प्रार्थनाएं भी नष्ट कर सकती हैं आपका जीवन, भूल से भी ना करें ये गलतियां
प्रार्थना की अद्भुत ताकत
सकारात्मकता वो चीज है, जो बुरी चीजों को भी अच्छा नजरिया देती है। आप यकीन करें या ना करें, लेकिन सकारात्मक सोच अनहोनी चीजों को भी होनी में बदल सकती है। प्रार्थना में यह सकारात्मकता देने की अद्भुत ताकत है, लेकिन ये पूरी तरह प्रार्थना करने के तरीके पर निर्भर करता है। कहीं आपकी प्रार्थना भी ऐसी तो नहीं होती? आजमाकर देखिए, ये आपको जरूर लाभ देगा।
जीवन में हालातों से परेशान होना कोई नई बात नहीं, ना ही इसे अनुभव करने वाला दुनिया का कोई अजूबा है। संसार में हर प्राणी समस्याओं से घिरा है, जो सामान्य बात है, पर हां, कोई इनसे कैसे निकलता है, हर मनुष्य की सोच के साथ निदान पाने की वो प्रक्रिया हर बार बहुत नयी होती है।
प्रार्थना भी परेशानियों से निकलने की वही प्रक्रिया है। अध्यात्म में इसका बेहद महत्व है। आप कर्मकांड मानने वाले हैं या विशुद्ध सांसारिक प्राणी आस्तिक हों या नास्तिक, लेकिन प्रार्थना अध्यात्म की वो प्रक्रिया है जो नश्वर संसार में मनुष्य को प्रकृति या ईश्ववर से जोड़ती है।
आप ईश्वर को मानते हों या अल्लाह या यीशु को।। हर रूप में आपका विश्वास एक अदृश्य शक्ति के साथ जुड़ा है। हो सकता है कि इनमें आप किसी को भी ना मानते हों और ‘स्वयं या आत्मशक्ति’ ही आपके अनुसार सर्वशक्तिशाली हो, या चाहे आप प्रकृति की पूजा करते हों
उपरोक्त हर स्थिति में किसी क्षण, किसी भी तरह आपने एक प्रार्थना जरूर की होगी, कोई इच्छा जरूर प्रकट की होगी कि “काश ऐसा हो जाए या काश! ऐसा ना हो!” आपकी इसी चाह में एक बहुत बड़ा रहस्य छुपा है और आपके सफल या असफल होने की ताकत भी!
इसे जानने से पूर्व सर्वप्रथम खुद से ईमानदारी से इन सवालों के जवाब पूछिए: “क्या कभी आपने किसी और के लिए कुछ नहीं करते हुए अपने लिए अच्छा करने की प्रार्थना या इच्छा की है?”;
क्या आपकी हर प्रार्थना या इच्छा में किसी ना किसी रूप में ‘नहीं’ शब्द शामिल होता है?”; “क्या कभी अपनी प्रार्थना में इच्छाएं पूरी करने की चाह के अलावा ‘पूरी हुई इच्छाओं के लिए धन्यवाद’ किया है आपने?”
आप जिस भी धर्म को मानते हों, या आत्मशक्ति को मानने वाले हों, यकीन कीजिए जैसे ही आप अपनी इच्छाओं में ‘नहीं’ शब्द जोड़ते हैं, आपकी चीजें नकारात्मक शक्तियों के साथ जुड़ जाती हैं।
एक प्रेरक प्रसंग के अनुसार भगवान ‘नहीं’ शब्द सुनने से वंचित हैं। इसलिए जब भी आप “हे भगवान! काश कि ऐसा नहीं हो” या “काश कि ऐसा नहीं हो!” सोचते हैं या प्रार्थना करते हैं, तो उस अदृश्य शक्ति के पास ‘नहीं’ को हटाते हुए वह इस रूप में पहुंचती है: “हे भगवान! काश कि ऐसा हो!” या “काश कि ऐसा हो!” दूसरे शब्दों में, इस तरह अनजाने में आप जो नहीं चाहते हैं, वही होने की प्रार्थना कर रहे होते हैं।
इसी तरह जब आप किसी का बुरा चाहते हुए अपना अच्छा करने की सोचते हैं, तो इसका सीधा अर्थ किसी के लिए कुछ ‘नहीं’ करते हुए आपके लिए कुछ करने का होता है। यहां भी अध्यात्म का यह नियम लागू होता है। इसलिए अक्सर आपने देखा होगा और कहा भी जाता है कि बुरा चाहने वालों का खुद ही बुरा होता है।
वास्तविकता की जमीन पर यह कोई चमत्कृत करनी वाली चीज या टोटका नहीं है, लेकिन यह आपकी सोच को वह दिशा देता है जो आपके उस काम को पूरा करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। और वह दिशा है ‘सकारात्मक या नकारात्मक सोच’!
