प्रदक्षिणा हो जाती है। गौएँ समस्त प्राणियों की माताएँ एवं सारे सुख देने वाली हैं। वृद्धि की आकांक्षा करने वाले मनुष्य को नित्य गो माताओं की प्रदक्षिणा करनी चाहिए।

• जिस व्यक्ति के पास श्राद्ध के लिये कुछ भी न हो, वह यदि पितरों का ध्यान करके गो माता को श्रद्धापूर्वक घास खिला दे तो उसे श्राद्ध का फल मिल जाता है। (निर्णयसिंधु)

• गौ माताएँ समस्त प्राणियों की माता हैं और सारे सुखों को देने वाली हैं, इसलिये कल्याण चाहने वाले मनुष्य सदा गोओं की प्रदक्षिणा करें। गायों को लात न मारे। गायों के बीच से होकर न निकले। मङ्गल की आधारभूत गो-देवियों की सदा पूजा करें। (महा, अनु ६९ । ७-८)

• जब गायें चर रही हों या एकांत में बैठी हों, तब उन्हें तंग न करें। प्यास से पीड़ित होकर जब भी क्रोध से अपने स्वामी की ओर देखती है तो उसका बंधु-बांधव सहित नाश हो जाता है। राजाओं को चाहिए कि गोपालन और गो-रक्षण करें। उतनी ही संख्या में गायें रखें, जितनी का अच्छी तरह भरण-पोषण हो सके। गाय कभी भी भूख से पीड़ित न रहे, इस बात पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।

• जिसके घर में गाय भूख से व्याकुल होकर रोती है, वह निश्चय ही नरक में जाता है। जो पुरुष गायों के घर में सर्दी न पहुँचने का और जल के बर्तन को शुद्ध जल से भर रखने का प्रबन्ध कर देता है, वह ब्रह्मलोक में आनंद भोग करता है।

• जो मनुष्य सिंह, बाघ अथवा और किसी भय से डरी हुई, कीचड़ में धंसी हुई या जल में डूबती हुई गाय को बचाता है, वह एक कल्प तक स्वर्ग-सुख का भोग करता है। गाय की रक्षा, पूजा और पालन अपनी सगी माता के समान करना चाहिए। जो मनुष्य गायों को ताड़ना देता है, उसे रौरव नरक की प्राप्ति होती है। (हेभाद्रि)

• गोबर और गोमूत्र से अलक्ष्मी का नाश होता है, इसलिये उनसे कभी घृणा न करें। जिसके घर में प्यासी गाय बंधी रहती है, रजस्वला कन्या अविवाहित रहती है और देवता बिना पूजन के रहते हैं, उसके पूर्वकृत सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं। गायें जब इच्छानुसार चरती होती हैं, उस समय जो मनुष्य उन्हें रोकता है, उसके पूर्व पितृगण पतनोन्मुख होकर कांप उठते हैं। जो मनुष्य मूर्खतावश गायों को लाठी से मारते हैं, उनको बिना हाथ के होकर यमपुरी में जाना पड़ता है। (पद्मपुराण, पाताल .अ १८)

• गाय को यथायोग्य नमक खिलाने से पवित्र लोक की प्राप्ति होती है और जो अपने भोजन से पहले गाय को घास चारा खिलाकर तृप्त करता है, उसे सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। (आदित्यपुराण)

• अपने माता-पिता की भांति श्रद्धापूर्वक गायों का पालन करना चाहिए। हलचल, दुर्दिन और विप्लव के अवसर पर गायों को घास और शीतल जल मिलता रहे, इस बात का प्रबन्ध करते रहना चाहिए। (ब्रह्मपुराण)

गोमाता को दर्शन एवं उन्हें नमस्कार करके उनकी परिक्रमा करें। ऐसा करने से सातों द्वीपों सहित भूमंडल की प्रदक्षिणा हो जाती है। गाएँ समस्त प्राणियों की माताएं एवं सारे सुख देने वाली हैं। वृद्धि की आकांक्षा करने वाले मनुष्य को नित्य गोमाताओं की प्रदक्षिणा करनी चाहिए।

