गाय की महिमा पर पवित्र ग्रंथों के उद्धरण:
स्वप्न में गाय का दर्शन:
- स्वप्न में गाय अथवा वृषभ के दर्शन से कल्याण, लाभ एवं व्याधि का नाश होता है। स्वप्न में गाय के थन को चूसना भी श्रेष्ठ माना जाता है। स्वप्न में गाय का घर में ब्या देना, वृषभ की सवारी करना, तालाब के बीच में घी मिश्रित खीर का भोजन उत्तम माना गया है। घी सहित खीर का भोजन राज्य प्राप्ति का सूचक माना गया है।
- स्वप्न में ताजे दुहे हुए फेन सहित दुग्ध का पान करने से अनेक भोगों की प्राप्ति होती है। दही देखने से प्रसन्नता मिलती है। जो व्यक्ति वृषभ से युक्त रथ पर स्वप्न में अकेला सवार होता है और उसी अवस्था में जाग जाता है, उसे शीघ्र धन मिलता है। स्वप्न में दही मिलने से धन की, घी मिलने से यश की, और दही खाने से यश की प्राप्ति निश्चित है।
- यात्रा आरम्भ करते समय दही और दूध का दिखना शुभ शकुन माना गया है। स्वप्न में दही भात का भोजन करने से कार्य सिद्धि होती है तथा बैल पर चढ़ने से द्रव्य लाभ और व्याधि से छुटकारा मिलता है। स्वप्न में वृषभ अथवा गाय का दर्शन करने से कुटुम्ब की वृद्धि होती है। स्वप्न में सभी काली वस्तुओं का दर्शन निन्द्य माना गया है, केवल कृष्णा गाय का दर्शन शुभ होता है। (स्वप्न में गोदर्शन का फल, संतो के श्री मुख से सुना हुआ)
गाय की महिमा:
- वृषभ को जगत का पिता और गायों को संसार की माता समझना चाहिए। उनकी पूजा से सम्पूर्ण पितरों और देवताओं की पूजा हो जाती है। जिनके गोबर से लीपने पर सभा भवन, पौसले, घर और देवमंदिर शुद्ध हो जाते हैं, उन गायों से बढ़कर और कौन प्राणी हो सकता है? जो व्यक्ति एक साल तक स्वयं भोजन करने से पहले प्रतिदिन दूसरे की गायों को मुट्ठी भर घास खिलाता है, उसे हर समय गौ सेवा का फल प्राप्त होता है। (महाभारत, आश्वमेधिकपर्व, वैष्णवधर्म)
- देवता, ब्राह्मण, गाय, साधु और साध्वी स्त्रियों के बल पर यह सारा संसार टिका हुआ है, इसी से वे परम पूजनीय हैं। गायें जिस स्थान पर जल पीती हैं, वह स्थान तीर्थ है। गंगा आदि पवित्र नदियाँ गोस्वरूपा ही हैं। जहाँ गायें जलराशि को लांघती हुई नदी आदि को पार करती हैं, वहाँ गंगा, यमुना, सिंधु, सरस्वती आदि नदियाँ या तीर्थ निश्चित रूप से विद्यमान रहते हैं। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण, द्वितीय खंड ४२। ४९-५८)
- हे ब्राह्मणों! गाय के खुर से उत्पन्न धूलि समस्त पापों को नष्ट कर देने वाली है। यह धूलि चाहे तीर्थ की हो चाहे निकृष्ट देशों की, यह सब प्रकार की मङ्गलकारिणी, पवित्र करने वाली और दुख दरिद्रता रूपी अलक्ष्मी को नष्ट करने वाली है। गायों के निवास से पृथ्वी भी शुद्ध हो जाती है। जहाँ गायें बैठती हैं, वह स्थान, वह घर सर्वथा पवित्र हो जाता है। वहाँ कोई दोष नहीं रहता। उनके श्वास की हवा देवताओं के लिये नीराज़न के समान है। गायों का स्पर्श बड़ा पुण्यदायक है और इससे समस्त दु:स्वप्न, पाप आदि नष्ट हो जाते हैं। गायों के गर्दन और मस्तक के बीच साक्षात् भगवती गंगा का निवास है। गायें सर्वदेवमयी और सर्वतीर्थमयी हैं। उनके रोएँ भी बड़े ही पवित्र और पुण्यदायक हैं। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण, भगवान् हंस ब्राह्मणों से)
