एक गांव से दस मील की दूरी पर एक बहुत सुंदर पहाड़ था। उस पहाड़ पर एक मंदिर था। दूर-दूर के लोग उस मंदिर के दर्शन करने आते।
उस गांव का एक युवक भी सोचता था, मुझे भी जाकर देखना है। लेकिन करीब में था, तो विचार टलती गई। एक दिन उसने तय कर लिया कि आज मुझे जाना ही है देखने।
सुबह से धूप बढ़ जाती थी, इसलिए वह रात को ही उठा, लालटेन जलाई और गांव के बाहर आ गया। घनी अंधेरी रात थी, वह बहुत डर गया। उसने सोचा, छोटी सी लालटेन है, दो-तीन कदम तक प्रकाश पड़ता है, और फासला दस मील का है। दस मील का इतना विराट अंधेरा.. इतनी छोटी सी लालटेन से कैसे कटेगा? सूरज की राह देखनी चाहिए, यही ठीक होगा। वह वहीं बैठ गया, सुबह होने की प्रतीक्षा में।
तभी उसने देखा, एक बूढ़ा आदमी एक छोटा सा दीया.. हाथ में लिए चला आ रहा था। उसने बूढ़े से पूछा, पागल हो गए हो? कुछ गणित का पता है? दस मील लंबा रास्ता है और तुम्हारे दीये की रोशनी तो बमुश्किल एक कदम ई दूरी तक ही जा पाती है..कैसे तय कर पाओगे इतनी दूरी??
बूढ़े ने कहा- “पागल, एक कदम से ज्यादा कभी कोई चल पाया है क्या? कोई चल भी नहीं सकता एक कदम से ज्यादा, रोशनी चाहे हजार मील पड़ती रहे। फिर, जब तक हम एक कदम चलते हैं, तब तक रोशनी भी एक कदम आगे बढ़ जाती है। इस गणित से तो दस मील क्या, हम दस हजार मील पार कर लेंगे। उठ आ, तू बैठा क्यों है? तेरे पास तो अच्छी लालटेन है। एक कदम तू आगे चलेगा, रोशनी उतनी आगे बढ़ जाएगी।”
इसी तरह जिंदगी में भी, अगर कोई पूरा हिसाब पहले लगा ले, तो डर कर वहीं रुक जाएगा..बैठ जाएगा। जिंदगी में एक-एक कदम का हिसाब लगाने वाले, हजारों मील चल जाते हैं और हजारों मील का हिसाब लगाने वाले, एक कदम भी नहीं उठा पाते..!!
समझना अवश्य होगा इस सूत्र को।