जिस व्यक्ति के पास श्राद्ध के लिए कुछ भी न हो, वह यही पितरों का ध्यान करके गोमाता को श्रद्धापूर्वक घास खिला दे, तो उसको श्राद्ध का फल मिल जाता है। (निर्णयसिंधु)

महर्षि वसिष्ठ जी ने अनेक प्रकार से गोमाता की महिमा तथा उनके दान आदि की महिमा बताते हुए मनुष्यों के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपदेश तथा एक मर्यादा स्थापित करते हुए कहा –

“नाकीर्तयित्वा गा: सुप्यात् तासां संस्मृत्य चोत्पतेत्। सायंप्रातर्नमस्येच्च गास्तत: पुष्टिमाप्नुयात्।। गाश्च संकीर्तयेन्नित्यं नावमन्येेत तास्तथा। अनिष्ट स्वप्नमालक्ष्य गां नर: सम्प्रकीर्तयेत्।।” (महाभारत, अनु ७८। १६, १८)

अर्थात् ‘गौओं का नामकीर्तन किये बिना न सोये। उनका स्मरण करके ही उठे और सवेरे-शाम उन्हें नमस्कार करें। इससे मनुष्य को बल और पुष्टि प्राप्त होती है। प्रतिदिन गायों का जाम लें, उनका कभी अपमान न करें। यदि बुरे स्वप्न दिखाए तो मनुष्य गोमाता का नाम लें।

इसी प्रकार वे आगे कहते हैं कि जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक रात-दिन निम्न मन्त्र का बराबर कीर्तन करता है, वह सम अथवा विषम किसी भी स्थिति में भय से सर्वथा मुक्त हो जाता है और सर्वदेवमयी गोमाता का कृपा पात्र बन जाता है।

मंत्र इस प्रकार है – “गा वै पश्याम्यहं नित्यं जाब: पश्यन्तु मां सदा। गावोsस्माकं वयं तासां यतो गावस्ततो वयम्।।” (महाभारत, अनु ७८। २४)

अर्थात् मैं सदा गौओं का दर्शन करूँ और गौओं मुझपर कृपा दृष्टि करें। गौओं हमारी हैं और हम गौओं के हैं। जहाँ गौओं रहें, वहीं हम रहें, क्योंकि गौओं हैं इसी से हम भी हैं

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भगवती सरस्वती की वन्दना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना । या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥

भावार्थ :
जो कुन्द के फूल, चन्द्रमा, बर्फ और हार के समान श्वेत हैं, जो शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ उत्तम वीणा से सुशोभित हैं, जो श्वेत कमलासन पर बैठती हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देव जिनकी सदा स्तुति करते हैं और जो सब प्रकार की जड़ता हर लेती हैं, वे भगवती सरस्वती मेरा पालन करें ।

शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे । सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् ॥

भावार्थ :
शरत्काल में उत्पन्न कमल के समान मुखवाली और सब मनोरथों को देनेवाली शारदा सब सम्पत्तियों के साथ मेरे मुख में सदा निवास करें ।

सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम् । देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जना: ॥

भावार्थ :
वाणी की अधिष्ठात्री उन देवी सरस्वती को प्रणाम करता हूँ, जिनकी कृपा से मनुष्य देवता बन जाता है ।

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं । वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् । हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां वन्दे ताम् परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥

भावार्थ :
जिनका रूप श्वेत है, जो ब्रह्मविचार की परम तत्व हैं, जो सब संसार में फैले रही हैं, जो हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये रहती हैं, अभय देती हैं, मूर्खतारूपी अन्धकार को दूर करती हैं, हाथ में स्फटिकमणि की माला लिए रहती हैं, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं और बुद्धि देनेवाली हैं, उन आद्या परमेश्वरी भगवती सरस्वती की मैं वन्दना करता हूँ ।

पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्न: सरस्वती । प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या ॥

भावार्थ :
बुद्धिरूपी सोने के लिए कसौटी के समान सरस्वती जी, जो केवल वचन से ही विद्धान् और मूर्खों की परीक्षा कर देती है, हमलोगों का पालन करें ।

सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने । विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोऽस्तु ते ॥ भावार्थ :