- ब्राह्मणों! गायों के शरीर को खुजलाने से या उनके शरीर के कीटाणुओं को दूर करने से मनुष्य अपने समस्त पापों को धो डालता है। गायों को गोग्रास दान करने से महान् पुण्य की प्राप्ति होती है। गायों को चराकर उन्हें जलाशय तक घुमाकर जल पिलाने से मनुष्य अनन्त वर्षों तक स्वर्ग में निवास करता है। गायों के प्रचार के लिये गोचर भूमि की व्यवस्था कर मनुष्य नि:संदेह अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है। गायों के लिये गोशाला का निर्माण कर मनुष्य पूरे नगर का स्वामी बन जाता है और उन्हें नमक खिलाने से महान सौभाग्य की प्राप्ति होती है। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण, भगवान् हंस ब्राह्मणों से)
- विपत्ति में, कीचड़ में फंसी हुई, या चोर तथा बाघ आदि के भय से व्याकुल गाय को क्लेश से मुक्त कर मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है। रुग्णावस्था में गायों को औषधि प्रदान करने से स्वयं मनुष्य सभी रोगों से मुक्त हो जाता है। गायों को भय से मुक्त करने पर मनुष्य स्वयं भी सभी भय से मुक्त हो जाता है। चांडाल के हाथ से गाय को खरीद लेने पर गोमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। किसी अन्य के हाथ से गाय को खरीदकर उसका पालन करने से गोपालक को गोमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। गायों की शीत तथा धूप से रक्षा करने पर स्वर्ग की प्राप्ति होती है। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण, भगवान् हंस ब्राह्मणों से)
- गोमूत्र, गोमय, गोदुग्ध, गोदधि, गोघृत और कुशोदक यह पञ्चगव्य स्नानीय और पेयद्रव्यों में परम पवित्र कहा गया है। ये सब मङ्गलमय पदार्थ भूत, प्रेत, पिशाच, राक्षस आदि से रक्षा करने वाले परममङ्गल तथा कलियुग के दुख-दोषों को नाश करने वाले हैं। गोरोचना भी इसी प्रकार राक्षस, सर्प विष तथा सभी रोगों को नष्ट करने वाली एवं परम धन्य है। जो प्रात:काल उठकर अपना मुख गोघृत पात्र में रखे घी में देखता है, उसकी दुख दरिद्रता सर्वदा के लिये समाप्त हो जाती है और फिर पाप का बोझ नहीं ठहरता। (विष्णुधर्मोत्तर पुराण, राजनीति एवं धर्मशास्त्र के सम्यक ज्ञाता पुष्कर जी भगवान् परशुराम से)
• गायों, गोकुल, गोमय आदि पर थूकना नहीं चाहिए। (पुष्कर परशुराम संवाद)
