एक बच्चा घर से ढेर सारी खीर लेकर स्कूल पहुँचा। खीर मास्टर साहब को देते हुए बोला कि माँ ने आपको देने के लिए कहा है। मास्टर साहब बहुत खुश हुए। पहले तो भर पेट खीर खाई, फिर पूछा “बेटा, तेरी माँ ने आज मेरे लिए खीर क्यों भिजवाई?”
बच्चा मासूम था, बोल दिया, “कल रात माँ ने खीर बनाई थी। कहीं से एक बिल्ली आई और खीर में मुंह डाल दिया। माँ ने हम सबको खीर खाने से मना कर दिया। कहा कि कल स्कूल में मास्टर साहब को दे देना, वो खुश हो जाएंगे।”
दरअसल यह एक कुत्सित मानसिकता है। असल में हमारे भीतर ये भाव कूट-कूट कर भरा है कि दूसरों को बेवकूफ बनाओ। किसी भी तरह अपना उल्लू सीधा करो। कई ढाबों और होटलों में जब तक दाल, सब्जी खट्टी न हो जाए, ग्राहक को ही खिला देते हैं। हम खबरें सुनते हैं कि फलां स्कूल में बासी खाना खा कर बच्चे बीमार हुए। फलां जगह नकली दारू पीकर इतने लोग मर गए। नकली दवा से अस्पताल में मरीज की मौत। दरअसल हमारे यहाँ दवा से लेकर दारू तक का नकली कारोबार होता है।
हम पड़ोसियों से सुनते हैं, उनकी बहू ने आते ही घर में उधम मचाना शुरू कर दिया। फिर हम मुस्कुराते हैं और कहते हैं.. बहुत तेज बनती थी बुढ़िया, अब मिली है सजा। हम हर बात पर मजे लेते हैं। बिल्ली की जूठी खीर टिका देने से लेकर, अपनी बीमार बेटी को किसी की बहू बना देने तक।
जानते हैं, हम कब तक मजे लेते हैं? जब तक हम स्वयं भुक्तभोगी नहीं हो जाते.. जब तक कोई, हमें बिल्ली की जूठी खीर खिला नहीं देता, हम मजे लेते हैं। जिस दिन बासी खाना खा कर हमारी तबियत बिगड़ जाती है, उस दिन हम खिलाने वाले को कोसते हैं। जिस दिन नकली दवा खा कर.. हमारा कोई इस संसार से विदा हो जाता है, उस दिन हम अपना सिर पीटते हैं। जिस दिन हमारे परिवार में किसी ने झूठ-सच बोल कर अपनी बीमार बेटी टिका दी, हम अपनी किस्मत को कोसते हैं।
मित्रों, दुनिया के सभी धर्म ग्रथों में यही लिखा है कि दूसरों के साथ वैसा नहीं करना चाहिए, जो हमें खुद के लिए पंसद नहीं। जो जैसा देगा… वैसा ही पाएगा।
यह तय है… धोखा देने वाला, धोखा ही पायेगा।