भावार्थ :
हे महाभाग्यवती ज्ञानरूपा कमल के समान विशाल नेत्र वाली, ज्ञानदात्री सरस्वती ! मुझको विद्या दो, मैं आपको प्रणाम करता हूँ ।

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वृन्दावन की शोभा

रे मन वृन्दाविपिन निहार।।
यद्पि मिले कोटि चिंतामणि तदपि न हाथ पसार।।
विपिन राज सीमा के बाहर हरिहूँ को न निहार।।
जय श्री भट्ट धूरि धूसर तन, यह आसा उर धार।।

श्री भट्ट देवाचार्य”

अरे मन वृन्दावन की शोभा को निहार, यदि तुझे अनंत कोटि चिंतामणि भी मिलें, तो भी हाथ पसारकर वृन्दावन की सीमा से मत जा, यदि स्वयं श्री कृष्ण भी वृन्दावन की सीमा के बाहर मिलें तो भी उनको मत निहार, और अपने मन में एहि आशा रखो की वृन्दावन रज से ही ओत प्रोत रहे यह तन भी।

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विनायक चतुर्थी – Vinayak Chaturthi

व्रत पर्व विवरण – विनायक चतुर्थी, तिलकुंद चतुर्थी, गणेश जयंती*
💥 विशेष – तृतीया को पर्वल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

🌷 माघ शुक्ल तृतीया 🌷

🙏🏻 तृतीया तिथि को सार्वत्रिक रूप से गौरी की पूजा का निर्देश है, चाहे किसी भी मास की तृतीया तिथि हो। भविष्यपुराण के अनुसार माघ मास की शुक्ल तृतीया अन्य मासों की तृतीया से अधिक उत्तम है | माघ मास की तृतीया स्त्रियों को विशेष फल देती है | माघ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को सौभाग्य वृद्धिदायक गौरी तृतीया व्रत किया जाता है। भविष्यपुराण उत्तरपर्व में आज से शुरू होने वाले ललितातृतीया व्रत की विधि का वर्णन है जिसके करने से नारी को सौभाग्य, धन, सुख, पुत्र, रूप, लक्ष्मी, दीर्घायु तथा आरोग्य प्राप्त होता है और स्वर्ग की भी प्राप्ति होती है |
🌷 सौभाग्यं लभते येन धनं पुत्रान्पशून्सुखम् । नारी स्वर्गं शुभं रूपमारोग्यं श्रियमुत्तमाम् ।।
🙏🏻 भविष्यपुराण, ब्राह्मपर्व में भगवती गौरी ने धर्मराज से कहा :- माघ मास की तृतीया को गुड़ और लवण (नमक) का दान स्त्रियों एवं पुरुषों के लिए अत्यंत श्रेयस्कर है भगवन शंकर की प्रिये उस दिन मोदक एवं जल का दान करें .
🌷 माघमासे तृतीयायां गुडस्य लवणस्य च । दानं श्रेयस्करं राजन्स्त्रीणां च पुरुषस्य च ।।
तृतीयायां तु माघस्य वामदेवस्य प्रीतये । वारिदानं प्रशस्तं स्यान्मोदकानां च भारत ।।
🙏🏻 पद्मपुराण, सृष्टि खंड के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया मन्वंतर तिथि है। उस दिन जो कुछ दान दिया जाता है उसका फल अक्षय बताया गया है।
🙏🏻 धर्मसिंधु के अनुसार माघ मास में ईंधन, कंबल, वस्त्र, जूता, तेल, रूई से भरी रजाई, सुवर्ण, अन्न आदि के दान का बड़ा भारी फल मिलता है।
🙏🏻 माघ में तिलों का दान जरूर जरूर करना चाहिए। विशेषतः तिलों से भरकर ताम्बे का पात्र दान देना चाहिए।