• जो गौओं के चलने के मार्ग में या चरागाह में जल की व्यवस्था करता है, वह वरुणलोक को प्राप्त कर वहां दस हजार वर्षों तक विहार करता है। गोचरभूमि को हल आदि से जोतने पर चौदह इन्द्रों तक भीषण नरक की प्राप्ति होती है। हे परशुराम जी! जो गायों के पानी पीते समय विघ्न डालता है, उसे मानना चाहिए कि उसने घोर ब्रह्महत्या की। सिंह, व्याघ्र आदि के भय से डरी हुई गाय की जो रक्षा करता है और कीचड़ में फंसी हुई गाय का उद्धार करता है, वह कल्प पर्यन्त स्वर्गीय भोगों का भोग करता है। गायों को घास प्रदान करने से वह व्यक्ति अगले जन्म में रूपवान हो जाता है और उसे लावण्य तथा महान सौभाग्य की प्राप्ति होती है। (पुष्कर परशुराम संवाद)
• हे परशुराम जी! गायों को बेचना कल्याणकारी नहीं है। गायों का नाम लेने से भी मनुष्य पापों से शुद्ध हो जाता है। गौओं का स्पर्श सभी पापों का नाश करने वाला तथा सभी प्रकार के सौभाग्य एवं मङ्गल का विधायक है। गौओं का दान करने से अनेक कुलों का उद्धार होता है।
मातृकुल, पितृकुल और भार्याकुल में जहां एक भी गो माता निवास करती है वहां रजस्वला और प्रसूति की अपवित्रता भी नहीं आती और पृथ्वी में अस्थि, लोहा होने का, धरती के आकार प्रकार की विषमता का दोष भी नष्ट हो जाता है। गौओं के श्वास-प्रश्वास से घर में महान् शान्ति होती है। सभी शास्त्रों में गौओं के श्वास-प्रश्वास को महानीराजन कहा गया है। हे परशुराम! गौओं को छु देने मात्र से मनुष्यों के सारे पाप क्षीण हो जाते हैं। (पुष्कर परशुराम संवाद)
• जिसको गाय का दूध, दही और घी खाने का सौभाग्य नहीं प्राप्त होता, उसका शरीर मल के समान है। अन्न आदि पाँच रात तक, दूध सात रात तक, दही बीस रात तक और घी एक मास तक शरीर में अपना प्रभाव रखता है। जो लगातार एक मास तक बिना गव्य (गाय के दूध से उत्पन्न पदार्थ) भोजन करता है, उस मनुष्य के भोजन में प्रेतों को भाग मिलता है। इसलिये प्रत्येक युग में सब कार्यों के लिये एकमात्र गौ ही प्रशस्त मानी गयी है। गौ सदा और सब समय धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चारों पुरुषार्थ प्रदान करने वाली है। (पद्मपुराण, ब्रह्माजी और नारद मुनि संवाद)
• गायों से उत्पन्न दूध, दही, घी, गोबर, मूत्र और गोरोचना ये छ: अंग (गोषडङ्ग) अत्यन्त पवित्र हैं और प्राणियों के सभी पापों को नष्ट कर उन्हें शुद्ध करने वाले हैं। श्रीसम्पन्न बिल्व वृक्ष गौओं के गोबर से ही उत्पन्न हुआ है। यह भगवान् शिवजी को अत्यन्त प्रिय है। चूँकि उस वृक्ष में पद्महस्ता भगवती लक्ष्मी साक्षात् निवास करती हैं, इसलिये इसे श्रीवृक्ष भी कहा गया है। बाद में नीलकमल एवं रक्तकमल के बीज भी गोबर से ही उत्पन्न हुए थे। गौओं के मस्तक से उत्पन्न परम पवित्र गोरोचना सभी अभीष्टों की सिद्धि करने वाली तथा परम मङ्गलदायिनी है।
अत्यन्त सुगन्धित गुग्गुल नामक पदार्थ गौओं के मूत्र से ही उत्पन्न हुआ है। यह देखने से भी कल्याण करता है। यह गुग्गुल सभी देवताओं का आहार है, विशेष रूप से भगवान् शंकर का प्रिय आहार है। संसार के सभी मङ्गलप्रद बीज एवं सुन्दर से सुन्दर आहार तथा मिष्टान्न आदि सब के सब गाय के दूध से ही बनाये जाते हैं। सभी प्रकार की मङ्गल कामनाओं को सिद्ध करने के लिये गाय का दही लोकप्रिय है। देवताओं को तृप्त करने वाला अमृत नामक पदार्थ गाय के घी से ही उत्पन्न हुआ है। (भविष्यपुराण, उत्तरपर्व, अ.६९, भगवान् श्रीकृष्ण युधिष्ठीर संवाद)