आप जीवन में घोर निराशा का सामना कर रहे हों; किसी मुश्किल सी लगने वाली चीज को सफलतपूर्वक करना चाहते हों; आपके लिए जो विकट परिस्थितियां ला सकता है, ऐसे व्यक्ति या ऐसी स्थिति से बचना चाहते हों।। वहां ‘प्रार्थना’ शब्दों का वह रूप है जो आभासी अस्तित्व के साथ मस्तिष्क के किसी कोने में आपको यह यकीन दिलाता है कि ‘ऐसा हो सकता है’।
यह एक संभावना आपके लिए उस क्षण में बहुत छोटी ही क्यों ना हो, लेकिन कहीं ना कहीं आपके अंतर्मन को उस कार्य या चाह के सफल होने का विश्वास दिलाती है। यह आपको दोगुने प्रयासों से उस कार्य को करने के लिए प्रेरित करता है और आप ऐसा करते भी हैं।
वही प्रयास आपके उस कार्य को सकारात्मक या नकारात्मक रूप में सफल होने की ओर अग्रसर करते हैं। इसे इस तरह समझ सकते हैं।
फर्ज कीजिए, आपने सोचा कि “काश ऐसा नहीं होता!” इस वाक्य में एक नकारात्मकता जुड़ी है, जो सीधे-सीधे इस संभावना से जोड़ता है कि इस कार्य के होने की उम्मीद बहुत कम है।
चेतन मन में आप चाहे समझ ना पाएं, लेकिन ये आपको निराशा से ऊपर उठने नहीं देता और आप उस काम में अपना पूरा योगदान नहीं दे पाते, या बेमन से करते हैं क्योंकि कहीं आपकी सोच में ये पहले ही तय होता है कि इसका होना मुश्किल है।
दूसरी तरफ जब आप सोचते हैं “काश ऐसा होता!”। तो सीधे-सीधे आपके मस्तिष्क तक यह संदेश जाता है कि बहुत संभव है, यह कार्य पूरा हो ही जाए। अचेतन मस्तिष्क में ये आपमें उत्साह भरता है और आप पहले से भी ज्यादा लगन से काम करते हैं। जो उसे हर हाल में सफल बनाता है।
यह कोई जादू या चमत्कार नहीं होता, बल्कि पूरी तरह आपकी सकारात्मक सोच का प्रभाव होता है। नकारात्मक सोच आपको निष्क्रिय बनाती है, जो हर प्रकार से आपको असफलता देने और मन के विपरीत कार्यों के होने का कारण बनते हैं।
इससे ठीक उलट, सकारात्मक सोच आपको विपरीत से विपरीत और कठोर से कठोर परिस्थितियों में भी विजयी बनने के लिए प्रेरित करते हैं। यह आपसे ना सिर्फ कोशिश, बल्कि बार-बार कोशिशें कराता है और अंतत: वही होता है जो आप चाहते हैं।
इसलिए हमेशा याद रखें, विकट परिस्थितियों में भी प्रार्थना करना मनुष्य के लिए संजीवनी बूटी के समान है, जो उसमें मनोनुकूल चीजें होने के लिए उम्मीद की किरण जगाती है। किंतु प्रार्थना हमेशा सिर्फ अच्छे स्वरूप में हो। अपनी अच्छी चाह को सोचें, बुरी चाह को शब्दों का रूप ना लेने दें।
आपको पता नहीं चलता कि कब बुरी चाह आपकी सोच में आ जाती है। इस तरह नकारात्मकता को आप अपने जीवन से दूर नहीं रख पाते। इसलिए जब भी प्रार्थना करें या कोई इच्छा स्वयं से या किसी और से प्रकट करें, सोच के शब्दों पर ध्यान दें कि किसी भी वाक्य में ‘ना या नहीं’ शब्द हर रूप में दूर रहे।
अभ्यास से यह संभव है। शुरुआत में कई बार आपको लगेगा कि ऐसा कैसे संभव है, पर हर भाषा में वाक्यों के दो स्वरूप होते हैं, एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक।
आप पहले स्वरूप को हर बार उपयोग करने की कोशिश करें। “किसी भी वाक्य में ‘ना या नहीं’ शब्द हर रूप में दूर रहे।” को इस प्रकार भी लिखा जा सकता था – “किसी भी वाक्य में ‘ना या नहीं’ शब्द किसी भी तरह प्रयोग ना करें”, जो नकारात्मक वाक्यों की श्रेणी में आएगा।
लोग अक्सर ‘धन्यवाद’ शब्द का अर्थ ‘औपचारिक व्यवहार’ के लिए लेते हैं, जबकि इससे इतर यह हमारे जीवन में कई बेहद महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाता है।
किसी कार्य के सफल संपादन के लिए ‘धन्यवाद ज्ञापन’ का अर्थ है खुद को यह विश्वास दिलाना कि हां, आप ऐसा करने में सक्षम रहे! हो सकता है आप धन्यवाद किसी और को कह रहे हों, किंतु अगर आप ऐसा कह रहे हैं तो निश्चित तौर पर इसलिए क्योंकि आपका कोई काम सफल हुआ है।
किसके कारण सफल हुआ, यह वहां मायने नहीं रखता, क्योंकि किसी और के कारण या किसी और के प्रयासों से भी कुछ ऐसा होना जो आपके लिए अच्छा रहा, इसका अर्थ यही है कि आपने उसे सफल बनाने के लिए उस माध्यम को चुनने में प्रयास किए और इसलिए ये आपकी सक्षमता है।
इसलिए बहुत ज़रूरी है कि जब भी परेशानियों के बाद उससे निजात मिलने का एहसास आए या कुछ बहुत मुश्किल हल हो जाना समझ आए, तो इसके लिए भगवान, प्रकृति या स्वयं, जिसमें भी आप विश्वास रखते हों, उसे धन्यवाद करना ना भूलें।
यह आपका आत्मविश्वास बढ़ाता है और अगली बार आपके सफल होने की संभावनाएं दोगुनी बढ़ जाती हैं। इसमें भी वही सकारात्मक और नकारात्मक सोच की और उसके साथ की स्थितियां पैदा होने के मूल नियम लागू होते हैं।
इनकी सफलता निश्चित है, आजमाइए और हमें बताइए कितना बदला इसने आपके जीवन को!