🌷 ससुराल मे कोई तकलीफ 🌷
👩🏻 किसी सुहागन बहन को ससुराल मे कोई तकलीफ हो तो शुक्ल पक्ष की तृतीया को उपवास रखें …उपवास माने एक बार बिना नमक का भोजन कर के उपवास रखें ..भोजन में दाल चावल सब्जी रोटी नहीं खाए, दूध रोटी खा लें..शुक्ल पक्ष की तृतीया को..अमावस्या से पूनम तक की शुक्ल पक्ष में जो तृतीया आती है उसको ऐसा उपवास रखें …नमक बिना का भोजन(दूध रोटी) , एक बार खाए बस……अगर किसी बहन से वो भी नहीं हो सकता पूरे साल का तो केवल
👉🏻 माघ महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया,
👉🏻 वैशाख शुक्ल तृतीया और
👉🏻 भाद्रपद मास की शुक्ल तृतीया
जरुर ऐसे ३ तृतीया का उपवास जरुर करें …नमक बिना करें ….जरुर लाभ होगा…
🙏🏻 ..ऐसा व्रत वशिष्ठ जी की पत्नी अरुंधती ने किया था…. ऐसा आहार नमक बिना का भोजन…. वशिष्ठ और अरुंधती का वैवाहिक जीवन इतना सुंदर था कि आज भी सप्त ऋषियों में से वशिष्ठ जी का तारा होता है , उन के साथ अरुंधती का तारा होता है…आज भी आकाश में रात को हम उनका दर्शन करते हैं …
🙏🏻 ..शास्त्रो के अनुसार शादी होती तो उनका दर्शन करते है….. जो जानकर पंडित होता है वो बोलता है…शादी के समय वर-वधु को अरुंधती का तारा दिखाया जाता है और प्रार्थना करते है कि , “जैसा वशिष्ठ जी और अरुंधती का साथ रहा ऐसा हम दोनों पति पत्नी का साथ रहेगा..” ऐसा नियम है….
🙏🏻 चन्द्रमा की पत्नी ने इस व्रत के द्वारा चन्द्रमा की २७ पत्नियों में से प्रधान हुई….चन्द्रमा की पत्नी ने तृतीया के व्रत के द्वारा ही वो स्थान प्राप्त किया था…तो अगर किसी सुहागन बहन को कोई तकलीफ है तो ये व्रत करें ….उस दिन गाय को चंदन से तिलक करें … कुम -कुम का तिलक ख़ुद को भी करें उत्तर दिशा में मुख करके …. उस दिन गाय को भी रोटी गुड़ खिलाये॥

🙏🏻 चौथे दिन करें मां कुष्मांडा की उपासना
🙏🏻 माघ मास की गुप्त नवरात्रि के चौथे दिन की प्रमुख देवी मां कुष्मांडा हैं। देवी कुष्मांडा रोगों को तुरंत ही नष्ट करने वाली हैं। इनकी भक्ति करने वाले श्रद्धालु को धन-धान्य और संपदा के साथ-साथ अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त होता है।
🙏🏻 ​मां दुर्गा के इस चतुर्थ रूप कुष्मांडा ने अपने उदर से अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न किया। इसी वजह से दुर्गा के इस स्वरूप का नाम कुष्मांडा पड़ा। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। मां कुष्मांडा के पूजन से हमारे शरीर का अनाहत चक्र जागृत होता है। इनकी उपासना से हमारे समस्त रोग व शोक दूर हो जाते हैं। साथ ही भक्तों को आयु, यश, बल और आरोग्य के साथ-साथ सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुख भी प्राप्त होते हैं।

     🌷 *गुप्त नवरात्रि* 🌷

🙏🏻 नवरात्रि में हर दिन देवी के अलग रूप की पूजा की जाती है। इन नौ दिनों में विभिन्न उपायों से माता को प्रसन्न किया जाता है। नवरात्रि में देवी को हर दिन एक विशेष प्रकार का भोग लगाया जाता है।
🙏🏻 नवरात्रि में पहले दिन से लेकर अंतिम दिन तक देवी को ये विशेष भोग अर्पित करने तथा बाद में इसे गरीबों को दान करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। गुप्त नवरात्रि में किस तिथि पर देवी मां को किस चीज का भोग लगाएं,
🙏🏻 चतुर्थी तिथि को माता दुर्गा को मालपुआ का भोग लगाएं ।इससे समस्याओं का अंत होता है ।

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