• गायों को खुजलाना तथा उन्हें स्नान कराना भी गोदान के समान फल वाला होता है। जो भय से दुखी (भयग्रस्त) एक गाय की रक्षा करता है, उसे सौ गोदान का फल प्राप्त होता है। पृथ्वी में समुद्र से लेकर जितने भी बड़े तीर्थ-सरिता-सरोवर आदि हैं, वे सब मिलकर भी गौ के सींग के जल से स्नान करने के षोडशांश के तुल्य भी नहीं होते। (बृहत्पराशर स्मृति, अध्याय ५)
• राम-वनवास के समय भरत १४ वर्ष तक इसी कारण स्वस्थ रहकर आध्यात्मिक उन्नति करते रहे, क्योंकि वे अन्न के साथ गोमूत्र का सेवन करते थे।
गोमूत्रयावकं श्रुत्वा भ्रातरं वल्कलाम्बरम्।। (श्रीमद्भागवत ९ । १० । ३४)
• गोमाता का दर्शन एवं उन्हें नमस्कार करके उनकी परिक्रमा करें। ऐसा करने से सातों द्वीपों सहित भूमण्डल की प्रदक्षिणा हो जाती है। गौएँ समस्त प्राणियों की माताएँ एवं सारे सुख देने वाली हैं। वृद्धि की आकांक्षा करने वाले मनुष्य को नित्य गो माताओं की प्रदक्षिणा करनी चाहिए।
• जिस व्यक्ति के पास श्राद्ध के लिये कुछ भी न हो, वह यदि पितरों का ध्यान करके गो माता को श्रद्धापूर्वक घास खिला दे तो उसे श्राद्ध का फल मिल जाता है। (निर्णयसिंधु)
• गौ माताएँ समस्त प्राणियों की माता हैं और सारे सुखों को देने वाली हैं, इसलिये कल्याण चाहने वाले मनुष्य सदा गोओं की प्रदक्षिणा करें। गायों को लात न मारे। गायों के बीच से होकर न निकले। मङ्गल की आधारभूत गो-देवियों की सदा पूजा करें। (महा, अनु ६९ । ७-८)
• जब गायें चर रही हों या एकांत में बैठी हों, तब उन्हें तंग न करें। प्यास से पीड़ित होकर जब भी क्रोध से अपने स्वामी की ओर देखती है तो उसका बंधु-बांधव सहित नाश हो जाता है। राजाओं को चाहिए कि गोपालन और गो-रक्षण करें। उतनी ही संख्या में गायें रखें, जितनी का अच्छी तरह भरण-पोषण हो सके। गाय कभी भी भूख से पीड़ित न रहे, इस बात पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।
• जिसके घर में गाय भूख से व्याकुल होकर रोती है, वह निश्चय ही नरक में जाता है। जो पुरुष गायों के घर में सर्दी न पहुँचने का और जल के बर्तन को शुद्ध जल से भर रखने का प्रबन्ध कर देता है, वह ब्रह्मलोक में आनंद भोग करता है।
• जो मनुष्य सिंह, बाघ अथवा और किसी भय से डरी हुई, कीचड़ में धंसी हुई या जल में डूबती हुई गाय को बचाता है, वह एक कल्प तक स्वर्ग-सुख का भोग करता है। गाय की रक्षा, पूजा और पालन अपनी सगी माता के समान करना चाहिए। जो मनुष्य गायों को ताड़ना देता है, उसे रौरव नरक की प्राप्ति होती है। (हेभाद्रि)
• गोबर और गोमूत्र से अलक्ष्मी का नाश होता है, इसलिये उनसे कभी घृणा न करें। जिसके घर में प्यासी गाय बंधी रहती है, रजस्वला कन्या अविवाहित रहती है और देवता बिना पूजन के रहते हैं, उसके पूर्वकृत सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं। गायें जब इच्छानुसार चरती होती हैं, उस समय जो मनुष्य उन्हें रोकता है, उसके पूर्व पितृगण पतनोन्मुख होकर कांप उठते हैं। जो मनुष्य मूर्खतावश गायों को लाठी से मारते हैं, उनको बिना हाथ के होकर यमपुरी में जाना पड़ता है। (पद्मपुराण, पाताल .अ १८)
• गाय को यथायोग्य नमक खिलाने से पवित्र लोक की प्राप्ति होती है और जो अपने भोजन से पहले गाय को घास चारा खिलाकर तृप्त करता है, उसे सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। (आदित्यपुराण)
• अपने माता-पिता की भांति श्रद्धापूर्वक गायों का पालन करना चाहिए। हलचल, दुर्दिन और विप्लव के अवसर पर गायों को घास और शीतल जल मिलता रहे, इस बात का प्रबन्ध करते रहना चाहिए। (ब्रह्मपुराण)
गोमाता को दर्शन एवं उन्हें नमस्कार करके उनकी परिक्रमा करें। ऐसा करने से सातों द्वीपों सहित भूमंडल की प्रदक्षिणा हो जाती है। गाएँ समस्त प्राणियों की माताएं एवं सारे सुख देने वाली हैं। वृद्धि की आकांक्षा करने वाले मनुष्य को नित्य गोमाताओं की प्रदक्षिणा करनी चाहिए।
जिस व्यक्ति के पास श्राद्ध के लिए कुछ भी न हो, वह यही पितरों का ध्यान करके गोमाता को श्रद्धापूर्वक घास खिला दे, तो उसको श्राद्ध का फल मिल जाता है। (निर्णयसिंधु)
महर्षि वसिष्ठ जी ने अनेक प्रकार से गोमाता की महिमा तथा उनके दान आदि की महिमा बताते हुए मनुष्यों के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपदेश तथा एक मर्यादा स्थापित करते हुए कहा –
“नाकीर्तयित्वा गा: सुप्यात् तासां संस्मृत्य चोत्पतेत्। सायंप्रातर्नमस्येच्च गास्तत: पुष्टिमाप्नुयात्।। गाश्च संकीर्तयेन्नित्यं नावमन्येेत तास्तथा। अनिष्ट स्वप्नमालक्ष्य गां नर: सम्प्रकीर्तयेत्।।” (महाभारत, अनु ७८। १६, १८)
अर्थात् ‘गौओं का नामकीर्तन किये बिना न सोये। उनका स्मरण करके ही उठे और सवेरे-शाम उन्हें नमस्कार करें। इससे मनुष्य को बल और पुष्टि प्राप्त होती है। प्रतिदिन गायों का जाम लें, उनका कभी अपमान न करें। यदि बुरे स्वप्न दिखाए तो मनुष्य गोमाता का नाम लें।
इसी प्रकार वे आगे कहते हैं कि जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक रात-दिन निम्न मन्त्र का बराबर कीर्तन करता है, वह सम अथवा विषम किसी भी स्थिति में भय से सर्वथा मुक्त हो जाता है और सर्वदेवमयी गोमाता का कृपा पात्र बन जाता है।
मंत्र इस प्रकार है – “गा वै पश्याम्यहं नित्यं जाब: पश्यन्तु मां सदा। गावोsस्माकं वयं तासां यतो गावस्ततो वयम्।।” (महाभारत, अनु ७८। २४)
अर्थात् मैं सदा गौओं का दर्शन करूँ और गौओं मुझपर कृपा दृष्टि करें। गौओं हमारी हैं और हम गौओं के हैं। जहाँ गौओं रहें, वहीं हम रहें, क्योंकि गौओं हैं इसी से हम भी हैं